Monday, 2 December 2024

जिस कलानौर रियासत में कौला-पूजन होता था, उसमें ना तब ना आज एक भी जाट-बाहुल्य का गाम नहीं आता!

आज तक यही प्रचार होता रहा है कि कलानौर का नवाब जो भी नई नवेली हिंदू दुल्हन आती थी उसको अपने पति से पहले नवाब के पास जाना पड़ता था, जिसको कौला पूजना कहते थे| वहीं सो-कॉल्ड फंडियों के महिमामंडन में रजवाड़ों बारे यहां पर भी सभी बिरादरियों को अपने साथ बदनाम करने की कोशिश, जबकि सच्चाई यह है कि कलानौर के नवाब के नीचे एक भी जाट-बाहुल्य कहिए या जाट-खेड़े का गाम नहीं आता था, जो जो गांव आते थे नवाब के नीचे वो सभी राजपूत बाहुल्य गाम थे, जो कि आज भी हैं| 


आजादी से पहले, यहां कलानौर का नवाब मुस्लिम पंवार गौत्री रान्घड होता था और इसके नीचे लगभग 70 से 80 गांव थे जो सभी हिंदू-मुस्लिम राजपूतों-रांघड़ों के थे| आजादी के बाद बहुत सारे (40 के करीब) मुस्लिम राजपूतों के गांव पाकिस्तान चले गए थे, जो बचे वो फ़ैल के आज यहां पर तीस छोटे-बड़े गांव राजपूतों के पवार गोत्र के अभी भी हैं जिनके प्रधान ठाकुर रामेश्वर सिंह पवार हैं| कलानौर गोंद सावन तपा का और खरक कैलेगा के 28 से ज्यादा गांव के प्रधान ठाकुर महेंद्र सिंह पवार हैं| इनके गाँवों की लिस्ट नीचे देखें:


कलानोर तपा बोन्द सावड तपा पर्धान ठाकुर रामेश्वर सिंह पन्वार के नीचे आने वाले कलानोर के गाँव निम्लिखित हैं - बोन्द, छोटी बोन्द, रन्कोली, साजुर्वास, सावड, साक्रोड, रानिला, हिन्दोल, मान्हेरु, माल्पोश, निमडी, अचिना, मिर्च, कमोद, बडाला, कायला, लाम्बा, सोप, अजित्पुरा, छोटी चान्ग, मिश्रि, उण, कोल्हावास, नागल आदि| 


खरक केलन्गा तपा प्रधान ठाकुर महेंद्र सिंह पवार के नीचे आने वाले गांव निम्नलिखित है - खड़क, बड़ी, कैलेंडर, फुल पूरा, रेवाड़ी, बड़ी रेवाड़ी, छोटी सीसर ढाणी, हरसुख, खरक, छोटी नौरंगाबाद, कलानौर, काहनूर, लिंगाणा, लहाली, बनियानी, अव्वल अल्लाह, मसूदपुर, पटवा पूर्व, तैमूर पुर, सैंपल वगैरा|


जाटों का इन गाँवों से हो कर गुजरना जरूर होता था और उसी से किस्सा जुड़ा है कलानौर रियासत तोड़ने का| जब दादीराणी समाकौर का ढोला इस रियासत के रास्तों से होते हुए गुजरा था तो नवाब के सैनिक गलती से ढोला रोक बैठे व् फिर जो जाट खापों के किया वह आज "कलानौर रियासत ही तोड़ देने" के इतिहास के नाम से दर्ज है| 


जब ढोला रोका गया तो दादीराणी समाकौर ने विरोध किया व् वहां से निकल सीधी बाप से जा बोली कि, "थमनें जाटों के ब्याही सूं या किसी और के?" तो बाप ने बेशक निसंदेह यही कहा कि, "जाट के"| तो बोली, "कलनौरियाँ कौन हुआ फिर मेरा ढोला रुकवानिया?" और फिर मलिक खाप बैठी, फैसला हुआ सर्वखाप बुलाई जाए व् कलानौर को तोडा जाए| सर्वखाप हुई, मलिक-हुड्डा-बुधवार-सांगवान व् और भी बहुत खापों के चौधरी पहुंचे| इसमें मलिकों के भाणजे गाम बुटाना से दादावीर ढोला सांगवान भी पहुंचे| 


