किसी के भीतर का तथाकथित राष्ट्रवाद तो इसी बात के साथ खत्म हो जाता है, जब वह पेरिस ओलिंपिक जैसे स्टेज पे जा के देश का देश के झंडे का प्रतिनिधित्व करने वाली बेटी के भी विरुद्ध बोलने का जज्बा ढूंढ लाते हैं| क्या यह बात राष्ट्रवाद की परिभाषा में निहित नहीं होती कि कोई अगर आपके देश को एक इंटरनेशनल स्टेज पर रिप्रेजेंट कर रहा है तो वह आप समेत, हर एक देशवासी को रिप्रेजेंट कर रहा है? उसकी जीत में ख़ुशी व् उसकी हार में दुःख समेत उस खिलाडी को पुचाकरना-संभालना खुद को राष्ट्रवादी कहने का दम्भ भरने वाले की पहली भावना होनी चाहिए? अगर नहीं है तो ऐसे 'राष्ट्रवाद शब्द' को हाईजैक करके इसका अपने प्रोपेगंडा में इस्तेमाल करने वाले तमामों को फांसी पर टांग देना चाहिए| फांसी इसलिए कि पहले तो राष्ट्रवाद शब्द से चिपके क्यों और चिपकने के बाद उसी शब्द की परिभाषा के विरुद्ध व्यवहार करते हो? यह तक नहीं समझते कि जीते हुए से ज्यादा आपके हारे हुए भाई-बहन के साथ खड़ा होना होता है? इसको सीखने को कहीं आस्मां पे जाने की जरूरत नहीं है, बस सप्ताब (वेस्ट-यूपी, दिल्ली, हरयाणा, पंजाब, नार्थ-राजस्थान) के हर गाम-गली का कल्चर देख आओ जा के; शर्म करने लगोगे खुद को राष्ट्रवादी कहने पर| म्हारे पुरखे ऐसे नौसिखियों के लिए जो "उघाड़े" शब्द दे के गए हैं, वह गलत नहीं दे के गए|
और विनेश सिर्फ वह खिलाडी नहीं है जो पेरिस में मैडल से चूकी हो, अपितु वह वो खिलाडी है जिसने स्पोर्ट्स-सिस्टम को सुधारने हेतु, दिल्ली के जंतर-मंत्र पर ठीक वैसे ही आवाजें उठाई जैसे इसके पुरखे उठाते आए| विनेश के कौम-कल्चर-किनशिप का इतिहास उठा के देख लो, सन 714 वाले मुहम्मद-बिन-कासिम से ले आज वाले मोदी-शाह के राज तक; कोई शताब्दी ऐसी नहीं मिलेगी, जब इस कौम-कल्चर-किनशिप ने तमाम शासकों को उनकी गलतियां ना दिखाई हो, व् ज्यादा अड़ियल को ना झुकाया हो| और यह जज्बा जा नहीं सकता, क्योंकि यह कौम-कल्चर-किनशिप से ले जेनेटिक्स तक से आता है|
फूल मलिक
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