Sunday 7 January 2024

हिंदी-उर्दू के जनक बाबा गिलगिट जी को सलाम!

भारत की स्थानीय बोलियों को समझने के लिए ईस्ट इंडिया कंपनी ने 4मई 1800 ईस्वी में कोलकाता में फोर्ट विलियम कॉलेज की स्थापना की थी।ईस्ट इंडिया कंपनी के कर्मचारी जॉन बोर्थोविक गिलक्रिस्ट(सर्जन) को इसका प्रभार सौंपा गया था।

गिलक्रिस्ट ने दक्षिण भारत मे बड़े भाषा समूहों को देखते हुए अंग्रेजी में कुछ स्थानीय कर्मचारी प्रशिक्षित किये व कुछ अंग्रेज कर्मचारियों को स्थानीय भाषा मे प्रशिक्षण दे दिया।
समस्या उत्तर भारत को लेकर खड़ी हो गई।उत्तर भारत मे बारह कोस पर बोली बदल जाती थी।इसे खड़ी बोली कहा जाता रहा है।गिलक्रिस्ट ने इसको "स्टर्लिंग"कहा था। सैंकड़ों स्थानीय बोलियों के बीच तालमेल बिठाने के लिए सभी बोलियों के कॉमन शब्दों को लेकर नई भाषा की जरूरत पड़ी ताकि बड़े इलाके पर शासन स्थापित करने में आसानी हो।
गिलक्रिस्ट के निर्देशन में गुजराती ब्राह्मण लल्लूलाल को सर्टिफिकेट मुंशी नियुक्ति दी व हिंदी व्याकरण तैयार करने का जिम्मा सौंपा।खुद लल्लूलाल ने अपने हिंदी के ग्रंथ "प्रेमसागर"में लिखा है.....
"श्रीयुत गुनगाहक गुनियन-सुखदायक जान गिलकिरिस्त महाशय की आज्ञा से सम्वत् 1860 (अर्थात् सन् 1803 ई0) में श्री लल्लू जी लाल कवि ब्राह्मन गुजराती सहस्र अवदीच आगरे वाले ने जिसका सार ले, यामिनी भाषा छोड़, दिल्ली आगरे की खड़ी बोली में कह, नाम ‘प्रेमसागर' धरा।"
इसी तरफ फ़ारसी-अरबी-ईरानी भाषा के लिए कॉमन उर्दू का निर्माण किया गया।
बाद में हिंदुओं के तुष्टिकरण के लिए हिंदी भाषा व उर्दू के तुष्टिकरण के लिए उर्दू भाषा का प्रयोग किया जाने लगा ताकि हिन्दू-मुस्लिम आपस मे लड़ते रहे।
मुसलमानों ने उर्दू को अपनी मातृभाषा मानते हुए पाकिस्तान में राजकीय भाषा घोषित कर दिया और हिंदुओं ने भारत मे हिंदी को।
वैसे उर्दू व हिंदी राजकीय कार्यों की भाषा तक ही सिमटी रही।कुछेक शहरी इलाकों को छोड़ दें सब जगह दैनिक भाषा स्थानीय बोलियां ही है।चाहे पाकिस्तान में बलूच,पंजाबी हो या भारत मे अवधि,मैथिली,मारवाड़ी, हरियाणवी आदि हो।
हिंदी व उर्दू राजकीय कार्यों व संचार के लिए अच्छी भाषा बनी है व इनका उपयोग जारी रहना चाहिए।त्रिस्तरीय भाषा सरंचना आज के समय मे जरूरी है।स्थानीय,हिंदी व अंग्रेजी।
मातृभाषा वही होती है जो बचपन मे हम घर-परिवार में बोलते-सीखते बड़े होते है।
दसवीं कक्षा में पढ़ते समय प्रधानाध्यापक जी ने कहा कि घर मे भी हिंदी बोलना शुरू करो।घर मे हिंदी भाषा बोलने लगा तो मां ने बहन को कहा "डंडों दे ओ अंग्रेज घणो बणे!"
हिंदी-उर्दू के जनक बाबा गिलगिट जी को सलाम!
प्रेमसिंह सियाग

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