वर्ष 1947 से 2014 के मध्य सम्पूर्ण उत्तर भारत में राजनीति के माध्यम से सबसे अधिक लाभ जिन दो समुदायों को प्राप्त हुआ, वे जाट और ब्राह्मण थे। ब्राह्मणों को राजनीति से किस प्रकार और किस प्रक्रिया के माध्यम से लाभ मिला—इस विषय पर चर्चा किसी अन्य अवसर पर की जाएगी। प्रस्तुत लेख को जाट समुदाय तक ही सीमित रखा जा रहा है।
अपने कल्चर के मूल्यांकन का अधिकार दूसरों को मत लेने दो अर्थात अपने आईडिया, अपनी सभ्यता और अपने कल्चर के खसम बनो, जमाई नहीं!
Saturday, 20 December 2025
वर्ष 1947 से 2014 के मध्य सम्पूर्ण उत्तर भारत में राजनीति के माध्यम से सबसे अधिक लाभ जिन दो समुदायों को प्राप्त हुआ, वे जाट और ब्राह्मण थे।
Sunday, 14 December 2025
ये जो-जो भी नेतालोग हरयाणा में फिर से जाटों को टारगेट पे ले-ले उल्टी-सीधी जहरीली बयानबाजियां कर रहे हैं
ये जो-जो भी नेतालोग हरयाणा में फिर से जाटों को टारगेट पे ले-ले उल्टी-सीधी जहरीली बयानबाजियां कर रहे हैं; यह खटटर की 'कंधे से नीचे मजबूत व् ऊपर कमजोर" वाले के तंज को ही सच साबित कर रहे हैं, आएं समझें कैसे:
पहली तो बात यह कि यह सब सेण्टर में बैठे इनके सुपर-सीएम के इशारे पर हो रहा है; क्योंकि आईपीएस पूर्णकुमार आत्महत्या केस ने जो इनके तथाकथित "35 बनाम 1" में 35 के पैरोकार होने का ढकोसला पिछले 9 सालों से इन्होनें खड़ा किया हुआ था; ना सिर्फ उसकी पोलपट्टी खुली बल्कि वर्तमान सीएम कितना असहाय व् चपरासी तक की भी बदली नहीं कर सकने वाला है, इसकी भी पोल खुली|
दूसरा, इन उल्ट-सुलट बयानबाजी करने वालों में कोई भी तथाकथित 1 वाला नहीं है; यानि खटटर की कंधे के ऊपर-नीचे वाले तंज को सही साबित भी यह तथाकथित 35 वाले घेरे से जो आ रहे हैं वही साबित कर रहे हैं; 1 वाले तो लगातार तीन इलेक्शनों से 75-80% की मेजोरिटी तक इनको ना चुन के खटटर की कहावत को गलत साबित किए हुए हैं| बाकी इस कहावत को कहने वाला ऐसा तभी कहता होता है जब उसमें किसी के प्रति कोई inferiorirty complex होता है व् वह खुद को कंधे से नीचे कमजोर मानता है!
1 वाले ऐसे माहौल में ख़ामोशी से ठीक उसी तरह चलें, जैसे 'मींह में भीजता मूसल' उसमें भीज के भी अपना अस्तित्व समान चमक के साथ बनाए रखता है! यह बयानबाजियां और कुछ नहीं, सिवाए आईपीएस पूर्णकुमार वाले मामले से खुली इनकी पोल को ढांपने के! आप मूसल बन जाओ, यह स्ट्रेटेजी भी उल्टी इन्हीं के मुंह पे पड़ेगी! बस अपनों को इनसे डरना या दबना नहीं है, यह ख़ामोशी से बता के रखते हुए; व् जिन समाजों को इनके साथ बरगलाने हेतु यह ऐसी हरकतें कर रहे हैं; उनको यह संदेश देते हुए कि आप ना इनसे दबते हैं और ना ही डरते हैं; परन्तु वह भी डिप्लोमेटिक लहजे से!
