"बनवारे"
वक्त के साथ कितना कुछ बदल गया। गाँव की वे साधारण शादियाँ अब देखने को भी नहीं मिलती। जहाँ परिवार एक सप्ताह या ग्यारह दिन पहले इकट्ठा होता था। गाँव में तो खैर अभी भी परिवार कुनबे बाकी हैं पर शहर में विवाह बस दो दिन के रह गए हैं। एक महीने पहले विवाह का स्थान बुक हो जाता है। ना परिवार वालों को हाथ बंटाने की जरूरत और ना रिशतेदारी में बहू बेटियों को काम करने की जरूरत रह गयी। सब काम ठेकेदारी में हो जाते हैं।
पर, वे विवाह की मीठी रस्में, उनमें बहते परिवार का लाड हम आधुनिकता की अंधी दौड़ में खो रहे हैं। गाँव में विवाह आज भी दस दिन का होता है। पहले पाँच या सात दिन बनवारे निकलते हैं। जब बन्ना या बन्नी बान बैठते हैं तो सारा परिवार इकट्ठा होता है। बुआ, बहनें, मौसियाँ, ताईयाँ, चाचियाँ पहले बान पर सात सुहागनों का लाल धागा बाँधती हैं। इस दिन पूरे परिवार के लिए हलवा, रोटी, पेठे की सब्जी या छोले, मटर-पनीर बनता है। सबसे पहले ओंखली में सवा सेर जौ भरे जाते हैं और बारी- बारी दो सुहागनें मूसल से बिना आवाज किए हल्के हाथ चोट मारती हैं। फिर वही जौ हाथों में हाथ डाल बन्ने या बन्नी की गोद में भरे जाते हैं। अब बन्ने या बन्नी को पाटे पर बैठा कर सरसों का तेल, दही, हल्दी, मेहँदी दूब की घास से भीगो कर, पहले पैरों से होते हुए घुटनों, दोनों कंधों, फिर सिर पर लगाया जाता है। इस वक्त के लिए विशेष लोकगीत होता है। जैसे तेल मैं अपने भाई को चढ़ा रही हूँ तो लोकगीत मेरे नाम से जाया जाएगा।
तेई ए तेलण तेल
म्हारै रै ए चमेली का तेल सै
किसियां की सै धीयड़ियाँ बाई
किसियाँ न तेल चढाईयां
धर्मबीर की सै धीयड़ी बाई
सुनीता न तेल चढाईयां
राणी की न तेल चढ़ाईयां
राजां की न तेल चढाईयां
सुथरी न तेल चढ़ाईयां
और यही तेल अगर घर की बहू चढ़ा रही है तो गीत में मसखरी यानी मखौल आ जाता है। कोई मोटी है तो गाया जाता है....
सूकळी न तेल चढ़ाईयां
सूरी की न तेल चढाईयां
गधड़याँ की न तेल चढाईयां
माँगण्यां की न तेल चढ़ाईयाँ
इस प्रकार सिठने दे देकर खूब गीत गाए जाते हैं। फिर भाभियों, बहनों द्वारा जौ बेसन का उबटन मला जाता है। फिर स्नान होता है। जिसमें गीत गाया जाता है।
ताता पाणी हे संमदरां का
बेटा नहाईयो ए धर्मबीर का
म्हारै पोता नहाईयो ए सीताराम का
ताता पाणी ए संमदरां का
परिवार के सभी आदमियों के नाम गीत में लिए जाते हैं। उसके बाद बुआ या बड़ी बहन आरता करती है। आरता कांसी के बड़े थाल में किया जाता है। गीले आटे का दीया बनाया जाता है और चारों तरफ से ज्योत जलती है। लोहे की उल्टी छलनी से उसे ढका जाता है। यह गीत गाया जाता है
एक हाथ लोटा
गोद बेटा
करै हे सुहागण आरता
हे राहे ना जाणूं
करा ए ना जाणूं
क्यूकर चीतूं ए बरणो आरता
आरता करने के बाद बन्ने या बन्नी का मुँह चीता यानी मुँह पर हल्दी के पाँच टीके किये जाते हैं। सिर पर लाल बंधेज की चुनरी रखी जाती है और गीत गाया जाता है...
ऐ मन्नै लाओ न जमुना का नीर रे
गौरा मुखड़ा चितियां बे
हे मन्नै लाओ न हल्दी की गांठ रे
गौरा मुखडा चितियां बे
हे मन्नै लाओ न जीरी के चावळ रे
गौरा मुखडा चितियां बे
हे मनै लाओ न ढकणी की काळस रे
काजळ घाल्ली नैण भरा बे
हे मन्नै लाओ न हल्दी की गाठज रे
गौरा मुखडा चितियां बे
हे तेरा किन सुहागण चित्या सै मोळज रे
गौरा मुखड़ा चितियां रे
हे तेरा किन सुहागण चित्या सै मोड़ज रे
काजळ घाल्ले नैण भरया बे
हे सिया नथले तै भरी सै माँ ए तो
माँग भरी जग मोतियाँ बे
ए या धर्मबीर की कहिए सै धी ए तो
किसियां साहिबा की कुल बहू ए
हे या सीताराम की कही ए सै धीयड़ ए
शादीराम साहेब कुल बहू ए
बे
हे या किसियां की गाइए सै माळा तो
किसे ए साहेब की गोरडी बे
हे या धर्मबीर की गाईये माळा तो
सुल्तान साहेब गौरड़ी बे
इस प्रकार नहाने से लेकर आरते तक के गीत गाये जाते हैं। बान दूसरे परिवार वाले दें तो बनवारा चुन्नी के नीचे निकलता है। ना कोई ढोलक, ना कोई डी जे की झक झक, बस सादगी भरे गीतों से गली गूंजती हैं। कुंवारी लड़की या लड़के चुन्नी के पल्ले पकड़ते हैं और बन्ना या बन्नी नीचे चलते हैं। गली लोकगीतों के मीठी आवाज से भर भर जाती है।
किसियां बाना ए नोंदियो
घर किसियां कै ए जाए
यो बनवारा हे नोंदियो
रणबीर बाना ए नोंदियो
घर धर्मबीर कै जाए
यो बनवारा ए नोंदियो
चालो चालो ए बाग मैं
नींबू लागे दो चार
यो बनवारा ए नोंदियो
काचे नींबू ना तोड़ियो
मालण देगी ए गाळ
यो बनवारा ए नोंदियो
पाके पाके रे रसे भरे
चूसैं थारोड़ी नार
यो बनवारा ए नोंदिये
ज्यूं ज्यूं खूटी ए सार की
लहरे लेगा ए हार
यो बनवारा ए नोंदियो
कोरा घड़वा ए नीर का
धरती चासैं हे जा
यो बनवारा ए नोंदियो
चातर हो तो पी लियो
नुगरा तिसाया ए जा
यो बनवारा ए नोंदियो
नुगरा मानण ना छेडियो
बिन छेंडें यो छिड़ जाये
यो बनवारा ए नोंदियो
छगण ल्या दयो ए चौंपटी
चारूं पल्लै ए फूल
यो बनवारा ए नोंदियो
फिड्डे मारो ए मोजड़े
चालो नानहोड़ी चाल
यो बनवारा ए नोंदियो
क्रमशः
सुनीता करोथवाल
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