Friday 6 November 2020

करवा फोटो सेशन और जाट-कल्चर का बिगड़ता रूप!

जिस करवाचौथ की खुद ब्राह्मण-बनिया-अरोड़ा-खत्री, यहाँ तक कि दलित-ओबीसी तक की लुगाइयों ने शायद ही कोई 2-4% ने फोटो डाली होंगी सोशल मीडिया पर; उसी की ऐसा लगता है कि न्यूनतम 70-80% फोटोज तो जाटणियों ने ही डाल रखी हैं; मरी-बटियाँ नैं इतना आंट दिया सोशल मीडिया| कुछ तो बावली-बूच कल्चर प्रमोशन के नाम पे चेहरा चमकाने को इतनी बावली हुई जा रही हैं कि फोटो सेशंस तक करवा रखे हैं| और ये 90% वो हैं जिनके मर्द 3 कृषि बिलों को लेकर या तो रोड़ों पर हैं या बैंक-देनदारों के कर्जे चुकाने के बोझ में हैं| रै और नहीं तो ब्राह्मण-बनिया-अरोड़ा-खत्री स्त्रियों की रीस ही कर लो; इस दिन ब्राह्मण-बनिया-अरोड़ा-खत्री की औरतें जहाँ इस कर्वे की कथा-कहानियां सुना के अपने घर भर रही थी, ये म्हारे वाली खामखा ही चामल-चामल के जेब झड़वा रही थी| जरा बताइयों कथा-कहानी कुहाणे वालियों में से ही कितनियों की करवा-क्वीन टाइप फोटो आई? ऐसा भी नहीं कि इतने छेछर कर कर के थम अपने ऊपर से 35 बनाम 1 होने से ही रुकवा लेती हो?

याद आती हैं पड़दादा दरिया सिंह जांगड़ की वह सारे ठोले की लेडीज की काउन्सलिंग क्लासेज लेना; जिनमें वो बताते थे कि कल्चर-कस्टम के नाम पर क्या हमारे लिए सामूहिक तौर पर सही है और क्या गलत| ब्राह्मण-बनिया-अरोड़ा-खत्री यह काउन्सलिंग आज भी कर रहे हैं बस ये एक जाट ही न्यारे उभरे हैं जिनको गधों वाले जुकाम हुए पड़े हैं| लुगाई तो लुगाई, इनके मर्दों को टोक लो तो ऐसे पाड़ के खाने को आवें, जैसे बस सारी दुनिया का तोड़ इस चौथ में ही आ लिया| रै मखा रोज सांप-बिच्छू-बघेरों के मुँहों में पैर धर के देश के लिए फसल उगाने वालो, थमनें भी मौतों के डर सताने लगे; रै क्यों गद्यां कैं जुकाम आळी कर रे हो?
35 बनाम 1, जाट बनाम नॉन-जाट, ऐसा प्रतीत होता है जैसे कोई चीज इनके असर ही नहीं कर रही| आर्य-समाज तक जैसे ताक पर धर दिया हो| इनको तो शहरों में रहते हुए तीज-त्योहारों के पीछे के इकनोमिक मॉडल्स तक नहीं पता, ना समझे आते और ना ही समझने की कोशिश करते दीखते; जो कि आज से 30 साल पहले मेरे पड़दादा दरिया सिंह जैसे बूढ़े इन मॉडल्स को इतना बारीकी से समझते थे कि उनकी तरह गाम के हर ठोले का बूढा अपने ठोले की औरतों की मासिक काउन्सलिंग किया करते| रै थम और तो छोडो अपने बूढ़ों की रीस कर लो जो अगर ब्राह्मण-बनिया-अरोड़ा-खत्री की नहीं भी होती तो थारे से|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक

No comments: