Wednesday, 31 May 2017

पंजाब केसरी अख़बार नहीं मानता जाटों को हिन्दू!

अरे रलदू, भाई जरा पहुँचाना इस बात को "हिन्दू एकता और यूनिटी" चिल्लाने वाले अंधभक्तों तक; उनमें भी खासकर जाट अंधभक्तों तक तो जरूर से जरूर पहुँचवा भाई! जिन्होनें हिंदुत्व के नाम पर इनके गलों-पेटों व् दान-पेटियों में अपने घर के घर उड़ेल दिए| और पुछवा कि पंजाब केसरी की इस "हिन्दू एकता" तोड़ने वाली बात के विरोध में कितने आरएसएस वालों ने, कितने अन्य हिन्दू संगठनों ने पंजाब केसरी के कौनसे-कौनसे दफ्तर के आगे धरना दिया या इसका खंडन ही किया?

यही देश का चौथा स्तम्भ होने का दायित्व होता है क्या इन अखबारों का?

फिर लोग यह भी पूछ बैठते हैं कि जाट-जाट क्यों चिल्लाते हो; ऐसे लोग भी देख लो, जाट-जाट, जाट नहीं चिल्लाता बल्कि यह लोग चिल्लाते हैं| पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा भी नहीं होगा कि वो जाट हैं, यह तो इन्हीं को मिर्ची लगी हुई जाट को हिन्दू नहीं बता के सिर्फ जाट बताने की| 

जय यौद्धेय! - फूल मलिक


100 % आरक्षण की मांग और किसानी मुद्दों को उठाना ही सही मार्ग रहेगा जाटों के लिए!

जिस कूटनीतिक तरीके से मोर्चेबंदी चल रही है ऐसे हालातों में अकेले आरक्षण के मुद्दे पर डटे रहने से जाट-समाज को आगे की राह नहीं मिलने वाली| आगे की राह मिलेगी किसानी मुद्दों को उठाने से जिसके लिए शायद अहीर-गुज्जर-मीणा व् अन्य किसानी जातियाँ भी जाटों की बाट जोह रही हैं कि कब जाट इस आरक्षण के मुद्दे से निबटें (या इसके समानांतर किसानी मुद्दे भी उठावें) और कब किसानों के मुद्दों को लेकर एकजुट हो किसानी-युग की वापसी करवाई जाए| हालाँकि अहीर-गुज्जर-मीणा व् अन्य किसानी जातियों की तरफ से फ़िलहाल ऐसा कोई संकेत भी नहीं आया है कि वो किसानी मुद्दों पर लड़ने को तैयार हैं| परन्तु इसकी संभावना ज्यादा है कि यह जातियां जाटों द्वारा किसानी मुद्दों पर आगे बढ़ने की इशारा मिलने वाली भाषा का इंतज़ार कर रही हों|

यह तो तय है कि चाहे कोई जाटों से कितना ही चिढ़ता रहे और कोई कितना ही कुछ कह ले; परन्तु उत्तरी भारत में किसानी मुद्दों पर जब जब कोई क्रांति या आवाज उठी; जाट सर्वदा से उसका अग्रमुख रहे हैं| कोई भी किसी अन्य किसान जाति का नेता अपने झूठे अहम् की तृप्ति हेतु कितना ही जाटों से किसान जातियों को तोड़ने के प्रयास कर ले, परन्तु किसान का हित जिस दिन चाहेगा; बिना जाट सोच ही नहीं पायेगा| और यह बात जाट के अलावा अन्य किसान जातियों को भी सोचनी होगी कि अपने जातिगत नेताओं के झूठे दम्भ पालने हेतु अपने किसानी हक यूँ ही बलि चढ़ाते रहोगे या इन नेताओं को यह भी कहोगे कि अगर किसान के भले की बात करके, सब किसान जातियों को साथ नहीं उठाते हो तो घर बैठो; कौम की आर्थिक बदहाली की कीमत पर तुम्हें और कितना पालें?

दूसरी बात, बीजेपी जाटों को आरक्षण देगी तो 2019 के चुनावों के आसपास देगी, वो भी इलेक्शन से 2-3 महीने पहले और 2-3 महीने बाद तक| और फिर वही स्टेटस-कवो मेन्टेन कर दिया जायेगा जाट-आरक्षण का जो आज है|

मेरा मानना है कि जाटों को अब वर्तमान व्यवस्था के तहत आरक्षण मांगने की अपनी रणनीति में दोहरा बदलाव लाना होगा| फ़िलहाल जो आरक्षण मिल रहा है वो लेने की मुहीम के साथ-साथ, इसके समानांतर "जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी!" की तर्ज पर अन्य समाजों-वर्गों के साथ 100% आरक्षण की मांग का नया मोर्चा अभी से खड़ा करना शुरू करना होगा| या कम-से-कम नीचे-नीच उसकी नींव रखनी शुरू करनी होगी, ताकि जाट बनाम नॉन-जाट रचने वालों को इस मुद्दे पर तमाम 100% आरक्षण चाहने वाले वर्गों को एकजुट कर जवाब दिया जा सके|

आरक्षण को 100 % वाली लाइन पर लाना ही होगा और अन्य किसानी जातियों के साथ किसान मुद्दों पर जुड़ना शुरू करना होगा; वर्ना अनाचारी व् किसान कौम के दुश्मन लोगों ने आरक्षण के नाम पर जाट कौम में ही कुछ ऐसे गुर्गे फिट कर रखे हैं जो आपको जाट-जाट में उलझाए रखेंगे| यह गुर्गे चंदे का हिसाब भी नहीं दे रहे और हिसाब मांगने पर त्योड़ी चढ़ा रहे हैं और घुर्रा भी रहे हैं| इनको आदेश है कि ना खुद दूसरे मुद्दे उठाएंगे और ना आपको उन मुद्दों को उठाने की ध्यान आने देंगे, जिससे जाट अन्य समाजों से तो जुड़ेगा ही; साथ ही जाट बनाम नॉन-जाट के मुद्दे को भी गौण करने में मदद करेगा|

और यही आरएसएस और बीजेपी चाहती है कि यह जाट-जाट का अलाप 2019 के चुनाव तक भी कायम रहे ताकि दूसरे समाज खुद भी इनसे डरते रहें और रहे-सही मीडिया मैनेजमेंट के माध्यम से डराए जाते रहें; और ऐसे जाट के अलावा सबके वोट अपनी झोली में ले 2019 की सरकार फिर से परवान चढ़वा ली जाए|

हरयाणा में किसान राजनीति का दम भरने वाली राजनैतिक पार्टियों को भी यह समझना होगा कि राजनैतिक पार्टी के उठाने से मुद्दे आमजन के नहीं बना करते| लेकिन अगर राजनैतिक पार्टियां अपने कैडर को जनता का रूप दे, जनता के बीच उतार और जनता के गैर-राजनैतिक संगठनों की पीठ थपथपा किसानी मुद्दों को उठवावें और फिर उस माहौल में खुद उनकी आवाज बनें तो रास्ता सरल होगा|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Saturday, 27 May 2017

"आम आदमी पार्टी" भी दावों के बावजूद चंदे के हिसाब में जो ट्रांसपेरेंसी नहीं दिखा पाई, वो दिखाई "सर्वखाप पंचायत" ने!



फरवरी जाट आंदोलन 2016 के पीड़ितों की मदद हेतु "जाट सर्वखाप" ने ट्रस्ट बना कर जो "4 करोड़ 59 लाख" रूपये (राउंड फिगर, डिटेल्स देखें सलंगित वेबपेज पर) चंदा एकत्रित किया था, व् इसके अतिरिक्त ज्ञात सूत्रों से जो कुल "12 करोड़ 91 लाख रूपये" (राउंड फिगर, डिटेल्स देखें सलंगित वेबपेज पर) चंदा आया; 26 मई 2017 को रोहतक में प्रेस कांफ्रेंस कर उसकी "पाई-पाई का हिसाब" समाज के समक्ष रख; अपनी उस सदियों पुरानी नि:स्वार्थ सेवा व् समाज के प्रति निष्ठां और जवाबदेही की छवि को पेश किया जो अरविन्द केजरीवाल की आम आदमी पार्टी तक में दावों के बावजूद देखने को नहीं मिली|

खाप-चौधरियों की मुख्य भूमिका वाले “जाट-समाज राहत कोष ट्रस्ट” का यह सम्पूर्ण हिसाब-किताब देने का कुलीन कार्य इस बात का फिर से साक्षी बन गया कि क्यों खापें सदियों से लगातार आज भी क्यों वाजिब हैं|

इस चंदे के बैंक अकाउंट, CA की ऑडिट रिपोर्ट्स, चंदा आवंटन की वर्गीकृत रिपोर्ट्स समेत तमाम रोचक तथ्य देखें इस लिंक से: http://www.khapland.in/khaplogy/jsrkt-donation-report/

जय यौद्धेय! - फूल मलिक


Sunday, 21 May 2017

यह गहनता से समझने की बात है कि भारत में दो तरह की जमींदारियां होती आई हैं!

एक सामंती जमींदारी और दूसरी मेहनती जमींदारी|

सामंती जमींदारी यानी जो खुद खेत में काम नहीं करते, परन्तु खेत के किनारे या हवेली के अटारे खड़े हो सिर्फ आदेशों के जरिये ओबीसी, दलित, महा-दलित मजदूरों से खेती करवाते आये हैं| यह जमींदारी बिहार-बंगाल-उड़ीसा-पूर्वी यूपी से ले मध्य-दक्षिण व् पश्चिम भारत तक भी रही है और आज भी है|

दूसरे रहे हैं मेहनती जमींदार यानि वो जो खेत में मजदूर के साथ खुद भी खटते रहे हैं| यह जमींदारी मुख्यत: पंजाब-हरयाणा-दिल्ली-वेस्ट यूपी-उत्तराखंड व् उत्तरी राजस्थान के क्षेत्रों में पाई जाती है|

दोनों में समानता कुछ नहीं सिवाय इसके कि जमीन के मालिक होते हैं| हाँ, असमानताएं इतनी है कि गिनने चलो तो साफ़ स्पष्ट समझ आ जायेगा कि मेहनती जमींदारी वाली खापलैंड की धरती, बाकी के भारत की धरती से ज्यादा समृद्ध-सम्पन्न-विकसित व् खुशहाल क्यों रही है|

नंबर एक अंतर: सामंती कभी दलित-मजदूर की अपने पर परछाई तक नहीं पड़ने देता| जबकि मेहनती जमींदार उसके साथ ना सिर्फ खेत में खटता है अपितु एक ही पेड़ के नीचे बैठ के खाना भी खाता है और एक ही बर्तन से पानी भी पीता रहा है| हाँ, कुछ एक अपवाद मेहनती जमींदारी में भी तब बन जाते हैं जब अगर जमींदार जातिवाद व् वर्णवाद की मानसिकता से ग्रसित हो तो|

नंबर दो अंतर: सामंती जमींदारों के एरिया नदियों-धरती के पानियों की भरमार होने पर भी कभी देश को अन्न देने वाले अग्रणी राज्य नहीं बन सके| लेकिन मेहनती जमींदारी क्षेत्र वाले दो-दो हरित-क्रांतियों से ले श्वेत क्रांति तक के धोतक रहे|

नंबर तीन अंतर: सामंती जमींदारी वाली धरती के दलित-महादलित-ओबीसी को बेसिक दिहाड़ी-मजदूरी वाली आजीविका कमाने हेतु भी मेहनती जमींदारों वाली धरती पर आना पड़ता है| जबकि मात्र बेसिक दिहाड़ी के लिए मेहनती जमींदारी की धरती का कोई मजदूर सामंती जमींदारी वाली धरती वालों के यहाँ नहीं जाता|

नंबर चार अंतर: सामंती जमींदारी का जमींदार हद से आगे तक मानसिक गुलाम प्रवृति का रहा है, इसलिए अपने नीचे गुलाम रखने की रीत चलाई| जबकि मेहनती जमींदारी का जमींदार सदियों से कच्चे-पक्के कॉन्ट्रैक्ट्स के तहत सीरी रखता आया है|

नंबर पांच अंतर: सामंती जमींदारी में दलित मजदूर को नए कपड़े तक पहनने से पहले दस बार सोचना पड़ता है| जबकि मेहनती जमींदारी वाली धरती पर दलितों तक के घर-मकान जमींदारों की टक्कर तक के होते आये हैं|

नंबर छह अंतर: सामंती जमींदारी में या तो बेहद गरीब हैं या बिलकुल अमीर| जबकि मेहनती जमींदारी की धरती पे गरीब-अमीर का अंतर सबसे कम रहा है|

नंबर सात अंतर: सामंती जमींदारी में दलित-मजदूर की बहु-बेटी अपनी बहु-बेटी नहीं मानी गई| जबकि मेहनती जमींदार की धरती पर दलित-स्वर्ण सब छत्तीस बिरादरी की बेटी पूरे गाम की बेटी मानी गई|

नंबर आठ अंतर: सामंती जमींदारी में ब्याहने गए गाम में अपने गाम की बेटी की मान करने की कोई रीत नहीं मिलती| जबकि मेहनती जमींदारी सिस्टम की धरती पर, जिस गाम में बारात जाती रही है, वहां उनकी 36 बिरादरी की बेटी की मान करके आने की रीत रही है|

नंबर नौ अंतर: सामंती जमींदारी में जमींदार खलिहान से अन्न अपने घर पहले ले जाता है और बाकियों का हिसाब बाद में करता है| जबकि मेहनती जमींदारी सिस्टम की धरती पर जमींदार खलिहान से ही लुहार-कुम्हार-नाई-खात्ती आदि का हिस्सा अलग करके तब अन्न घर ले जाता आया है|

नंबर दस अंतर: सामंती जमींदारी अधिनायकवाद पर चलती है, जबकि मेहनती जमींदारी लोकतांत्रिकता व् गणतन्त्रिकता के सिद्धांत पर|

नंबर ग्यारह और सबसे बड़ा अंतर: सामंती जमींदारी का जमींदार मजदूर के साथ नौकर-मालिक का रिश्ता रखता है| जबकि मेहनती जमींदारी का जमींदार मजदूर के साथ सीरी-साझी यानि पार्टनर्स का वर्किंग कल्चर रखता आया है|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Saturday, 20 May 2017

भारत के मुग़ल-अंग्रेज गुलामीकाल के वो ऐतिहासिक सुनहरे पन्ने जब भारतीय सिंह-सूरमों ने "दिल्ली" पर 5 बार विजय पताका फहराई!

1) सन 1753 में भरतपुर (ब्रज) के महाराजाधिराज अफलातून सूरजमल सुजान ने दिल्ली जीती! और ऐसी झनझनाती टंकार पर जीती कि कहावत चल निकली, "तीर चलें तलवार चलें, चलें कटारे इशारों तैं; अल्लाह मिया भी बचा नहीं सकदा जाट भरतपुर आळे तैं"!

2) सन 1757 में मराठाओं ने कमांडर रघुनाथ राव की अगुवाई में दिल्ली जीती|

3) सन 1764 में भरतपुर के ही महाराजा भारतेन्दु जवाहरमल ने दिल्ली जीती और मुग़ल राजकुमारी का हाथ नजराने में मिला परन्तु अपनी सेना के फ्रेंच कप्तान समरू को नजराने में दे दिया| हाँ, चित्तौड़गढ़ की महारानी पद्मावती के काल से अल्लाउद्दीन खिलजी द्वारा वहां के किले का उखाड़ कर लाया गया अष्टधातु का दरवाजा जो तब से अब तक दिल्ली लालकिले की शोभा बढ़ा रहा था, वह जरूर उखाड़ के भरतपुर ले गए| जो कि आज भी भरतपुर के दिल्ली दरवाजे की शोभा बढ़ा रहा है| यह जीत "जाटगर्दी" व् "दिल्ली की लूट" के नाम से भी जानी जाती है|

4) सन 1783 में सरदार बघेल सिंह धालीवाल ने दिल्ली को फत्तह किया! और दिल्ली में एक के बाद एक 7 गुरुद्वारे स्थापित किये|

5) सन 1834 में शेर-ए-पंजाब महाराजा रणजीत सिंह संधावालिया ने शाहसूजा को हराकर उससे कोहिनूर हीरा नजराने के रुप में लिया और दिल्ली फतेह की !

क्योंकि लेख में जिक्र गुलामी काल में भारतियों द्वारा दिल्ली जीतने का था, इसलिए दिल्ली की जीत की तारीखों पर फोकस रखा गया| इसके अलावा जो सबसे मशहूर और विश्व सुर्ख़ियों में छाने वाली जीतें थी, वो थी भरतपुर में अंग्रेजों की एक के बाद एक 13 हारें| जो इतनी बुरी थी कि इधर भरतपुर में भरतपुर सेनाएं अंग्रेजों को मार पे मार मारे जा रही थी और उधर कलकत्ता में अंग्रेजन लेडीज अंग्रेज अफसरों व् सैनिकों की लाश पे आती लाशें देख कर इतनी रोई कि कहावत चल निकली, "लेडी अंग्रेजन रोवैं कलकक्ते में!"

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Friday, 19 May 2017

फिल्मों व् सीरियल्स में दिखाई जाने वाली कल्चर-मान-मान्यताओं पर चौपाल स्तर के विश्लेषण, समय की मांग है!

कोई कह रहा है कि संस्कृति-संस्कार बदल रहे हैं!
कोई कहता है हमारा समाज तेजी से बदल रहा है, जो कि बहुत खतरनाक है!
कोई इसको समय की मांग बता रहा है!
कोई इसी को आधुनिकता बता रहा है कि बदलने दो, यही बदलाव है!

इन प्रतिक्रियात्मक विचारों में कहीं बेसमझी स्वीकार्यता है, कहीं चिंता है, कहीं बेचैनी और कहीं उलझन|
कहीं लोग ऐसी प्रतिक्रियाएं देते वक्त संस्कृति-संस्कार और सामाजिक पहचान व् किरदार को मिक्स तो नहीं कर रहे? मुझे तो ऐसा ही लग रहा है|

क्योंकि संस्कृति-संस्कार-मान-मान्यताएं बदलती तो सदियों से चले आ रहे बाइबिल-कुरान-गीता-रामायण-महाभारत-गुरुग्रंथ आदि भी बदल गए होते, नहीं?

क्योंकि संस्कार-संस्कृति-मान-मान्यताएं बदलती तो सदियों से चले आ रहे चर्च-मस्जिद-मंदिर-गुरुद्वारे भी बदल गए होते, नहीं?