जय यौधेय! - फूल मलिक
Saturday, 13 December 2025
भाटों की वंशावलियों में जाटों को क्यों और कब राजपूतों से निकला बताया जाने लगा?
जैसा कि मैंने पहली पोस्ट में वचन दिया था, अब मैं विस्तार से बताऊँगा कि भाटों ने अपनी वंशावलियों में जाटों को क्यों और कब राजपूतों की सन्तान बताना शुरू किया। इस सम्पूर्ण घटनाक्रम के पीछे दो प्रमुख कारण हैं, जो एक-दूसरे से जुड़कर एक षड्यन्त्रकारी कारण-श्रृङ्खला बनाते हैं।
Sunday, 7 December 2025
दलजीत सिहाग & हिंदूवादी संगठन
जब तक दलजीत सिहाग हिंदूवादी संगठनों के लिए रीढ़ की हड्डी बनकर काम कर रहा था तब प्रशासन को कोई दिक्कत नहीं थी।
दलजीत सिहाग हिंदूवादी संगठन हिंदू महासभा का प्रदेश संगठन मंत्री के पद पर काम करता था, तब सभी हिंदूवादी संगठन साथ दिखते थे, लेकिन जब दलजीत सिहाग जेल की सलाखों के पीछे है तो वही हिंदूवादी कहां छुप गए, पैरवी करने क्यों नहीं आए।
क्या हिंदूवादी संगठनों में जाट युवाओं का इस्तेमाल किया जाता है, अगर ऐसा है तो जाट समाज के युवाओं को ऐसे धार्मिक संगठनों से दूरी बनाकर रखनी चाहिए।
Saturday, 6 December 2025
अभय चौटाला और आर एस यादव - by Adv. Pardeep Malik
एक बात तो अब समझ आ रही है कि जो एक साधारण पॉडकास्ट था धर्मेंद्र कँवारी का उसको सब पत्रकारों ने लपक लिया। कोई इस पक्ष से कोई दूसरे पक्ष से।
सच्चाई उस समय के लोग जानते हैं। ना यादव पूरा सच बोल रहा है ना अभय सिंह चौटाला और ना ही यादव की पत्नी।
पहले आते है यादव साहब पर। गुजरात केडर के पुलिस ऑफिसर थे। पत्नी हरियाणा में मजिस्ट्रेट थी। भजन लाल के दिल में घुस गए और हरियाणा ले आया गया। हरियाणा में नियुक्ति गैरकानूनी थी इसी कारण CAT ने इनकी नियुक्ति हरियाणा में निरस्त कर दी और इनको गुजरात जाना पड़ा। पंचकूला में एस पी सीआईडी पर नियुक्त हुए। मुख्य मंत्री का बेहद वफादार पुलिस अफ़सर होता है एसपी सीआईडी इसलिए ये कहना मैं भजन लाल के नज़दीक नहीं था एक बेबुनियाद बात है। चौटाला परिवार को सबक सिखाना था इसलिए भजन लाल नेअपने ब्लू आईड बॉय को सिरसा भेजा।
सिरसा में एसपी साहब ने कितने केस सुलझाये कोई उनसे पूछे। उन्होंने केवल अजय चौटाला को पकड़ने के लिए भेजा था। नारकोटिक्स का गढ़ है सिरसा। कितने ड्रग ट्रैफिकिंग माफिया गिरफ्तार किए। इस बात का जवाब नहीं मिलेगा।
