Friday, 18 December 2020

मिशलों व् खापों/पालों का समकक्ष मिल्ट्री कल्चर!

1) जब आप सिख निहंगों की सरंचना देखेंगे तो पाएंगे कि हर एक निहंग जत्थे की इंचार्ज एक मिशल है और यह जत्थेबंदियां अधिकतर "सीरी-साझी" बिरादरियों के बंदों की बनी हुई होती हैं|


2) ऐसे ही सर्वखाप सिस्टम में निहंग दस्ते के समकक्ष हर खाप/पाल के उसके हर गाम गेल "पहलवानी दस्ते" होते आये हैं, जो कि मिशलों की तरह ही अधिकतर सीरी-साझी बिरादरियों के ही बने होते हैं और जब-जब सर्वखाप की लड़ाईयां होती थी तो खाप/पाल की कॉल पर एक चिट्ठी के जरिये संदेशा दे कर बुलवाये जाते थे व् रातों-रात हजारों-हजार की सर्वखाप आर्मी खड़ी हो जाती थी|

अत: यह जो पंजाब-हरयाणा-दिल्ली-वेस्ट यूपी, उत्तरी राजस्थान, उत्तराखंड में गाम-गेल कुश्ती के अखाड़े पाए जाने का "मिल्ट्री कल्चर" है इसकी बुनियाद यह मिशल व् खाप सिस्टम रहे हैं|

हालाँकि सर्वखाप सिस्टम जो कि फंडियों द्वारा बहुत ज्यादा छिन्नभिन्न किया जाता रहा है (स्वधर्मी होने का लाभ उठा कर यह फंडी यही पाड़-तुवाड़े करते आये हैं और अभी भी देख लो वर्तमान किसान आंदोलन को पाड़ने-तोड़ने में सबसे ज्यादा यही सलिंप्त हैं बावजूद यह इनके स्वधर्मी किसान के हक-हलूल की लड़ाई होने के) इनमें अगर यह फंडियों को फंदे-नकेल-नथ डाल लेवें तो यह सिस्टम ज्यों-का-त्यों कायम रह सकता है|

अच्छा हुआ जो भले वक्तों में भले महापुरुषों-गुरुवों के तेज से सिख लोग अलग हो गए और अपना यह सिस्टम ज्यों-का-त्यों बचाए हुए हैं; तभी तो निहंगों के घोड़े दिल्ली बॉर्डर्स पर अग्रिम कतार में ताल ठोंक रहे हैं|

आशा है कि इस किसान आंदोलन के हासिल के बाद सर्वखाप की खापलैंड पर इस "मिल्ट्री-कल्चर" को सहेजने व् सींचने का कोई मूवमेंट चलेगा|

विशेष: आशा है कि कोई भक्त इस पोस्ट पर यह कहते हुए भड़केगा नहीं कि ये देखो यह लोग तो देश में ही देश की ऑफिसियल सेना के समानांतर सेना खड़ी करने की बात कर रहे हैं; ऐसा बकने से पहले अपनी लाठियों वाली कच्छाधारी ब्रिगेड को चेक कर लेना कि वह क्या है? मिशल और खापों का तो देशहित में लड़ने का इतिहास भरा पड़ा है, तुम्हारा तो सिर्फ तोड़फोड़ का इतिहास है सिर्फ अफरातफरी का|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Friday, 11 December 2020

किसानों की भंडारण क्षमता व् व्यापारी होने की भावना छीन कर अडानी-अम्बानी की झोली में डाल देंगे नए कृषि बिल!

और जो किसान सीजन पे फसल ना निकाल ऑफ-सीजन पे निकाल बढ़े रेट का जो मुनाफा लेते थे उससे हाथ धो बैठेंगे|

लेख का निचोड़: 3 नए कृषि बिल कोई नया रोजगार या व्यापार बना के नहीं देंगे अपितु खेत-मंडी के किसान-आढ़ती-मजदूर को अडानी-अम्बानी के यहाँ शिफ्ट मात्र करेंगे; वह भी कम संख्या में, बाकी बेरोजगार मरेंगे| पूरा समझने के लिए लेख को अंत तक पढ़िए|
विस्तार से समझिये: हरयाणा-पंजाब के लगभग हर गाम का उदाहरण लेते हुए बात रखता हूँ| इन राज्यों में ज्यादा नहीं तो हर गाम में औसतन 20/30 किसान घर ऐसे होते हैं जिनके यहाँ 5/10 से 60/100 एकड़ तक के अनाज व् तूड़ा भंडारण की क्षमता के पड़छत्ती-सोपे-कूप-गोदाम होते हैं| छोटी जोत वाले भी बहुत हैं जो थोड़ा-बहुत स्टोर करते हैं| यह लोग सीजन (अप्रैल-मई) पर कम ही गेहूं मंडी में बेचते हैं और खुद के घरों की पड़छत्ती-सोपों में, खेतों में कूपों में भंडारण करते होते हैं| जिसको कि ऑफ-सीजन (दिसंबर-जनवरी) में तब निकाला जाता है जब गेहूं MSP से भी डेड या दो गुना ज्यादा रेट पर बिक रहा होता है, खासकर महानगरों की मंडियों व् आट्टा मीलों में| और इस तरह सिर्फ भंडारण के दम पर जो फायदा-मुनाफा व्यापारी आदि लेता होता है, वह यह किसान खुद लेते हैं| और यह भंडारण सरकार द्वारा तय मानकों की लिमिट में होते आये हैं| तो इस हिसाब से यह किसान, किसान होने के साथ-साथ व्यापारी भी होते आए हैं| कई तो इतनी कैपेसिटी के किसान व्यापारी हैं कि खुद बनियों को इनके यहाँ से पैसे उधारी-कर्जे पे उठा अपने कारोबार-दुकान चलाते-शुरू करते अपनी आँखों से देखे हैं मैंने|
यूँ ही नहीं है हरयाणा-पंजाब के किसान की औसत आय देश में सबसे ज्यादा; इसीलिए है कि सर छोटूराम के बनाए कानूनों ने किसान को भी यह हक व् रास्ते दिए कि आढ़ती/व्यापारी वाला मुनाफा वह खुद भी कमा सके| सर छोटूराम के कृषि व् APMC जैसे मंडी कानूनों ने हरयाणा के आम किसान को व्यापारी के कम्पटीशन में ला खड़ा किया व् कई गाम तो ऐसे हैं कि ट्रेडिशनल व्यापारी कम्युनिटी वाले से किसान व्यापारी ज्यादा कॉम्पिटिटिव साबित हुए हैं| ट्रेडिशनल व्यापारी समुदाय को यह कानून कम्पटीशन देते हैं इसीलिए तो यह बात फैलवा रहे हैं कि यह आउटडेटिड हुए, अब नए तरीके से डेवलपमेंट हो| वह नया तरीका है सर छोटूराम के दिए कानूनों को खत्म कर, अपनी मनमानी के कानून लगवा; किसानों से उनका यह ऊपर बताया मुनाफा व् किसान के साथ-साथ व्यापारी होने की सोच, सुख व् क्षमता छीनना|
तो अब सोचिए कि अगर 3 नए कृषि बिलों के लागू होने से जब खेती कॉन्ट्रैक्ट की होगी, APMC खत्म कर दिया जाएगा और अनाज भंडारण अनलिमिटेड कर दिया जाएगा तो सारे भंडारण की कैपेसिटी अडानी-अम्बानी जैसों के सिलो-गोदामों में सिमट जाएगी और क्योंकि किसान कॉर्पोरेट फार्मिंग के कॉन्ट्रैक्ट से बंधा होगा तो वह खुद स्टोर भी नहीं कर पाएगा| यानि जो बदतर हालत किसानों की पहले से ही हो रखी है, उससे भी बदतर बना किसानों को मिटटी में रुलाने के कानून हैं ये|कुछ नादानों को एक नरेटिव पकड़ा दिया गया है कि किसानों के पास तो भंडारण क्षमता है ही नहीं| अजी है, कम से कम उनके पास तो जरूर है या वो बना लेते हैं जिनको यह ऊपर बताए तरीके से अपने उत्पाद व्यापार से व्यापार कमाना आता है या कमाना चाहता है|और जो यह कहता है कि किसान की मर्जी रहेगी कि किसको बेचे, कॉन्ट्रैक्ट करे या ना करे; अरे जब बिना MSP के कानून के चलते ठीक वैसे ही सरकारी मंडियां खत्म हो जाएँगी जैसे बिहार में हो गई तो हरयाणा-पंजाब का छोटा-बड़ा तमाम किसान मजबूर होगा अडानी-अम्बानी के यहाँ फसल डालने को अन्यथा खेती छोडो, जमीन बेचो और अडानी-अम्बानी के मजदूर बनो|
इसलिए यह कानून वह हैं जो 99% किसानों को बंधुवा बना देंगे और वर्णवाद वाले शूद्र बनके रह जाएंगे हरयाणा-पंजाब के उदारवादी जमींदार भी| सीरी-साझी का पुरखों का स्वर्णिम वर्किंग कल्चर नौकर-मालिक में तब्दील होता चला जाएगा| और यह जो तथाकथित स्वधर्मी आज किसान आंदोलन में गुरुद्वारों-मस्जिदों की भांति लंगर तक नहीं लगा रहे, यह अपनी पकड़ बढ़ा कर आपका दोगुना-तिगुना शोषण करेंगे वह अलग से| यानि जो कमाओगे, उसमें इतनी लूट होगी कि पेट तक नहीं भर पाएंगे|
आखिर कमी क्या है APMC में, सिर्फ एक कि यह किसान को भी व्यापारी बनाते हैं, जो ट्रेडिशनल व्यापारियों को कतई मंजूर नहीं| FPO/FPC कुछ नहीं सिवाए नए बिचौलियों के| यह FPC/FPO अडानी-अम्बानी के गोदाम भरवाने को वही काम करेंगे जो आज के APMC मंडी वाले आढ़ती सरकार के FCI गोदाम भरवाने का काम करते हैं| हाँ, इनका किसान को फायदा है परन्तु तभी जब यह अनाज भंडारण क्षमता लिमिट में रहेगी| अन्यथा तो मंडी का पल्लेदार-लोडर, फिर इन मंडियों की बजाए अडानी-अम्बानी के गोदामों में शिफ्ट हो जायेंगे; सिर्फ शिफ्ट, कोई नया रोजगार नहीं क्रिएट होने वाला इनसे, जिसके कि यह दावे कर रहे हैं| एक किसान जो सीरियों को, दलितों को रोजगार देता है, वह उसका अहसास खत्म हो जायेगा क्योंकि ना सिर्फ उसके खेतों के मजदूर अपितु वह खुद भी कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग में अडानी-अम्बानी टाइपो से दिशा-निर्देश ले के काम कर रहा होगा| यह कुछ-कुछ ऐसा होगा कि जैसे आप परचून-पंसारी-कपड़ा-बर्तन आदि वाले की दुकान को यह कह कर ताला लगवा दो कि भाई अडानी-अम्बानी के शॉपिंग माल्स आ गए हैं, तू निकल यहाँ से; तुझे कोई सलीका-तरीका नहीं काम करने का| और हाँ ला तेरी दुकान की लेबर-कर्मचारी को अडानी-अम्बानी के गोदाम में हम ही काम पे लगवा देते हैं|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Tuesday, 8 December 2020

मैं वो वाला जाट हूँ जो पूर्णिमा की खीर धाणक को खिलाता है, बाखे वाली माँ की ज्योत का चढ़ावा कुम्हार देता है!