क्योंकि संस्कार-संस्कृति-मान-मान्यताएं बदलती तो मराठी-बंगाली-पंजाबी-गुजराती-मलयाली-उड़िया-बिहारी-पहाड़ी-सिंधी-पारसी-कन्नड़ी आदि सब सामाजिक समूह बदल चुके होते, नहीं?

मगर हाँ, इस बीच एक चीज जरूर बदल रही है, दरअसल कहूंगा कि कंफ्यूज हुई अनराहे पर खड़ी है| ऐसे अनराहे पर जो ना तो दोराहा है, ना तिराहा, ना चौराहा; असल में समझ ही नहीं आ रहा कि कितने राहा है?

इसके नाम पे आने से पहले इसकी समस्या पे बात करते हैं| समस्या हैं दो| एक तो यह कि यह हरयाणा-दिल्ली-वेस्ट यूपी-राजस्थान-पंजाब के तथाकथित मेजोरिटी धर्म वाले जमींदार के "के बिगड़े से", "देखी जागी", "यें भी आपणे ही सैं" वाले अभिमानी अतिविश्वासी स्वभाव की है| दूसरी बात में बड़ा उल्टा सिस्टम है| बाहर से आये हुए शरणार्थी, नौकरी-पेशा-व्यापारी वर्गों के साथ मिक्स होने की ललक बाहर से आये हुए लोगों से ज्यादा इन स्थानीय जमींदार वर्ग के लोगों को है| और इन स्थानियों में से जो शहर को निकल जाते हैं, उनके तो बाप रे कहने ही क्या| बाजे-बाजे तो ऐसे अहसास दिलाते हैं जैसे वो भी शरणार्थी ही यहाँ आये थे|

इस हरयाणा-दिल्ली-वेस्ट यूपी-राजस्थान-पंजाब क्षेत्र जिसको मोटे तौर खापलैंड भी कह देते हैं, इन लोगों को समझना होगा कि आप संस्कृति-संस्कार-मान-मान्यताओं से ज्यादा अपनी सामाजिक पहचान व् किरदार बदल ही नहीं रहे हैं; बल्कि खो रहे हैं, उसको घटा रहे हैं|

जैसे ईसाई एक धर्म है संस्कृति है, और उसमें कैथोलिक-प्रोटेस्टंट्स-ऑर्थोडॉक्स इसके सामाजिक समूह व् किरदार हैं| ऐसे ही हिन्दू एक धर्म है, इसमें सनातनी (मूर्तिपूजक), आर्यसमाजी (सन 1875 से पहले यह समूह मूर्तिपूजा-विमुख परन्तु मूर्ती-उपासक, जिसमें खापलैंड की जमींदार जातियां झंडबदार रही हैं) इसके सामाजिक समूह व् किरदार हैं| व् ऐसे ही अन्य समूह|

विश्व में कहीं भी चले जाइये, किसी भी देश-सभ्यता-धर्म-संस्कृति में; हर किसी के धर्म-कानून-कस्टम का निर्धारक जमींदार वर्ग रहा है| फ्रांस हो, इंग्लैंड हो, अमेरिका हो, इटली-स्पेन-जर्मनी-ऑस्ट्रेलिया-चीन कोई देश हो; हर जगह जमींदार वर्ग की पहचान ही धर्म-सभ्यता-संस्कृति का सोर्स होती है| व्यापार-धर्माधीस-भूमिहीन कहीं भी इन चीजों का निर्धारक नहीं मिलेगा|

बाहर भी क्यों देखना दिल्ली-एनसीआर-चंडीगढ़ जैसे शहरों में आन बसे मराठी-बंगाली-पंजाबी-गुजराती-मलयाली-उड़िया-बिहारी-पहाड़ी-सिंधी-पारसी-कन्नड़ी आदि में क्या छोड़ा किसी ने खुद को इन पहचानों के अनुसार कहना-कहलवाना-पहनना-खाना आदि? जबकि हरयाणवी यहां के स्थाई निवासी होने पर भी, इनसे मिक्स होने के चक्कर में अपनी पहचान दांव पे धरते जा रहे हैं|

दादा खेड़ा, बेमाता, चौपाल, खाप, गाम-गुहांड-गौत, जोत-ज्योत-टिक्का सब सुन्ना सा छोड़ दिया है; ऊपर वाले के रहमो कर्म पर? बावजूद इसके कि इनमें कोई खोट नहीं, बावजूद दुनिया की मानवता व् समरसता से भरपूर होने के?

मैंने तो जीवन में एक चीज देखी और बड़े अच्छे से समझी है| जमींदार चाहे तो धर्म को अपने अनुसार चला ले, व्यापार तक अपने अनुसार करवा ले| उदाहरण के तौर पर सिख धर्म देख लो, दस-के-दस गुरु व्यापारिक वर्ग के पिछोके से हुए; परन्तु वहां जमींदार की खोली खुलती है और उसी की बाँधी बंधती है| हाँ, व्यापार और जमींदार के रिश्ते पर इन लोगों को काम करना अभी बाकी है| इस्लाम धर्म देख लो, जमींदार वर्ग की खोली खुलती है और उसी की बाँधी बंधती है|

सदियों तक धूमिल चले हिन्दू धर्म में भी सन 1669 के गॉड-गोकुला जी की शहादत के बाद से इसके जमींदार की फिरकी ऐसी निकली कि खापलैंड पर बीसवीं सदी के अंत तक ना सिर्फ धर्म में अपितु व्यापार में भी इसी की खोली खुली और इसी की बाँधी बंधी| मैं इसको जमींदार वर्ग के आधुनिक युग का स्वर्णिम काल कहता हूँ|

और इसको हमें आगे भी जिन्दा-जवाबदेह-जोरदार रखना है तो बहुत लाजिमी है कि फिल्म-सीरियल्स में दिखाई जाने वाली कल्चर-मान-मान्यताओं पर चौपाल स्तर के विश्लेषण होवें| इन पर जवान-बच्चे-बूढ़े-महिला-पुरुषों के साथ बैठ के चिंतन-मनन करने होंगे| जमींदार वर्ग के समूहों की जितनी भी पत्र-पत्रिकाएं निकलती हैं उनमें इन पर विशेष कॉलम-सेक्शंस बना के सीरीज में इन फिल्मों-सीरियलों के एक-एक एपिसोड के विश्लेषण छापने होंगे| जो कि आज के दिन 99% पत्रिकाओं से गायब हैं| जबकि मैं-स्ट्रीम के अख़बार-पत्रिकाएं इनसे सम्भंधित विशेष कॉलम रखते हैं|

और इन विश्लेषणों में इनको अपनी स्थानीय संस्कृति-सभ्यता की मान-मान्यताओं के समक्ष रख तुलनात्मकताएँ पेश करनी होंगी| ताकि आपकी युवा पीढ़ी अपने आपको अपनी जड़ों से सटीकता से सहज बैठा सके| फिल्म-सीरियलों में जो आता है, उसमें और अपने वाले की वास्तविकता की सच्चाई जान्ने के साथ, कौनसा बेहतर है यह पूरी विश्वसनीयता से सेट कर सके| और अपने हरयाणवी होने की बजहों में गर्व-गौरव-गरिमा सब समझ सके| मैनेजमेंट की परिभाषा में बोले तो बेंचमार्किंग करनी होगी|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Tuesday, 16 May 2017

जमींदार जागरूकता के 30 सूत्र!

ताकि लोकतान्त्रिक सामाजिकता बची रहे!

(01) जमींदार एक हों।
(02) दादा खेड़ा (उर्फ़ दादा भैया, ग्राम खेड़ा) को अपना नायक मानें।
(03) छोटे छोटे संगठनों के जमींदार कोष बनें।
(04) कोष से गरीब जमींदारों की मदद हो।
(05) जमींदार कोई न कोई तकनीक सीखें।
(06) जमींदार अधिकारी, नेता, उद्योगपति कानून के अंदर जमींदार की मदद को प्राथमिकता दें।
(07) ढोंग-मूढ़मढ़िता-पाखंड बढ़ाने वाली चीजों से जमींदार का पतन हुआ है, इसलिए इनको बढ़ावा देने की अपेक्षा इनके सामने स्कूल-कॉलेज-चौपाल-परस खड़ी करें|
(08) पढ़े लिखे जमींदार, ढोंग-पाखंड की समस्त थ्योरियों को ध्वस्त करें।
(09) अस्पृश्यता बिलकुल न रखें, समाज को वर्ण व् जाति में बांटने वालों से उचित दूरी बना कर चलें।
(10) जमींदार व् जमींदार का वंशज होने पर गर्व करें।
(11) सभी जमींदार अपने नाम में अपना गौत गर्व से लिखें।
(12) जमींदार, जमींदार की निंदा कभी न करे। यदि कोई करता है, तो तार्किक विरोध करें।
(13) "जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी" नियम के तहत 100% आरक्षण लागू करवाने हेतु मिलकर आंदोलन चलाएं।
(14) जहाँ भी दादा खेड़ा, बेमाता, खाप जैसी जमींदारों की तमाम लोकतान्त्रिक प्रणालियों का विरोध या आलोचना हो तो तार्किक व् तुलनात्मक मुकाबला करें।
(15) अपनी मान-मान्यताओं व् खाप यौद्धेयों का अपमान बिलकुल सहन न करें।
(16) सर छोटूराम व् अन्य तमाम जमींदारों के मसीहाई नेताओं के जमींदारों के कल्याण हेतु बनाये कानूनों को अपना गौरव ग्रंथ मानें व बच्चों को अवश्य पढ़ाएं। ऐसे तमाम कानूनों को एक पुस्तक का रूप दे के, उस पुस्तक को "जमींदार-सहिंता" के नाम से अपने पास रखें|
(17) इतिहास के जमींदार नायकों व् खाप यौद्धेयों पर शोध पूर्ण लेख व् पुस्तकें लिखी जाएँ।
(18) जमींदार पहले बनें, कोई भी धर्मी बाद में! शहरी जमींदार वंशजों को भी इस बात के तमाम महत्व बताएं!
(19) अगर किसी भी धर्म-जाति के नाम पर बनी कोई संस्था, जमींदार जमात का भला नहीं करती है तो उसको त्याग दें| और अपना जमींदारी सिद्धांत अपनाएँ।
(20) सभी जमींदार प्रतिदिन दादा खेड़ा व् चौपाल की ओर जाएँ व् इनकी इमारतों को बनाये रखने, मरम्मत व नवनिर्माण हेतु यथाशक्ति दान करें।
(21) संगठित होकर रहें| किसी जमींदार पर संकट आने पर मिलकर मुकाबला करें।
(22) प्राचीन व आधुनिक शिक्षा प्राप्त करें।
(23) कैरियर पर अधिक ध्यान दें। जमींदारी से संबंधित तमाम व्यापारों में उतरिये!
(24) जीविका के लिए जो भी काम मिले, दादा खेड़ा का नाम लेकर करें।
(25) जमींदार-पुरखों में आस्था रखें!
(26) नित्यकर्म मे स्वाध्याय को सम्मिलित कीजिये!
(27) नारी का सम्मान व् यथासम्भव बराबरी के लिये संकल्पित होईये! आसपास का माहौल नारी को भयमुक्त जीवन देने वाला बनाईये!
(28) जमींदार किसी भी हालत मे हो उसका सम्मान एवं उसकी उन्नति के लिये प्रयास कीजिये!
(29) जमींदार के दुश्मन वर्गों से जमीन व् फसल बचाने के यथोचित सक्रिय (Proactive) मार्ग अपना कर चलिए!
(30) जमींदार एक जाति-वर्ण रहित सोशल थ्योरी है, इसको किसी भी प्रकार की सामन्तवादिता से बचा के चलिए!


जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Saturday, 13 May 2017

यह कैसे भूमंडल के विजेता हैं जो भारत से बाहर राम-कृष्ण-परशुराम का नाम लेने से भी हिचकिचाते हैं?

मोदी ने लंदन में अपने अभिभाषण में भारत को "राम या कृष्ण" की बजाये "बुद्ध" का देश बोला, मैंने उसको अ ब स द वजहें दे के स्वीकार कर लिया; परन्तु श्रीलंका में भी भारत को "बुद्ध" का ही देश बोला, क्यों भाई "राम का देश" बोलने में रावण से डर लगा क्या? रावण का डर था तो कृष्ण का बोल देते, परन्तु यह क्या जहाँ जाते हैं "बुद्ध" का देश? जबकि घर में बुद्ध को मानने वालों को आरएसएस अपना सबसे बड़ा दुश्मन बताती है?

सीख लो लोगो इनसे कुछ कि दुश्मन का नाम ले के भी कैसे पब्लिसिटी की रोटियां सेंकी जा सकती हैं| कैसे दुश्मन की खूबी को अपने फायदे के लिए बेचा जाता है| दुश्मन से साम्प्रदायिक दुश्मनी निभाते हैं, परन्तु जहां दुश्मन की रेपुटेशन से आर्थिक या रेप्युटेशनल लाभ दिखे तो उसी दुश्मन को अपना बताने से परहेज नहीं करते| आखिरकार यही यथार्थ है आर्थिक लाभ व् रेपुटेशन का|

परन्तु मुझे अफ़सोस तो यह है कि हजारों वर्ष पुराने राम-कृष्ण को यह इतना भी बड़ा नहीं मानते कि यह बुद्ध की जगह उनका नाम ले के यही आर्थिक लाभ व् रेपुटेशन कमा सकें? क्या इनके नाम आगे ना करना इनकी हीन भावना तो नहीं? यह कैसे भूमंडल के विजेता होने के दावे करते रहते हैं इतिहास में, जबकि यह राम-कृष्ण या परशुराम का नाम भारत से बाहर लेने से भी हिचकिचाते हैं?

वैसे "बुद्ध" के अलावा भारत को किसी दूसरे अन्य व्यक्ति का देश कहने की मोदी हिम्मत कर पाए हैं तो वह हैं मुरसान रियासत के जाट नरेश राजा महेंद्र प्रताप जी| जब मोदी अफ़ग़ानिस्तान संसद का उद्घाटन करने गए थे तो राजा जी का नाम बड़े गर्व से लिए थे|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

मुलायम सिंह यादव को जाटों से उनकी नफरत ले डूबी!

आईये समझें कैसे?

मुलायम सिंह यादव पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह को ना सिर्फ अपना राजनैतिक गुरु मानते हैं अपितु खुद को चौधरी साहब का उत्तराधिकारी भी बताते हैं|

परन्तु चौधरी साहब के दिए राजनैतिक मूलमंत्र मजगर यानी म-अजगर + दलित + पिछड़ा ( मजगर यानी मुस्लिम-अहीर-जाट-गुज्जर-राजपूत व् दलित) से इन्होनें आते ही ज को अलग करने की राजनीति खेली| और इसकी शुरुवात इन्होनें रक्षामंत्री रहते हुए "जाट-रेजिमेण्ट के कैडर में छेड़छाड़ करके कर दी थी| 2013 के मुज़फ्फरनगर दंगे तो अपने ही गुरु के मूलमंत्र वाले मजगर से म व् ज को फाड़ने की इन्होनें "अपने ही पैरों पे कुल्हाड़ी मारने वाली" प्रकाष्ठा ही कर दी थी|

भले ही बीजेपी ने यह लालच दे के यह दंगा करवाया था कि इससे जो धुर्वीकरण होगा उसका मुस्लिम वोट तुम ले लेना और हिन्दू वोट हम ले लेंगे| और हो गई इनके साथ "ना माया मिली ना राम वाली"| बीजेपी तो ऐसा काला कोयला है कि जिसके साथ दलाली में हाथ काले होवें ही होवें; हरयाणा में इनेलो और ताऊ देवीलाल व् चौधरी बंसीलाल के साथ क्या-क्या करती आई है बीजेपी उससे भी रिफरेन्स नहीं ली|

इनेलो वालो सावधान पब्लिकली ना सही, परन्तु अंदर खाते बीजेपी से क्या गलबहियाँ पा के चल रहे हो; हमको सब खबर है| अब भी दूर हट जाओ इनसे, वरना यह तुमको "कुत्ते को मार, बंजारा जैसे रोया था" उस तरिके से रोने लायक भी नहीं छोड़ेंगे| याद रखना, 1999-2004 वाली सरकार में इनेलों ने जो बीजेपी की वाट लगाई थी, उसको भूले नहीं हैं यह लोग; मौका मिलते ही गच्चा खा जाने वाला झटका देंगे, सो इनसे जरा सम्भल के|

खैर, आगे बढ़ते हैं| मुज़फ्फरनगर दंगे वाले झांसे में पड़ने से पहले अगर मुलायम की जगह लालू यादव होते तो जैसे बिहार में रथयात्रा के दौरान अडवाणी को जेल में डाल दिए थे, ऐसे बीजेपी के इस ऑफर को ठंडे बस्ते में डाल देते और मुज़फ्फरनगर में लालू यादव चिड़िया को भी पर नहीं मारने देते|

यहां यह याद रखें कि मैं यह नहीं कह रहा हूँ कि जाटों ने इनको वोट नहीं दिए तो यह हारे; नहीं अपितु ज के बाद ग व् र भी इनसे टूट गया| और 2017 चुनाव में तो यह म को भी एक नहीं रख पाए| यानि खुद की पोलिटिकल स्ट्रेटेजी से जो a bad carpenter quarrels with own tools टाइप में इन्होनें खटबढ़ शुरू की थी, अंत में वही मुलायम सिंह यादव की राजनीति को लील गई|

और यही वजह है कि दंगों की डील से शुरू हुई दास्तां, अब पुरजोर डिमांड वाले स्टाइल में सहारनपुर-मेरठ में लाइव चल रही है| वो भी हिन्दू या मुस्लिम के बीच नहीं, बल्कि सतयुगी टाइप वाले हिन्दू स्वर्ण व् हिन्दू दलित के बीच|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

राह पनघट की अब इतनी सहज नहीं है गौरी!