अजय चौटाला पर रेलवे एक्ट में केस था जिसका संज्ञान रेलवे पुलिस ही ले सकती है। यादव साहब ये बताये अजय सिंह ऐसा कौनसा अपराध किया था कि लोकल पुलिस को हस्तक्षेप करना पड़ा। क्या अजय सिंह कोई भयंकर अपराधी था या गैंगस्टर था। कोई ऐसा अपराधी था जिसके ख़िलाफ़ विज्ञापन जारी हुआ हो। ऐसा क्या था जिसके लिए जिले के एसपी को दूसरों के कार्यक्षेत्र में दख़ल देना पड़ा और ख़ुद रेडिंग पार्टी को लीड किया। कितने केस ऐसे देखे हैं हमने जिनमे एसपी ख़ुद रेड डाले या किसी का पीछा करे। रेलवे पुलिस का अपना एसपी आईजी होता है। उनकी अपने फ़ोर्स होती है। क्या यादव दिखा सकते हैं किसी एसपी रेलवे ने उनसे आग्रह किया हो मदद का। फिर इतने उतावले हो गए की दूसरे राज्य में जा पहुँचे। एक सेशन जज जिनके घर में अजय चौटाला थे एनवी बयाया ये कहा गया कि वहाँ बैंक डाकू हैं। सच कुछ भी हो इस प्रकार किसी के घर में प्रबेश करना बिना वारंट के ग़ैर क़ानूनी है। अगर किसी को वहाँ से गिरफ़्तार भी करना है तो वहाँ के लोकल थाने में आमद दर्ज करवा कर वहाँ की पुलिस को साथ लेकर जाना चाहिए। अजय एक विधायक थे तो एक आग्रह पत्र स्पीकर को लिख कर इनसे गिरफ़्तारी की आज्ञा ली जा सकती थी। लेकिन यादव ने सारी हदें पार कर सत्ता और पावर की मद में अजय को गिरफ़्तार किया और सामाजिक रूप से प्रताड़ित किया।
अब आते हैं अभय चौटाला वाले हिस्से पर। जिन लोगों ने श्री ओपमप्रकाश चौटाला का मुख्यमंत्री का कार्यकाल देखा है वो आँख बंद करके इस बात को
सच मान लेंगे। अजय सिंह चौटाला अपना हस्तक्षेप प्रशासन में करते थे और अभय सिंह बाहर। उस समय अभय सिंह को अपरिपक्व बताया जाता था। लेकिन सत्ता का नशा दोनों पर तारी था। दिल्ली का गैंगस्टर क्कृष्ण पहलवान अभय सिंह का खास था और बाद में कृष्ण के भाई भरत सिंह को दिल्ली से चुनाव भी लड़वाया। खेल संस्थाओं पर क़ब्ज़ा करने की होड़ थी। जहाँ इनको ना लिया जाए वहीं झूठे मुकदमे दर्ज कर्र दिए जाते थे। एक मुकदमे में मैं ख़ुद अपने एक साथी के साथ फतेहाबाद गया था और वहाँ के एसएचओ ने कहा साहब मेरे बस की बात नहीं है एसपी से मिलो। फिर हम वहाँ के एसपी सौरभ सिंह से उसके घर पर मिले। साफ़ बताया गया इनकी बात मान लो। आज जो अभय सिंह हैं और उस समय जो थे उसमे दिन रात का फ़र्क़ है। आज जिस सौम्यता और सभ्यता से अभय सिंह बात करते है वो हैरान कर देती है कि क्या ये वही अभय सिंह हैं।
उस समय जिस मुकदमे में यादव को गिरफ्तार किया गया वो वैसा ही था जैसा अजय सिंह के ख़िलाफ़ था। ना अजय पर किसी गंभीर अपराध का आरोप था ना यादव पर। इस प्रकार उनको गिरफ़्तार करके रातों रात जींद लाया जाना। फिर उनको चौटाला चौकी ले जाया जाना निसंदेह ग़ैर क़ानूनी है। मंजीत अहलावत चौटाला साहब का ख़ास था। टिट फॉर टैट हो रहा था। वो गाना बज रहा था जैसे करम करेगा वैसे फल देगा भगवान। बिल्कुल छितर परेड की होगी अभय ने। लेकिन मैं ये नहीं मान सकता यादव ने छितर गिने थे। जब मारने वाले पिटाई के साथ साथ कानों के विष बाण भी छोड़ रहे हों तो गिनती तो दूर आँखों के सामने अंधेरा छा जाता है। हर छितर के साथ नितंभ हवा में उठते हैं। देखा है हमने इसका इस्तेमाल। ये तो शुक्र है अभय सिंह ने मारे। किसी नए जवान को दे देते तो पाँच नहीं झेल पाते। एसपी साहब भागने की नीयत से चलती गाड़ी से कूद गए और दोनों पैरों की हड्डी टूट गई। ऐसा भी होता है और यादव को ये खूब मालूम है। मौका मिलता तो ये अजय के साथ भी ऐसा कर सकता था।
