Thursday 15 February 2024

"दो जाट और एक लाला" वाले चुटकुले की तर्ज पर जोड़ता है फंडी, खापलैंड के किसान बिरादरी के NRIs को इसके साथ!

NRI बन गए हो तो बहुत तरक्की भी कर गए हो, ज्ञान भी अर्जित किया होगा; तो क्या विदेशों में फंडी इनको यह कह के जोड़ते हैं कि आइए हमें आपके ज्ञान का आदर है, आपके ज्ञान की जरूरत है, आप हमारे बराबर के भाई हो? नहीं, अपितु यह कह के जोड़ते है कि देखो, देश के बाहर काउंट तो तुम हम में ही होते हो, बेशक देश में हमारी बिरादरियों के आपसी झगड़े हों, बेशक वहां हम ऊंच-नीच में बंटे हों; लेकिन यहाँ हम अलग-अलग रहे तो देखो ईसाई एक है यहाँ, मुस्लिम एक है, सिख एक है; जब बात इनसे लड़ाई की आती है तो यह सब भी एक हैं, तो तुम भी हमारे साथ जुड़ के रहो| अलग-अलग रहोगे तो हम भी पिटेंगे व् तुम भी पिटोगे| 


यानि वही अमितशाह वाली घिसी-पिटी डरा के अपने इर्द-गिर्द रखने के थ्योरी| वो बचपन में एक चुटकुला बहुत सुना था ना कि एक बार दो जाट और एक लाला  आधी रात कच्चे रास्ते कहीं जावें थे व् लाला का हिया भय से पाट-पाट आवै था; तो लाला ने क्या तरकीब लगाई? यही कि हड भाई चौधड़ियो ड़ड़ लाग्दा हो तो एक मेरे आगै हो ल्यो और एक पाछै| हालाँकि यह तो चुटकुला हुआ करता था परन्तु 90% से ज्यादा ऊपर बताई पृष्ठभूमि के लोग NRI हो के भी इन फंडियों की नजर में, अपना डर भगाने के गॉर्डस से ज्यादा कुछ नहीं| जब यह देखता हूँ तो समझ आता है कि "किनशिप ट्रांसफर" कितना जरूरी है| कितना जरूरी है इनको सर छोटूराम, सरदार अजीत सिंह, सरदार भगत सिंह, चौधरी चरण सिंह आदि को समझना व् समझाना कि तुम्हारा अस्तित्व, तुम्हारी बुलंदी तभी है, जब इनकी धौण पे खड़ा हो के अपनी राजनीति, अपना साम्राज्य खड़ा करोगे| और इन फंडियों के साथ या तो बराबरी के दर्जे पे चलो या प्रोफेशनल तरीके से अन्यथा इनके साथ धर्म-किनशिप की बराबरी के चक्र में ज्वाइन करते हो तो भूल जाओ; जो इनके साथ सदियों के इतिहास में कभी तुम्हारे बुजुर्गों ने ही नहीं होने दिया, किया या कहो इनको इस लायक ही नहीं समझा तो तुम इनको इस लायक बना के क्या निकालोगे? "दो जाट, एक लाला" जैसे चुटकुले बना के इनके ऐसे "भय" दिखा के साथ रखने के फॉर्मूले जब तुम्हारे पुरखों ने ही चुटकुलों में उड़ा दिए तो तुम क्या हासिल कर लोगे? 


इनके छोटे-मोटे काम करवाते हैं परन्तु बदले में इनकी ताकत व् तथाकथित धर्म के नाम पे पैसा उड़ा ले जाते हैं; जबकि इससे ज्यादा तो हमारे NRI लोग ऊपर बताई थ्योरी को समझ के चलें तो तब अकेले अपने दम पे कर लें| सर छोटूराम व् चौधरी चरण सिंह, जिन्होनें डंके के चोट पे हिन्दू-मुस्लिम की राजनीति करी, उनके वंशज, सिर्फ इतने से डर के फंडियों को ज्वाइन कर जा रहे हैं, या इनसे साइड हो ले रहे हैं या इनके बहकावे में आ के चुप हो जा रहे हैं, जितना ऊपर बताया| सितम इसपे तब होता है कि आदर्श सर छोटूराम व् चौधरी चरण सिंह में ढूढेंगे परन्तु होक्का जा के इन फंडियों का ही भरेंगे| 


लाला: किसी भी जाति-धर्म का हो सकता है, इसको विशेष जाति से ना जोड़ा जाए, जब इस लेख को पढ़ा जाए तो!


जय यौधेय! - फूल मलिक

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