पिछले हफ्ते भाजपा दफ्तर की एक वीडियो हाथ लगी थी, जिसमें ओबीसी के लोगों को राजपूतों से यह कह के जोड़ने का अभियान अभी से चलाया जा रहा है कि "देखो तुमको ओबीसी आरक्षण देने वाले प्रधानमंत्री वीपी सिंह एक राजपूत थे"|

और इधर इनेलो इतना तक कैश नहीं करवा पा रही है कि उस राजपूत प्रधानमंत्री के लिए कुर्सी को छोड़ अजगर धर्म निभाने वाला एक जाट यानि ताऊ देवीलाल थे| इन्होनें सर्वसमत्ति से सांसद-दल का नेता व् प्रधानमंत्री चुने जाने के बाद भी, कुर्सी वीपी सिंह की ओर सरका दी थी| इनेलो वालो जाग जाओ और अपनी शक्तियों को पहचान लो|

और यह ओबीसी आरक्षण देने पीछे भी बड़ी रोचक कहानी है, पूरी पढ़नी है तो मेरा यह लेख पढ़िए कि कैसे इस ओबीसी आरक्षण की घोषणा ताऊ देवीलाल करने वाले थे, परन्तु मंडी-फंडी ने ताऊ जी से पहले वीपी सिंह जी से करवा दी| लेख - http://www.nidanaheights.com/choupalhn-ajgr-split.html

जाटों को यह बात भी आमजन में किसी तरह कैश करवानी होगी कि जिस मंडल कमीशन की रिपोर्ट के आधार पर ओबीसी आरक्षण लागू हुआ था, उस मंडल कमीशन का गठन करने वाले पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह भी एक जाट ही थे| अगर कैश नहीं भी करवा पाओ, तो प्रतिद्व्न्दी राजनीति उसको अपने हित में कैश ना करवा ले (जो कि कोशिशों में लगी हुई है) इससे बचने के लिए आमजन में फैलाये तो जरूर रखनी होगी| और इस पॉइंट को तो हरयाणा में जो पार्टी चाहे कैश कर सकती है|

वरना राह पनघट की अब इतनी सहज नहीं है गौरी|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Friday, 12 May 2017

सिद्धू गोत्र के जाट महाराजा रणजीत सिंह को सांसी राय की उपाधि क्यों मिली?

सांसी एक शराब निकालकर बेचने वाली जाती होती है,पंजाब और राजस्थान में बहोत बड़ी संख्या में है,अब सवाल ये उठता है कि सिद्धू गोत्र के जाट महाराजा रणजीत सिंह को सांसी राय की उपाधि क्यों मिली??कहीं उन्हें साहसी राय तो नही कहा गया??चलिये इतिहास में चलते है,17वी सदी में सूबाई राजा जिन्हें चौधरी कहा जाता था वो मुगलो को गद्दी से उतारने के लिए उत्सुक हो रहे थे उन्हें अपनी रियासत आज़ाद चाहिए थी ना कि टैक्स दे मुगलो को,सारा जाट एरिया इन चौधरियो के अंडर था, ओर एक चौधरी राजा को छोड़ कर सभी जाट थे,इन चौधराहट जागीरों को sikkhism से जोड़ने के लिए इन्हें मिसल कहा जाने लगा,उन दिनों पंजाब के सारे जाट सिख धर्म अपना चुके थे,पंजाब जो आज का पाकिस्तानी पंजाब और हरयाणा ओर हिमाचल ओर उत्तरी राजस्थान और जम्मू के क्षेत्र थे इनमे 12 सिख मिसल राज कर रही थी 12 में से सिर्फ 1 सांसी थे और बाकी 11 जाट थे,ये सारे चौधरी पंजाब पर हुकूमत करने के लिए आपस मे लड़ रहे थे,सांसी चुप चाप अपनी ताकत और अपना क्षेत्र बढ़ा रहे थे,पर इनसे गलती ये हुई कि इन्होंने जाट मिसल के क्षेत्र पर हमला कर दिया,कमजोर जाट मिसल की समझ मे आ गया कि बात काबू से बाहर हो गयी वो अपने से 10 गुना बड़ी फौज जिसमे 90% जाट्ट ओर 10% सांसी हो और जिन्हें मुगल पैसे देते हो उनको हराया नही जा सकता,तो ऐसे में इस मिसल के चौधरी ने सिद्धूओ से मदद मांगी क्योंकि इन्होंने सिद्धूओ को लड़की ब्याही हुई थी,उत्तरी पंजाब में दोनों फौज टकराई और सिद्धू और गिल इतनी बहादुरी से लड़े की क्षेत्र में एक भी सांसी को ज़िंदा नही छोड़ा,गिल गोत इतनी बहादुरी से लड़ा की उन्हें देख कर लोग शेर गिल कहने लगे,इनके 120 के जत्थे ने 1400 सांसी मार दिए,लड़ाई खत्म हुई तो इस लड़ाई से जीत कर आये हुए गिल जाट परीवारों को शेर गिल कहा जाने लगा और सिद्धूओ को सांसी राय, महाराजा रणजीत सिंह को सांसी राय इसलिए कहा गया कि इन्होंने पूरी तरह सांसियो को हराकर उनपर राज किया अपने बाप दादाओ की तरह,पर समय के साथ सांसी राय उपाधि छोटी हो कर सांसी रह गयी,आज सांसी जाटो का गोत्र है पर ये है वो सिद्धू जाट्ट ही जिन्होंने सांसियो को खत्म किया था,आज ऐसे बहोत गोत्र है जाटो के जो उपाधि है पर छोटे हो गए जैसे jatt rana से घट कर सिर्फ राणा रह गया,मलिक-ऐ-राजपूत से घट कर मलिक रह गया,अहीर रावत से घट कर रावत रह गया,इन उपाधियों में दूसरी जाति का नाम सिर्फ इसलिए है कि जाटो ने उन जातियो को हराया था ना कि ये जाट उन जातियो से बने है

Source: https://www.facebook.com/permalink.php?story_fbid=1631784090182951&id=1070908336270532&pnref=story 

Tuesday, 9 May 2017

अंग्रेजों के लिए काल बन गया था बख्तावर जाट!

गुड़गांव, यहां पर आजादी का एक ऐसा महानायक भी पैदा भी हुआ है जो अंग्रेजी सेना और अधिकारियों के लिए काल बन गया था। देश की खातिर उन्होंने अपने पूरे परिवार को कुर्बान कर दिया। हालांकि उन्हें अंग्रेजी हुकूमत ने फांसी पर लटका दिया था।

गांव झाड़सा के रहने वाले झाड़सा 360 के वर्तमान प्रधान महेंद्र सिंह ठाकरान के छोटे भाई राकेश सिंह ठाकरान ने कल मुलाकात के दौरान मुझे काफी जानकारी दी । उनके मुताबिक बख्तावर सिंह ठाकरान झाड़सा 360 के चौधरी थे। उस समय इस चौधरी को राजस्व अधिकारी का दर्जा प्राप्त था। झाड़सा कमिश्नरी थी।


चौधरी बख्तावर शुरू से ही अंग्रेजी हुकूमत की जड़ काटने में लगा था। 1857 के संग्राम के दौरान शहीद राजा नाहरसिंह वल्लभगढ़ की मार से डरकर दिल्ली से जब कुछ अंग्रेज अफसर भागकर गुड़गांव में छुपने आए तो बख्तावर सिंह ने करीब ढाई सौ अंग्रेजी सैनिकों और अधिकारियों को बंधक बना लिया। बख्तावर सिंह ने उन्हें वे तमाम यातनाएं दीं जो अंग्रेजी हुकूमत भारतीयों को देती थी। उसने सभी को मार गिराया।


संग्राम की आग जब ठंडी हुई तो अंग्रेजों ने बख्तावर सिंह को बंदी बना लिया। इससे पूर्व ही बख्तावर ने अपने परिवार को कहीं भेज दिया था, जो आज तक नहीं लौटे हैं। अंग्रेजी हुकूमत ने अंग्रेजी अधिकारियों को मारने के जुर्म में बख्तावर सिंह को आज जहां राजीव चौक बना हुआ है वहाँ पर फांसी पर लटका दिया था। बख्तावर के शव को भी अंग्रजों ने वहीं छोड़ दिया था। इस्लामपुर के ग्रामीणों ने उनका अंतिम संस्कार किया था।


जब इस घटना को गुलामी के परिप्रेक्ष्य में देखते हैं कि बख्तावर सिंह अकेला ऐसा शख्स था जो सही मायने में इस क्षेत्र से आजादी का महानायक कहलाने लायक हैं।


बख्तावर सिंह को स्वतंत्रता के बाद सरकार ने पूरा सम्मान नही दिया। उनके नाम से बने 3 यादगारों को क्रमश: नेहरू चोंक ,इंदिरा चोंक और राजीव चोंक करने की बहुत बड़ी सरकारी कोशिस चली पर झाड़सा ओर इस्माइलपुर के ठाकरान जाटों ने लाठी जेली कुल्हाड़े ओर भाले लेकर सड़क पर बैठ गए । ग्रामीण जाटों ने तत्कालीन कांग्रेस सरकार के पिछवाडे पर झाड़ झाड़ कर जूते मारे ।


पर कहते है जनता ही असली सरकार होती है फिर भी तमाम विरोध के चलते एक स्थल को सरकार राजीव चोंक बनाने में सफल रही । जबकि ग्रामीणों के निरन्तर प्रदर्शन के चलते नेहरू चोंक वाली जगह को ठाकरान जाटों ने नेताजी सुभाष चौक बनवाकर ही दम लिया। इंदिरा चोंक कैंसल होकर वापस बख्तावरसिंह चोंक बनाया गया ।
इन्ही दो गावों झाड़सा ओर इस्माइलपुर के जाटों के हथियारो समेत किये गए विरोध के चलते उनके नाम से शहर में आज चौक है, सड़क है और झाड़सा गांव में चारों और उनके नाम अत्याधुनिक गेट बनवाए गए हैं।


सिर्फ झाड़सा 360 या गुड़गांव जिले ही नही चौधरी बख्तावरसिंह पर पूरी जाट नश्ल को गौरव है । असली इतिहास की खोज की कोशिसकर्ता आपका भाई रणधीर देशवाल


# जाट_गजट_पत्रिका

महाराजाधिराज सूरजमल महान पर कवि बलवीर घिंटाला जी की अद्भुत कविता!

बच रही थी जागीरें जब, बहु बेटियों के डोलों से,
तब एक सूरज निकला, ब्रज भौम के शोलों से|

था विध्वंश - था प्रलय वो, था जीता-जागता प्रचंड तूफां,
तुर्कों के बनाये साम्राज्य का, मिटा दिया नामो निशां|

बात है सन् 1748 की, जब मचा बागरु में हाहाकार,
7 रजपूती सेनाओं का, अकेला सूरज कर गया नरसंहार|

इस युद्ध ने इतिहास को, उत्तर भारत का नवयौद्धा दिया,
मुगल पेशवाओं का कलेजा, अकेले सूरज ने हिला दिया|

पेशवा मुगल रजपूतों ने, मिलकर मौर्चा एक बनाया,
मगर छोटी-गढी कुम्हेर तक को, यह जीत न पाया|

घमंड में भाऊ कह गया, नहीं चाहिए जाटों की ताकत,
पेशवाओं की दुर्दशा बता रहा, तृतीय समर ये पानीपत|

अब्दाली की सेना ने जब, पेशवाओं को औकात बताई,
महारानी किशोरी ने ही तब, ले शरण में इनकी जान बचाई|

दंभ था लाल किले को खुद पे, कहलाता आगरे का गौरव था,
सूरज ने उसकी नींव हीला दी, जाटों की ताकत का वैभव था|

हारा नहीं कभी रण में, ना कभी धोके से वार किया,
दुश्मन की हर चालों को, हंसते हंसते ही बिगाड़ दिया|

खेमकरण की गढी पर, बना कर लोहागढ ऊंचा नाम किया,
सुजान नहर लाके उसने, कृषकों को जीवनदान दिया|

ना केवल बलशाली था, बल्कि विधा का ज्ञानी था,
गर्व था जाटवंश के होने का, न घमंडी न अभिमानी था|

56 वसंत की आयु में भी, वह शेरों से खुला भिड़ जाता था,
जंगी मैदानों में तलवारों से, वैरी मस्तक उड़ा जाता था|

अमर हो गया जाटों का सूरज, दे गया गौरवगान हमें,
कर गया इतिहास उज्ज्वल, दे गया इक अभिमान हमें|

'तेजाभक्त बलवीर' तुम्हें वंदन करे, करे नमन चरणों में तेरे,
सदा वैभवशाली तेरा शौर्य रहे, सदा विराजो ह्रदय में मेरे|

बल्लभगढ़ का बलरामपुर होता है तो फिर झाँसी का भी काशी या कुछ ऐसा ही कर दो?

बल्ल्भगढ़ 1857 के राजा नाहर सिंह से जुड़ा है और झाँसी का 1857 की ही रानी लक्ष्मीबाई से|

अब जब 1857 की यादगार मिटाने ही लगे हो तो ढंग से मिटाते हैं| वर्ना तो बलराम को सम्मान देने हेतु, आसपास गाँव-शहर और भी बहुत थे, किसी और का रख लिया होता बलरामपुर नाम? और क्या तथ्य हैं इनके पास कि यह बलरामपुर ही होता था? जिस नगर को बसाया ही 3-4 सदी पहले गया हो, उसका हजारों साल के माइथोलॉजी के चरित्र से यूँ ही बैठे बिठाये मेल बिठा दोगे क्या?

कोई धर्म और नहीं विश्व में ऐसा जिसने अपने भगवानों के नाम से नगरों के नाम रखे हों| ना हमने कोई अल्लाहपुर या अल्लाहगढ सुना| ना कोई यशुपुर या यशुगढ़ सुना| बस इनके ही पता नहीं कैसे अजीब चोंचले हैं| फिर भी बनाने हैं नगर भगवानों के नाम से तो बनाओ, परन्तु कम से कम इतिहास के महापुरुषों के पर्याय बन चुके नगर-खेड़े-गाँवों के नामों से तो छेड़छाड़ मत करो|

मेरे जैसा तो कोई मुख्यमंत्री बन गया तो इन सब नामों को वापिस ज्यों-के-त्यों पलटेगा और ऐसा कानून भी बनाएगा कि ऐतिहासिक महापुरुषों के धोतक बन चुके नगरों-गाँवों के नाम नहीं बदले जायेंगे| माइथोलॉजी के चरित्रों के लिए मंदिर बना के दिए हैं समाज ने इनको, क्या वो कम हैं?

जमींदारों सम्भल जाओ अब भी, इनकी ऐसी-ऐस हरकतें काफी होनी चाहिए आपको यह समझने के लिए कि यह तुम्हें हिन्दू मानते ही नहीं; तो क्यों लिपटे पड़े हो इनसे? इस हिन्दू नाम की अफीम से बाहर आओ| बिना शर्त बिना मिनिमम कॉमन एजेंडा के इनके साथ नहीं निभने वाली| क्या राजा नाहर सिंह हिन्दू नहीं थे, जो एक काल्पनिक हिन्दू को सम्मान देने हेतु, वास्तविक हिन्दू का अपमान किया जा रहा है? कोई नी, काठ की हांडी कितनी और बार चढ़ाओगे?

यह किसी भी सूरत में धर्म नहीं है, सिर्फ-और-सिर्फ 5-10% माइनॉरिटी की 80-90% मेजोरिटी पर राज करने की राजनीति है|

यह तो वही बात हो गई, हम सिर्फ तुम्हारी पैदा करी फसल ही अपनी मर्जी के नखरों और दामों पर नहीं उठाएंगे अपितु तुम्हारे महापुरुषों के बनाये इतिहास पे भी अपनी मर्जी का ठप्पा लगाएंगे| मेरे ख्याल से यह मनमर्जी और हठधर्मिता की अतिश्योक्ति हो रही है|

इनको कहो कोई कि यह बेढंगी रीत ना डालें यह; वरना कल को सरकारें दूसरों की भी आनी हैं और जिद्द पे आये तो हर गली-चौराहे पे जेळी गाड़ देंगे और ऊपर से लिख देंगे "जमींदार-महकमा"|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

खापोलोजी व् भक्तवाद में तुलनात्मक अंतर!


अंतर 1:
खापोलोजी घर-कुनबे-बिरादरी को हर दुःख-झगड़े सुलझा के मनमुटाव भुला के समरसता से रहने का नाम है| इसीलिए मुझे यह छोटी सी घरेलू बातों पर युद्ध के मैदान सजा लेने की सामाजिक वास्तविकता से दूर की काल्पनिक कहानियां कभी आकर्षित नहीं करती|
जबकि फेंकुलोजी यानि भक्तवाद घर-कुनबे-बिरादरी में छोटी सी भी मानवीय सोच की भिन्नता को भुना के "राइ का पहाड़ बना के" यही जीवन है टाइप जीवन-दर्शन करवा के, भाई को भाई से भिड़ा के रखने और अपनी रोजी चलाने का नाम है|
अंतर 2:
खाप एक बार फैसला करने बैठ जाए तो 99% केसों में दोनों पक्षों को मिला के ही उठती है|
भक्तवादी जहां घुस जाए, 99% केसों में दोनों के मसले को और पेचीदा बना के उठते हैं|
अंतर 3:
खाप द्वारा 99% सलूशन देने की सबसे बड़ी वजह यह है कि इन लोगों ने आजीवन समाज के बीच बिताया होता है, समाज कैसे चलते हैं व् चलाने होते हैं; इसके भलीभांति अनुभवी होते हैं|
भक्तवाद द्वारा 99% मसले पेचीदा करने के पीछे बड़ी वजह यह है कि इन्होनें जिंदगी का अधिकतर वक्त अवसाद, एकांत, जंगल या अलख जगाने में गुजारा होता है|
अंतर 4:
खाप वाले अधिकतर वो होते हैं जो आजीविका के लिए स्वावलम्बी होते हैं|
भक्तवाद वाले आजीविका के मामले में परजीवी होते हैं|
अंतर 5:
क्योंकि खाप वाले आजीविका के मामले में स्वावलम्बी होते हैं, इसलिए यह तुरंत और निशुल्क न्याय करते हैं, केवल सामाजिकता को बचाये रखने के लिए|
क्योंकि 99% भक्तवादी आजीविका के मामले में परजीवी होते हैं, इसलिए यह प्रवचन सुनाने की फीस लेते हैं, और झगड़ों को तारीख-पे-तारीख की भांति लटकाते हैं या अपने सगे भाई के घर से दूरी बनाने की बात कहते हैं; ताकि उससे इनकी आजीविका निरंतर चलती रहे| फिर बेशक झगड़े आधारहीन ही क्यों ना हों, परन्तु यह उनको सुलझवाते नहीं; दोनों तरफ के परिवारों को अलगाव पर डाल देते हैं|

अनुरोध: और क्योंकि खाप वालों में यह स्वछंदता उनकी आर्थिक स्वावलम्बिता के चलते बनी होती है, इसलिए खापोलॉजी व् समकक्ष थ्योरियों में यकीन रखने वालों को चाहिए कि भक्तवाद से दूर रहें और अपनी आर्थिक आज़ादी को कैसे कायम व् निरंतर स्वतंत्र रखें इसपे कार्य करें| आप भक्तवाद के आगे झुक गए या आत्मसमर्पण कर दिया तो याद रखिये, यह आपसे ही आपकी कमाई छीन के आपको उसी के मोहताज बना देंगे; यह इस हद तक के बहमी लोग होते हैं|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

जब ब्राह्मणों ने यह सलंगित कटिंग वाली खबर पढ़ी होगी, तो उन्होंने क्या किया होगा?

