Saturday 13 April 2024

आज सविंधान दिवस पर बाबा साहेब आंबेडकर जी को नमन करते हुए, 2024 लोकसभा चुनावों बारे कुछ चेतावनियां!

पहले इलाज: नीचे 3 बिंदुओं में फंडियों द्वारा की गई "कान-फुंकाई" के "कान-झड़ाई" इलाज बता रहा हूँ; जिसको भी संविधान की फिक्र है, वह यह अपने-अपने घरों-गली-मोहल्लों में जरूर करे| 


क्योंकि यह जो आज का सविंधान दिवस मना रहे हो, खुशियां आदान-प्रदान कर रहे हो, कहीं यह आखिरी बार तो नहीं; क्योंकि तीसरी बार इनको और बना दिया और पता लगा अगली साल सविंधान ही नहीं छोड़ा (वैसे छुपे रूप से अभी भी कुछ छोड़ नहीं रखा, सविंधान में), आज जैसी खुशियां मनाने को? इसलिए एक जो सबसे जरूरी चीज है, ध्यान में लानी व् analyse करनी है, वह समझें नीचे के तीन बिंदुओं से:


1 - यह जो उत्तर-पश्चिमी भारत में किसान, सत्तारूढ़ वालों की रैलियों का विरोध कर रहे हैं; सत्तारूढ़ वाले आपको इनको एक जाति विशेष वाले बता के आपके "कान में फूंक मार रहे होंगे" कि इनका तो काम ही है हमारा विरोध करना| मात्र इतना मान के इनसे छिंटक के मत बैठना; क्योंकि यह तो अपना फर्ज पूरा कर रहे हैं आपको चेताने का, क्योंकि मसला सिर्फ खेती-किसानी जितना नहीं है; कल को जब सविंधान से ले आरक्षण, नौकरियों से ले लेबर अधिकार सब पर रन्दा फेरेंगे ये (जो कि छुपे रूप से तो काफी हद तक फिर भी चुका है, बस औपचारिक घोषणा के रूप में पर्दे से बाहर आना बाकी बचा हुआ है) तो फिर याद करते हुए हाथ मलने के अलावां कुछ नहीं बचेगा कि किसान तो सही कर रहे थे, हम ही नहीं उठे| किसान तो सही प्रेरणा दे रहे थे कि अभी वक्त है विरोध करो, परन्तु हमने ही सत्ता वालों की कान-फुंकाई मानी| 


2 - अगर अभी भी तथाकथित "इस बनाम उस" यानि "35 बनाम 1" टाइप वाली "कान-फुंकाई" में ही बहना है तो जरा सम्भल के| जरा सोच के देखें कि इस 1 में ऐसा क्या है जो इनकी बुराई करने वालों को हमें प्राइवेट में आ के इनसे डराने की जरूरत पड़ती है? व् जिस बात को ले के यह हमें 1 से डराते हैं उसको यह पब्लिकली क्यों नहीं बोल सकते; तो क्या यह खुद 1 से डरते हैं परन्तु उस खुद के डर को निकालने का जरिया हमें बनाते हैं? या जो हमें ऐसे प्राइवेट में एक से छुपा के चुगली के जरिए बताया जा रहा है वह सच है ही नहीं, व् उसको एक ने सुन जान लिया तो इनके इस तथाकथित अपनेपन की पोल-पट्टी खुल जाएगी; क्योंकि धरातलीय सच्चाई इससे बिलकुल भिन्न है? ऐसे बुराई कहें या चुगली कहें या कान-फुंकाई कहें, यह तो उसी की जाती है ना जिससे करने वाले को ही "inferiority complex" हो? इनको यह complex है तो रहने दो, आपको 1 से कोई शिकायत है तो सामने आ के कह सकते हो| बुजुर्गों से सुनते थे कि जिसकी पीठ पीछे आलोचना होती हो, कान-फुंकाई होती हो; उसमें कोई ना कोई गुण होता है, जो चुगली करने वाला चाह कर भी हासिल नहीं कर सकता, तो कान-फुंकाई करने लगता है| तो बचें इससे व् अपने समाज को बचावें; क्योंकि ऐसा ना हो कि बाद में पता लगे कि जिस एक बारे कान-फुंकाई की जा रही थी, उसका तो आपकी लाइफ में उस बंजारे वाले कुत्ते वाला महत्व था (तो था ही अगर ज्यादा नहीं), जिसको मार के बंजारा बाद में रोया था| तो इनकी इस चुगली में आ के अपने इस एक को खुद ही मत देना; वरना बाद में पछताने के अलावा कुछ ना मिलेगा| 


