Wednesday, 17 April 2024

ऐन चुनावों के वक्त "अमर सिंह चमकीला" फिल्म की आड़ ले कर जातिवाद की खाई को चौड़ी कर वोटों में भुनाने का षड़यंत्र हर पंजाबी-हरयाणवी को समझना चाहिए!

पंजाबी-हरयाणवी इसलिए क्योंकि सबसे ज्यादा असर इस फिल्म का इसी एरिया में होना है| तो आखिर क्या ऐसा नैरेटिव खड़ा करना कि "चमकीला की हत्या इसलिए हुई कि वह दलित थे" मात्र संयोग है? नहीं एक भरापूरा प्रयोग है, इन इलाकों में नासमझ व् कोरी भावनाओं पर चलने वाले लोगों को बाँट के उनके वोट खाने का; अन्यथा जिसमें अक्ल होगी वह इन नीचे दिए तथ्यों पर जरूर विचरेगा:  


चमकीला की हत्या 8 मार्च 1988 को हुई - वह दलित थे।

लेकिन उसी साल ..... 

23 मार्च 1988 को पंजाबी के प्रमुख क्रांतिकारी कवि अवतार सिंह पाश की हत्या हुई - वे जट्ट थे। 

6 दिसंबर 1988 को पंजाबी फिल्मों के मशहूर एक्टर-निर्माता-निर्देशक वरिंदर (धर्मेंद्र के भाई) की हत्या हुई थी - वे भी जाति से जट्ट थे।

 

तो अगर चमकीला की हत्या दलित होने के कारण की गई थी तो अवतार सिंह पाश और वरिंदर क्यों गोलियों के शिकार बनाए गए थे?


चमकीला बेशक दलित थे पर मकबूल सबसे ज्यादा जट्टों-जाटों में थे। उनके तकरीबन तकरीबन सारे अखाड़ों के आयोजक जट्ट-जाट बिरादरी के लोग होते थे।

एक और बात.. पंजाबियों में बहुत ज्यादा आदर और सम्मान पाने वाले पुराने दौर के सबसे बड़े गायक माननीय लाल चंद यमला जट्ट जी भी दलित जाति के थे - चमार वर्ग से थे। राज गायक की उपाधि से नवाजे गए पंजाब के महान गायक हंसराज हंस  भी दलित हैँ। हनी सिंह, दलेर मेहँदी व् मीका भी दलित हैं। कौन सुनता है इनको सबसे ज्यादा जाट व् जट्ट ही ना? 


तो कब जाएगी तुम्हारी यह कुढ़ाळी ब्याण, कुत्ते दुम तुम कभी सीधे मत होना! 


जय यौधेय! - फूल मलिक

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