तो मतलब ये कि की पटकथा लिखी यादव ने और फ़िल्म अभय सिंह ने बना दी। बात ख़त्म।
अब इतने साल बाद उन छितरों का दर्द क्यों उभर आया। बौद्ध भक्त हो चुके हैं। पुरानी बातें भूल कर ही आगे बढ़ा जाता है। लेकिन ये कैसे भक्त हैं जो अपने ही ज़ख़्म कुरेद रहे हैं।
अब रही बात श्रीमती अनुपमा यादव की। वो जिस प्रकार सोशल मीडिया पर सभी को जवाब दे रही हैं। अनुपमा जी एक सभ्य और बेहद कर्मठ जज श्री डी डी यादव की बेटी हैं। बेहद ठंडे मिजाज के अपने काम के प्रति निष्ठावान। हम खुशनसीब हैं जो उनकी कोर्ट में काम करने का मौका मिला। अनुपमा जी एक भाई भी थे जिनका निधन अभी कुछ समय पहले ही हुआ है। अतिरिक्त महाधिवक्ता थे और अपने पिता पर गए थे। बेहद कर्मठ। झा कमीशन में अक्सर मुलाकात होती थी। जहाँ तक अनुपमा जी की बात है उनका स्वभाव उनकी नौकरी पर भारी पड़ा। दोनों पति पत्नी की अलग जगह नियुक्ति थी। कोशिश की जाती है की पति पत्नी को एक ही स्टेशन पर नियुक्ति दी जाए लेकिन अधिकार के रूप में कोई इसे नहीं माँग सकता। हाई कोर्ट ने कहा था आप अपनी नियुक्ति वाले स्थान पर जॉइन करें उसके बाद आप की नियुक्ति आपके पति की नियुक्ति के स्थान पर करने पर विचार किया जाएगा। बताया जाता है अनुपमा जी ने हाई कोर्ट से आए व्यक्ति जो उनको नोटिस देने आया था एसपी साहब के आवास से तैनात पुलिस कर्मियों द्वारा भगवा दिया गया। तब हाई कोर्ट ने उनको बर्खास्त कर दिया। उनका ये कहना कि उनको द्वारा हर फैसला सुप्रीम कोर्ट तक मान्य रहा एक दम दंभ से भरी ग़लत बात है। वो एक मजिस्ट्रेट थी जिसके बाद तीन सीड़ियाँ होती हैं सेशंस हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट। एक मजिस्ट्रेट के ऑर्डर को सुप्रीम कोर्ट पहुंचते पहुंचते सालों बीत जाते हीं। ये भी उन्होंने हवा में फेंक दी।
खैर अनुपमा जी को ध्यान में रखना चाहिए की सोशल मीडिया सभी का है। सब के अपने मत है। सच्चाई नापने का कोई पैमाना नहीं है बात इतनी पुरानी है। हालत बताते हैं कि यादव जी ने ख़ुद 39 छितरों को निमंत्रण दिया। ना वो अजय की गिरफ़्तारी में अतिउत्साही होते ना छितर लगते। अब जो हुआ सो हुआ बुद्ध में अपना सुख ढूँडें और अनुपमा जी को भी उसी राह पर लेकर जायें।