हर खाप ने अपने-अपने गाम के अखाडों से रातों-रात पहलवानी दस्ते बुलाए व् हो गई खाप-आर्मी खड़ी| जा टेकी कलानौर तले खाप की गढ़ी; जिसको आज के दिन "गढ़ी मुरादपुर टेकना" गाम के नाम से जाना जाता है; इसमें गढ़ी यानि खाप की बैरक लगी थी यहाँ, मुरादपुर यानि कलानौर को तोड़ने की मुराद पूरी हुई यहाँ व् टेकना यानी खाप आर्मी की टिकी थी यहाँ आ के| 


सभी बखूबी लड़े, परन्तु मलिकों के भानजे दादा ढोला का पराक्रम से अविरल हो के निखरा व् सबसे ज्यादा रांघड़ काटे| बताते हैं कि इसी बात पे जिद्द लगी कि किसने ज्यादा काटे व् इसी जिदा-जिद्दी में वो आपस में ठन गए व् आमने-सामने की या घात लगा के जैसे हुई; इसमें दादा ढोला वीरगति को प्राप्त हुए| अनजाने में हुई इस घटना इल्जाम आया मलिकों पे कि भानजा मरवा दिया, अपने ही बुलावे पे करे सफल युद्ध में| गठवाला खाप बैठी व् निर्धारित हुआ कि क्योंकि भानजे का शौर्य व् बलिदान सबसे बड़ा था तो इस जगह जहाँ विजय प्राप्त हुई, यहाँ सांगवान गौत का खेड़ा बसाया जाए व् गठवाले का इस खेड़े साथ भाईचारे का रिश्ता रहेगा; यानि ब्याह-वाणे नहीं होंगे| तब से "कलानौर रियासत विजय" की पताका के रूप में आज भी बसता है "गढ़ी मुरादपुर टेकना"| 


कलानौर विजय में कुछ और भी बातें हुई जैसे कलानौर का सिरमौर निशाँ व् तख्त आज भी हुड्डा सर्वखाप हेडक्वार्टर सांघी की परस में लगा हुआ है; जो कि निशानी स्वरूप हुड्डा ले गए थे| 


और दादीराणी समाकौर मलिक को धर्म बहन मानते हुए, आज भी गाम सुनारिया के बुधवार जाटों और मोखरा के मलिक जाटो के बीच शादियां नही होती। व् ऐसी ही और भी ऐतिहासिक रीतें, व् बुलंदियां "down fall of Kalanaur" से जुडी हुई हैं| 


अत: कौला पूजन ना जाटों में कभी हुआ और ना होने दिया| किसी ने चाहा तो इल्जाम-ए-कलानौर तसदीक हुआ|


ऐसा ही एक किस्सा पंजाब के फ़िरोज़पुर जिले की खाप का है; जब अकबर ने एक जाट की छोरी से ब्याह करना चाहा; प्रस्ताव भी भेजा परन्तु खाप ने इंकार कर दिया तो अकबर हमला करने को उतारू हुआ| परन्तु अकबर के सलाहकारों ने समझा दिया कि कहीं भी पंगा लेना परन्तु खाप से नहीं व् अकबर के काफिले को खाली हाथ खामोश लौट जाना पड़ा| 


मुस्लिमों में भी यह हिन्दू से मुस्लिम बने रांघड़ों में बताया जाता है, अन्यत्र मुस्लिम में नहीं| यह रांघड़ भी इसको हिन्दू में मिलने वाले "देवदासी" से ही ले गए बताये गए; यहीं इस बुराई की जड़ में भी फंडी सिस्टम ही है| क्योंकि "चोर चोरी से जा, हेराफेरी से नहीं" यानि आदतें वही, बस धर्म बदल लिया तो रूप बदल लिया|


जय यौधेय! - फूल मलिक

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