Sunday 14 April 2024

आंधी चढ़ी, अंधोड़े आए

 रापट रोड़ भंभूळे आए।

गोळ मोळ घूम्मै जणू फिरकी
झाड़ सुधां ले सूळे आए।
गोस्से उडे, उडी थेपड़ी
रेतम-रेत सबेरे आए।
टिब्बा ठाकैं कड़ कै उपर
बादळ काळे भूरे आए।
किते चुप, किते मारैं दे कैं
दिन बैसाख के पूरे आए।
ओळे बरसैं, बरसै पाणी
ले अंबर कुए झेरे आए।
किसकै रोकैं रुक्या राम यो
बादळ जणू गभेरे आए।
चलै थ्रेशर आँख मींच कैं
लामणियाँ के रेळे आए।
बाळ तै उल्टा हाळी चाल्लै
सोळे हो दिन ओळे आए।
हाल्लै शीशम, टूटैं डाळे
खड़े नाज पै ढोरे आए।
बिन ठाए चलैं भरोटी
फोल्ले- फोल्ले पूळे आए।
खड़ी फसल म्हं दिया पसारा
गिंहुआ नै डडमेड़े आए।
एक झोकैं म्हं दिया बगा कैं
बख्त ये धूळम धूळे आए।
रणी गिंहू की सिर धर कैं
गाळ गळी म्हं तूड़े आए।
आंगे- बांगे उड़े कागले
दिन धोळै अंधेरे आए।
रुळदी फिरदी हांडैं टटीहरी
टेम ये तातै सीळे आए।
माणष डरजै, छुलै काळजा
बर्बादी के मेळे आए।

Author: Sunita Karonthwal

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