हरयाणा में जाट बनाम नॉन-जाट, वेस्ट यूपी में चौधरी चरण सिंह जी के सम्मान पर हाथ डालने की जुर्रत, पंजाब-हरयाणा व् तमाम भारत में सरदार भगत सिंह के नाम से एयरपोर्ट बदलने की गुफ्तगू छेड़ने की हिमाकत व् 1857 की क्रांति के धोतक राजा नाहर सिंह की रियासत का नाम बदलने से कोफ़्त और क्रोधित महसूस कर रहा जाट, जमींदार व् इन ऊपर नामित हुए नेताओं-नायकों से दिल से जुड़ा हर अन्य जातियों-ब्रादरियों का इंसान; 2012 की इस खबर की कटिंग को पढ़े और सोचे, क्या ब्राह्मणों ने जब यह कटिंग पढ़ी होगी तो कम खून खोला होगा उनका? लेकिन सब अंदर दबा के रखा और सही वक्त का ना सिर्फ इंतज़ार किया वरन उसको जल्द-से-जल्द लाने की तैयारी भी करते रहे|

इसलिए सोशल मीडिया पर विरोध दर्ज करें, परन्तु उसके अतिरेक में पड़ के आगे की तैयारी करने से विमुख न होवें| और आगे की तैयारी ऐसी हो कि यह पीछे वाली कमियां जिसमें ना हों| अच्छे-बुरे-अवांछित वक्त उन्हीं पे आते हैं, जिनको समाज-दुनिया कुछ मानती हो; आज यह जाट बनाम नॉन-जाट है तो यह स्थाई नहीं है| जिसने भी यह बनाया है, वह हीनभावना से ग्रसित है, उसको जाट सबसे उच्च लगते हैं; और खुद से भी, तो इसलिए बेवजह खौफजदा है वो| लेकिन यह उच्चता और पक्की हो, उसके लिए इन वर्तमान हालातों को उसका आधार बना के आगे बढ़ना होगा|

तो इस जाट बनाम नॉन-जाट को एक उत्सव की तरह जियो और एक छालें मार के बहती मदमस्त नदी की भांति अपने किनारों में बहते हुए अलख जगाते हुए आगे बढ़ो|

उद्घोषणा: मैं इस सलंगित कटिंग वाली खबर की पुष्टि नहीं करता, हो सकता है मीडिया की शरारत रही हो, परन्तु वर्तमान हालातों के चलते जाट-जमींदार जैसे समाज का युवा (नहीं जायेगा, यह जाट का जींस है, परन्तु फिर भी संभावना को ही मिटा दिया जाए तो अति-उत्तम) गलत राह ना पकड़ ले, अलगाव या अवसाद में न चला जाए; इसलिए सिर्फ-और-सिर्फ एक मोटिवेशनल रिफरेन्स की भांति प्रयोग कर रहा हूँ|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक


बाहुबली-2 रिव्यु!

जैसे जब बाहुबली-1 आई थी तो मैंने साफ़ कहा था कि क्या जरूरत थी फिल्म को एक काल्पनिक कथानक देने की जबकि हमारे पास सन 1748 की जयपुर राजगद्दी को ले हुई बागरु की लड़ाई की, इस फिल्म की स्क्रिप्ट में हूबहू फिट बैठती वास्तविक पठकथा उपलब्ध है तो?

सनद रहे बागरु की लड़ाई जयपुर राजा ईश्वरी सिंह व् उनके छोटे भाई माधो सिंह के मध्य जयपुर की गद्दी हथियाने बारे हुई थी| जिसमें ईश्वरी सिंह पक्ष में मात्र 20 हजार सेना (10 हजार कुशवाहा राजपूत व् 10 हजार भरतपुर-ब्रज की जाट सेना) थी व् माधो सिंह के पक्ष में 3 लाख 30 हजार सेना (7 राजपूत रजवाड़ों की सेनाएं, मुग़ल सेना व् पूना के ब्राह्मण पेशवाओं की मराठा सेना) लड़ी थी| तीन दिन के आंधी-अंधड़-तूफानों-बरसातों से भरे इस युद्ध में भरतपुर राजकुमार सूरजमल के नेतृत्व में जुटी व् लड़ी मात्र 20 हजार की सेना ने 3 लाख 30 हजार की जुगलबंदी सेना को परास्त कर दिया था| इस प्रकार एक जाट राजा ने अपनी साथी राजपूत राजा की गद्दी बचाई थी|

आज जब बाहुबली 2 देखी तो फिल्म बहुत पसंद आई, परन्तु अबकी बार का प्लाट भी वही काल्पनिक| एक राजमाता को केंद्रीय भूमिका में रखने वाली इस फिल्म को देखते ही अहसास हुआ कि यह कहानी भरतपुर की राजमाता महारानी किशोरीबाई के इर्द-गिर्द बनाकर, इसको वास्तविकता का आधार दिया जा सकता था|
सनद रहे यह वही राजमाता हैं, जिन्होनें अपने सुपुत्र भारतेन्दु महाराजा जवाहर सिंह को हड़का कर दिल्ली जीतने के लिए प्रेरित किया था| और अपनी माता व् राजमाता के मार्गदर्शन में महाराजा जवाहर सिंह ने जो दिल्ली पर चढ़ाई कर वहाँ बैठे अहमदशाह अब्दाली के मनोनीत शासकों की ना सिर्फ ईंट-से-ईंट बजाई, बल्कि चित्तोड़ की रानी पद्मावती के वक्त से अल्लाउद्दीन खिलजी द्वारा वहाँ का उखाड़ कर लाया जो अष्टधातु दरवाजा दिल्ली लालकिले में लगा था, उसको भी जाट उखाड़कर भरतपुर ले गए थे| दिल्ली में जाट एक महीना जम के बैठे रहे, तब उनके वहाँ से हटने का और कोई रास्ता नहीं दिख मुग़ल अपनी राजकुमारी भारतेन्दु से ब्याहने का न्योता देते हैं, तो भारतेन्दु महाराजा जवाहर सिंह ने वह ऑफर अपने फ्रेंच सेनापति साथी, कैप्टेन समरू की ओर मोड़ दिया था| दिल्ली की यह जीत इतिहास में "जाटगर्दी" के नाम से दर्ज है| और ऐसे ऐतिहासिक किस्सों की वजह से ही दिल्ली को जाटों की बहु भी कहा जाता रहा है|

वैसे तो बाहुबली-1 भी ऑस्कर में जाने लायक थी, परन्तु क्यों नहीं गई पता नहीं| बाहुबली-2 जाएगी या नहीं यह भी पता नहीं| परन्तु अगर वास्तविकता की जगह काल्पनिक पटकथा होना, इनका ऑस्कर में नहीं जाने की वजह बनता है तो यही कहूंगा कि इन लोगों को यह ऊपर बताई दो वास्तविक कहानियों पर अगली ऐसी ट्राई करनी चाहिए| क्योंकि यह दोनों घटनायें ना सिर्फ भारत अपितु अंग्रेज-अरब-अफ़ग़ान-फ्रेंच सबकी आँखों देखी हैं|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

एक बार एक "पहुँचा हुआ जाट" सतसंग में चला गया!

वहाँ गीता-पाठ हो रहा था| परन्तु प्रवचन वाले बाबा को पता नहीं था कि आज जाट से वाद-विवाद प्रतियोगिया होवेगी उसकी, बेचारा!

प्रवचन वाला बाबा छूटते ही बोला: भक्तजनों, अब कुछ समय के लिए सांसारिक दुःख-दर्द-मोहमाया-तर्क-वितर्क सब भूलकर अपने आपको मुझे समर्पित कर दो|

जाट बोला: बाबा अगर तर्क-वितर्क आपको समर्पित कर दिए तो बुद्धि क्या ग्रहण करेगी, यह कैसे आंकूंगा?

बाबा: वत्स, धर्म में तर्क-वितर्क नहीं किये जाते, खुद को भगवान को समर्पित किया जाता है|

जाट: पर बाबा, आप तो आपको समर्पित करने की कह रहे, यहाँ भगवान किधर है?

बाबा: वत्स, हम ही तो आपको भगवान से मिलाएंगे| परन्तु उसके लिए तुम्हें कंप्यूटर की भांति अपने दिमाग को फॉर्मेट मारना होगा|

जाट: फॉर्मेट मारना होगा का क्या मतलब बाबा?

बाबा: बेटा जैसे हम किसी भी कंप्यूटर को फॉर्मेट मारते हैं तो उसका पुराना डाटा डिलीट करके, उसमें नया डालते हैं, ऐसे ही आप अपनी बुद्धि से पुराना सब-कुछ डिलीट कर दीजिये|

जाट: परन्तु बाबा, इससे तो मेरे माँ-बाप व् स्कूल-कालेज में मिले गुरुवों की शिक्षा डिलीट हो जाएगी? आप जैसे लोग ही कहते हैं ना कि माँ-बाप और गुरु जो सिखावें उसको ताउम्र शिरोधार्य रखें?

बाबा: तुम जाट हो क्या, जो इतने तर्क-वितर्क करते हो?

जाट: हाँ, बाबा जाट ही हूँ|

बाबा: तो भाई पहले क्यों नहीं बोला; जो "पहुँचा हुआ जाट" हो गया वो तो हमारा भी बाप हो गया| हम तो खुद जाट को देख के तर्क करना सीखते हैं, प्रभु आप कहाँ आ गए हमारी परीक्षा लेने?

जाट: बाबा, यह सब छोड़ो; यह बताओ इंसान कोई मशीन है क्या, जो आप उसके दिमाग को अपने अनुसार फॉर्मेट मारोगे? और आपको कम्प्यूटर्स को इतना ही फॉर्मेट मारने का शौक है तो कोई सॉफ्टवेयर इंजीनियर की जॉब क्यों नहीं कर लेते?

बाबा: बच्चा, क्यों रोजी- रोटी पे लात मारते हो; कहो तो मैं आज ही नौकरी डॉट कॉम पे जॉब अप्लाई कर दूंगा| अब आज-आज की आज्ञा हो तो प्रवचन पूरे कर लूँ?

जाट: ना बाबा, आज तो आप अपना सीवी अपडेट करो; प्रवचन तो आज जाट देवेगा|

और जाट प्रवचन यही है कि अपनी तार्किक बुद्धि को कभी मत छोडो, किसी बाबा को गिरवी मर धरो| बिना छल-कपट के जियो और जीने दो|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

ईवीएम (EVM) मशीन से छेड़छाड़ का लाइव डेमो!


झाड़ू के निशान पर पड़े 10 वोटों में से 8 वोट कमल के निशान को कैसे चढ़ गए, समझने के लिए वीडियो को शुरू से अंत तक पूरा देखें| कुछ भी कहो आज आम आदमी पार्टी वालों ने जो किया है, इसने दिल छू लिया|

वीवीपैट (VVPAT) की मशीनों से भी गड़बड़ी सम्भव है, इसलिए इसका सिर्फ एक ही हल है और वो है "बैलेट पेपर" वाली वोटिंग वापिस लाओ|

2019 का चुनाव अगर वीवीपैट के भरोसे छोड़ दिया तो भी गड़बड़ की जाएगी; इसलिए आवाज उठे कि ना ईवीएम ना वीवीपैट, वोटिंग सिर्फ बैलेट पेपर से| बैलेट पेपर से ही वोटिंग फ्रांस में होती, यही इंग्लैंड में|

https://www.youtube.com/watch?v=9RpUJJbr-8I

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Tuesday, 2 May 2017

भाजपा के वसूली भाईयों ने किया भ्रष्टाचार का नया कीर्तिमान स्थापित!

जबरन वसूली, वो भी जनता से नहीं बल्कि सरकारी अफसरों से|

सलंगित आदेश पत्र की कॉपी के मुख्य हिस्से में यह लिखा है:

{{{{ ...... माननीय मुख्यमंत्री - हरयाणा सरकार के निर्देशानुसार आपको सूचित कर रहा हूँ कि जिस दिन से हरयाणा सरकार में चेयरमैन अथवा अन्य किसी लाभ के पद को ग्रहण किया है और आपने विभाग से मासिक मानदेय लेना शुरू किया है, उस दिन से इस वेतन का 10 प्रतिशत प्रतिमाह एमएलए फ्लैट 51, सेक्टर 3, चंडीगढ़ भाजपा कार्यालय में जमा करवाना है| अकाउंट का विवरण निम्न प्रकार से है|
सधन्यवाद,
गुलशन भाटिया,
चेयरमैन
भाजपा कार्यालय
चंडीगढ़ ..... }}}}

पिछली सरकारों को किसी को "भ्रष्टाचार की नानी" तो किसी को "बाहुबली गुंडों की सरकार" कहने वाले इन लोगों को भी देख लो ज़रा| और हिम्मत तो देखो, बाकायदा लिखित आदेश जारी हो रहे हैं, वो भी दिन-दहाड़े सबको दिखा के; कोर्ट-कानून किसी का कोई मतलब ही नहीं छोड़ा|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

पत्र सोर्स: दीपकमल सहारण भाई साहब!

फंडी की भरमाई शाक्का/जौहर करती! जाटणी की जाई, बैरी के प्राण हरती!!

फंडी की भरमाई शाक्का/जौहर करती!
जाटणी की जाई, बैरी के प्राण हरती!!

इस कहानी को चरितार्थ करती जाट वीरांगना रानाबाई की शौर्यगाथा!

सम्राट् अकबर के शासनकाल में वीरांगना रानाबाई थी, जिसका जन्म संवत् 1600 (सन् 1543 ई०) में जोधपुर राज्यान्तर्गत परबतसर परगने में हरनामा (हरनावा) गांव के चौ० जालमसिंह धाना गोत्र के जाट के घर हुआ था। वह हरिभक्त थी। ईश्वर-सेवा और गौ-सेवा ही उसके लिए आनन्ददायक थी। उसने अपनी भीष्म प्रतिज्ञा आजीवन ब्रह्मचारिणी रहने की कर ली थी, इसलिए उसका विवाह नहीं हुआ।

हरनामा गांव के उत्तर में 2 कोस की दूरी पर गाछोलाव नामक विशाल तालाब के पास दिल्ली के सम्राट् अकबर का एक मुसलमान हाकिम 500 घुड़सवारों के साथ रहता था। वह हाकिम बड़ा अन्यायी तथा व्यभिचारी, दुष्ट प्रकृति का था। उसने रानाबाई के यौवन, रंग-रूप की प्रशंसा सुनकर रानाबाई से अपना विवाह करने की ठान ली। उसने चौ० जालमसिंह को अपने पास बुलाकर कहा कि “तुम अपनी बेटी रानाबाई को मुझे दे दो। मैं तुम्हें मुंहमांगा इनाम दूंगा।” चौ० जालमसिंह ने उस हाकिम को फ़टकारकर कहा कि - “मेरी लड़की किसी हिन्दू से ही विवाह नहीं करती तो मुसलमान के साथ विवाह करने का तो सवाल ही नहीं उठता।” हाकिम ने जालमसिंह को कैद कर लिया और स्वयं सेना लेकर रानाबाई को जबरदस्ती से लाने के लिए हरनामा गांव में पहुंचा और जालमसिंह का घर घेर लिया।

जब वह रानाबाई को पकड़ने के लिए उसके निकट गया तो वीरांगना रानाबाई अपनी तलवार लेकर उस म्लेच्छ पर सिंहनी की तरह झपटी और एक ही झटके से उसका सिर धड़ से अलग कर दिया। बाल ब्रह्मचारिणी रानाबाई सिंहनी की तरह गर्जना करती हुई मुग़ल सेना में घुस गई और अपनी तलवार से गाजर,मूली की तरह म्लेच्छों के सिर काट दिये। इस अकेली ने 500 मुगलों से युद्ध करके अधिकतर को मौत के घाट उतार दिया। थोड़े से ही भागकर अपने प्राण बचा सके। जाटों ने उनका पीछा किया और चौधरी जालमसिंह को कैद से छुड़ा लिया गया।
वीरांगना रानाबाई की इस अद्वितीय वीरता की कीर्ति सारे देश में फैल गई। वीरांगना रानाबाई के स्वर्गवास होने पर उसकी यादगार के लिए उनके अनुनाईयों ने उनका एक स्मारक बना दिया।

आधार लेख:
(1) जाट बन्धु मासिक समाचार पत्र आगरा, मुद्रक, प्रकाशक किशनसिंह फौजदार, अंक जुलाई, अगस्त, सितम्बर 1986, सती शिरोमणि रानाबाई, लेखक चौ० किशनाराम आर्य।
(2) जाट इतिहास, पृ० 606, लेखक ठा० देशराज
(3) जाट वीरों का इतिहास दलीप सिंह अहलाबत
 
#कुलदीप_पिलानिया_बाँहपुरिया

Saturday, 29 April 2017

मंडी-फंडी का गठजोड़ सिर्फ पैसे की वजह से है!

अंत तक पढ़ के बताना कि पढ़ के भीतर का जमींदार जागा कि नहीं?