मैं वो वाला जाट हूँ जो खुद व् उसके पुरखे धोक-ज्योत-सम्मान में दलित-ओबीसी-ब्राह्मण सबको बराबर रखते आए हैं| तो फिर यह मेरे ही ऊपर 35 बनाम 1 का क्लेशी कौन है?

एक नादाँ ने तर्क किया कि धर्म-कर्म-काण्ड आदि का आधिकारिक-पात्र तो वही विशेष है, इसमें दलित-ओबीसी को उसके बराबर कैसे बैठा दें?
मखा अपने पुरखों की स्थापना भूल गए लगते हो? आओ तुम्हें तुम्हारे ही गाम का निष्पक्ष धोक-ज्योत दिखाऊं:
1) मेरे घर में हर पूर्णिमा को खीर बनती है, जिसमें से स्पेशल एक थाली दलित समाज की धाणक बिरादरी के लिए निकाली जाती है| मेरे कुणबे-ठोळे में तो पीढ़ी-दर-पीढ़ी ऐसा लगभग हर घर में होते देखा है और शायद होता हो पान्ने व् पूरे गाम में भी|
2) मेरे गाम में "मीठे चावल" के साथ बाखे पे मूर्ती-रहित एक माता की सालाना धोक-ज्योत लगती है; उसका पूरा चढ़ावा मेरे गाम में ओबीसी में आने वाली कुम्हार बिरादरी ले कर जाती है| जो साफ़-बढ़िया चढ़ावा होता है, खुद खाते हैं और जो मिक्स हो जाता है वह अपने गधों को खिलाते आये हैं|
3) ऐसे ही कनागत के वक्त एक थाली गाम के बाह्मण की निकाली जाती है|
4) जाट-जमींदार बाहुल्य गाम में क्या हिन्दू, क्या मुसलमान; सब सबसे बड़ी धोक-ज्योत-मान्यता अपने पुरख धाम "दादा नगर खेड़े बड़े बीरों" की करते हैं; बिना स्वर्ण-शूद्र जैसी किसी रुकावट वाली तख्ती के करते हैं|
फिर उसको कहा कि अब यह बताओ कौन हैं यह जो जाट जैसी इतनी व्यापक मानवीय नैतिकता की श्रेष्ठ मूल्यों वाली जाति को कभी 35 बनाम 1 तो कभी जाट बनाम नॉन-जाट के नाम पर घेरता है? और कौन इनको घिरवाने का दोषी है?
बोला कौन?
माखा तेरे जैसे तथाकथित आस्तिक धार्मिक परन्तु मंदबुद्धि; जो खामखा धर्म की मोनोपॉली किसी विशेष को मान रहे हो या सौंप रहे हो| जब पुरखों ने ही दलित-ओबीसी-ब्राह्मण का धार्मिक सम्मान करते वक्त कोई पक्षपात नहीं किया तो तुम्हें कौन घूँटी पिला गया इसकी?
यह बातें नोट करवाओ, अपने-अपने गाम-घरों में ढूंढ के अपने समाज के दलित-ओबीसी को, वरना एक तरफ फंडी तुमको 35 बनाम 1 में घिरा के मरवाता रहेगा और दूसरी तरफ तुम जिन ओबीसी-दलितों को पीढ़ियों से खीर-चढ़ावे में बराबरी दे कर, ब्राह्मण के बराबर करते आए हो; वह तुमसे बिदके चलते रहेंगे|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक

"कोई बादाम खाता है तो वह किसान नहीं हो सकता" - कौनसी मानसिकता है यह, और कहाँ से कैसे पैदा होती है?

इस सोच वालों का विरोध करो, उपहास उड़ाओ; बेशक करो परन्तु इस पर मंथन जरूर करो कि कौनसी परवरिश है यह, किस तरह के नैतिक, सामाजिक व् धार्मिक मूल्यों में पले लोग यह मानसिकता रखते हैं?

क्या किसी मुसलमान ने अपने किसान बारे ऐसा कहा? किसी सिख ने कहा हो? किसी ईसाई, ग्रामीण आर्यसमाजी या बौद्ध ने कहा हो? किसी विदेशी ने कहा हो?
जवाब है नहीं!
तो फिर?
इन बातों को, इन मानसिकताओं को हल्के में मत लो| सर छोटूराम के बताए दुश्मन यही तो हैं; पहचानों इनको| देखो इनके प्रोफाइल, समझो इनकी परवरिश, समझो इनका नैतिक चरित्र|
ये वही हैं जो अपनी स्वघोषित ज्ञान की पोथियों में लिखते हैं कि एक स्वर्ण को शूद्र का कमाया बलात भी हरना पड़े तो हर लेना चाहिए| यह वही लोग हैं जो वर्णवादी मानसिकता में पाले-बड़े किए जाते हैं| यह वही लोग हैं जो यह चाहते हैं कि किसान-जवान-मजदूर को जरूरत के हिसाब से जब चाहे क्षत्रिय कह लो, जब चाहे वैश्य व् जब चाहे शूद्र| यह वही लोग हैं जो खुद के कहे-लिखे को ही सविंधान मानते हैं, राष्ट्रभक्ति मानते हैं|
यह वही लोग हैं जब इनकी चले तो ओबीसी-दलित की बहु-बेटियों को देवदासियां बना के सामूहिक भोग तक पहुँच जाते हैं और जब इनकी बिसात ना हो तो अपनी बिसात बनाने को अपनी ही औरतों को इन्हीं किसान-जमींदारों के यहाँ चूल्हा-चौका करने तक भेजते हैं|
फैसला तुम्हारा कि इनको देवदासियों वाली औकात देनी है या इनकी औरतें किसान-जमींदारों के यहाँ चूल्हा-चौका वाली औकात में रखना है| ये मध्य-मार्गी नहीं हैं, एक्सट्रिमिस्ट हैं| और किसान-जमींदार के साथ इनका यही कंट्राडिक्शन है कि किसान-जमींदार मध्य-मार्गी होता है, जो एक हाथ में हल की मूठ तो दूजे में बादाम रखता है| यह चाहते हैं कि हल की मूठ पकड़ा रहे और बादाम इनको देता रहे, वह भी बिना कोई ना-नुकर किये|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक

फंडियों का लोगों को गुलाम बनाने का तरीका बनाम अंग्रेजों का गुलाम बनाने का तरीका!

फंडियों के जुल्मों की तुलना ना गोरों से करो ना औरों से, अंग्रेजों ने कम-से-कम हमारे कस्टम्स तो नहीं छेड़े थे बल्कि उनकी सुरक्षा व् संवर्धन के लिए उल्टा कस्टमरी लॉ बना के दिए थे|


यह वर्णवादी फंडी तो वह जोंक-केंचुएं हैं जो पहले लोगों के कस्टम्स-कल्चर-भाषा को तहस-नहस करके, फिर अपनी कस्टम्स-कल्चर-भाषा लोगों में डालते हैं और फिर लोगों की आर्थिक-संसाधनिक गुलामी शुरू करते हैं|

अंग्रेज आर्थिक-संसाधनिक रूप से गुलाम बनाने से शुरू करते थे और वहीँ तक रहते थे, कस्टम्स-कल्चर नहीं छेड़ते थे| इनका गुलाम बनाने का सिस्टम ही इसके विपरीत है, यह कस्टम्स-कल्चर-भाषा से शुरू करते हैं और फिर आर्थिक-संसाधनिक चीजें हथियाते हैं|

आज का किसान आंदोलन तो महज आर्थिक-संसाधनिक आज़ादी की लड़ाई है, इसके बाद तो कस्टम्स-कल्चर-भाषा की आज़ादी की असली लड़ाई लड़नी है|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Wednesday, 25 November 2020

हर धर्म अपने बंदों को सोशल सिक्योरिटी व् इकनोमिक सिक्योरिटी देने को बना है, सिवाए इन तथाकथित अपने वालों के!

गुरुद्वारों की तरफ से 3 कृषि बिलों पर किसानों को पिछले 2.5 महीनों से सीधी धरणास्थलों पर लंगर की मदद की यह तो वजह है ही कि यह धर्म अपने फोल्लोवेर्स के प्रति सिद्द्त से ईमानदार है; इनसे लेना जानता है तो इनको देना और इनकी सेवा करना भी जानता है; परन्तु इसकी एक बड़ी वजह यह भी है कि इनकी मैनेजमेंट सीधी किसानों के ही हाथों में है और फंडियों की पैठ नगण्य है|

जबकि हमारे यहाँ इसका उल्टा है| मंदिरों-गुरुकुलों-गौशालाओं-मठों की मैनेजमेंट मुख्यत: है ही फंडियों के हाथों में| अब आर्य-समाज का ही उदाहरण ले लीजिये; इसकी शहरी ब्रांच DAV पे तो फंडियों का कब्ज़ा शुरू दिन से चला आ ही रहा है परन्तु आज के दिन यह ग्रामीण आँचल के गुरुकुलों-गौशालाओं-मठों में भी इतनी घुसपैठ बनाये हुए हैं कि वहां से भी कोई किसान बारे मदद की आवाज नहीं आ रही; जबकि ग्रामीण आँचल वाला आर्यसमाज चलता ही मुख्यत: किसान वर्ग के बूते पर है|
इस आंदोलन के बाद से ही आईये इनसे फंडियों की घुसपैठ खत्म करने बारे विचारें| साथ ही ग्रामीण परिवेश के सारे मंदिरों की मैनेजमेंट सीधे-सीधे अपने हाथों में लेवें| अन्यथा तो क्या पागल कुत्ते ने काट रखा है जो इनको पालते-पोसते हो खामखा में; धर्म के प्रति तुम्हारी ड्यूटी है तो धर्म की भी ड्यूटी होती है तुम्हारे प्रति? और यह दुरुस्त करने को अगर इनमें घुस आये गलत लोगों को इनसे बाहर करना पड़े तो कीजिये, अन्यथा तुम अपने खेतों-जमीनों से बाहर करवा दिए जाओगे, जिसमें इनकी मूक सहमति चिल्ला-चिल्ला कर बोल रही है आज के दिन|
इन अपने वालों को छोड़ कर नजर घुमा के देखा जाए तो चाहे सिख हो, ईसाई हों, मुस्लिम हों, जैन हों, बुद्ध हों; कौनसा धर्म नहीं वापिस मुड़ के अपने बंदों को सोशल सिक्योरिटी से ले इकोनॉमिक सिक्योरिटी देता? विचार कीजिये इस पर; यूँ खामखा के परजीवी तो हम अपने जानवरों के शरीरों पर नहीं छोड़ते जैसे कि चिचड़-खलीले-जोंक; तो इनको क्यों ढो रहे हैं, अगर यह कृषि बिलों पर किसानों को रशद-पानी व् कानूनी मददें उपलब्ध नहीं करवा सकते तो?
जय यौद्धेय! - फूल मलिक



Tuesday, 24 November 2020

"किसानों के साथ बदतमीजी" - कौनसा राष्ट्रवाद है यह?

