मीन-मेख, यह कि सिख में भी तो जातिवाद है, समुदाय के हिसाब से अलग गुरुद्वारे हैं; तो वहां में व् यहाँ फंडियों वाले मनुवाद में फर्क क्या है; इसलिए यहीं पड़े रहो|
Idealism यह कि सब कुछ 100% परफेक्ट हो तो फलां धर्म में जाएं अथवा फलां में ना जाएं|
ऐसे विचारक प्राकृतिक थ्योरी के सिद्धांत पर चल के सोचते ही नहीं हैं| यह सोचते ही नहीं कि प्रकृति यानि तत्व कहता है कि 100% आदर्श यानि Ideal कुछ होता ही नहीं है| धर्म-सम्प्रदाय-समाज-जाति चलती हैं मानवता, बराबरी व् जस्टिस के इंडेक्स की पालना पर; जो ज्यादा मानवता-बराबरी-जस्टिस सिस्टम देता मिले; इंसान को उस समूह-थ्योरी-फिलोसॉफी के साथ जाना-रहना सर्वोत्तम होता है|
और इस पैमाने पर देखो तो मनुवाद, सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के किसी भी धर्म-सम्प्रदाय-थ्योरी-फिलोसॉफी से अमानवीय, असमान व् अन्यायकारी है| दरअसल यह इकलौता ऐसा कांसेप्ट है धरती पर जो आपको धर्म भाई बोल के, आपके ही खिलाफ चतुर्वर्णीय वर्गीकरण करने चलता है (जो कीदेखा जाए तो इसी के शास्त्रों के विरुद्ध है), इस बनाम उस तो इतना ज्यादा है जैसे कि किसी कॉर्पोरेट कम्पनी का कंस्टीटूशन हो कि यह तो करना हमारा जन्मसिद्ध नियम है, इसके बिना तो सर्वाइवल ही नहीं|
अत: इन दोनों की अवस्थाओं से बचो| ना तो idealism की तरफ जाओ व् ना ही मीन-मेख निकालने की तरफ|
जाओ तो अपनी पुरख किनशिप के सिद्धांतों की तरफ व् वह सिद्धांत सबसे ज्यादा किस धर्म-सम्प्रदाय के नजदीक हैं उनकी तरफ| मेरे अनुसार यह चीजें कुछ-कुछ ऐसे हैं:
1 - खाप-खेड़ा-खेत किनशिप का सबसे नजदीकी नेचुरल धर्म सिख ही है| इसमें जो अलग-अलग गुरूद्वारे होने की बात है, यह 90% फंडियों द्वारा इनके यहाँ 'कान-फुंकाई' करवा के बनवाए हुए हैं; और फंडी 'कान-फुंकाई' हर उस जगह करता है, जो उसका टारगेट हो या उसको टक्कर देता दीखता हो व् खुद उसके ऊपर 'जैसे को तैसा' ना करता हो| जैनी जैसे को तैसा करता है; इसलिए फंडी कभी जैनियों को नहीं छेड़ता| सिख धर्म बस इतना कर ले, उसी दिन यह 'खालिस्तान' से ले तमाम सिखों को टारगेट करने के फंडी के प्रोपैगैंडा खत्म हो जाएंगे| मैं सिखी में जाने का समर्थक हूँ अगर खाप-खेड़ा-खेत किनशिप के यौद्धेयों के वाणी बनवाने की आज्ञा व् हरयाणवी भाषी इलाकों में गुरुद्वारों में पंजाबी के साथ-साथ हरयाणवी भाषा को स्थान दे दे तो|
2 - कल्चरल यानि ब्याह-शादी के नियमों व् खेती-किसानी के नियमों व् नैतिकताओं को देखो या व्यापार में नैतिकता देखो; इस मामले में ईसायत खाप-खेड़ा-खेत के अगला नजदीक कांसेप्ट है| गौत-नात व् खेती-किसानी के नियमों पर तो इस ग्रुप की अपनी रिसर्च हैं, जो इन नजदीकियों को स्थापित करती हैं|
3 - अगर ब्याह-शादी के नियमों को छोड़ दो तो मुस्लिम अगला नजदीकी धर्म कहा जा सकता है खासकर व्यावहारिक व् व्यापारिक नैतिकता में|
4 - जैनियों में अनैतिक पूंजीवाद ना हो तो, यह धर्म भी बहुत सटीक है हमारे लिए| परन्तु इनमें अनैतिक पूंजीवाद इतना ज्यादा है कि इनका सबसे बड़ा नाम अडानी चारों तरफ इन मसलों से घिरा हुआ है; शाह की अनैतिकता से आज कौन अनजान है|
5 - बुद्ध धर्म तो इतना उदारवाद है कि इसकी उदारवादिता की अधिकता ही इसकी ठीक वैसे ही दुश्मन रही जैसे खाप-खेड़ा-खेत वालों की रहती आई; यह जल्द ठीक ना की गई तो बहुत बड़े संकट सामने खड़े हैं|
जय यौधेय! - फूल मलिक
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