फंडी भगवान और भय के दम पर बिज़नेस ओप्पोरचुनिटीज क्रिएट करके देता जाता है और मंडी उनको कैश करता जाता है| और यह मत समझना कि फंडी, मंडी के हाथों सिर्फ जमींदार को लुटवा रहा है, उसको तो लुटवा ही रहा है; उससे भी डबल-ट्रिप्पल कई गुना ज्यादा शहरी (90% से ज्यादा) बने और अपने आपको दुनिया के सबसे अव्वल स्याणे परन्तु तार्किकता में सबसे चम्पू, दब्बू और उल्लू साबित होते जा रहे जमींदारी परिवेश के परिवारों को पीतल लगवा रहा है|

जमींदारों के गाँवों में तो आज भी फंडी-पाखंडियों के टकनों पर लठ मारने वाले और इनके सतसगों में रेत-पत्थर बरसाने वाले बाकी हैं, परन्तु असली पढ़े-लिखे मूर्ख देखने हैं तो जाओ शहरों में देखो कैसे जमींदारी परिवेश के परिवार इनके चरणों में शाष्टांग गिरे पड़े हैं|

तौबा-रे-तौबा पढ़ने और तरक्की करने का यही सबब है तो इनसे तो गाँव का वो अनपढ़ गंवार ही बेहतर जो कम-से-कम ढोंग-पाखंड को तो अच्छे से जानता-पहचानता है| जिसके दम से जमींदारी जातियों की वो कहावतें तो जिन्दा खड़ी है कि "अनपढ़ जाट पढ़े जैसा और पढ़ा जाट खुदा जैसा!" परन्तु इन शहरी चम्पुओं ने तो जैसे यह गौरवपूर्ण और अपने वर्ग-समाज की अभिजातीयता दर्शाने वाली कहावतें "जाटड़ा और काटडा, अपने को ही मारे" तर्ज पर खत्म करने की उलटी मति धार रखी है|

हाँ, यह जमींदारी परिवेश के शहरी लोग, इन फंडी-पाखंडियों के बिज़नेस में कुछ हिस्सा ले रहे होते, एक आध मंदिर की फ्रेंचाइजी ले उससे समाज का पैसा समाज को वापिस कर रहे होते तो भी इनका इनके आगे शाष्टांग करना समझ आता; यह तो फ्री-फंड में उल्लू बने फिरते हैं और घर बुलवा के अपना उल्लू कटवाते हैं|

जो भक्त बने टूल रहे हैं, उनके बारे भी सुना जाता है इनको कभी भी भक्तों की तमाम फ्रेंचाइजियों की घोर-कोर कमेटियों में घुसने तक नहीं दिया जाता; अधिकतर या तो थर्ड लेवल की लाइन या सेकंड लेवल की लाइन तक रखे गए हैं, फर्स्ट लाइन में ना कभी इनका नंबर आना| इससे तो अच्छे यह गाँवों में ही थे, वहाँ कम-से-कम अपनी स्वछंद मति व् गति के मालिक तो थे|

जमींदारी वर्ग के जो लोग इनसे अभी बचे हुए हैं या अपनी सोच को आज भी अपने पुरखों की भांति बुलंद रखे हुए हैं, आप अपना भगवान खुद बन जाओ या अपने महान पुरखों को बना लो (जैसे आपके पुरखे जमींदारों के अपने दादा खेड़ा कांसेप्ट के जरिये मानते आये हैं) या फिर मंदिरों में अपने पुरखों की मूर्तियां लगवाने की जिद्द बाँध लो; फंडी अपने आप तीतर-बितर हो जायेगा और मंडी उतने ही पर फैलाएगा, जितने जमींदारों के भगवान सर छोटूराम ने निर्धारित कर दिए थे|

वैसे हर मंदिर में सर छोटूराम की मूर्ती साथ धरवाने का आईडिया कैसा रहेगा? कहीं यह लोग यह तो नहीं कह देंगे कि अपना अलग मंदिर बना लो अगर छोटूराम की मूर्ती रखनी है तो? क्यों अच्छा है ना अगर ऐसा भी हो जाए तो, फिर भगवान भी अपना और दान-चंदा भी अपना| मंथली ऑडिट करके जनता का दान, जनता को सौंप दिय करेंगे| धर्म के नाम पर समाज का पैसा समाज में और फंडी की लूट से पैंडा भी छूट जायेगा? वैसे भी हिन्दू धर्म में 33 करोड़ देवी-देवता हैं, एक-आध जमींदार ने अपना भी बैठा दिया मंदिरों में तो कौनसी आफत टूट पड़ेगी? आखिरकार यह सब फंडा जब है ही भगवान के नाम पर इधर के पैसे को उधर करने का, तो अपने भगवान के जरिये, अपना पैसा अपने ही यहां क्यों ना रखा जाए?

तो बताओ, पढ़ के भीतर का जमींदार जागा कि नहीं? शहरों में बैठे हो या गाँवों में परन्तु जमीनों के मालिक होने के नाते, जमींदार तो आज भी कहलाते हो ना? या शहर में गए हुओं को मंडी-फंडी ने अपने बराबर का मान लिया है? मेरे ख्याल से उनके लिए एक मंदबुद्धि ग्राहक (खासकर फंडी के चोंचलों में फंसने वाले ग्राहक) से ज्यादा कुछ नहीं हो, चाहो तो बराबरी के ओहदे का टेस्ट करके देख लो; पता लग जायेगा कि पैसे से बेशक कोरड़पति हो गए हो, परन्तु इनके बराबर (हालाँकि जमींदार को इसकी दरकार कभी रही भी नहीं, परन्तु आप जमींदारी परिवेश के 90% शहरी लोग यह दरकार दिखाते से प्रतीत होने लगे हो; क्योंकि गाँव वाला तो अनपढ़ होते हुए भी आज भी पढ़ालिखा कहलाता है और आप पढ़लिख के भी भगवान नहीं बन पा रहे हो, है ना?) की हैसियत व् हस्ती के इन्होनें आपको आज भी नहीं माना|

फिर वही बात इन वाली हैसियत की बराबरी में क्यों अपनी "अनपढ़ जाट पढ़े जैसा और पढ़ा जाट खुदा जैसा" वाली आइडेंटिटी का मलियामेट करते हो? इनसे समझौते करो, परन्तु बिज़नेस करने के, नौकरी करने के; अपनी आइडेंटिटी व् सभ्यता गिरवी रखने के नहीं|

अंत निचोड़ यही है कि: जाट-जमींदारों, अपनी लुगाईयों को रोको-समझो-समझाओ| इनको स्याणे-सपटों के फेर में पड़ डेड-स्याणी बनने के चक्कर में ढेढणी मत बनने दो| वर्ना इतना समझ लो कि कल को नए जमाने के "अळ काका" वाले ढेढ़ तुम ही बनने जा रहे हो|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Friday, 28 April 2017

औरत के नाम पर धर्म का शोषण, या धर्म के नाम पर औरत का शोषण; मुझे तो दोनों ही बातें पसंद नहीं!

हिन्दू धर्म में औरत का शोषण:

धर्मस्थलों पर शोषण:

1) दक्षिण व् मध्य भारत में मंदिरों में दलित-ओबीसी की बेटियां बावजूद कानून बन जाने के आज भी हजारों में मंदिरों में देवदासी (यानि पुजारी की सेक्स-गुलाम) बना के बैठाई जा रही हैं| - http://www.thenational.ae/news/world/asia-pacific/tragic-plight-of-indias-young-temple-girls
2) झारखण्ड-उड़ीसा-बिहार की तरफ की प्रथमव्या व्रजसला हुई लड़की का "शुद्धि-भोज" की कुप्रथा| और होता क्या है इस "शुद्धि-भोज" में, उस 12-14 साल की बच्ची का शुद्धिकरण के नाम पर मंदिर के गृभगृह में पुजारी लोग सामूहिक भोग (यानी गैंगरेप कर रहे होते हैं) लगा रहे होते हैं, और उसी मंदिर के ऊपर बाहर प्रांगण में लड़की के परिवार वाले समाज को भोज छका रहे होते हैं|


"शुद्धि-भोज" कुप्रथा पर 2001 में बनी बॉलीवुड फिल्म 'माया' के क्लाइमेक्स का वीडियो:

watch end to end, if not then from minute 3 to 7 a must!

https://www.youtube.com/watch?v=ufahjIahbVw&t=12sइस वीडियो को देख के आम-इंसान तो क्या भक्तगण भी स्तब्ध रह जायेंगे|
3) विधवा-आश्रम कुप्रथा: हरयाणा-पंजाब-वेस्ट यूपी को छोड़ दें तो तमाम देश में हिन्दू धर्म की विधवा को दिवंगत पति की चल-अचल सम्पत्ति से बेदखल कर, विधवा-आश्रमों में अनजान व् तथाकथित मठाधीशों के सानिध्य में सेक्सुअली एक्सप्लॉइट होने हेतु छोड़ (मैं तो फेंक दिया जाता है कहूंगा) दिया जाता है|

सामाजिक परिवेश में शोषण:
ऊपर वाले बिंदु हुए वह कुछ कुकर्म जो हिन्दू धर्म में औरत के साथ धर्म के नाम पर होते हैं| इसके अलावा सामाजिक स्तर पर दहेज़, हॉनर किलिंग, भ्रूण हत्या और पर्दा-प्रथा वो घिनोने चेहरे हैं हिन्दू धर्म के कि इंसानियत रखने वाला आदमी तो कम से कम जरूर शर्मसार हो जाए|

मुस्लिम धर्म में औरत का शोषण:

धर्मस्थलों पर शोषण:
इनके यहां धर्म-स्थलों पर औरत का शोषण देखने को नहीं मिलता; फिर भी कुछ मेरी नजरों से बचा हो तो जरूर बताएं|

सामाजिक परिवेश में शोषण:
लेकिन हाँ, सामाजिकता में इनके यहाँ तीन तलाक के नाम पर, पर्दा-प्रथा के नाम पर औरत का शोषण होता है| गैर-धर्मी यह भी कह देते हैं कि इनके यहां औरत को सिर्फ बच्चा जनने की मशीन माना जाता है; हाँ जैसे माइथोलॉजी चरित्र वाली गांधारी ने 100 पुत्र जनने से पहले धर्म-परिवर्तन कर इस्लाम अपना लिया था|

भक्तों को अपने धर्म के अंदर इन बुराइयों का सफाया करने की बजाये, बस दूसरे धर्म पे ऊँगली ताननी सिखाई गई है| कायदे से देखो तो अंधभक्त अगर "देवदासी" व् "शुद्धि-भोज" वाली प्रथा वाले इलाकों से आते होंगे तो इनको खुद नहीं पता होगा कि इनके परिवार की बहु-बेटियों ने धर्म के नाम पे क्या-क्या कुकर्म झेला हुआ होगा|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

यूरेशियन व् थाईलैण्डी थ्योरी पर कुछ क्रॉस-एग्जामिनेशन!

जिस एक्सपर्ट मित्र के पास जवाब हो जरूर दीजियेगा!

तर्क की मेथोडोलॉजी: दो मेथड होते हैं, एक लेख-आलेख, अवशेष, खंडहर, शिलालेख आदि के जरिये कोई तर्क स्थापित करना और दूसरा सोशियोलॉजी, साइकोलॉजी, आइडियोलॉजी व् डीएनए के जरिये तर्क स्थापित करना| मेरे जो तर्क हैं यह दूसरे तर्क के तहत हैं| अब तर्क:

पहले यूरेशियन थ्योरी:
1) अगर यह लोग यूरेशिया से आये हुए हैं तो यह अपने ही उधर के और अपनी ही नश्ल के अंग्रेजों के राज का विरोध क्यों किये? जबकि मुग़ल्स का तो इतना तगड़ा विरोध इन्होनें नहीं किया था, जो कि इनके धर्म के भी नहीं थे?
2) यह यूरेशिया ओरिजिन के हो भी पाश्चात्य सभ्यता से इतनी नफरत क्यों करते हैं कि जब देखो भारत के कल्चर की हर खराबी को वेस्टर्न वर्ल्ड पे मढ़ देते हैं?
3) यूरेशिया ओरिजिन के हैं अगर यह तो बर्मा से होते हुए थाईलैंड तक चार लेन का द्विमार्गी राजमार्ग बनवाने में इनका क्या इंटरेस्ट है? पैतृक जड़ों के मोह के चलते तो यह राजमार्ग यूरेशिया की ओर जाना चाहिए था ना, थाईलैंड की ओर क्यों बन रहा है?
4) यूरेशिया से आये थे तो धर्म से ईसाई होने चाहियें थे, तो फिर इन्होनें हिंदुइज्म कब-कैसे अपनाया या ईजाद किया? क्योंकि 200 साल ऑफिसियल और 300 साल अन-ऑफिसियल रूप में राज करने के बावजूद भी उधर के ही रहे अंग्रेजों ने तो धर्म, भाषा आदि नहीं बदला? तो फिर यह कैसे गौरवान्वित यूरेशियन हुए, जिन्होनें धर्म तक भी बदल डाला?
5) अगर यह यूरेशियन थे तो जैसे अंग्रेजों और फ्रांसीसियों की भारत पर कब्जे बारे बक्सर-प्लासी जैस सीरीज युद्ध हुए थे, ऐसे इनके अंग्रेजों से क्यों नहीं हुए? अंग्रेजों और फ्रांसीसियों ने तो एक झटके में फैसला कर लिया था कि भारत पर कौन राज करेगा? तो इन्होनें ने क्यों नहीं किया और किया तो क्या वो कहीं और के लिए किया था, शायद थाईलैंड के लिए?
6) वैसे लगे हाथों बता दूँ, विकिपीडिया से ले के तमाम प्रमुक सोर्सों के अनुसार यूरेशिया का क्षेत्र पूरे यूरोप व् एशिया को मिला के बताते हैं, ना कि इस ईजाद की हुई थ्योरी की भांति सिर्फ काला सागर के आसपास का क्षेत्र यूरेशिया है| तो कृपया यह कन्फूशन दूर कीजिये मेरा, क्योंकि अगर पूरा यूरोप व् एशिया साझे तौर से यूरेशिया कहलाता है तो फिर हर भारतीय, हर चीनी, हर रूसी, हर अंग्रेज-फ़्रांसिसी आदि सब यूरेशियन हुए; अन्यथा सिर्फ काला सागर का क्षेत्र ही यूरेशिया है तो विकिपीडिया से ले तमाम प्रमुख सोर्स सिर्फ काला सागर क्षेत्र को यूरेशिया बताने की बजाये दोनों महाद्वीपों के साझे क्षेत्र को यूरेशिया क्यों बता रहे हैं?

अब थाईलैण्डी थ्योरी:
1) अगर आप लोग थाईलैन्डियों की भारत में एंट्री बारहवीं सदी के पास की बताते हो तो ईसा पूर्व हुए बंगाल के राजा शशांक, पहली सदी में हुए राजा पुष्यमित्र सुंग व् सातवीं सदी में हुए चच और दाहिर का यहाँ होना, कैसे जस्टिफाई करोगे?
2) भारत में जाति-व्यवस्था इनकी देन बताई जाती है, उससे पहले कबीला सिस्टम बताया जाता है| परन्तु जाति-व्यवस्था भी तो महात्मा बुद्ध से पहले की है, इसी से तंग हो के तो बुद्ध ने ईसा पूर्व पांचवीं सदी में बुद्ध धर्म ईजाद किया था; तो अगर थाईलैण्डी भारत बारहवीं सदी के आसपास आये तो उस वक्त इनका होना कैसे जस्टिफाई करोगे?
3) उत्तरी भारत में जब किसी का नुकसान होता है तो कहते हैं कि ले भाई "मार दिया मठ", "हो गया मठ", "कर दिया मठ" जैसी जो कहावतें उस काल से चलती हैं जब बौद्ध मठ तोड़े गए थे; तो अगर थाईलैण्डी भारत में बारहवीं सदी में आये तो उन मठों को तोड़ने वाले कौन थे? थानेसर के बुद्ध धर्मी राजा हर्षवर्धन के राज व् वंश दोनों के दुश्मन कौन थे?

 विशेष अनुरोध: जातीय घृणा व् अवसाद प्रदर्शित करने वाली भाषा, व् जातीय शब्दों के प्रयोग से बचें| ऐसा कोई कमेंट आया तो सविनय डिलीट कर दिया जायेगा|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Thursday, 20 April 2017

What Protestants are in Christianity is the Khap in Hinduism; this analogy is amazing, just go through!


Parameters took to set this analogical research were prosperity, peace and harmony.

But before that let’s have a glimpse of what Protestants in Christianity are and what Khaps in Hinduism are?

Protestants in Christianity: Protestants are one of three major divisions of Christianity together with Roman Catholics (or just Catholics in short) and Orthodox (see reference 1). A Protestant is a Christian who belongs to one of the many branches of Christianity that have developed out of the Protestant Reformation started by Martin Luther in 1517. Luther’s posting of the 95 Theses “protested” against unbiblical teachings and traditions in the Roman Catholic Church, and many Europeans joined his protest. New churches were founded outside of the Catholic Church’s control. The major movements within the Protestant Reformation include the Lutheran Church (see reference 2).

Their core line of belief is that to show loyalty for religion ‘faith’ alone is enough and one doesn’t require performing rituals for same. One can refer to above two references to know more in depth about Protestants.

Khaps in Hinduism: Khaps also very closely based on the faith solely instead of performing rituals. They don’t believe in authoritarianism, they believe in democracy and republic (reference 3). They oppose all such rituals which oppress humanity on name of religion. Basically they advocate humanism and socialism over religion. They count religion second over humanism on top.
Their core belief goes with England's Constitution pattern to consider every village as the smallest and independent unit of customs, culture and claims.

What equivalent of Orthodox of Christianity in Hinduism is the Santani Division, which is nurtured by present day RSS and BJP through their proxies like VHP, Bajrang Dal, Shivsena etc (see reference 4).

So here comes the first finding of this analogical research: It is that Khaps who usually are termed as the most orthodox sect of Hinduism is a false notion; instead they are and have been Protestants of Hinduism. The one who is orthodox of Hinduism is the Santani.

Now let’s have a look at following facts and figures:

When looked upon following two reports:
1) Top 10 Most Peaceful Countries In The World 2017 - https://themysteriousworld.com/10-most-peaceful-countries-in-the-world/
2) Protestantism by country - https://en.wikipedia.org/wiki/Protestantism_by_country

Reading these reports reveals you following findings:
1) Out of top 10 most peaceful countries 7 are such where protestants population is in majority varying from 26% up to 82%
2) They are majorly Nordic countries of Europe (especially the top 2 of this report i.e. Iceland (79% Protestants and Denmark (77 to 82% Protestants). And so is the case with Finland at number 6 in this report with 73 to 80% Protestants.
3) USA has 48% Protestants and UK has 50% Protestants, which can further be seen as a big engine behind their status of being developed and prosperous countries.

Now let’s look at which region of India has been and is (or according to many professors, have been before coming up of current government) the most prosperous with least economic gaps between poor and rich, with least of religious hypocrisy and anarchy, with no one going out of it for merely the labourer earnings (rather sister states people come here from remote corners of country in search of basic livelihood), a region without religious shames like Devdasies, Widow Ashrams (Vrindavan is exception that too consists of 85% Widows of Bangal and 99.99% of out of this reigion widows) and Mahadalits; and you shall put your finger on 300 Kms radius region around Delhi along with Punjab. And this region as a whole has been nurtured by ideology, philosophy and sociology established by Khaps since ages. Khaps have basically been the independent social institutions in form of oldest “Social Jury System” perhaps the world's ever known to in continuation of more than 15 centuries system.

Hence other findings of this research can be enlisted as follows:
1) Second finding (look above for the first finding) of the research states Khaps of Hinduism equivalent version of Protestants of Christianity.
2) These were the customs, culture and values of Khaps from where Maharishi Dayananda took the concept of Arya Samaj and revered the back bone community of this system i.e. the Jats as “Jat Ji” and “Jat Devta”. And it was for none other than the reason of theirs being Protestants of Hinduism.

Learnings and further scopes of this research, especially for Khap System believers:
1) Beside my many initial researches established with analogical global studies in this field, this research can be seen as another enlightenment of self-realization and self-recognition with global purview.
2) It can serve as a testament to historians, who write on Khaps to put their studies in this framework.
3) Any counterfeit to this research would be a subject of further interest to observe and synthesise.

Jai Yauddhey!

Author: Phool Kumar Malik

References:
1. https://en.wikipedia.org/wiki/Protestantism
2. https://www.gotquestions.org/what-is-a-Protestant.html
3. https://www.nidanaheights.com\Panchayat.html
4. https://en.wikipedia.org/wiki/Orthodoxy#Orthodoxy_in_Hinduism
5. https://en.wikipedia.org/wiki/Protestantism_by_country
6. https://themysteriousworld.com/10-most-peaceful-countries-in-the-world/

हिंदुइज्म की खाप व्यवस्था को ईसाई धर्म की प्रोटोस्टेंट लाइन के समक्ष रखा जा सकता है!

क्रिश्चियनिटी में तीन मुख्या धाराएं हैं या कहिये धड़े हैं| एक रोमन कैथोलिक, दूजा ऑर्थोडॉक्स व् तीसरा प्रोटोस्टेंट|

रोमन कैथोलिक क्रिस्चियन चर्च के वेग को फॉलो करते हैं| 
हिंदुइज्म की सनातनी परम्परा को क्रिश्चियनिटी में ऑर्थोडॉक्सी कहा जाता है|
और जो अब तक शायद संज्ञान-रहित पड़ी रही आ रही है वह है हिंदुइज्म की खाप व्यवस्था, जो कि सघन अध्यन से देखने पर क्रिश्चियनिटी की प्रोटोस्टेंट व्यवस्था से मेल खाती है| जो कि ऑर्थोडॉक्सी व् कॅथोलिज्म की भांति हिन्दू की धर्म की शंकराचार्य व्यवस्था, ऑर्थोडॉक्स सनातनी व्यवस्था व् मैथोलॉजिकल मान्यताओं को सहज स्वीकार नहीं करती| सहज स्वीकार इसलिए कहा क्योंकि यह माइथोलॉजी को मानने वाले का विरोध भी नहीं करती|


परन्तु जैसे प्रोटेस्टंट्स ने पंद्रहवीं सदी में पैदा हुए मार्टिन लूथर के 95 सख्त रूल्स वाली नियमावली को मानने से इंकार कर दिया था व् इसको मानवता पर धर्म के नाम पर मानवीय आज़ादी छीनना माना था, ठीक वैसे ही खाप व्यवस्था की आइडियोलॉजी का मूल शंकराचार्य, सनातनी व् माइथोलॉजी को मानवता की आज़ादी पर गैर-जरूरी बोझ की तरह देखती आई है|

जैसे क्रिश्चियनिटी में प्रोटेस्टंट्स कहते हैं कि एक इंसान की उसके धर्म के प्रति सच्चाई मापने के लिए उसका उस धर्म के प्रति विश्वास ही काफी है, व् धर्म से संबंधित कर्मों को भी करना नहीं; ऐसे ही खाप व्यवस्था कहती है कि हिंदुइज्म में विश्वास काफी है; उसको साबित करने के लिए कावड़ ढोना, खड़तल बजाना, भजन-कीर्तन-जगराते-भंडारे आदि करना जरूरी नहीं|

इसलिए हिंदुइज्म में खाप व्यवस्था के फोल्लोवेर्स एक पल को रुक के अपनी डीएनए को पहचानें तो खुद को हिंदुइज्म का प्रोटोस्टेंट पाएंगे व् इन ढोंग-पाखंडों से ऐसे ही बच के चलेंगे, जैसे इनके पुरखे चलते रहे हैं|

मुझे गर्व है कि मैं मेरी जीवन शैली व्यवस्था यानी हिंदुइज्म (धर्म नहीं) की प्रोटोस्टेंट श्रेणी को मानने वाला हूँ, जो किसी भी धर्म के अंदर धर्म को उसकी सीमा सिखाती है व् धर्म को मानवता पर हावी होने से बचाती है|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Sunday, 16 April 2017

किसी समाज-कल्चर-तंत्र में रिश्वतखोरी-भ्र्ष्टाचार की जड़ें पकड़नी हैं तो उसकी धार्मिक व्यवस्था में झांको!

क्योंकि धर्म से ही संस्कार पड़ते हैं, धर्म से ही मूल्य-मान्यता-मति बनती है| माँ-बाप व् गुरु के बाद जिस चीज का इंसान के अंत:कर्ण व् गलत-सही निर्धारित करने की सोच पर सबसे ज्यादा असर पड़ता है तो वह धर्म है| और क्योंकि माता-पिता व् गुरु भी अधिकतर (खासकर बचपन के वक्त) उसी धर्म के होते हैं, जिसमें वह पैदा हुआ होता/होती है, तो ऐसे में यह जाँच-परख अति लाजिमी हो जाती है|

और धर्म-पंथ ही हर बुराई व् अच्छाई की जड़, उसका स्त्रोत होता है| इसलिए लाजिमी है कि अगर उस समाज-कल्चर-तंत्र में फैले भ्र्ष्टाचार व् रिश्वतखोरी की जड़ें समझनी हैं तो उसके धर्म का ढांचा-व्यवस्था जरूर समझी-परखी-जांची जाए|

1) देखा जाए कि धर्म का दर उस धर्म के लोगों का बराबर से सत्कार करता है या नहीं? रंग-नश्ल-वर्ण इत्यादि के आधार पर भेदभाव तो नहीं करता? धर्म-पदों पर एक वर्ग-वर्ण विशेष का ही तो बाहुल्य नहीं है? क्योंकि आपकी नौकरी के इंटरव्यू के वक्त, उसमें प्रमोशन के वक्त, स्कूल-कालेज में दाखिले के वक्त; ऐसे धर्म का इंसान भाईभतीजावाद-पक्षपात करेगा और इस पक्षपात पे खुद को सांत्वना या सही ठहराने या मानने हेतु, अपने धर्म की इस भेदभाव वाली रिफरेन्स दे के सही करार ठहरा लेगा| और ऐसा करने को पाप नहीं मानेगा|

2) देखा जाए कि धर्म के नाम पर दिया दान, कहीं धर्म में ही तोड़फोड़, वाद-विवाद खड़े करवाने हेतु तो प्रयोग नहीं हो रहा है? क्योंकि इससे फिर उसको व्यापारिक टेंडर्स आवंटित करते वक्त, राजनीति में नस्लीय-जातीय वर्गीकरण करते वक्त; यही वाद-विवाद खड़े करने में निपुणता और रिफरेन्स धर्म के दर से आएगी|

3) देखें कि धर्म के दर पर दर्शन हेतु विशेष पंक्तियाँ तो नहीं बनी हैं? जैसे कि 100 रूपये चढ़ाने वालों की सामान्य पंक्ति अलग, 500 चढ़ाने वालों की वीआईपी पंक्ति अलग व् 1000 या इससे ऊपर चढ़ाने वालों की वीवीआईप विशेष डायरेक्ट दर्शन वाली पंक्ति अलग| क्योंकि अगर आप इस सिस्टम से होकर आते हैं तो फिर अपने कार्यस्थल पर भी वीआईपी कल्चर को बढ़ावा देंगे, रिश्वत लेने को अपना धर्म मानेंगे|

4) देखा जाए कि धर्म के नाम पर दान दिया गया पैसा, मुसीबत के वक्त समाज-कल्चर के कितना काम आता है या समाज के कल्चर के विभिन्न आयामों को प्रमोट करने में बराबर के अनुपात से प्रयोग होता है या नहीं? क्योंकि यदि ऐसा क्रॉसचेक नहीं हो रहा है तो आपमें चोरी के अवगुण और जवाबदेही से बचने की बीमारी दोनों प्रवेश कर रही हैं|

और भी ऐसे ही कई पैमाने हैं, जिनको देखने-सुनने-बरतने से विश्वास ना आवे तो उस धर्म में सुधार के लिए आवाज बुलंद कीजिये| यह इसलिए कीजिये क्योंकि आपको मानवता का भला करने वाला इंसान बनना है ना कि धर्म के नाम पर धूर्त व् गुंडे अपने सर पे बैठाने हैं|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Saturday, 15 April 2017

Grand list of "225 Jat Legends" from all religions!

Author: Sir Jasbir Singh Malik, Editor-in-Chief Jat Ratan Magazine

Agreed upon all except figures picked from mythology! - Phool Malik

(1) धन्ना जाट भक्त - हरचतवाल गोत्री,

(2) पूर्ण भक्त उर्फ बाबा चौरंगीनाथ - संधु (सिन्धड़) गोत्री

(3) सन्त गरीबदास - धनखड़ गोत्री

(4) बाबा दीपसिंह - संधु गोत्री

(5) बाबा जोगी पीर - चहल गोत्री

(6) पीर बाबा काला मेहर - संधु गोत्री (पाकिस्तान)

(7) हाफीज बरखुरदार - भराइच गोत्री (पाकिस्तान)

(8) लाखन पीर - चीमा गोत्री

(9) सन्त निश्चलदास - दहिया गोत्री

(10) भक्तशिरोमणि रानाबाई - घाना गोत्री (राज.)

(11) पीर साखी सरवर - सरवर गोत्री (पाकिस्तान)

(12) बाबा सिद्ध भोई - धालीवाल गोत्री

(13) पीर बादोके - चीमा गोत्री

(14) बाबा हरिदास - डागर गोत्री (दिल्ली)

(15) बाबा कालूनाथ - गिल गोत्री

(16) बाबा सिद्ध कालींझर - भुल्लर गोत्री

(17) बाबा मेहेर मांगा - बाजवा गोत्री

(18) बाबा आल्टो - ग्रेवाल गोत्री

(19) बाबा सिद्धासन - रणधावा गोत्री

(20) बाबा तिलकारा - सिन्धु गोत्री

(21) सिद्ध सूरतराम - गिल गोत्री

(22) बाबा तुल्ला - बासी गोत्री

(23) बाबा अकालदास - पन्नु गोत्री

(24) बाबा फाला - ढिल्लो गोत्री

(25) शहीद स्वामी स्वतंत्रानन्द सरस्वती - सरोहा गोत्री

(26) बाबा अदी - गर्चा गोत्री

(27) बाबा उदासनाथ - तेवतिया गोत्री

(28) पीर बादोक्यान - चीमा गोत्री

(29) जट्ट ज्योना - मौर गोत्री, लेकिन इनको ब्राह्मणवाद ने ज्यानी चोर कहकर बदनाम किया, क्योंकि ये दक्षिण एशिया में अपने समय के महान् बुद्धिमान् व्यक्ति थे जो बौद्ध धर्म के अनुयायी थे। इन्होंने ही राजकुमारी महकदे की रक्षा की थी।

(30) स्वामी आनन्द मुनि सरस्वती - राणा गोत्री (उत्तरप्रदेश)

(31) स्वामी केशवानन्द - ढाका गोत्री (राजस्थान) - इन्होंने राजस्थान में शिक्षा क्षेत्र में महान् कार्य किया। संघरिया शिक्षा संस्थान इन्हीं की देन है।

(32) भक्त फूलसिंह - मलिक गोत्री। इनके नाम पर हरियाणा के सोनीपत जिले के खानपुर गांव में महिला विश्वविद्यालय की स्थापना की गई है।

(33) लोक देवता वीर तेजा जी - धौला गोत्री, राजस्थान के घर-घर में पूज्यनीय वीर देवता तथा प्रेरणा-स्रोत। इन्हीं के गोत्री भाइयों ने धौलपुर (राज.) शहर बसाया था।

(34) बाबा मस्तनाथ - जाटवंशज

(35) बाबा शिवनाथ - खत्री गोत्री, अस्थल बोहर जिला रोहतक के मुखिया रहे।

(36) सन्त सदाराम जी - रेवाड़ गोत्री जाट, जोधपुर के पूजनीय संत।

(37) सन्त मूदादास जी - वास गोत्री जाट, जोधपुर क्षेत्र में पूजनीय।

(38) साधवी फूलाबाई जी - नागौर क्षेत्र में लोग उनके दर्शन से धन्य होते थे, मांझू जाट गोत्र में जन्मी।

(नोट- याद रहे हरयाणा के पूर्व मुख्यमन्त्री चौ० भजनलाल का भी यही गोत्र है जो हरयाणवी बिश्नोई जाट हैं न कि शरणार्थी पंजाबी।) इनके परिवार ने अवश्य कुछ दिन पाकिस्तान की भारत सीमा के साथ बहावलपुर स्टेट में अपने रिश्तेदारों के यहां खेती की थी। लेकिन ये सन् 1946 में ही वापिस अपने गांव आ गए थे। पर इनका जिक्र न ही करे तो अधिक अच्छा है 7-5-1991 के इन्होंने ही जाट आरक्षण रद्द करके जाट कौम के साथ ऐतिहासिक गद्दारी करी थी ।

(39) चूअरजी जाट जूझा - जिनकी मूर्ति राजस्थान में भगवान् की तरह पूजी जाती है।

(40) सन्त बख्तावर जी - झांझू गोत्री जाट, जिनकी मेवाड़ (राज.) क्षेत्र में पूजा होती है।

(41) हरिभगत कल्याण जी - जाठी गोत्री जाट जोधपुर राजाओं के गुरु कहलाये।

(42) महादानी भगत हर्षराम - फड़गौचा गोत्री जाट जिन्होंने खाटू से 12 कोस दूर पर विस्मयकारी कुंआं बनवाया जो आज भी अजूबा कहलाता है।

(43) गोगामेड़ी वाले - चहल गोत्री जाट, राजस्थान के गजरेरा गांव के रहने वाले थे, जिनके नाम पर मेड़ीधाम विख्यात है। यहां सभी धर्मों के लोग इन्हें पूजने जाते हैं।

(44) दानवीर सेठ छाजूराम - लांबा गोत्री जाट, जिनकी दान आस्था व सामर्थ्य कभी बिड़ला सेठ से भी अधिक थी।

(45) संत गंगा दास - ये महान् कवि संत थे जिनकी रचना ‘गंगा सागर’ संत सूरदास की रचनाओं के समक्ष मानी जाती है। ये गाजियाबाद के पास रसलपुर-बहलोलपुर के मुंडेर गोत्री जाट थे।

(46) बाबा सावनसिंहं - ग्रेवाल गोत्री - राधा स्वामी ब्यास

(47) जगदेवसिंह सिंह सिद्धान्ती - अहलावत गोत्री, यह महान् आर्यसमाजी तथा सांसद भी रहे ।

(48) राधा स्वामी ताराचन्द - मल्हान गोत्री - राधा स्वामी दिनोद सत्संग के संस्थापक।

(49) भगवानदेव आचार्य उर्फ स्वामी ओमानन्द – खत्री गोत्री, यह महान् आर्यसमाजी जिन्होंने कन्या गुरुकुल नरेला तथा गुरुकुल झज्जर की स्थापना की।

(50) सन्त जरनैलसिंह भिण्डरवाला - बराड़ गोत्री जिन्होंने सन् 1984 में विद्रोह किया।

(51) संत कैप्टन लालचन्द - जिला चुरू के रहने वाले सहारण गोत्री जाट जिन्होंने एक नया अध्यात्मक विचार पैदा किया।

(52) त्यागी मनसाराम व बूज्जाभगत - श्योराण गोत्री, आदि-आदि।


कुछ अन्य वीर योद्धा व विख्यात जाट, जिन्हें इतिहास ने भुलाया

कह न सकेगा देव भी, जाट वंश की गौरव कहानी ।

प्रेम से जिसने मिटा दी, देश हित में अपनी निशानी ॥


यह प्रामाणित सत्य है कि जो व्यक्ति अपने पूर्वजों के साहसिक कार्य पर गर्व नहीं करेगा वह अपने जीवन में ऐसा कुछ नहीं कर पायेगा जिस पर उसके वंशज गर्व कर सकें।


(1) वीर जाट द्रह्म - ये चन्द्रवंशी जाट थे जिन्होंने 2207 ईसा पूर्व चीन के तातार प्रदेश में पहुंचकर राज की स्थापना की, जिसे बाद में यूती जाति के नाम से जाना गया। यही चीन के पहले राजा हुए हैं।

(2) जाट योद्धा स्कन्दनाभ - ये चन्द्रवंशी जाट थे जो सबसे पहले अपने दल के साथ 500 ईसा पूर्व एशिया माइनर से होते हुए यूरोप पहुंचे तथा इसी नाम पर स्कंदनाभ राज बनाया जो बाद में स्कैण्डीनेविया कहलाया तथा जटलैण्ड की स्थापना की जिसे आज भी जटलैण्ड ही कहा जाता है। इसके बाद बैंस, मोर, तुड् आदि अनेक गोत्रीय जाट गए जो पूरे यूरोप में फैले जिन्हें बाद में गाथ व जिट्स आदि नामों से जाना गया।

(3) राजा गज - इन्होंने सबसे पहले अफगानिस्तान में गजनी राज की स्थापना की तथा गजनी के पास बुद्ध का एक बड़ा विश्व प्रसिद्ध

ऐतिहासिक स्तूप बनवाया था जिसे सन् 2001 में सभी विरोधों के बावजूद तालिबानियों ने डायनामाइट से उड़वा दिया। राजा गज के वंशज राजा बालन्द ने इस्लाम धर्म अपनाया। इसके बाद वहां के सभी जाट मुस्लिम धर्मी हो गए और इन जाटों ने चंगताई नामक मुगलवंश की स्थापना की।

