Friday 14 June 2024

बागडी जाट और देशवाली जाट!

बागडी जाट और देशवाली जाट के पहले रिश्ते नही होते थे! भूपेंद्र सिंह हुड्डा के दादा चौधरी मातूराम ने पहली बार देशवाली और बागडी जाट के बीच रिश्ते करवाने की मुहिम शुरु की और अपने परिवार से ही बहुत रिश्ते बागडी जाटों में किए! ये मुहिम जोर पकडती गई और धीरे धीरे सब सामान्य होता चला गया! जाटों में ब्याह रिश्ते का बडा ख्याल रखा जाता था और लगातार विकास की कोशिश जारी रहती थी! गोत्र छोड कर शादी करना भी इसी का हिस्सा था जो बाद में सांइटिफिक निकला!

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बागडी जाट उसे कहते हैं जो अपने मूल स्थान को छोड कर दूसरी जगह जाकर बस गया! पहले अकाल पडते थे लंबा सूखा आम था तो लोग जब एक जगह पर गुजारा नही हो पाता था तो दूसरी जगह चले जाते थे और बस जाते थे! एक तो मजबूरी और भूखे मरने की नौबत और दूसरे के यहां जाकर शरण लेना इससे उनके आत्मविश्वास और मनोबल पर फर्क पडता था तो वो कम बोल्ड हो जाता था! दूसरों के ईलाके में शरण लेने से उसके व्यवहार आचार और विचार पर बहुत फर्क पडता था और वो एक अलग ही तरह का व्यवहार करता था! उस ईलाके के मूलनिवासी उन पर हावी रहते थे और वो जैसे तैसे उनमें एडजस्ट होने और आगे बढने की कोशिश करता था! बागडी जाट दूसरों की बजाए ज्यादा व्यापारिक सोच का होता था और एक प्रकार का सामंतवाद उनके ईलाकों में देखने को मिलता था! 1890 के आसपास राजस्थान से भारी संख्या में जाटों का आगमन हरयाणा में हुआ और क्योंकि ज्यादा उपजाऊ जमींन पर और लोग बैठे थे तो वो हरयाणा के कम उपजाऊ और रेतीले ईलाकों में एडजस्ट हुआ और चौधरी देवीलाल का परिवार भी उसी समय राजस्थान से हरयाणा आया था!
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देशवाली जाट वो जो यहां का पहले से निवासी था! देशवाली का मतलब होता है जिसके देश के देश बसते हों! एक व्यक्ति जो अपने भाईयों के बीच रहता हो वो खुद को ज्यादा सुरक्षित महसूस करता है और उसका मनोबल और आत्मविश्वास ज्यादा होता है! उसे कोई भय नही होता और जब भय नही होता तो मानसिक रुप से व्यक्ति बहुत मजबूत होता है और बोल्ड होता है! उसकी एक अजीब तरह की साइकोलॉजी होती है और वो बात बात पर विरोध करता है! कुछ गांव ऐसे हैं जो अपने ईलाके में एक ही गोत के गांव हैं पर देशवाली हैं क्योंकि पूरा गांव अपने भाईयों के साथ रहता है! पहले जाटों का माइग्रेशन नही होता था और केवल राजस्थान से ही जाट हरयाणा आया था! हिंदू उतराधिकार अधिनियम के बाद जमींन में लडकी का हिस्सा होने के बाद जाटों का माइग्रेशन हुआ और वो दूसरे की देहल पर जाने लगे!
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चौधरी देवीलाल के परिवार ने एक अलग ही थ्योरी लोगों के दिमाग में घुसेड दी और उसने बागडी जाट को जिलों के आधार पर कहना शुरु कर दिया! अब जाटों की बसासत ऐसे तो बसी नही कि आगे चल कर जिले बनेगें तो जिले की सीमा से इधर बागडी और उधर देशवाली! इस थ्योरी को पेश करने में उस परिवार की अपनी सोच थी! वे ज्यादा से ज्यादा जाटों को अपने जैसा बनाना चाहते थे ताकि उनकी संख्या बढे और वोट के समय उनमें अपनापन आए और उनकी ताकत बढे और दूसरा सबसे अहम वजह ये थी कि उनका ये ना पता चले कि वो बाहर से आए हैं! लोगों ने उनकी इस थ्योरी पर ध्यान नही दिया और उनके समर्थकों ने बडे पैमाने पर ये बात फैलाई कि ये बागडी हैं और उन्होंने मोटा मोटी रोहतक सोनीपत झज्जर