किसानों के ट्रेक्टर कूच होते हमने पेरिस के Champs Elysee पर भी देखे हैं, बर्लिन-ब्रूसेल्स-लंदन में भी देखे हैं; यूरोपियन यूनियन के ब्रुसल्स हेडक्वार्टर के आगे तक देखे हैं; परन्तु उनको यहाँ की सरकारें शहर के बॉर्डर पर नहीं रोकती| शहरी नागरिकों का रवैया इतना सहयोग भरा रहता है कि पेरिस के Champs Elysee पर रहने वालों को किसानों को रषद-पानी देते तक देखा है| पुलिस तक को सिर्फ किसानों के ट्रैफिक को सुचारु रूप से सुनिश्चित करने की ड्यूटी होती है, उनको रोकना या बेरिकेड लगाना तो यहाँ सपनों तक में नहीं होता|

तो फिर कौनसी मानसिकता, कौनसा भय है जो इंडिया में किसानों के साथ ऐसा किया जाता है? यह है कोरा वर्णवाद व् इस देश को अपना नहीं समझने की मानसिकता| अपने ही देश के किसान को जब सड़क आना पड़े तो आम जनता से ले सरकारों तक के हृदय सम्मान में भर के चेत जाते हैं कि ऐसा क्या गलत हुआ जो हमारे किसान को खेतों से निकल सड़कों पर आना पड़ा| और एक ये तथाकथित थोथे राष्ट्रवाद को माथे धरे जो चल रहे हैं इनके तो माथे-त्योड़ी ही दुनियाँ जहान से भी अलग किस्म की पड़ती हैं कि जैसे यह कोई विदेशी आक्रांता हों और यहाँ के किसान इनके गुलाम| इसके ऊपर जुल्म इनकी वर्णवादी मानसिकता| हद दर्जे का कहर है यह| कौनसा राष्ट्रवाद है यह?
अब प्लीज यह कोरोना आगे मत अड़ाना| अभी-अभी बिहार चुनाव हो के हटे हैं, बंगाल चुनाव की तैयारी है| फंडी-पाखंडियों के मेलों-पंडालों से खड़तल-खुड़के बदस्तूर जारी हैं| इनसे ना फैलता कोरोना? और इनमें फ़ैल जायेगा, जो इम्युनिटी सिस्टम के हिसाब से देश के सबसे स्ट्रांग लोग हैं? और यह बात इस बात से भी सत्यापित है कि 10 सितंबर 2020 पीपली आंदोलन के बाद से किसान सड़कों पर ही बैठे हैं; 2.5 महीने कम नहीं होते, इनमें कोरोना फ़ैलना होता तो यह धरना-स्थल श्मशान बन चुके होते अभी तक|
पहचान लो, कि आप अभी भी गुलाम हो और विदेशी ही ताकतों द्वारा शासित हो जिनका ओरिजिन थाईलैंड-कम्बोडिया वाली थ्योरी से साफ़ सत्यापित होती दिख रही है| अगर ऐसा है तो यहाँ से नारा दे लो कि, "थाईलेंडियों, भारत छोड़ो! कम्बोडियाईओ, भारत छोडो!" ग़दर मचा दिया इन्नें तो कति| दुनियां में किते भी कोनी देख्या यह सिस्टम तो| इनका कोई कनेक्शन नहीं है आपके इमोशंस से, मुद्दों से| सर छोटूराम वाले तेवर अपनाने से ही राह निकलनी अब तो|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक



धर्म किसी को नहीं जोड़ सकता; ना आंतरिक तौर पर, ना बाह्य तौर पर!

1) अगर ऐसा होता तो एक मुस्लिम धर्म के, साथ-सीमा लगते 59 देशों की बजाए, यह इस हिस्से वाली पूरी धरती एक मुस्लिम राष्ट्र होती|

2) अगर ऐसा होता तो एक ईसाई धर्म के, साथ-सीमा लगते यूरोप के 32-35 देशों की बजाए, पूरा यूरोप एक ईसाई राष्ट्र होता|
3) अगर ऐसा होता तो एक बुद्ध धर्म के, साथ-सीमा लगते पूर्वी एशिया के 15-20 देशों की बजाए, पूरा पूर्वी एशिया एक बुद्ध राष्ट्र होता|
तो क्यों हैं यह देश, एक धर्म के होते हुए, साथ सीमा लगते हुए भी अलग-अलग?
वजह हैं, इनके अपने-अपने आर्थिक, कल्चरल, भाषीय, रिसौर्सेज व् एथिकल रूचियां व् समूह|
हजम करो तो करो, नहीं तो जब तुम अपने यहाँ तथाकथित एक धर्म का राष्ट्र घोषित कर लेते हो तो उसके अगला डिस्ट्रक्शन यही शुरू होगा, आज की 29 स्टेटस कल, न्यूतम 29 राष्ट्र होंगी|
तो ना यह बात सच कि धर्म आंतरिक विषमता मिटाते हैं और ना यह वाली बाह्य विषमता मिटाने की कि "मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना" या "हिन्दू-मुस्लिम-सिख-ईसाई, आपस में सब भाई-भाई"|
धर्म सिर्फ और सिर्फ उन चालाक लोगों का प्रोपगैंडा है जो समाज पे इकोनॉमि, रिसोर्सेस व् पावर पॉलिटिक्स पर कण्ट्रोल चाहते हैं| इसलिए अपना-अपना आर्थिक, कल्चरल, भाषीय, रिसौर्सेज व् एथिकल रूचियां समझो और इनको ठीक करने पे काम करो; यूनाइटेड अमेरिका की तरह डिसेंट्रलाइज्ड स्टेट का राष्ट्र बना के; जिसमें स्टेटस के अपने भी इंडिपेंडेंट राइट्स हों व् कुछ राष्ट्रीय स्तर के केंद्र के पास हों|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Friday, 6 November 2020

करवा फोटो सेशन और जाट-कल्चर का बिगड़ता रूप!

