1) जब आप सिख निहंगों की सरंचना देखेंगे तो पाएंगे कि हर एक निहंग जत्थे की इंचार्ज एक मिशल है और यह जत्थेबंदियां अधिकतर "सीरी-साझी" बिरादरियों के बंदों की बनी हुई होती हैं|
अपने कल्चर के मूल्यांकन का अधिकार दूसरों को मत लेने दो अर्थात अपने आईडिया, अपनी सभ्यता और अपने कल्चर के खसम बनो, जमाई नहीं!
Friday, 18 December 2020
मिशलों व् खापों/पालों का समकक्ष मिल्ट्री कल्चर!
Friday, 11 December 2020
किसानों की भंडारण क्षमता व् व्यापारी होने की भावना छीन कर अडानी-अम्बानी की झोली में डाल देंगे नए कृषि बिल!
और जो किसान सीजन पे फसल ना निकाल ऑफ-सीजन पे निकाल बढ़े रेट का जो मुनाफा लेते थे उससे हाथ धो बैठेंगे|
Tuesday, 8 December 2020
मैं वो वाला जाट हूँ जो पूर्णिमा की खीर धाणक को खिलाता है, बाखे वाली माँ की ज्योत का चढ़ावा कुम्हार देता है!
मैं वो वाला जाट हूँ जो खुद व् उसके पुरखे धोक-ज्योत-सम्मान में दलित-ओबीसी-ब्राह्मण सबको बराबर रखते आए हैं| तो फिर यह मेरे ही ऊपर 35 बनाम 1 का क्लेशी कौन है?
"कोई बादाम खाता है तो वह किसान नहीं हो सकता" - कौनसी मानसिकता है यह, और कहाँ से कैसे पैदा होती है?
इस सोच वालों का विरोध करो, उपहास उड़ाओ; बेशक करो परन्तु इस पर मंथन जरूर करो कि कौनसी परवरिश है यह, किस तरह के नैतिक, सामाजिक व् धार्मिक मूल्यों में पले लोग यह मानसिकता रखते हैं?
फंडियों का लोगों को गुलाम बनाने का तरीका बनाम अंग्रेजों का गुलाम बनाने का तरीका!
फंडियों के जुल्मों की तुलना ना गोरों से करो ना औरों से, अंग्रेजों ने कम-से-कम हमारे कस्टम्स तो नहीं छेड़े थे बल्कि उनकी सुरक्षा व् संवर्धन के लिए उल्टा कस्टमरी लॉ बना के दिए थे|
Wednesday, 25 November 2020
हर धर्म अपने बंदों को सोशल सिक्योरिटी व् इकनोमिक सिक्योरिटी देने को बना है, सिवाए इन तथाकथित अपने वालों के!
गुरुद्वारों की तरफ से 3 कृषि बिलों पर किसानों को पिछले 2.5 महीनों से सीधी धरणास्थलों पर लंगर की मदद की यह तो वजह है ही कि यह धर्म अपने फोल्लोवेर्स के प्रति सिद्द्त से ईमानदार है; इनसे लेना जानता है तो इनको देना और इनकी सेवा करना भी जानता है; परन्तु इसकी एक बड़ी वजह यह भी है कि इनकी मैनेजमेंट सीधी किसानों के ही हाथों में है और फंडियों की पैठ नगण्य है|
Tuesday, 24 November 2020
"किसानों के साथ बदतमीजी" - कौनसा राष्ट्रवाद है यह?
किसानों के ट्रेक्टर कूच होते हमने पेरिस के Champs Elysee पर भी देखे हैं, बर्लिन-ब्रूसेल्स-लंदन में भी देखे हैं; यूरोपियन यूनियन के ब्रुसल्स हेडक्वार्टर के आगे तक देखे हैं; परन्तु उनको यहाँ की सरकारें शहर के बॉर्डर पर नहीं रोकती| शहरी नागरिकों का रवैया इतना सहयोग भरा रहता है कि पेरिस के Champs Elysee पर रहने वालों को किसानों को रषद-पानी देते तक देखा है| पुलिस तक को सिर्फ किसानों के ट्रैफिक को सुचारु रूप से सुनिश्चित करने की ड्यूटी होती है, उनको रोकना या बेरिकेड लगाना तो यहाँ सपनों तक में नहीं होता|
धर्म किसी को नहीं जोड़ सकता; ना आंतरिक तौर पर, ना बाह्य तौर पर!
1) अगर ऐसा होता तो एक मुस्लिम धर्म के, साथ-सीमा लगते 59 देशों की बजाए, यह इस हिस्से वाली पूरी धरती एक मुस्लिम राष्ट्र होती|
Friday, 6 November 2020
करवा फोटो सेशन और जाट-कल्चर का बिगड़ता रूप!
जिस करवाचौथ की खुद ब्राह्मण-बनिया-अरोड़ा-खत्री, यहाँ तक कि दलित-ओबीसी तक की लुगाइयों ने शायद ही कोई 2-4% ने फोटो डाली होंगी सोशल मीडिया पर; उसी की ऐसा लगता है कि न्यूनतम 70-80% फोटोज तो जाटणियों ने ही डाल रखी हैं; मरी-बटियाँ नैं इतना आंट दिया सोशल मीडिया| कुछ तो बावली-बूच कल्चर प्रमोशन के नाम पे चेहरा चमकाने को इतनी बावली हुई जा रही हैं कि फोटो सेशंस तक करवा रखे हैं| और ये 90% वो हैं जिनके मर्द 3 कृषि बिलों को लेकर या तो रोड़ों पर हैं या बैंक-देनदारों के कर्जे चुकाने के बोझ में हैं| रै और नहीं तो ब्राह्मण-बनिया-अरोड़ा-खत्री स्त्रियों की रीस ही कर लो; इस दिन ब्राह्मण-बनिया-अरोड़ा-खत्री की औरतें जहाँ इस कर्वे की कथा-कहानियां सुना के अपने घर भर रही थी, ये म्हारे वाली खामखा ही चामल-चामल के जेब झड़वा रही थी| जरा बताइयों कथा-कहानी कुहाणे वालियों में से ही कितनियों की करवा-क्वीन टाइप फोटो आई? ऐसा भी नहीं कि इतने छेछर कर कर के थम अपने ऊपर से 35 बनाम 1 होने से ही रुकवा लेती हो?
