Saturday 4 July 2020

दादा नील्ले खागड़ हो!

मेरे बचपन के, मेरे निडाणे के दादा नीले खागड़ की याद में समर्पित मेरी यह हरयाणवी कविता पढ़िए:

दादा नील्ले खागड़ हो, तैने आज भी टोहन्दा हांडु हो|
नहीं पाया रहबर गाम की सीम्मां का, तेरे बरगा दूजा हो||

बुड्डे खागड़ का बदला तैने, लिया खेड़े आळी लेट म,
ड्यंग पाट्टी नही बैरी पै, ज्यब धरया तैने फटफेड़ म|
रुक्का पाट्या तेरी रहबरी का, दूर-दूर की हेट म,
आंडीवारें गाम की गाळैं, रहन्दा रात्याँ खेत म||
मिटटी-गारे की भरी मांग माथे म, किते सूरज, किते चंदा हो!
नहीं पाया रहबर गाम की सीम्मां का, तेरे बरगा दूज्जा हो||

रोज सांझ नैं आया करदा, जाणू कोए सिद्ध-जोगी हो,
गाळ म आ धाहड्या करदा, जाणू अलख की टार देई हो|
ले गुड़ की डळी मैं आंदा और तू चाट-चाट हाथ खांदा हो,
गात पै खुर्रा फेरूँ, इस बाबत फेर पूंजड़ बारम्बार ठांदा हो||
जब मिटदी खुश्क खुर्रे तैं, तू अकड़दा ज्यूँ को बड़बुज्जा हो|
नहीं पाया रहबर गाम की सीम्मां का, तेरे बरगा दूज्जा हो||

दो पल भिक्षा की बाट देखण की तैनें, मर्याद कदे तोड़ी नहीं,
दादी बरसदी म्हारे पै, जै टेम पै टहल तेरी मोड़ी नहीं|
दूसरा दर जा देख्या तन्नै, जो बार माड़ी सी हुई नहीं,
पर देहळ की सीमा-रेखा, तैने कदे लांघी नहीं||
सब्र-संतोष व् आत्मीयता की, अजब था तू धजा हो!
नहीं पाया रहबर गाम की सीम्मां का, तेरे बरगा दूज्जा हो||

खागड़ सून्ने राह न्यडाणे की, भोत-ए-भोत चढ़े,
तू ए बताया जिसनें सबके मोर्चे खूब-ए-खूब अड़े|
एक-एक खैड़ तेरी, गाम की गाळा नैं सरणा ज्यांदी,
स्याह्मी आळे खागडाँ की, जोहडाँ बड़ें ज्यान छूटदी||
पाणी जांदे पाटदे जोहडां के, ज्यूँ चढ़ के चली को नोक्का हो,
नहीं पाया रहबर गाम की सीम्मां का, तेरे बरगा दूज्जा हो||

उत्तराधिकारी नैं ब्यरासत सोंपणी तन्नें खूब स्य्खाई,
ज्यब नया बाछड़ा हुया तैयार, तू गाम की गाळ त्यज जाई|
सांझरण आळी पाळ बणी डेरा, तैनें जग-मोह तैं सुरती हटाई,
माणस भी के जी ले इह्सी, बैराग ज्यन्दगी तैनें लई प्रणाई||
सुणी ना भकाई मेरी एक भी, दे धर देंदा ठा सींगा हो!
नहीं पाया रहबर गाम की सीम्मां का, तेरे बरगा दूज्जा हो||

आज भी तरी तस्वीर मग्ज म न्यूं की न्यूं धरी, ओ गाम के मोड़ हो|
गाम का दयोता, गाम का रुखाळा, तू था गाम का खोड़ हो|
लियें तासळा दळीये का हांडू, न्यडाणे के काल्लर-लेट हो,
फुल्ले-भगत की भेंट स्वीकारिये, नहीं आगै करूँ को अळसेट हो|
बुड्ढे खागड़ तेरी सोहबत, मैंने देवै रिश्तों का जज्बा हो,
नहीं पाया रहबर गाम की सीम्मां का, तेरे बरगा दूज्जा हो||

दादा नील्ले खागड़ हो, तैने आज भी टोहन्दा हांडु हो|
नहीं पाया रहबर गाम की सीम्मां का, तेरे बरगा दूज्जा हो||

लेख्क्क: फूल कुंवार म्यलक

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