Tuesday, 3 December 2024

आज 2024-25 में कैसे किसान आंदोलन का साथ दिया जाए व् कैसे आंदोलन किया जाए?

अब जब केंद्र में बीजेपी एनडीए के रूप में तीसरी बार सत्ता में है, गुजरात-महाराष्ट्र-मध्यप्रदेश लैंडस्लाइडिंग मेजोरिटी से जीत चुकी है; हरयाणा बॉर्डर मेजोरिटी से आ गई है, राजस्थान में भी ठीक-ठाक बहुमत से है; यूपी उपचुनाव में 9 में से 7 सीट निकाल ली है तो किसान यूनियनों व् नेताओं को सबसे पहले यह समझना होगा कि जब 2020-21 वाले आंदोलन में पूरा SKM एक था तब ही जा के 13 महीने में यह माने थे; तो अब सुन लेंगे ये आपकी? और वह भी यूँ गुटों में बंट के आंदोलन करने से?


या तो पहले आपस में बैठ के अपनी आपसी ईगो-क्लेश-द्वेष, प्रत्यक्ष-hidden तमाम तरह के एजेंडा बतला के अपनी भड़ास निकाल के एक हो जाईए; अन्यथा घर बैठ जाइए| कम से कम पहले से ही गरीबी की मार खा रहे किसान के ट्रेक्टर-ट्रॉली तुड़वाने, तेल-पानी-राशन फुंकवाने, सड़कों पे सोना व् टेंशन में रहने से तो पिंड छूट जाएगा बेचारों का| हासिल कुछ है नहीं, ऐसे सालों-साल बिना आपसी एकता के 'अपनी-अपनी डफली, अपना-अपना राग' की तर्ज पर टुकड़ों में सड़कों पे बैठ के क्या गिनीज-बुक-ऑफ़-वर्ल्ड-रिकॉर्ड में विश्व के सबसे लम्बे धरने के तौर पर नाम दर्ज कराना चाहते हो? रहम करो किसानों पर व् हाथ मारो अपनी अक्ल को| 


और फिर भी अक्ल को हाथ नहीं मार रहे तो पक्का मानों, आप खुद या आपको जो बहका के वहां बैठाया है; वह बीजेपी-संघ के इशारे पर ही यह सब कर-करवा रहा है| और उसका उद्देश्य है आपके जरिए बड़े SKM समेत सभी किसानों को यह संदेश देना है कि कितने ही धरने कर लो, हम नहीं सुनने वाले; बल्कि तुम्हे धुल-धर्षित कर तुम्हारी औकात में ला देंगे; वही औकात जिससे किन्हीं जमानों सर छोटूराम जैसे निकाल गए थे| यानि इन टुकड़ों में इधर-उधर बैठ के, बिना सरजोड़ किए जो हो रहा है; यह आंदोलन नहीं कहा जा सकता; यह तो संघ व् बीजेपी के इशारे पे किसानों में अव्वल दर्जे की हताशा-निराशा भरना चल रहा है| 


सीधा सा सवाल है, अगर किसानों के लिए इतना दर्द है तो सभी यूनियनों के साथ बैठ के सरजोड़ क्यों नहीं करते? एक कदम पीछे रह के क्यों नहीं चलते; लीडरी चाहिए ही किसलिए? और नहीं तो सर छोटूराम से ही सीख ले लो; उस आदमी के बनाए कानूनों को बचाने, उस जैसे हक़-अधिकार के लिए सड़कों पे आए हो तो; उससे यह भी सीख लो कि वह कभी लीडरी में नहीं चला; एक कदम पीछे चला; कभी प्रीमियर नहीं बना; बल्कि रेवेन्यू मिनिस्टर रहा; कभी यूनियनिस्ट पार्टी का एक छत्र लीडर नहीं कहलवाया; बल्कि समूह बना के चला| बताओ कब वह यूनाइटेड पंजाब का प्रीमियर था, कब फ्रंट पे था वह; सेकंड-इन-लीड रहा व् तब भी वो सारे कानून बना गया, जो उसको बनाने थे| यह लीडरी का कीड़ा वक्त रहते छोड़ दो; क्योंकि काम करने की नियत रखते हो किसान के लिए तो वह तो सर छोटूराम की तरह एक कदम पीछे रहते हुए भी कर जाओगे; अन्यथा यूँ ही संदेह की दृष्टि से देखे जाओगे; यूँ ही किसान-कौम की ऊर्जा-संसाधन-इंसान खपवाओगे| 


EGO-ETHO-PATHO तीन चीजें होती हैं, जो एक सम्पूर्ण लीडर बनाती हैं| सिर्फ अकेले EGO पे सवार हो लीडरी चाहने वाले; इतिहास की कौनसी गर्द की सबसे निचली तह में जा के दफन होते हैं; योगदान के नाम पर उनको खुद इतिहास तक याद नहीं रखा करता| अकेले EGO पे चलने वाले को ही बीजेपी-संघ जैसे तुम्हारे विरोधी सबसे पहले आ के दोबच्ते हैं व् या तो दबा देते हैं या अपना प्यादा बना लेते हैं| ऐसे में याद रखे जाओगे तो सिर्फ EGO के सर चढ़ भटकन में टूरने वालों की तरह| EGO से हट के जैसे ही ETHO व् PATHO पर भी विचार के आओगे तो समझ आएगा कि सभी से सरजोड़ बिन राह कितनी दुष्कर है|  


जय यौधेय! - फूल मलिक

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