जिस करवाचौथ की खुद ब्राह्मण-बनिया-अरोड़ा-खत्री, यहाँ तक कि दलित-ओबीसी तक की लुगाइयों ने शायद ही कोई 2-4% ने फोटो डाली होंगी सोशल मीडिया पर; उसी की ऐसा लगता है कि न्यूनतम 70-80% फोटोज तो जाटणियों ने ही डाल रखी हैं; मरी-बटियाँ नैं इतना आंट दिया सोशल मीडिया| कुछ तो बावली-बूच कल्चर प्रमोशन के नाम पे चेहरा चमकाने को इतनी बावली हुई जा रही हैं कि फोटो सेशंस तक करवा रखे हैं| और ये 90% वो हैं जिनके मर्द 3 कृषि बिलों को लेकर या तो रोड़ों पर हैं या बैंक-देनदारों के कर्जे चुकाने के बोझ में हैं| रै और नहीं तो ब्राह्मण-बनिया-अरोड़ा-खत्री स्त्रियों की रीस ही कर लो; इस दिन ब्राह्मण-बनिया-अरोड़ा-खत्री की औरतें जहाँ इस कर्वे की कथा-कहानियां सुना के अपने घर भर रही थी, ये म्हारे वाली खामखा ही चामल-चामल के जेब झड़वा रही थी| जरा बताइयों कथा-कहानी कुहाणे वालियों में से ही कितनियों की करवा-क्वीन टाइप फोटो आई? ऐसा भी नहीं कि इतने छेछर कर कर के थम अपने ऊपर से 35 बनाम 1 होने से ही रुकवा लेती हो?

याद आती हैं पड़दादा दरिया सिंह जांगड़ की वह सारे ठोले की लेडीज की काउन्सलिंग क्लासेज लेना; जिनमें वो बताते थे कि कल्चर-कस्टम के नाम पर क्या हमारे लिए सामूहिक तौर पर सही है और क्या गलत| ब्राह्मण-बनिया-अरोड़ा-खत्री यह काउन्सलिंग आज भी कर रहे हैं बस ये एक जाट ही न्यारे उभरे हैं जिनको गधों वाले जुकाम हुए पड़े हैं| लुगाई तो लुगाई, इनके मर्दों को टोक लो तो ऐसे पाड़ के खाने को आवें, जैसे बस सारी दुनिया का तोड़ इस चौथ में ही आ लिया| रै मखा रोज सांप-बिच्छू-बघेरों के मुँहों में पैर धर के देश के लिए फसल उगाने वालो, थमनें भी मौतों के डर सताने लगे; रै क्यों गद्यां कैं जुकाम आळी कर रे हो?
35 बनाम 1, जाट बनाम नॉन-जाट, ऐसा प्रतीत होता है जैसे कोई चीज इनके असर ही नहीं कर रही| आर्य-समाज तक जैसे ताक पर धर दिया हो| इनको तो शहरों में रहते हुए तीज-त्योहारों के पीछे के इकनोमिक मॉडल्स तक नहीं पता, ना समझे आते और ना ही समझने की कोशिश करते दीखते; जो कि आज से 30 साल पहले मेरे पड़दादा दरिया सिंह जैसे बूढ़े इन मॉडल्स को इतना बारीकी से समझते थे कि उनकी तरह गाम के हर ठोले का बूढा अपने ठोले की औरतों की मासिक काउन्सलिंग किया करते| रै थम और तो छोडो अपने बूढ़ों की रीस कर लो जो अगर ब्राह्मण-बनिया-अरोड़ा-खत्री की नहीं भी होती तो थारे से|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Monday, 2 November 2020

तुमसे मरे पे पिंड-पितृ-दान करवाने वाले के पिंड-पितृ-दान कौन करता है, कभी सोचा है?

तुम्हारे यहाँ किसी के मरने पे आत्मा-पितृ-भगवान-भूत आदि की शांति-पुण्य-भय आदि के नाम तुमसे पिंड-पैसे आदि दान करवाने-लेने, हवन-भंडारे-जीमनवारे करवाने वाले फंडी के घर में जब कोई मरता है तो वह यही चीजें खुद के घर में किस से करवाता है, किसको पिंड-पैसे देता है; कभी सोचा, पूछा या पता किया है?

भली-भांति 10 फंडियों के घरों का गुप्त-सर्वे करवाया मैंने इसपे और पाया कि वह अपनी बिरादरी से बाहर तो छोडो, खुद की बिरादरी तक में किसी को नहीं जिमाता-पुजवाता-दान देता; अपितु जो देता है सिर्फ और सिर्फ अपनी बेटियों को देता है; चाहे उसके घर माँ मरे, बाप मरे, बीवी मरे, जवान मरे या बूढ़ा|
बताओ यह दोहरे मापदंड कैसे हो सकते हैं भगवान के; इसलिए जो भी जिस भी जाति-बिरादरी का इंसान ऐसे फंड रचता है फंडी कहलाता है| इनसे बड़ा सीखते हो ना, इनको बड़ा ज्ञानी-ध्यानी भी बताते हो; इसका मतलब यह जो खुद के मामले में बरतते हैं वही असली ज्ञान हुआ ना? तो करो लागू इसको ही अपने घरों में और घर में हर मरगत पे सिर्फ बेटी को दो या आपस में बांटों|
औरों की तो कहूं ही क्या, जिन 50-60-70 साल वालों के ब्याह-फेरे उनके घर के ही आर्य-समाजी बूढ़े-बड़ों ने करवाए थे, जो यह चीजें घर-खानदान-बिरादरी वाले से ही करवाए थे, उन व् उनकी औलादों तक को यह गधे वाले जुकाम हुए पड़े हैं| फिर कहते हैं कि अजी हमको कोई कंधे से ऊपर-नीचे के तंज क्यों कसता है, अजी यह 35 बनाम 1 हमारे ही साथ क्यों होता है| ना तो और बाबा जी गेल होवैगा? खुद की देखी-बरती पुरखों की कल्चरल लिगेसी थम माननी छोड़ चुके, औलादों को वह पास करनी तुम छोड़ चुके; तुमपे ही होंगी ऐसी बातें-वारदातें|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Sunday, 1 November 2020

दिवाली के साथ-साथ अबकी बार पुरखों के "कोल्हू दिवस" को मनाएं!

