इस बार मेवात क्षेत्र से जो तीन मुस्लिम विधायक बने हैं उनमें से दो आफताब अहमद व मामन खान जाट जाति से हैं, पर इस ओर शायद ही किसी का ध्यान गया हो | इसका कारण है धर्म। नस्ली भाईचारे के बीच धर्म एक बहुत बड़ी दिवार है, जोकि दोनों तरफ से ही खड़ीं की जाती है। अगर कोई अपने को जाट का बेटा कह दे तो धर्मों के ठेकेदार तोहमत लगानी शुरू कर देते हैं, गुरु पीर पैगम्बरों की दुहाई देना शुरू कर देते हैं। लोग अपना कबीला बढ़ाते हैं, परन्तु जाट एक ऐसी जाति है जो अपना ही कबीला घटाने में विश्वास रखती है और इसीलिए देहात में एक आम कहावत है कि “जाटड़ा और काटड़ा (कट्टा) अपने को ही मारते हैं। रहबरे आज़म चौधरी छोटूराम कहते हैं – ‘जट्स एंड संसार (मगरमच्छ) कबील गालदा‘ , यह हमारी कौम की कमजोरी है। हमारे विरोधी सब अवसरों पर इसका लाभ उठाते हैं।
अपने कल्चर के मूल्यांकन का अधिकार दूसरों को मत लेने दो अर्थात अपने आईडिया, अपनी सभ्यता और अपने कल्चर के खसम बनो, जमाई नहीं!
Monday, 28 October 2024
डेह जाट - आफताब अहमद व मामन खान जाट जाति से हैं!
“ का , कबूतर , कम्बो कबील पालदा ,
जाट , मया , संसार कबील गालदा “
बिलकुल सही कहा है, कौवा कबूतर आदि सब अपना कबीला पालते हैं, पर जाट, झोटा, मगरमच्छ ऐसे हैं जो अपने कबीले का ही नुकसान करते हैं। जाट दूसरों के बहकावे में आकर खुद को बांटता आया है। चौधरी छोटूराम एक ऐसे रहबर हुए जिसने इनको एक झंडे निचे एक किया था, इनको इनके एक्के इकलास की ताक़त का एहसास करवाया था। परन्तु अफ़सोस कि उनके जाने के बाद इन्होने बिखरने में महीने भी नहीं लगाये। मैं आज के हरियाणा की बात करूँ तो आज कुछ गिनती के ही लोगों को पता होगा कि हरियाणा के मेवात क्षेत्र में जो मुस्लिम हैं उनमें बहुल संख्या मुस्लिम जाटों की है। गिनती के लोग ही जानते हैं कि अलवर रजवाड़े के विरुद्ध जो आन्दोलन हुआ था वह यूनियनिस्ट पार्टी के चौधरी मोहम्मद यासीन खान की अगुवाई में हुआ था, वह कौन थे किस जाति किस गोत्र के थे? चौधरी मोहम्मद यासीन खान धैंगल 1936 में यूनियनिस्ट पार्टी से पंजाब अस्सेम्ब्ली के सदस्य भी बने थे और इनको चौधरी छोटूराम के 14 हनुमानों में से एक माना जाता था। चौधरी मोहम्मद यासीन खान डागर/धैंगल गोत्र के जाट थे और इन्हीं के पौत्र जाकिर हुसैन इस बार बीजेपी की तरफ से चुनावी मैदान में थे। जाकिर हुसैन चुनाव हार गए और कांग्रेस से आफ़ताब अहमद धैंगल (डागर) चुनाव जीते। ऐसे ही फिरोजपुर झिरका से कांग्रेस के उम्मीदवार मामन खान की जीत हुई। इनके बारे में भी लोग सिर्फ इतना ही जानते होंगे कि कोई मेव मुस्लमान होंगे। जबकि मामन खान भी जाट है और इनका गोत्र गोरवाल है।
धैंगल असल में डागर गोत्र की ही पाल/खाप बताई जाती है। बृज क्षेत्र में जिन जाटों ने धर्म परिवर्तन किया उन्हें डेह कहा जाने लगा। डेह यानि जो डह गया। 11 वीं सदी में मेवात क्षेत्र में लोगों ने इस्लाम अपनाना शुरू किया था। बृज क्षेत्र के डागर पाल के जिन जाटों ने इस्लाम अपनाया उन्हें डेह जाट कहना शुरू कर दिया। डागर पाल के इन मुस्लिम जाटों का गोत्र डागर से धीरे धीरे कब कैसे धैंगल हुआ इसकी जानकारी आज खुद इनके ही लोगों को बहुत कम है।| ऐसे ही मामन खान जिनका गोत्र गोरवाल है, इस गोरवाल का इतिहास यह बताया जाता कि इनकी वंशावली महाराजा सूरजमल से जाकर मिलती है। ऐसे ही हथीन से मरहूम जलेब खान विधायक होते थे, जिनके बेटे इजराइल ने इस बार कांग्रेस की टिकट पर हथीन से चुनाव लड़ा था। जलेब खान अक्सर कहते थे कि मैं रावत गोत्री जाट हूँ।
मेवात में मुस्लिम जाटों को डेह कहने का नुकसान ये हुआ कि अब इन्होने अपने मूल गोत्र की बजाए पाल/खाप के नाम पर ही गोत्र लिखने शुरू कर दिए, जैसे कि धैंगल ,छिरकलोत आदि। मेवात में पालों का नक्शा पोस्ट के साथ लगाया है। मेवात में सहरावत, तंवर, पंवार,देशवाल, डागर,बडगुर्जर आदि ऐसे कई मुस्लिम जाट गोत्रों के गाँव हैं जो साथ लगते पलवल क्षेत्र में हिन्दू जाट गोत्रों के गाँव हैं। ये डेह जैसे बेतुके शब्दों का पूरा-पूरा फायदा उठाया कुछ पोंगा-पंथी इतिहासकारों ने, इन्होने इन मेवाती जाटों के दिमाग में कुछ नया ही इतिहास डाल दिया, जिस कारण आज ये खुद अपने मूल से हटकर पोंगा-पंथी इतिहास का शिकार हो कर अपने मूल से कट चुके हैं। इस लेख में मेरे कहने का सार यह है कि कब तक आखिर ऐसे बंटे रहेंगे? जब रहबरे आज़म चौधरी छोटूराम की बात करते हो तो उनके सूत्र को भी समझो। कबीलदारी कैसे होती है यह सर छोटूराम के फलसफे से समझो, न कि कट्टर पोंगे-पंथियों के फलसफे से। कब तक इन पोंगे पंथियों की बातों में आकर डहते रहोगे? नस्ली इतिहाद ही हमारी असली ताकत है और यही हमारे रहबर चौधरी छोटूराम का सन्देश था। अगर दिल से रहबरे आज़म का सम्मान करते हो तो उनके सन्देश का भी सम्मान करो, वरना फिर उनके प्रति हमारा यह सम्मान सिर्फ ढोंग ही है और यह बात सभी के लिए हैं चाहे वह किसी भी आस्था को मानने वाला हो।
यूनियनिस्ट राकेश सिंह सांगवान
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