(4) राजा वीरभद्र - इन्हें जाटों का प्रथम राजा कहा जाता है, जिन्होंने हरद्वार पर राज किया। इनके नाम पर हरद्वार के पास रेलवे स्टेशन है। इनका वर्णन देव संहिता में है। नील गंगा को जाट खोद कर लाये थे जिसे आज भी जाट गंगा कहा जाता है।

(5) मता जाट राजा - ये शिवी गोत्री जाट थे, जिन्होंने शिवस्तान पर राज किया।

(6) राजा चित्रवर्मा - ये बलोचिस्तान के राजा थे, जिनकी राजधानी कुतुल थी।

(7) राजा चन्द्रराम - हाला गोत्री जाट, जिसने सूस्थान पर राज किया।

(8) नरेश मूसक सेन - मौर गोत्र के जाट राजा जिन्होंने सिन्ध पर राज किया। इन्होंने सिकन्दर को सिन्ध से ब्यास तक पहुंचने पर 19 महीने तक उलझाए रखा।

(9) राजा सिन्धुसेन - मौर गोत्री जाट, जो सिन्ध के प्रसिद्ध राजा हुए।

(10) महाराजा जगदेव पंवार - अमरकोट के प्रसिद्ध राजा हुए जो पंवार गोत्री थे। गुजरात के जाट राजा सिद्धराज सोलंकी ने अपनी सुन्दर कन्या वीरमती का इनसे विवाह किया था। लोहचब पंवार गोत्र भी इन्हीं के वंशज हैं।

(11) वहिपाल - कुलडि़या गोत्री जाट, जिसने मारवाड़ (राज.) पर राज किया।

(12) नरेश कंवरपाल - कंसवा गोत्री जाट, जिन्होंने जांगल प्रदेश (राज.) पर राज किया। इनका राज सातवीं सदी तक था। ये महान् प्रशासक थे।

13) नरेश कान्हा देव - ये पूनियां गोत्री जाट राजा थे। इनका पश्चिमी राजस्थान पर राज था। इन्हें कभी नहीं हारनेवाला राजा कहा गया है।

(14) राजा जयपाल - दसवीं सदी के महान् जाट राजा हुए, जिनका विशाल राज्य था। इन्हीं का पुत्र राजा आनन्दपाल तथा इनका पौत्र सुखपाल हुआ, जिसने मुस्लिम धर्म अपनाया और नवाबशाह कहलाये।

(15) सम्राट् कक्कुक - काक गोत्री जाट, जिसने जोधपुर क्षेत्र पर राज किया।

(16) नरेश सिद्धराज विष्णु - पल्लव गोत्री जाट, जिसने दक्षिणी भारत पर राज किया।

(17) नरेश नरसिंह वर्मन - नरेश सिद्धराव के पौत्र जिसने सन् 640 में श्रीलंका पर विजय पाई।

(18) राजा रिसालू - सातवीं सदी में स्यालकोट क्षेत्र पर राज किया।

(19) राजा भोज - पंवार गोत्री जाट, जिनका इतिहास आज भी गांव के लोगों की जनश्रुतियों में है।

(20) राजा मुंजदेव - पंवार गोत्री जाट, जिनका दसवीं सदी में मालवा (पंजाब) क्षेत्र पर राज था।

(21) राजा अजीत व राजा बछराज - मोहिल गोत्री जाट, जिनका राजपूतों से पहले जोधपुर पर राज था। याद रहे जोधपुर व जालौर के किले दहिया जाट राजाओं ने बनवाये थे।

(22) राजा शिशुपाल - चेदि गोत्री जाट, जिसने बुन्देलखण्ड पर राज किया।

(23) सम्राट् चकवाबैन - इनका पूरे पंजाब पर राज रहा, इन्हीं के पौत्र मघ ने स्वप्नसुन्दरी राजकुमारी निहालदे से विवाह किया। इसी चकवाबैन से जाटों के बैनीवाल गोत्र की उत्पत्ति हुई।

(24) राजा छत्रसाल - गोहद (मध्यप्रदेश) के राजा, जिन्होंने लड़ाई में मराठों को हराया।

(25) सरदार झूंझा - नेहरा गोत्री जाट योद्धा जिसके नाम पर झूंझनू (राजस्थान) शहर बसाया। नेहरा जाटों का राज राजस्थान में नरहड़ और नाहरपुर पर था। इसलिए इस क्षेत्र (राज.) को पहले नेहरावाटी कहते थे, जो बाद में शेखावाटी कहलाया।

(26) कंवरपाल जाट - कसवां गोत्री जाट, जिसने राजस्थान में राठौर राजपूतों से आखिर तक लोहा लिया।

(27) तोला सरदार - तोयल गोत्री योद्धा जाट जिसने नागौर (राज.) जिले के खारी क्षेत्र पर राज किया। यहां शिलालेख मिला है जिस पर लिखा है-

अकबर सूं तोला मिला करके बात करारी।

पट्टी रहू मैं नगौररी घर म्हारा खारी।।

(28) बीजल जाट - मान गोत्री जाट जिसने ढोसी (हरयाणा) पर राज किया।

(29) राजा विजयराव - भटिण्डा क्षेत्र के राजा राव गोत्री जाट जिसने एक बार गजनी को लूटकर नंगा कर दिया था। राव गोत्री जाटों के गांव उत्तरप्रदेश के अलीगढ़ जिले में हैं। सांगवानों के गांव खेड़ी बत्तर में भी राव जाटों के कुछ घर हैं।

(31) विजयपाल जाट - इन्होंने आज के भरतपुर (राज.) के पास तवणगढ़ बसाया फिर डीग के पास सिनसिनी गांव बसाया और यही सिनसीनवार गोत्री जाट कहलाए, जिन्होंने सन् 1723 में भरतपुर राज्य की विधिवत् स्थापना की।

(32) चूड़ामन जाट - ये बहादुर चूड़ामन जाट सिनसीनवार जाट खाप के प्रधान थे जिन्होंने बहादुर जाटों की अपनी एक सेना बना ली थी जो मुगलों के दक्षिण से आने वाले खजानों को लूट लेती थी और अपने क्षेत्र से मुगलों को जमीन की कोई भी मालगुजारी नहीं देते थे। यही वीर चूड़ामन जाट वास्तव में भरतपुर रियासत के आधार रखने वाले थे, जिन्हें ‘बेताज बादशाह’ कहा जाता है। जाटों को लुटेरा कहे जाने का एक कारण चूड़ामन जाट है जिन्होंने केवल मुगलों को ही जी भर कर लूटा था।

(33) महाराजा बदनसिंह - जैसा कि ऊपर लिखा है कि भरतपुर रियासत का आधार चूड़ामन जाट ने रखा था, लेकिन इस रियासत के विधिवत् पहले राजा बदनसिंह थे, जिन्होंने इसको एक विशाल रियासत का पूर्ण रूप देकर अपनी सीमाओं का विस्तार किया।

(34) वीर चरहतसिंह जाट - पंजाब में अब्दाली को धावा बोलकर लूटा।

(35) योद्धा रोरियासिंह जाट - सिनसिनवार गोत्री जाट, जिसने अपने ब्रज क्षेत्र में जाट खापों को इकट्ठा करके सबसे पहले सन् 1635 में मुगल शासन का विरोध किया।

(36) नन्दराम जाट सरदार - ठेनुवा गोत्री जाट जिसने जमनापार मुगलों के विरुद्ध झण्डा बुलन्द किया।

(37) योद्धा मोहन मढान - मढान गोत्री जाट, जिसने सन् 1526 के आसपास किलायत (हरयाणा) रियासत की स्थापना की। बाद में इन्हीं के वंशजों से मुस्लिम धर्म अपनाया और चौधरी लियाकत अली खां पाकिस्तान के प्रथम प्रधानमन्त्री इसी खानदान से थे।

(38) वीर योद्धा रामलाल खोखर - खोखर गोत्री जाट - जिसने 15 मार्च सन् 1206 को मोहम्मद गौरी उर्फ साहबुद्दीन गौरी को लाहौर के पास लड़ाई में मारा था।

(39) सेनापति कीर्तिमल - लड़ाई में राणा सांगा का मुख्य सेनापति, जो राणा सांगा को घायल अवस्था में युद्धभूमि से खींचकर बाहर लाये तथा उनका ताज पहनकर लड़ते हुए शहीद हुए। ये वीर योद्धा धौलपुर के भम्भरोलिया गोत्री जाट थे।

(40) सरदार श्यामसिंह - यह एंगलो सिक्ख लड़ाई में सेनापति थे जो बराड़ गोत्री जाट थे।

(41) रहमत खाँ भराइच - भराइच गोत्री जाट, जिसने गुजरात किले पर कब्जा किया।

(42) सरदार भीमसिंह - ढिल्लों गोत्री जाट, जिसने भंगी मिसल की स्थापना की।

(43) भीमसिंह राणा - जाटों की गोहद रियासत के राजा जिन्होंने ग्वालियर किले को फतेह किया- राणा इनकी उपाधि थी, गोत्र भम्भरोलिया था। इसी विजय को मध्यप्रदेश के जाट आज भी हर वर्ष राम नवमी के दिन एक विजय दिवस के रूप में मनाते हैं। ग्वालियर के चारों ओर जाटों की अनेक गढि़या हैं।

(44) छत्तरसिंह राणा - ग्वालियर के आखरी जाट राजा, भम्भरोलिया गोत्र के जाट थे। जाटों ने गवालियर पर सन् 1755 से 1785 तक शासन किया।

(45) वीर सज्जनसिंह - बालियान गोत्री जाट थे जिन्होंने सतारा (महाराष्ट्र) रियासत की स्थापना की।

(46) वीर विक्रमशाह राणा वीरेन्द्रसिंह - नेपाल नरेश के पूर्वज गहलोत वंशी जाट थे।

(47) जयसिंह कान्हा - सिन्धु गोत्री, जिसने कान्हा मिसल की स्थापना की।

(48) सरदार हीरासिंह भंगी - ढिल्लों महान् योद्धा भीमसिंह का भतीजा।

(49) राजा जोधासिंह - बराड़ गोत्री जाट, जिसने कोटकपूरा (पंजाब) रियासत की स्थापना की।

(50) राजा जाटवान - मलिक गठवाला गोत्री जाट, जो दिपालपुर (हरयाणा) राज के राजा थे जिसने कतुबुद्दीन ऐबक को नाकों चने चबाये।

(51) राजा हस्ती - तक्षक (टोकस) गोत्री जाट जिसका सिंध पर राज था तथा राजा पोरस के रिश्तेदार थे जिन्होंने सिकन्दर से बहादुरी से लोहा लिया।

(52) शालेन्द्र जाट - महाराजा कनिष्क के रिश्तेदार तथा पंजाब के मालवा से कोटा तक राज किया, इन्हीं के वंशज शालीवाहन ने स्यालकोट बसाया।

(53) नवाब कपूरसिंह - विर्क गोत्री जाट, जिसने ‘दल खालसा’ तथा सिंघपुरिया मिसल की स्थापना की।

(54) खौसालसिंह - रामगढि़या मिसल की स्थापना की।

(55) राव दुलसिंह - बराड़ गोत्री जाट, जिसने फरीदकोट (पंजाब) रियासत की स्थापना की।

(56) सरदार बघेलसिंह ढिल्लो के पुत्रों ने कसलिया और फतेहगढ़ (पंजाब) रियासत की स्थापना की।

(57) कलियाणा जाट सरदार उज्जैन (मध्यप्रदेश) के शासक रहे जिससे जाटों का कल्याण गोत्र प्रचलित हुआ।

(58) वीर दरगा - सिन्धु गोत्री जाट जिसने सिराववाली (पंजाब) राज की स्थापना की।

(59) वीर गुरदतमल - सिन्धु गोत्री जिसने बडाला (पंजाब) रियासत की स्थापना की।

(60) दयानल - रणधावा गोत्री जाट जिसने ‘खंदा’ (पंजाब) रियासत की स्थापना की।

(61) भगत जाट औम - सिन्धु गोत्री जाट जिसके वंशजों ने भटिण्डा, कैथल व दूनोली (पंजाब) पर राज किया।

(62) वीरराज रामधन - दलाल गोत्री जाट जिसने कुचेसर (उत्तरप्रदेश) रियासत की स्थापना की।

(63) वीर योद्धा सुन्दरसिंह - जिसने जारखी (उत्तरप्रदेश) रियासत की स्थापना की।

(64) वीर नन्दरामसिंह - जिसने हाथरस (उत्तरप्रदेश) रियासत की स्थापना की।

(65) वीरराज जयदेव - भम्भरोलिया गोत्री जाट जिसने धौलपुर (राजस्थान) और गोहद (मध्यप्रदेश) रियासतों की स्थापना की।

(66) वीरशिरोमणि भज्जासिंह - सिनसिनवार गोत्री जाट, जिसने शहजादा बेदाबख्त तथा बिशनसिंह राजपूत की सेनाओं को सिनसिनी युद्ध में नाकों चने चबाये।

(67) वीर कैलाश - बाजवा गोत्री जाट जिसने कैलाश बाजवा (पंजाब) रियासत की स्थापना की।

(68) वीर सूरजप्रकाश जाट - दहिया गोत्री जाट, सर्व खाप हरयाणा का वीर एक सेनापति जिसने तुर्कों को करनाल के मैदान में हराया।

(69) दसोदासिंह - गिल गोत्री जाट जिसने निशानवाला मिसल की स्थापना की।

(70) चतरसिंह - शिवी गोत्री जाट जो महाराजा रणजीतसिंह के दादा थे जिन्होंने सुकरचकिया मिसल की स्थापना की।

(71) करोड़ासिंह - विर्क गोत्री जाट जिन्होंने ‘करोड़ा सिंघया’ मिस़ल की स्थापना की।(72) तीलोका - सिन्धु गोत्री जाट फूलसिंह का लड़का जिसके दो पुत्रों ने नाभा (पंजाब) व जीन्द (हरयाणा) रियासतों की स्थापना की। फूलसिंह के वंशजों ने ही नाभा, जीन्द और पटियाला रियासतों की स्थापना की, इसलिए ये फूलकिया रियासत कहलाई।

(73) ठाकुरसिंह सन्धानवाला - सिन्धु गोत्री जाट जिसने ‘सिंघसभा’ की स्थापना की।

(74) हीरासिंह - नकई गोत्री जाट जिन्होंने ‘नकई’ मिसल की स्थापना की।

(75) बाबा आलासिंह - सिन्धु बराड़ गोत्री जाट जिसने ‘पटियाला’ रियासत की स्थापना की। नोटः- बराड़ गोत्र का निकास संधु, सिन्धु, सिधु व सिन्धड़ गोत्र से है। सिंधु गोत्र के 36 गांव हैं । रामपुरा फूल जिला भटिण्डा (पंजाब) में है।

(76) स्वामी केशवानन्द - ये राजस्थान के रहने वाले ढाका गोत्री जाट थे जो अत्यन्त गरीबी में पैदा हुए जिनके पास बचपन में पहनने के लिए जूते भी नहीं होते थे। इन्होंने अपने महान् तप और तपस्या से राजस्थान के संघरिया शिक्षण संस्थानों की नींव डाली। सन् 1927 में गुरु ग्रंथसाहिब का हिन्दी में अनुवाद करवाया तथा 1945 में सिक्ख इतिहास का हिन्दी में अनुवाद किया। राजस्थान में जाटों की शिक्षा की उन्नति में स्वामी जी का बड़ा हाथ है जिससे राजस्थान के जाट इनके बहुत ही ऋणी अनुभव करते हैं। जाट जाति को इन पर गर्व है।

(77) भरतपुर नरेश कृष्ण सिंह - ये अंग्रेजों के समय 26 अगस्त 1900 को भरतपुर रियासत के राज्याधिकारी बने जिन्होंने अपनी प्रजा के लिए अनेक सार्वजनिक कार्य किए। इन्हें हमारी जाट कौम से विशेष स्नेह था। भारत के इतिहास} में सबसे पहले इन्होंने ही नगर पालिका की स्थापना करी थी जो आज भारत सरकार के लिए आदर्श है ।

(78) जननायक राजा मानसिंह - राज मानसिंह एक जननायक कर्मठ और शेर-ए-दिल इंसान थे जिनकी निर्मम हत्या दिनांक 21 फरवरी 1985 को डींग की अनाज मण्डी में राजस्थान के मुख्यमन्त्री शिव चरण माथुर के हेलीकाप्टर को अपनी जीप से टक्कर मारकर तोड़ डालने के कारण की गई, जिसका कारण था चुनाव में इनके पोस्टर और बैनर फाड़ दिए गए थे।

(79) आला-उद्दल-मलखान - वत्स गोत्री जाट जिनके साथ युद्ध में पृथ्वीराज चौहान का पुत्र पारस मारा गया था।

(80) जाटनी सदाकौर - कन्हैया मिसल की सरदार (मुखिया) महाराजा रणजीतसिंह की सास।

(81) अकाली फूलासिंह - सहारण गोत्री जाट महाराजा रणजीतसिहं के सेनापति तथा अकाल तख्त के जत्थेदार।

(82) वीर कान्हा रावत - मेवात के रहने वाले रावत गोत्री जाट जो औरंगजेब के विरुद्ध लड़कर शहीद हुए। इस वीर जाट को औरंगजेब ने जिंदा जमीन में गड़वा दिया था जिनका इतिहास बहुत लम्बा है।

(83) क्रांतिकारी राजा महेन्द्रप्रताप - ठेनुवा गोत्री मुरसान (उ०प्र०) के जाट राजा जिसने देश की आजादी के लिए अपनी रियासत की बलि चढ़ा दी और 32 साल विदेशों में रहकर ‘आजाद हिन्द सरकार’ की स्थापना करके आजादी का बिगुल बजाते रहे। आई.एन.ए. के वास्तविक संस्थापक वही थे, नेता जी इसके सेनापति थे तो राजा जी इसके राष्ट्रपति थे। लेकिन अफसोस है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के क्षेत्र को छोड़कर जाट भी उनके बारे में नहीं जानते।

(84) जनरल मोहनसिंह - नेता जी सुभाष की आई.एन.ए. में एक प्रमुख सेनापति थे।

(85) वीर योद्धा पदमसिंह जाट - आई.एन.ए. में वीरता की सबसे बड़ी उपाधि ‘वीर-ए-हिन्द’ थी, जिसमें एकमात्र हिन्दू को यह उपाधि मिली बाकी दो मुसलमानधर्मी जाट थे। नेता जी को इन पर बड़ा गर्व था।

(86) वीर अजीतसिंह संधू शहीद भगतसिंह के चाचा जी तथा महान् क्रांतिकारी जिन्होंने नारा दिया 'पगड़ी सम्भाल ओ जट्टा पगड़ी सम्भाल’।

(87) शहीद वीर बन्तासिंह - दायमा गोत्र के जाट, शहीद भगतसिंह के साथी तथा महान निडर क्रान्तिकारी।

(88) शेरे दिल अवतारसिंह शराबा - ग्रेवाल गोत्री शहीद भगत सिंह के आदर्श, जिनको फांसी की सजा सुनाने के 4 महीने बाद जब फांसी हुई तो 8 किलो वजन बढ़ा हुआ मिला।

(89) वीर बाबा बेशाखासिंह - महान् क्रांतिकारी और अंग्रेजी सरकार का बड़ा सिरदर्द।

(90) शेरे दिल शहीद हरिकिशन - महान् क्रांतिकारी जिसको फांसी सुनाने पर उन्होंने जज से कहा - very good.