धनतेरस पर दुकानदार की आप लोग शॉपिंग करवाते हो, तो दिवाली को उसके घर उस कमाई की लक्ष्मी आने की ख़ुशी में दिए जलाए जाते हैं|


परन्तु तुम किसान-जमींदारों की औलादों, तुम धनतेरस पर अपनी जेबें कटवा के आने वालो, तुम किस ख़ुशी में लक्ष्मी पूजन करते हो; तुम तो धनतेरस पे दुकानदार के यहाँ उल्टा लक्ष्मी लुटा के आए होते हो, अपनी जेबें फूंक के उनकी दिवाली मनाए आते हो? कभी सोचा-समझा है या एविं देखादेखी भेड़चाल बन चले हो?
आओ बताता हूँ कि उदारवादी जमींदारों के यहाँ कौनसी लक्ष्मी आती है जिसके चलते घी के दिए जलते आए हैं:

कातक की अमावस को वह दिन होता है जब 99% गन्ने (गंडे) की खेती पक के तैयार हो जाया करती है| जो आज भी गामों से जुड़े हो आपको पता होगा कि कहते हैं कि "कातक अमावस को पहला गंडा पाडना चाहिए"| तो पुरखे यह पहला गंडा पाड़ के यह चेक किया करते थे कि गंडे मीठे हो गए हैं तो चलो कोल्हू शुरू किये जावें| और कोल्हू शुरु होने का मतलब होता था जमींदार के यहाँ "कोल्हू इंडस्ट्री से गुड़-शक्कर-शीरा-खोई आदि का बनना शुरू होना" यानि गुड़-शक्कर-शीरा-खोई चारों ही वह औद्योगिक उत्पाद जो जमींदार को अगले छह महीने तक इंडस्ट्रियलिस्ट व् व्यापारी बनाए रखते थे|

इसी धन-आवक की बड़क में पुरखे अपने कोल्हू व् इनके औजारों को धोते-पोंछते व् घी-तेल के दिए लगा के इस इंडस्ट्री के शुरू होने की ख़ुशी में "कोल्हू दिवस" मनते|

इसलिए दिवाली के साथ-साथ अबकी बार कोल्हू दिवस भी मनाओ| ये माइथोलॉजी हमें-तुम्हें खाने को नहीं देती और ना इन मैथोलोजियों से निकले त्योहार देते, उल्टा लेते-ही-लेते हैं| जो देते आए वह त्यौहार मत बिगाड़ो, उनको जरूर से जरूर मनाओ| मनाओ अगर चाहो हो कि फिर से कोई 35 बनाम 1 ना होवे और कोई कंधे से ऊपर-नीचे की अक्ल के तंज ना कसे| और इन सबसे भी जरूरी, तुम्हारी, तुम्हारे पुरखों की हस्ती-शक्ति-लिगेसी बची रहे व् उसकी बुलंदी कायम रहे|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Monday, 26 October 2020

“सांझी की साँझ” अंतराष्ट्रीय मेळा अर मुकाबला - 2020 के नतीजे इस प्रकार रहे!

“सांझी की साँझ” अंतराष्ट्रीय मेळा अर मुकाबला - 2020

के नतीजे इस प्रकार रहे:

पहला लंबर: सोनीपत सिटी टीम - नकद इनाम 5100 रपिए
दूजा लंबर: भालोठ, रोहतक टीम - नकद इनाम 3100 रपिए
तीज्जा लंबर: मेरठ सिटी टीम 1 - नकद इनाम 2100 रपिए
चौथा लंबर: गोहाना सिटी टीम - नकद इनाम 1100 रपिए
पांचमा लंबर: पिल्लूखेड़ा, जिंद टीम - नकद इनाम 1100 रपिए
छटा लंबर: सेक्टर 2, रोहतक टीम - नकद इनाम 1100 रपिए
सातमा लंबर: हैरो, लंदन टीम - नकद इनाम 1100 रपिए (पौंड राशि)
आठमा लंबर: गोच्छी, झज्जर टीम - नकद इनाम 1100 रपिए
नौमा लंबर: मूरपार्क, लंदन टीम - नकद इनाम 1100 रपिए (पौंड राशि)
दसमा लंबर: मुंडा खेड़ा, कुरुक्षेत्र टीम - नकद इनाम 1100 रपिए

यहाँ यह बता दें कि जो टीमें नेटवर्क अनुपलब्धता के चलते भाग नहीं ले पाई (उनकी पहले से भेजी हुई वीडियो देख के लंबर लगाए गए) या भाग लिया व् पहलड़े दसां म्ह लंबर नहीं आया या जिन टीमा नैं मुकाबले के लिए रजिस्ट्रेशन करवाया व् एक भी वीडियो या फोटो अपनी सांझी की भेजी उन सबको 500 रपिए टोकन मनी दिया जाएगा| टॉप तीन लंबरों या पोजिशंस पर वही टीमें आ सकी, जिन्होनें लाइव परफॉरमेंस दी व् जूरी के सवालों के जवाब दिए|

इन सभी टीमों को E-Certificate भी दिया जाएगा|

UZMA Baithak Honorary Lifetime Membership Awards के नतीजे:
1) Khap Chaudhary Honour Award / खाप चौधरी हॉनर अवार्ड: दादा चौधरी नफे सिंह नैन, प्रधान बिनैण खाप व् सर्वजाट सर्वखाप
2) Art & Culture Honour Award /कला व् हरयाणत हॉनर अवार्ड: सर रघुवेन्द्र मलिक, वेटरन हरयाणवी एक्टर, कला व् हरयाणत के आदर्श
3) 3K (Kheda-Khap-Khet) Dedication Honour Award / 3 ख (खेड़ा-खाप-खेत) सम्पर्ण हॉनर अवार्ड: दादीराणी फूलपति पहल, वयोवृद्ध होते हुए भी ऊर्जा, लग्न व् प्रेरणा की प्रतीक

