सन् 1911 तक पंजाब में 9203 जाट आर्य समाज के सदस्य थे। सबसे पहले नम्बर पर मेघ की संख्या 22115 थी। इसके बाद दूसरे व तीसरे नम्बर पर खत्री और अरोड़ा थे। जाटों की संख्या चौथे नम्बर पर थी। संख्या में ब्राह्मण और राजपूत पाँचवे व सातवें स्थान पर थे। इनके बाद आठवें और नोवें नम्बर पर अग्रवाल और सुनार की संख्या थी।छठे नम्बर पर ओढ़ जाति की संख्या थी, जिन्हें शुद्धि के तहत आर्य समाज से जोड़ा गया था।
इन आकड़ों से ये स्पष्ट है कि आर्य समाज से शहरी वर्ग पहले जुड़ा था, जिसने फिर किसान कामगारों को इससे जोड़ा। आगे चलकर इनके बीच आपसी वर्ग संघर्ष भी हो चला था और ये घास और मास आर्य समाजी नाम के दो धड़ों में बँट गए थे। इनमें हिंदू मत को लेकर भी टकराव रहता था, एक धड़ा ख़ुद को हिंदू मानता था तो दूसरा ख़ुद को हिंदू से अलग।
पंजाब के हरियाणा वाले हिस्से में आर्य समाज से जुड़ने वालों में ज़िला रोहतक के सांघी गाँव के जैलदार चौधरी मातूराम और उनके भाई डॉक्टर रामजीलाल हुड्डा थे। डॉक्टर रामजीलाल हुड्डा सन् 1893 में ज़िला हिसार के मेडिकल ऑफ़िसर थे और उसी दौरान आर्य समाज के सम्पर्क में आए थे। देहातियों में आर्य समाज का प्रचार करने में डॉक्टर रामजीलाल हुड्डा का बहुत बड़ा योगदान था।
(हम आर्य समाज से सहमत हो या ना हों ये एक अलग बहस या चर्चा का विषय है। पर हमें उससे पहले यह समझना बहुत ज़रूरी है कि आर्य समाज क्यों आया? किस वर्ग ने किस उद्देश्य से इसे अपनाया? और उसे समझने के लिए उस दौर के सामाजिक और धार्मिक हालात समझने ज़रूरी हैं। क्यों दो धड़ों में बँटा हुआ था? हिंदू मत को लेकर इनमें धड़ाबंदी क्यों थी? क्या इनका शुद्धि आंदोलन सिर्फ़ मुस्लिम को कन्वर्ट करने तक सीमित था?)
Rakesh Sangwan
Source: (census of India 1911, Punjab, Part-1, page no. 137)
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