(91) ताना जाट - मलसूरा गोत्री जाट जिसने शिवाजी व उसके पुत्र सम्भाजी को औंरगजेब की जेल से मिठाई के टोकरों में बाहर निकाला।

(92) मेजर जयपालसिंह मलिक - महान् क्रांतिकारी जो अंग्रेजी सेना के सीने में कील थे।

(93) शहीद रंगासिंह व शहीद वीरसिंह - आजादी के दीवाने।

(94) वीर योद्धा सज्जनसिंह जाट - सतारा रियासत के संस्थापक (महाराष्ट्र)।

(95) हरफूल जाट जुलानीवाला - श्योराण गोत्री जाट, इनकी बहादुरी मंगल पाण्डे से कई गुणा अधिक थी। ये जींद जिला हरयाणा के जुलानी गांव के रहने वाले थे।

(96) हीर-रांझा - दक्षिण एशिया के महान् जाटयुगल प्रेमी हुए जिसमें लड़की का नाम हीर तथा गोत्र ‘स्याल’ था, लड़के ढिल्लो गोत्र रांझा था।

(97) मिर्जा और साईबा - महान् प्रेमीयुगल हुए, जिसमें मिर्जा खरल गोत्री जाट तथा साईबा भराईच गोत्री जट्ट पुत्री थी।

(98) पील्लू जट्ट - मिर्जा साहिबा पर लोकगीत लिखकर एक विशाल साहित्य की रचना की।

(99) कादर यार - सन्धु गोत्री जाट जिसने पूरण भक्त पर लोकगीत तथा साहित्य की रचना की।

(100) भाई मनीसिंह - ‘दौलत’ गोत्री योद्धा। एक लेखक और शहीद जिन्होंने मौलिक ‘गुरुग्रंथ’ को लिपिबद्ध किया।

(101) भाई महताबसिंह - भंगू गोत्री वीर योद्धा जाट – जिसने स्वर्ण मन्दिर को अपवित्र करने वाले रांघड़ों (मुस्लिम राजपूतों) से बदला लिया।

(102) राजा राव नैनसिंह - ये कश्यप गोत्री जाट थे, राव इनकी उपाधि थी। इनका छोटा सा व आखिरी राज 12वीं सदी में ब्यावर (राज.) के लहरीग्राम में था। जो आज रैबारी जाति का ग्राम है। ये चौ. संग्रामसिंह जिनके नाम पर सांगवान गोत्र का प्रचलन हुआ, के पिता थे। पहले इन कश्यप गोत्री जाटों का बड़ा पंचायती राज सारसू जांगल (राज.) पर था। राव व सांघा इन जाटों की उपाधि रही हैं। 14वीं सदी में चरखी दादरी (हरयाणा) क्षेत्र में आए।

(103) धौलपुर नरेश उदयभानुसिंह - इन्होंने दिल्ली के बिरला मन्दिर की नींव अपने करकमलों से सन् 1932 में रखी थी। इसका पत्थर मन्दिर के बायीं तरफ पार्क में लगा हुआ है।

(104) वीर योद्धा रामसिंह - ये खोजा गोत्री जाट थे, जिन्होंने राजस्थान में 11वीं सदी में टोंकरा शहर बंसाया जो आज टोंक कहलाता है।

(105) वीर नल्ह विजयराणिया - इतिहासकार लिखते हैं कि इनके पूर्वज सिकन्दर की सेना में भारत आये थे। ये स्वयं भी सिकन्दर के एक सेनापति थे। ये विजयराणा इनकी पदवी थी, इन्हीं के वंशज योद्धा जगतसिंह, वीरसिंह व देवराज आदि हुए। यह पदवी इनके गोत्र में बदल गई और आज गलत उच्चारण करके इन्हें लोग बिजाणियां बोलते हैं।

याद रहे सिकन्दर की सेना में काफी जाट थे। इस प्रकार हम देखते हैं कि हमेशा जाट ही जाट से लड़ते रहे। जब सिकन्दर की यूनानी सेना ने ब्यास से आगे बढ़ने से मना कर दिया तो सिकन्दर ने कहा था “मैं जाटों के साथ आगे बढ़ जाऊंगा”।

(106) वीर खेमसिंह - भूखर गोत्री जाट, जिसका सांभर प्रदेश (राज.) पर राज था। इन्हीं के वंशज योद्धा उदयसिंह हुए।

(107) जाटनरेश सम्मतराज - ये भादु गोत्री महान् योद्धा जाट राजा हुए, जिन्होंने राजस्थान में भादरा बसाया और राज किया।

(108) शेर जाट रणमल - इस योद्धा जाट ने जहां रणखंभ गाड़ा था वही बाद में राजस्थान में रणथम्भौर कहलाया। बाद में यह राज चौहान राजपूतों के हाथ चला गया।

(109) नरेश नागावलोक - यह नागिल गोत्री जाट थे जिनका मेदपाट (राज.) पर राज था। बाद में इन जाटों ने नागौर व नोहर पर भी राज किया।

(110) सरदार लाडसिंह - यह जाखड़ गोत्री जाट थे, जिन्होंने हरयाणा में लाडान गांव बसाया। ये योद्धा जाखड़ गोत्र के कुछ जाटों को राजस्थान से हरयाणा क्षेत्र में लाये।

(111) वीर बादल और गौरा - राणा रायमल के दो जाट सेनापति थे जिनके नाम पर चितौड़ में दो गुम्बजदार मकान हैं। ये चाचा भतीजे थे।

(112) वीर शहीद माड़ू उर्फ उदयसिंह - ये वीर योद्धा शूरवीर गोकुला जाट के साथ शहीद हुए।

(113) नेता श्रीपत माखन - ठेनुवा गोत्री जाट, जो जाटों को ब्रज क्षेत्र में लाये और टप्पा रावरा (उ.प्र.) रियासत की स्थापना की।

(114) जाट योद्धा भागमल - मीठा गोत्री जाट, जिसने इटावा (उ.प्र.) के पास फफूद राज्य की स्थापना की।

(115) वीर योद्धा पाखरिया - महाराजा जवाहरसिंह भरतपुर नरेश के सेनापति। खुटेल गोत्री जाट जिसने लाल किले के किवाड़ उतारकर भरतपुर पहुंचाये।

(116) सेनापति पूर्ण जाट - गढवाल गोत्री जाट, जो मलखान के

सेनापति थे। इन्हीं के पूर्वजों ने उत्तर प्रदेश के गढ़मुक्तेश्वर का निर्माण करवाया (117) प्रचण्ड वीर खेमकरण - शूर गोत्री जाट, जिनके कारण शौरसेन क्षेत्र कहलाया।

(118) योद्धा रामकी चाहर - चाहर गोत्री जाट, जिसने ब्रज क्षेत्र में मुगलों का छाया की तरह पीछा किया। मुगल औरतें अपने बच्चों को इनका नाम लेकर डराया करती थीं।

(119) वीर योद्धा हाथीसिंह - खुटले गोत्री जाट, जिसने सोख (उ.प्र.) किले का निर्माण करवाया।

(120) राजा सरकटसिंह - शेखपुरा (पंजाब) के जाट राजा जो लड़ाई में दुश्मन का सिर काटने में माहिर थे, जिस कारण इनका नाम सरकटसिंह पड़ा।

(121) जाट नरेश शेरसिंह - अफगानिस्तान के हजारा राज के प्रसिद्ध राजा हुए।

(122) योद्धा पदार्थसिंह - इन्होंने सहारनपुर (उ.प्र.) रियासत की स्थापना की।

(123) योद्धा फोदासिंह - कुन्तल गोत्री जाट, जो महाराजा सूरजमल के एक सेनापति थे।

(124) वीर शहीद हरबीर गुलिया - बादली (हरयाणा) के गुलिया गोत्री जाट योद्धा जिसने तैमूरलंग की छाती में भाला मारकर सख्त घायल किया। लेकिन स्वयं 52 घाव होने पर लड़ते हुए शहीद हुए।

(125) हरावल जाट - महाराजा सूरजमल के एक अन्य वीर सेनापति।

(126) शंकर जाट - भरतपुर नरेश नवलसिंह के महान् योद्धा सेनापति।

(127) राजा भूपसिंह - मुरसान तथा हाथरस (उ.प्र.) के जाट राजा जिसने कभी जाटों को भूमिकर नहीं देने दिया।

(128) महारानी जिन्दा - महाराजा रणजीतसिंह की महारानी जिन्होंने कुछ समय के लिए महाराजा रणजीतसिंह के राज पर राज किया।

(129) योद्धा वीरदत्ता - बराड़ गोत्री जाट, जिसने नाभा (पंजाब) रियासत की स्थापना की।

(130) रावसिध - बराड़ गोत्री योद्धा, जिसने फरीदकोट (पंजाब) रियासत की स्थापना की।

(131) सुखचैन - बराड़ गोत्री जाट, जीन्द (हरयाणा) रियासत के संस्थापक।

(132) महारानी किशोरी देवी - महाराजा सूरजमल की बहादुर रानी जिसने लाल किले की चढ़ाई में भाग लिया तथा पुष्कर में पर भी की लूट का कारण बनी तथा वहां जाट घाट बनवाया।

(133) बलराम जाट - रानी किशोरी का भाई, जो लाल किले की लड़ाई में किले के दरवाजों पर पीठ लगाकर हाथी से टक्कर मरवाकर शहीद हुए।

(134) वीरांगना समाकौर - मलिक जाटों की बेटी तथा अहलावत जाटों की बहू, जिसने कलानौर नवाब की गलत प्रथाओं को मानने से इनकार किया तथा नवाब और उसके परिवार के अन्त का कारण बनी।

नोट - इस कुप्रथा के बारे में लोगों ने बहुत अनाप-शनाप लिखा ह। इसे ‘कलानौर का कोला पूजा प्रथा’ कहा जाता था। कोला का अर्थ है मुख्य दरवाजे के दोनों तरफ के हिस्से, जिसको वहां से गुजरनेवाली नई नवेली दुल्हन को नवाब की कोठी (गढ़ी) के दरवाजे के साथ दीपक जलाकर साथ पतासे रखकर दोनों तरफ कोलों पर पानी के छीटें मारकर पूजा करनी पड़ती थी। इसके अलावा जो बतलाते हैं कोरी बकवास है जिसके प्रमाण हैं। चौधरी सूरजमल सांगवान ने भी इसका पूरा सच्चा वर्णन अपनी पुस्तक ‘किसान संघर्ष और विद्रोह’ में किया है।

(135) योद्धा ढलैत - सांगवान गोत्री जाट, जो सर्वखाप सेना के सेनापति थे, जिसने कलानौर नवाबी का नाश किया। इनकी यादगार गांव गढ़टेकना (रोहतक) में बनी है।

(136) बीबी साहिबकौर - सरदार जाट गुलाबसिंह की पुत्री, जिसने सन् 1787 में राजगढ़ के मैदान में मराठों को लड़ाई में धूल चटाई।

(137) वीरांगना सोमा देवी - चाहर गोत्र की जाटपुत्री, जिसने बीकानेर में सिधमुख स्थान पर लड़ाई में मुगलसेना टुकड़ी को धूल चटाई।

(138) वीरांगना हरशरणकौर - मान गोत्र की जटपुत्री, जिसने 1837 में जमरोद (पाकिस्तान) के किले की अपनी बहादुरी से रक्षा की।

(139) सम्राट् अवन्ती वर्मन - उत्पल गोत्री महान् सम्राट्, जिसने नौवीं सदी में सम्पूर्ण काश्मीर पर दृढ़ता से शासन किया तथा अवन्तीपुर शहर बसाया, जहां उसके बौद्ध मन्दिरों के खण्डरात आज भी मौजूद हैं।

(140) हरिसिंह नलवा - खत्री गोत्री जाट, जो महाराजा रणजीत सिंह के एक मुख्य सेनापति थे।

(141) करणीराम जाट - झूंझनूं (राजस्थान) में अपनी जाति के लिए शहीद होने वाले पहले वकील।

(142) भूरा तथा निघाइया नम्बरदार - लजवाना (हरयाणा) गांव के दलाल गोत्री जाट, जिन्होंने राजा जीन्द से 6 महीने तक छापामार युद्ध किया।

(143) कर्नल दिलसुख - मान गोत्री जाट, जो आई.एन.ए. में नेता जी के साथ रहे, वरना ये इतने सीनियर थे कि ये भारतीय थल सेना के अध्यक्ष बन सकते थे।

(144) कप्तान कंवल सिंह दलाल - नेताजी सुभाष के साथ बर्लिन से टोकियो तक पनडुब्बी में साथ रहे।

(145) जमादार हरद्वारी लाल - जिन्होंने संसार में सबसे पहले 10 हजार फुट की ऊंचाई पर अपना टैंक चढ़ाया।

(146) सूबेदार बस्ती राम - पहले भारतीय जिनको सन् 1839 में इण्डियन आर्डर आफ मैरिट (आई.ओ.एम.) बहादुरी का पदक मिला।

(147) सिपाही भवानी सिंह - गिलजाई की लड़ाई में पहला आई.ओ.एम. बहादुरी का पदक मिला। याद रहे 1856 के बाद विक्टोरिया क्रास (वी.सी.) मिलना प्रारम्भ हुआ।

(148) कैप्टन भोला सिंह - हिन्दू डोगरा जाट, जो भारतीय सेना के प्रथम योद्धा जिन्हें ओ.बी.आई. (आर्डर आफ ब्रिटिश इण्डिया) का वीरता का पदक मिला जिनकी मूर्ति देवलाली आर्मी सैन्टर में लगी है। इन्हें जम्मू क्षेत्र के जाटों को जम्मू काश्मीर लाईट इन्फैन्टरी में स्थान दिलाने का श्रेय है।

(149) मेजर होशियारसिंह (बाद में ले. कर्नल) दहिया गोत्री जाट जिसे भारतीय सेना में जीवित अवस्था में प्रथम ‘परमवीर चक्र’ मिला। अन्य जाट थे -

(150-151) ला. ना. कर्मसिंह तथा स्का. लि. निर्मलजीत सिंह शेखों (दोनों सिख जाट)।


सन् 1856 से लेकर सन् 1947 तक कुल 1346 सैनिकों को ‘विक्टोरिया क्रास’ मिला, इनमें 40 भारतीय थे और इनमें से 10 ‘विक्टोरिया क्रास’ जाटों के नाम हैं। नाम इस प्रकार हैं -

1-रिसलदार बदलूसिंह धनखड़ (पहले भारतीय जिनको यह पदक मिला),

2-सिपाही ईश्वर सिंह,

3-सूबेदेदार रिछपाल राम लाम्बा,

4-हवलदार प्रकाश सिंह,

5-हवलदार छैल्लूराम कोठारी,

6-नायक नन्दसिंह,

7-सिपाही कमलराम,

8-जमादार ज्ञानसिंह (इन्हें 1948 की लड़ाई में महावीर चक्र भी मिला था।)

9-कैप्टन परमजीत,

10-जमादार अब्दुल हमीज (यह प्रथम जाट बटालियन के थे. वैसे जाति से रांघड़ थे)।


(150) शहीद पायलट शैफाली चौधरी - लोदाना गांव (उ.प्र.) - भारतीय वायुसेना में ‘शौर्य चक्र’ प्राप्त करने वाली प्रथम महिला।

(151) डा. रामधनसिंह - जिसने सबसे पहले गेहूं की नई नस्ल का आविष्कार किया, लेकिन नोबल पुरस्कार डा. बोरलंग ले उड़े।

(152) डॉ. पी.एस. गिल - पहले भारतीय जिन्होंने दूसरे विश्वयुद्ध के समय अमेरिका की ‘एटम बम्ब मैनहैटन योजना’ में कार्य किया।

(153) कैप्टन भगवान सिंह - हिन्दू जाटों के पहले आई. सी. एस. अधिकारी थे। ये राजदूत भी रहे तथा कई वर्षों तक अखिल भारतीय जाट महासभा के अध्यक्ष भी थे।

(154) मेजर जनरल सूभेगसिंह - भंगू गोत्री जाट, भाई महताबसिंह के वंशज- जिन्होंने सन् 1984 के विद्रोह में सन्त जनरेलसिंह भिन्डरवाला का साथ दिया।

(155) ए.एस.चीमा - प्रथम भारतीय जो ‘माउंट एवेरेस्ट’ पर चढ़े।

(156) कै० सुमन सांगवान - प्रथम वर्दीधारी उच्च-अधिकारी महिला जो ‘माउंट ऐवरस्ट’ पर चढ़ी ।

(157) शेरसिंह ढिल्लों - ढिल्लों गोत्री जाट, जिन्होंने हिन्द महासागर को पैडल बोट से पार करने में विश्व रिकार्ड कायम किया।

(158) कृष्ण कुमार चहल - चहल गोत्री जाट, जिसने मैमोरी (यादगार) में सन् 2006 में विश्व रिकार्ड बनाया।

(159) नवीन गुलिया - गुलिया गोत्री जाट, जिसने शतप्रतिशत विकलांग होते हुए कार चलाने में विश्व रिकार्ड बनाया।

(160) बिजेन्द्र सिंह बैनीवाल - पहले भारतीय जो विश्व बाक्सिंग रैंकिंग में प्रथम स्थान पर आये और खेल रत्न से नवाजे गए।

(161) साइना नेहवाल - नेहवाल गोत्री जट पुत्री, जो बैडमिंटन में विश्व में अब दूसरे स्थान पर है इन्हें भी ‘खेल रत्न’ से नवाजा गया है।