को छोड कर भिवानी चरखी दादरी तक वो बागडी में ले गये! किसी ने ये सोचा ही नही! जब चौधरी देवीलाल का परिवार सिरसा आया तो ऐसा तो था नही कि वहां कोई जाट बसता ही ना हो! वहां जो जाट बसते थे उनसे इस परिवार का लंबा संघर्ष चला भी है तो जो वहां पहले रहते थे वे देशवाली जाट थे और इनसे दबते नही थे! औमप्रकाश हिटलर उसी परिवार से थे जो देशवाली जाट थे! इस थ्योरी से उन्होंने भूपेंद्र हुड्डा के मुख्यमंत्री बनने के बाद खूब प्रचार किया जिससे वो चरखी दादरी को भी अपना ईलाका मानते थे जबकि चरखी दादरी देशवाली ईलाका है! अजय सिंह ने चुनाव ही इसलिए लडा था कि इस ईलाके को अपने साथ जोडा जाए! औमप्रकाश चौटाला इस बात को जानते थे कि जाटों के अगर नेता बनना है तो देशवाली जाट को अपनी तरफ करना होगा! महम कांड लंबा संघर्ष इस पर फिर कभी! चौधरी देवीलाल के परिवार ने कभी भी किसी देशवाली जाट को उभरने नही दिया! पूरे हरियाणा में एक भी बता दो! हर जगह से टिकट उस जाट को दी जो गोत से अकेला था और किसी ना किसी वक्त कहीं से माइग्रेट होकर आया था!
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सिरसा हिसार देशवाली जाटों के ईलाके हैं! चुरु झुंझुनूं नागौर देशवाली जाटों के ईलाके हैं! जमींन से कोई बागडी या देशवाली नही होता है! ये थ्योरी ही गलत है और चौटाला फैमिली द्वारा फैलाई गई है! पहले आर्य समाज और उसके बाद संघ बागडी जाटों में घुसा! मैं ये भी बताता चलूं कि रोहतक में भी बागडी जाट हैं और बागपत बिजनौर में भी बागडी जाट हैं! पश्चिमी और दक्षिणी हरयाणा थार का मरुस्थल है! रोहतक भी इसी में आता है! जहां जहां धूल भरी आंधी इस मौसम में चलती है तो वो थार के मरुस्थल पर बसा हुआ ईलाका है! रोहतक में नहरें पहले आ गई तो जमींन समतल होती चली गई इसका मतलब ये बिल्कुल नही है कि वो अलग ईलाका है!
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इस सब्जैक्ट पर पूरा पढने के बाद भी मुझे ये समझ नही आया कि चौधरी मातूराम ने ऐसा क्यों किया? बागडी जाट से उसके लगाव की वजह क्या रही! कोई अगर किसी को उसका हक दिलवाता है तो उससे कोई ना कोई लगाव की वजह होती है! बागडी जाट डी एन ए में बराबर होता है परन्तु जैसे कुछ दिन पहले उस जाट को कमजोर माना जाता था जिसके घर में भैंस नही होती थी और उसके बारे में ये कहते थे कि यो कैसा जाट है इसके तो डोली में दूध आता है! जब कोई जाट किसी रिश्तेदारी में जाता था तो सबसे पहले ये पूछते थे कि धीणा के है! भैंस कितने दिन में ब्यायेगी? जाट जमींन को छोड कर नही जाता था और बागडी जाट को जमींन छोड कर आनी पडती थी तो उसे डोली में दूध लाने वाले जाट की तरह ही कमजोर माना जाता था और रिश्ते नही होते थे! चौधरी मातूराम ने इसकी शुरुआत की और बाद में ये सब नार्मल हो गया! चौधरी मातूराम आर्य समाज के भी बडे और आरंभिक नेताओं में थे! उनके भाई ने आदमपुर में एक गांव भी बसाया जिसका नाम लुदास है!
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एक अंग्रेज अधिकारी की किताब के आधार पर और कुछ मेरी अपनी परिकल्पना के आधार पर लिखा है! आप कमेंट करें और खुल कर करें हो सकता है आप स्वीकार ना कर पाओ क्योंकि आपके दिमाग में पहले से कुछ और भरा है! चौधरी देवीलाल और चौधरी चरण सिंह दोनों बागडी जाट थे इसीलिए चौधरी चरण सिंह ने देवीलाल को मुख्यमंत्री बनाने के लिए वीटो की!

By: Sukhwant Singh Dangi

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