अभय सिंह आज एक बेहद परिपक्व व्यक्ति और राजनीतिज्ञ हैं। उनको भी इन बातों को तूल नहीं देना चाहिए। जब पूर्वा चलती है तो पुराने ज़ख़्म दर्द करने लगते हैं। धर्मेंद्र पूर्वा का काम कर गया और यादव का दर्द उभर आया। कल जो हुआ वो यादव का शुरू किया था अभय द्वारा पटाक्षेप हुआ। सांप निकल चुका यादव जी को लकीर नहीं पीटनी चाहोये। और अनुपमा जी जिस पिता की पुत्री हैं वैसा पिता केवल भाग्यशाली लोगों को मिलता है। हम जैसे उनकी यादों के साथ भी नतमस्तक होते हैं। उनको भी अपने पिता की तरह संयमित और सहनशील होना चाहिए।
खोड़िया
अजीब सी बात है, जो रस्में एकांत में हुआ करती थी, समाज में दबा-छिपा कर किया जाता था, वही खुल्लम खुल्ला हो रहीं हैं। मैं इसे आधुनिक समाज की संकीर्ण मानसिकता ही कहूंगी। आजादी का मतलब यह तो नहीं कि सांस्कृतिक कार्यक्रमों में निजता और संस्कारों का ध्यान ही न रहे। परंपरा और विरासत के नाम पर नंगा होना तो उचित नहीं।
पिछले साल से खोड़िये का नया ट्रेंड चला है। खोड़िया हरियाणा की लड़के के विवाह में बारात चढ़ने के बाद केवल महिलाओं द्वारा किया जाने वाला एक निजी
खेल-तमाशा, गीत संगीत का प्रोग्राम है। जिसे अब सोशल मिडिया पर सिर्फ तमाशे की तरह परोसा जा रहा है।
अगर खोड़िया ही दिखाना है तो कुछ खूबसूरत गीतों मे साथ भी दिखाया जा सकता है। सब कुछ परोसना ठीक नहीं।
इसमें कुछ रस्में होती हैं, जिन्हें दिखाया जा सकता है।
शुरुआत में दुल्हे की भाभी, बहनें दुल्हा दुल्हन बनती हैं और विवाह की सभी रस्मों को हंसी मजाक में दोहराया जाता है। चूंकि सब स्त्रियाँ होती हैं तो लोक लाज को ध्यान में न रखते हुए दुल्हा-दुल्हन के प्रथम मिलन पर, पति पत्नी के संबंधों खुल कर चुहल की जाती है।
फिर आती है घर की ब्याही बेटी मनिहार बन कर जिसका साथ भाभी देती है। एक हाथ में लाठी और दूसरे में खजूर की बनी टोकरी जिसमें गेहूं के दाने होते हैं।
महिलाएं गीत गाती हैं-
किसियां की कोळी बोल्या हे मनियार लाला मनियार....
ये तो फलाणे की कोळी बोल्या हे मनियार लाला मनियार...
ऐसे ही चमोलों के साथ जिस घर से बाराती गया, उनका नाम ले, उनकी बहु को झूठी मूठी चूड़ी चुढ़ाई जाती हैं। वे टोकरी में पैसे रखती हैं।
फिर बोकड़ा गाया जाता है। दो स्त्रियाँ कोरे घड़े लेकर बैठती हैं। एक मटके की तरफ मुंह कर बोलती है- किसियां का सै बोकड़ा बोल्लै भो भो भो....
दूसरी तरफ से बोलती है- किसियां का सै मेमनी बोलै मयां मयां मयां....
पहली- फलाणे का सै बोकड़ा, बोलै भो भो भो....
दूसरी फलाणे की सै मेमनी, बोलै म्यां म्यां म्यां....
दूसरा गीत घड़े में ही मुंह देकर गाया जाता है, जिसमें एक बोलती है- ऐ री मां
दूसरी- हाँ रे बेट्टा
पहली- कै तो मेरा ब्याह करदे, ना इस मोटळी न ले कैं भाज ज्यांगा...
सारी मिल कर गाती हैं- वा तो नखरो घणी रै मेरे लाल
धाई मारै बावरिया
जोड़ी नहीं जची रै मेरे लाल
धाई मारै बावरिया...