इन तीनों आदरणीय हस्तियों को 1 इ-प्रशस्ति पत्र (E-Certificate) व् 1100 रपिए या इसी कीमत की लोई या चादर या शॉल| व् UZMA Honrary Members Medical Help Bounty के तहत जीवन में किसी वजह से अकेला या अलग-थलग पड़ जाने व् कोई आर्थिक मदद नहीं होने की अवस्था में स्वास्थ्य संबंधी जरूरतों में उज़मा बैठक द्वारा निर्धारित मानदंडों के तहत मेडिकल हेतु आर्थिक मदद|

E-Certificate of Honour: तमाम आदरणीय एंकर्स व् जूरी सदस्यों को|
सभी विजेता टीमों को उज़मा बैठक की तरफ से सांझी उत्सव की बधाईयों के साथ-साथ ढेरों बधाईयां व् स्नेह!

नोट: उज़मा बैठक आज से ही हर अवार्ड की मॉनेटरी अमाउंट को विनर्स के बैंक खातों में भेजने का कार्य शुरू कार रही है, जो कि न्यूनतम वक्त में पूरा कर दिया जाएगा| E-Certificate भेजने में 1 से 2 हफ्ते का वक्त लग सकता है|

E-Certificate भेजने के लिए अपना एक वैलिड ईमेल आईडी, उज़मा बैठक तक पहुंचा दें|

जय दादा नगर खेड़ा/भैया/भूमिया/जठेरा/बड़ा बीर!
जय यौद्धेय!

आप सभी के आपसी सहयोग, भागीदारी व् कामयाबी से अभिभूत,
एडमिन्स टीम के साथ-साथ तमाम उज़मा बैठक! - https://www.facebook.com/UZMABaithak

Friday, 16 October 2020

 पंजाबी-हरयाणवी कल्चर में "सांझी" का व्यवहारिक महत्व:


एक कहावत है हरयाणवी में, "गाम की 36 बिरादरी की बेटी सबकी सांझी होती है" यानि वह पैदा किसी भी बिरादरी में हुई हो, लेकिन बेटी वह सबकी होती है| यही कांसेप्ट पंजाब में है| यह बात इस बात से भी सत्यापित होती है कि गाम की बेटी का पति सिर्फ बेटी के घर-कुनबे या बिरादरी का नहीं अपितु पूरे गाम का जमाई कहलाता है| ऐसा उच्च दर्जे का आदर-मान-स्वीकार्यता रही है पंजाबी-हरयाणवी कल्चर में बेटियों की| हरयाणवी कल्चर का फैलाव वर्तमान हरयाणा, दिल्ली,वेस्ट यूपी, उत्तरी राजस्थान व् दक्षिणी उत्तराखंड तक जाता है| 


और इसी "सांझी" शब्द से "सांझी का त्यौहार" बना है| जिसके तहत 36 बिरादरी की बेटियां इकट्ठी हो, घर-गाम की बड़ी औरतों के सानिध्य व् निर्देशन में सांझी मनाती आई हैं| सांझी मूलत: एक रंगोली है जिसके तहत छोटी लड़कियों को आर्ट व् कल्चर सिखाया जाता है व् सुवासण यानि किशोर हो आई लड़कियों को इस 10 दिन की वर्कशॉप के जरिए शादी के बाद के 10 दिनों बारे मानसिक तौर से परिपक़्व किया जाता है| आठवें (कहीं-कहीं सातवें या नौवें दिन) दिन सांझी का भाई उसको लेने आता है| वह 2 दिन रुकता है व् यह ओब्सर्व करता है कि नए घर में मेरी बहन कितनी रची-बसी-घुली-मिली व् बहन के ससुराल वालों ने बहन को अपने कुनबे में कितना स्थान दिया| फिर बहन को ले के दोनों अपने घर आते हैं और भाई यह ओब्सर्वेशन रिपोर्ट अपने माँ-बाप को बताता है| और पहले जमाने में ऐसे ही सुनिश्चित किया जाता था कि बेटी ससुराल में कितनी रची-बसी या ससुराल वालों ने उसको कितना रचाया बसाया| 


सिर्फ ससुराल का घर ही नहीं अपितु पूरी ससुराल भी अपनी बहु के प्रति कुछ यूँ प्यार दिखाती है कि जब सांझी व् उसके भाई को जोहड़ों में तैराने जाया जाता है तो यह होड़ होती है कि सांझी को जोहड़ के पार नहीं जाने दिया जाता| उनका संदेश होता है कि हमें हमारी भाभी इतनी प्यारी है कि हम उसको गाम से बाहर नहीं जाने देंगे| 


कल से शुरू हो चुकी यह 10 दिन चलने वाली सांझी, पूरे पंजाब-विशाल हरयाणा में अगले 10 दिन तक मनाई जाएगी| यह पंजाबी-हरयाणवी त्यौहार अवधि दहशरे व् रामलीला, बंगाली दुर्गा पूजा, गुजराती गरबा व् नवरात्रों के ही समानांतर मनाया जाता है| इन सभी मैथोलॉजिकल त्योहारों का आदर करते हुए ख़ुशी-ख़ुशी वास्तविकता पर आधारित अपनी सांझी को भी मनाएं व् मनवाएं|  


व् इस बार उज़मा बैठक द्वारा खासतौर से इंटरनेशनल स्तर पर 25 अक्टूबर को ऑनलाइन मनाए जा रहे इस त्यौहार को ज़ूम व् उज़मा बैठक के इस फेसबुक पेज पर www.facebook.com/UZMABaithak लाइव देखना ना भूलें|


जय यौद्धेय! - फूल मलिक