Sunday, 20 October 2024

Other side of Karwa Chauth

 ऐतिहासिक तौर पर जिन समाजों में विधवा औरत को पुनर्विवाह की इजादत नहीं रही है, जिनमें विधवा औरत को मनहूस बता के काल-कोठरों में रखने की रीत रही है व् जिन समाजों में विधवा औरत को अपशकुनी मान ब्याह-शादी जैसे पारिवारिक मौकों से घरों में दूर रखा जाता है; जहाँ सती-प्रथा व् जोहर-प्रथा रही हैं; उन समाजों का त्यौहार रहा है "करवा-चौथ"| उन समाजों की औरतें उनके यहाँ की विधवा औरतों के दयनीय हालात देख के, उनके वहां की विधवा वाली जिंदगी ना जीनी पड़ जाए; इसलिए डर के मारे यह त्यौहार मनाती हैं| खाप-खेड़े-खेतों की उदारवादी जमींदारी मानने वाले समाजों में तो औरत पर यह सब जुल्म व् भेदभाव रहे ही नहीं कभी| इनके यहाँ तो ऐसे सिस्टम रहे कि जिनके चलते कहवाते रही कि, "जाटणी कभी विधवा नहीं होती"; जिनका ब्याह के वक्त ही यह सीटनें बोल के भय 'विधवा-की-उपविदित-दर्दनाक-जिंदगी-जीने' का भय निकाल के विदा किया जाता रहा है कि, "लाडो हे ले ले फेरे, यू मर गया तो और भतेरे"| 


हमें दिक्क़त नहीं, कि कौन समाज इस त्यौहार को मनाते हैं, हो सकता है उनके पास इसको अच्छा बताने के बेहतर कारण भी मिल जाएं; परन्तु अगर अपनी कल्चर-किनशिप की इन थ्योरियों को समझे बिना इन त्योहारों मनाओगे तो 35 बनाम 1 में भी फंसोगे व् कंधे से ऊपर कमजोर भी कहे जाओगे| क्योंकि कॉपीराइटेड त्यौहार तो तुम्हारा यह है नहीं, इम्पोर्टेड त्यौहार है व् इम्पोर्टेड त्यौहार बनाम कॉपीराइटेड त्यौहार कौन समाज कितने मनाता है यह भी एक पैमाना है, भारतीय समाज में आपकी कंधे से ऊपर की मजबूती मापने का| 


और ऊपर से हास्यास्पद यह भी कि "आज जिस चाँद में पति ढूंढेंगी, कल उसी में बच्चों को चंदा-मामा भी दिखाएंगी"| फिर ही जो जहाँ खुश हो, वह रहे! परन्तु हमारे लिए यह औरत के अंदर भय संचालित करने, उसको और ज्यादा नाजुक बनाने का तंत्र ज्यादा है; उसको मर्दवाद में धकेलने का मोहब्ब्ती लहजा है|


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