अब इन गीतों का सौंदर्य देखिए कि पशुओं की आड़ में मनुष्यों के शारीरिक आकर्षण का प्रतीक बनाया गया है। सुंदर शब्दों में सब कहा गया। लेकिन फूहड़ता नहीं है।
एक गीत और है-
कोरी कोरी चाँदी की हाँसली घड़ाई उपर घड़ाई परांत
आज मेरे बेटे की फेरां आळी रात
आज मेरे बेटे की फेरां आळी रात।
कोरी कोरी चाँदी की हांसली घड़ाई, उपर जड़ाए हीरे
आज मेरे बीरे की फेरां आळी रात।
एक ओर गीत है-
आज म्हारा फलाना बारात चढ़ा
कज़ळोटी हे
इस मोटळी न किससै भरोसै छोड़ गया
कज़ळोटी हे।
इस नान्हीं( कोई भी नाम लिया जा सकता है) की चौकी बिठा ए गया
कज़ळोटी हे
नान्हीं तो पड़ कैं सो हे गई कज़ळोटी हे
वैं तो आए बांदर पाड़ गए
कज़ळोटी हे
पाड़ गए, बिगाड़ गए, कज़ळोटी हे।
इसी तरह उल्हाने और हास-परिहास से भरे खूब सुंदर गीत हैं और बहुत सारे खेल-तमाशे जिनमें स्त्रियां अलग- अलग रूप धर खूब हंसती बोलती थी।
एक दादी थी जो चोटी खोल दो मुखड़े का गीत गाती और शरीर को अलग-अलग ढंग से मोड़, अजीब से मुंह बना बावली बनती थी।
नाक में बोलकर कहती-
सास मेरी न दळिया रांध्या
सास मेरी न दळिया रांध्या
एक दाणा काच्चा रहग्या
एक दाणा काच्चा रहग्या
आक्कड़ कैं मरजाणा, दळिया नी खाणा
आक्कड़ कैं मरजाणा, दळिया नी खाणा....
एक लाइन बोलती रहती, मुड़ती रहती... और मुड़ती ... और मुड़ती
स्त्रियाँ हंसती जाती.... हँसती जाती....
हाय! वे बिन मोबाइल के ढके छिपे दिन... खुलापन था पर निजता थी।
सुनीता करोथवाल
नाथ सम्प्रदाय मूर्ति पूजा नही करता था!
नाथ सम्प्रदाय मूर्ति पूजा नही करता था! गुरु गोरखनाथ को शिव का अवतार बताने वाले ये बताना भी नहीं भूलते थे कि शिव त्याग के देवता हैं और दूसरों को सुख देने के लिए जहर तक पी लेते हैं! नाथ सम्प्रदाय जाटों को सबसे ज्यादा आकर्षित करता था क्योंकि बेहद सिंपल जीवन होता था! गांव बस्ती से मांग कर खा लेते थे और शरीर को हठयोग पर परखते थे! गर्मी में धूप में अंगारों के बीच तपना हो या घोर सर्दी में बर्फ पर बैठ कर तपना दोनों ही उनके हठयोग को दिखाते रहे हैं! इनके रहने की जगह को मन्दिर नही डेरे कहते थे! आप देखिए इनके डेरे जाटों की एस्टेब्लिशमेंट के बीच रेगुलर सी दूरी पर मिलते हैं! ये सब कैसे हुआ ये तो नही कहा जा सकता है लेकिन इनमें मूर्ति पूजा का एक भी प्रमाण नही मिलता है! ये गांव बस्ती की किसी भी चीज में इंटरफेयर नही करते थे! डेरों में कोई सुविधा इसलिए नही होती थी कि ये हठयोगी धारा थी जिसमें शरीर को कष्ट दिया जाता था!
ये सब डेरे अब मन्दिर बन गए हैं और जम कर मूर्ति पूजा होती है सुविधाओं का अंबार है और संघ ने इनको लगभग कवर कर लिया है! आर्य समाज नाथ सम्प्रदाय बुतपरस्ती करने लगे हैं!
जाट समाज ने जिन नाथ डेरों को स्थापित किया था उनको आगे बढाया वहीं अब संघ के साथ मिल गये हैं और उनकी ताकत अब संघ को ताकत दे रही है और संघ जाटों को कमजोर करने की कोई कोशिश नही छोड रहा है! ये सब बहुत रिदम से हो रहा है!! - Sukhwant Singh Dangi