3 - यह आपको एक वालों के सीएम के दौर गिनवाते हैं, उनमें जो कमियां रही होंगी, वह गिनवाते हैं| तो भाई सिर्फ इसी एक तरफा एनालिसिस पे चल के निर्णय कर लोगे? तुलना नहीं करोगे, बाकियों से? उनसे जो 75 साल की आज़ादी काल में न्यूनतम 50 साल तो पीएम रहे? अलग-अलग राज्यों में सीएम रहे? कभी करके देखना, इस एक वालों ने ही सबसे ज्यादा एससी-एसटी-ओबीसी के भले के काम किए मिलेंगे व् ऐसे ऐतिहासिक काम किए मिलेंगे कि सपरे आएँगे आपको| सबसे बड़ा एक काम तो हरयाणा-पंजाब के परिवेश में बता भी देता हूँ, सर छोटूराम की राजनीति के जमाने से तुलना करना कि चाहे खाली जमीनें आवंटित करने का काम रहा हो, या खाली प्लाट बांटने का, या परस-चौपाल बनाने का; अगर दलित-ओबीसी समाजों के लिए इस एक वाली बिरादरी से आने सीएमओं ने सबसे ज्यादा ना किए हों व् बाकियों ने इनकी तुलना में नगण्य किए हों तो समझ जाना कि किस स्तर की "कान-फुंकाई" की जा रही है आपकी| रोटी-कपड़ा-मकान, में रोटी कमाने के लिए जमीन व् रहने के मकान चाहिए; यह जो आपको 5 किलो राशन वाले हैं, इनसे पूछना जरा, आपके मकान-खेती के लिए कितनी जमीनें आपको आवंटित करी इन्होनें पिछले दस सालों में? तब आप सही तुलना कर पाओगे कि सिर्फ 5 किलो राशन में टरकाने वाले सही या वह सही जो 5 किलो राशन तो देते ही थे, अपितु साथ में साथ 100-100 गज के प्लाट, सर छोटूराम व् सरदार प्रताप सिंह कैरों जैसे तो खाली पड़ी जमीनें भी आवंटित कर देते थे| होंगी बुराईयाँ एक वालों में भी परन्तु क्या उनके जितनी, जो इस एक के लिए आपके कान में फूंक के जाते हैं; ना एक के आगे यह बातें कहने जितनी सच्चाई इनकी इन कान-फुंकाई की बातों में व् ना यह एक जितने पाक-साफ़| पाक-साफ़ हैं तो क्यों नहीं पब्लिक डिबेट में चैलेंज दे लेते एक को एक की इन्हीं तथाकथित बुराइयों पे, जो इनको एक से छुपा के आपके कान में फूंकनी पड़ती हैं? 


इसलिए, निकलो बाहर इस फंडियों की कान-फुंकाई से; सवाल करो इनसे, और पूछो कि इन बातों में सच्चाई है तो क्यों नहीं पब्लिक में बोल के एक को चैलेंज करते व् जवाब मांगते? हमें क्यों कान में कहने चले आते हो यह बातें? अन्यथा यह तीसरी बार आए और  समझो, आपके हाथ से सविंधान-आरक्षण सब गया| उन बाबा आंबेडकर का दिया सविंधान जिसके लिए आज का दिन मना रहे हो, खुशियां आदान-प्रदान कर रहे हो| 


जय यौधेय! - फूल मलिक

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