Monday, 2 November 2020
तुमसे मरे पे पिंड-पितृ-दान करवाने वाले के पिंड-पितृ-दान कौन करता है, कभी सोचा है?
तुम्हारे यहाँ किसी के मरने पे आत्मा-पितृ-भगवान-भूत आदि की शांति-पुण्य-भय आदि के नाम तुमसे पिंड-पैसे आदि दान करवाने-लेने, हवन-भंडारे-जीमनवारे करवाने वाले फंडी के घर में जब कोई मरता है तो वह यही चीजें खुद के घर में किस से करवाता है, किसको पिंड-पैसे देता है; कभी सोचा, पूछा या पता किया है?
Sunday, 1 November 2020
दिवाली के साथ-साथ अबकी बार पुरखों के "कोल्हू दिवस" को मनाएं!
धनतेरस पर दुकानदार की आप लोग शॉपिंग करवाते हो, तो दिवाली को उसके घर उस कमाई की लक्ष्मी आने की ख़ुशी में दिए जलाए जाते हैं|
Monday, 26 October 2020
“सांझी की साँझ” अंतराष्ट्रीय मेळा अर मुकाबला - 2020 के नतीजे इस प्रकार रहे!
“सांझी की साँझ” अंतराष्ट्रीय मेळा अर मुकाबला - 2020
Friday, 16 October 2020
पंजाबी-हरयाणवी कल्चर में "सांझी" का व्यवहारिक महत्व:
एक कहावत है हरयाणवी में, "गाम की 36 बिरादरी की बेटी सबकी सांझी होती है" यानि वह पैदा किसी भी बिरादरी में हुई हो, लेकिन बेटी वह सबकी होती है| यही कांसेप्ट पंजाब में है| यह बात इस बात से भी सत्यापित होती है कि गाम की बेटी का पति सिर्फ बेटी के घर-कुनबे या बिरादरी का नहीं अपितु पूरे गाम का जमाई कहलाता है| ऐसा उच्च दर्जे का आदर-मान-स्वीकार्यता रही है पंजाबी-हरयाणवी कल्चर में बेटियों की| हरयाणवी कल्चर का फैलाव वर्तमान हरयाणा, दिल्ली,वेस्ट यूपी, उत्तरी राजस्थान व् दक्षिणी उत्तराखंड तक जाता है|
और इसी "सांझी" शब्द से "सांझी का त्यौहार" बना है| जिसके तहत 36 बिरादरी की बेटियां इकट्ठी हो, घर-गाम की बड़ी औरतों के सानिध्य व् निर्देशन में सांझी मनाती आई हैं| सांझी मूलत: एक रंगोली है जिसके तहत छोटी लड़कियों को आर्ट व् कल्चर सिखाया जाता है व् सुवासण यानि किशोर हो आई लड़कियों को इस 10 दिन की वर्कशॉप के जरिए शादी के बाद के 10 दिनों बारे मानसिक तौर से परिपक़्व किया जाता है| आठवें (कहीं-कहीं सातवें या नौवें दिन) दिन सांझी का भाई उसको लेने आता है| वह 2 दिन रुकता है व् यह ओब्सर्व करता है कि नए घर में मेरी बहन कितनी रची-बसी-घुली-मिली व् बहन के ससुराल वालों ने बहन को अपने कुनबे में कितना स्थान दिया| फिर बहन को ले के दोनों अपने घर आते हैं और भाई यह ओब्सर्वेशन रिपोर्ट अपने माँ-बाप को बताता है| और पहले जमाने में ऐसे ही सुनिश्चित किया जाता था कि बेटी ससुराल में कितनी रची-बसी या ससुराल वालों ने उसको कितना रचाया बसाया|
सिर्फ ससुराल का घर ही नहीं अपितु पूरी ससुराल भी अपनी बहु के प्रति कुछ यूँ प्यार दिखाती है कि जब सांझी व् उसके भाई को जोहड़ों में तैराने जाया जाता है तो यह होड़ होती है कि सांझी को जोहड़ के पार नहीं जाने दिया जाता| उनका संदेश होता है कि हमें हमारी भाभी इतनी प्यारी है कि हम उसको गाम से बाहर नहीं जाने देंगे|
कल से शुरू हो चुकी यह 10 दिन चलने वाली सांझी, पूरे पंजाब-विशाल हरयाणा में अगले 10 दिन तक मनाई जाएगी| यह पंजाबी-हरयाणवी त्यौहार अवधि दहशरे व् रामलीला, बंगाली दुर्गा पूजा, गुजराती गरबा व् नवरात्रों के ही समानांतर मनाया जाता है| इन सभी मैथोलॉजिकल त्योहारों का आदर करते हुए ख़ुशी-ख़ुशी वास्तविकता पर आधारित अपनी सांझी को भी मनाएं व् मनवाएं|
व् इस बार उज़मा बैठक द्वारा खासतौर से इंटरनेशनल स्तर पर 25 अक्टूबर को ऑनलाइन मनाए जा रहे इस त्यौहार को ज़ूम व् उज़मा बैठक के इस फेसबुक पेज पर www.facebook.com/UZMABaithak लाइव देखना ना भूलें|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक