Wednesday, 14 July 2021

वर्तमान किसान आंदोलन की सफलता के उस पार "राष्ट्रीय किसान राजनीति का आगे का स्वर्णिम भविष्य" मुंह बाए बाट जोह रहा है; इसको स्टेट पॉलिटिक्स में ना ही रोळा जाए तो बेहतर!

सन 1907 में सरदार अजित सिंह के "पगड़ी संभाल जट्टा" किसान आंदोलन से शुरू हो सर छोटूराम व् सर फज़ले हुसैन की जोड़ी से होती हुई सरदार प्रताप सिंह कैरों व् चौधरी चरण सिंह (साउथ-ईस्ट इंडिया से भी बड़े नाम जोड़ लीजिये) से होते हुए 2011 में बाबा महेंद्र सिंह टिकैत के जाने के वक्त से जो "राष्ट्रीय किसान राजनीति" रुपी नाव इसके खेवनहार की जो बाट जोह रही है, उस खेवनहार/ उन खेवनहारों को देने का माद्दा रखती है वर्तमान किसान आंदोलन की सफलता|


हालाँकि खेवनहार तो राज्य-स्तरीय और भी बहुत नाम हुए परन्तु 20वीं सदी में राष्ट्रीय किसान राजनीति में अमूल-चूक परिवर्तनों के धोतक ऊपर दिए नाम ही कहे जा सकते हैं| दसवीं सदी से ले बीसवीं सदी के बीच किसान क्रांतियों का डंका सर्वखाप आर्मी व् सिख मिसलों ने लगभग हर दूसरे शासक के विरुद्ध बजाया|

राष्ट्रीय किसान राजनीति के आगे का स्वर्णिम भविष्य निर्धारित होने में किसान आंदोलन की सफलता इसको वह क्रेडिबिलिटी प्रदान करेगी कि SKM (सयुंक्त किसान मोर्चा) जिस किसी पार्टी या कैंडिडेट पर हाथ धर देगा या खुद के भी कैंडिडेट उतार देगा तो सीधा सेण्टर सत्ता यानि लोकसभा में पहुंचेगा| और 3 काले कृषि बिल व् MSP गारंटी कानून सेण्टर से बनने हैं, स्टेट से नहीं| इन तीन बिलों के मामले में एक स्टेट सरकार जितना कर सकती थी, उसके लगभग पंजाब सरकार पहले ही कर चुकी है तो ऐसे में एक स्टेट जीत भी ली जाएगी तो कितना लाभ होगा; जब समस्या सेंटर से हल होनी है तो?

इसलिए लाजिमी है कि SKM न्यूनतम 2024 तक गैर-राजनैतिक हो कर ही चले व् वर्तमान केंद्र सरकार को हर राज्य चुनावों में हरवावे| इससे या तो यह मांगें मानेंगे अन्यथा तो तब होगा असली लोहा आजमाने का वक्त तो; क्योंकि तब तक लोगों के इस सरकार से जुड़े रहे-सहे भ्रम भी टूट चुके होंगे व् सब समझ चुके होंगे कि अब लोकसभा चुनावों में जा के जनमत हासिल कर ही हल मिल सकेगा| उस वक्त चाहे तो SKM खुद उम्मीदवार उतारे या संभावित राजनैतिक पार्टियों के साथ "लीगल गारंटी इलेक्शन बांड" साइन करवा के उनको समर्थन दे|

अभी जल्दबाजी नहीं की जा सकती क्योंकि एक तो क्रेडिबिलिटी कच्ची है, दूसरा आम जनता भी कह उठेगी कि राजनीति में कूदने की ऐसी भी क्या जल्दी थी| खुद से नहीं कहेगी तो गोदी मीडिया कहलवा देगा व् सारा आंदोलन तीतर-बितर होने की भेंट चढ़ता दिखेगा|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

फ्रांसीसी क्रांति का दिन है आज, 14 July, 1789 कुछ ऐसे ही हालात व् वजहें थी फ्रांस में जिनके चलते आज इंडिया में दिल्ली बॉर्डर्स पर किसान आंदोलन है!

आगे बढ़ने से पहले कहता चलूँ:


मुझे गर्व है कि कुदरत ने मेरी कर्म-स्थली के रूप में मेरे खाते फ्रांस लिखा; लिंगभेद जहाँ विश्व में न्यूनतम है| दरअसल औरतों को बहुत से पैमानों में ठीक उसी तरीके का आधिपत्य है जैसे सर्वखाप की थ्योरी "दादा नगर खेड़ों" की धोक-ज्योत में 100% प्रतिनिधत्व अपनी औरतों को दिया गया है; होंगी कमियां इनमें भी परन्तु ऐसी-ऐसी खूबियां ही सर्वखाप को मेरे लिए अतिप्रिय बनाती हैं और तब तो और भी जब मैं सर्वखाप की धाती का ही वंशानुगत अंश हूँ| और गर्व है इस पर भी कि इसी धाती के इन्हीं सर्वखाप-मिशल-निहंगों के लोग 21वीं सदी की "इंडियन किसान-मजदूर क्रांति" के अग्रणी हैं|

अब जानिए "फ़्रांसिसी क्रांति" के पीछे की वजहें, व् क्यों हैं आज इंडिया में वही 1789 वाले फ्रांस जैसे हालात:

तीन एस्टेट्स में बँटे हुए फ्रांस ने आज के ही दिन (14 July, 1789) पाई थी आंतरिक धार्मिक व् वर्णवाद की कटटरता से आज़ादी| सही-सही वर्णवाद तो नहीं कह सकते, परन्तु वर्गीकरण कुछ ऐसा ही था; जबकि हमारे यहाँ वाला वर्णवाद विश्व में सबसे नीचतम स्तर वाला है| खैर इस दिन को "La Fête nationale (Bastille Day) बोलते हैं यहाँ; फ्रांस का सबसे बड़ा राजकीय त्यौहार है आज| Three estates: the First Estate (clergy); the Second Estate (nobility); and the Third Estate (commoners) होती थी|

"​आंतरिक ​धार्मिक व् वर्णवाद की कटटरता" के तीन एस्टेट रुपी वर्णों में बँटा ईसाई ही ईसाई को कुचल रहा था|

पहली दो एस्टेट्स ने तीसरी एस्टेट को इतना दबाया-कुचला हुआ था, उल-जुलूल टैक्सों व् फसलों में मनमाने मूल्य देने का इतना भार थोंपा हुआ था कि किसानों को ही खाने के इतने लाले पड़े कि 14 जुलाई 1789 को फ्रेंच औरतों को खाने की दुकानों का सामान लूटना पड़ा; इस हद तक अत्याचार था प्रथम दो ऐस्टेटों का तीसरी एस्टेट पर|

दुकानों के बाद बास्तील (Bastille) की जेल (सलंगित फोटो देखिये) तोड़ना थर्ड एस्टेट का निशाना बनी, जहाँ झूठे-सच्चे देशद्रोह तक के ऐसे मुकदमे लगा के थर्ड एस्टेट के लोगों को बंदी बना के डाला गया था कि वह अपने ऊपर हुए केसों पर अपील भी नहीं कर सकते थे| जेल तोड़ी गई व् बेकसूर लोग आज़ाद कराये गए|

उसके बाद चर्चों से पादरियों को निकाल-निकाल कर काट डाला गया| पंद्रहवीं सदी के यूरोप के ब्लैक-प्लेग के बाद यह दूसरा सबसे बड़ा अभियान था जब पादरियों व् उनके उल-जुलूल तथाकथित ज्ञान को समाज से खदेड़, चर्चों के भीतर सिमित कर दिया गया था| क्योंकि यह भ्रम-भय-नफरत ज्यादा फैलाते थे व् सकारात्मक सामाजिक योगदान नगण्य करते थे| कहते हैं पूरे एक साल में जा के शांत हुई थी यह क्रांति, जिसके समापन की ख़ुशी में 14 जुलाई 1790 को Fête de la Fédération मनाया गया|

यह नोट हिंदी में इसलिए लिखा कि हमारे देशवासी फ्रांस के इस दिन से यह दिशा व् समझ ले सकें कि हमें किस दिशा में जाना है|

चलते-चलते एक और विशेष: आज लोग अपने पुरखों की सर्वखाप की स्थापित इतनी महान प्रैक्टिकल "यत्र पूजयन्ते नारी, तत्र रमन्ते देवता" की लाइन की थ्योरी यानि "धोक-ज्योत में औरतों को 100% प्रतिनिधित्व" देने की सभ्यता छोड़ के धोक-ज्योत में 100% मर्द के प्रतिनिधित्व वाली फंडी थ्योरी में डूबते जा रहे हैं| और शायद यही इनके ग्रास का, पीड़ा का, 35 बनाम 1 झेलने का सबसे बड़े कारणों में से एक कारण है| अपनी लीख पे आ जाओ वापिस, लीख छोड़ के चलने वाले तो बुग्गी में जुते झोटे के ज्योते टूट जाते हैं; तुम क्या चीजों हो| या कम-से-कम अपनी थ्योरियों को सबसे ऊपर प्रचारित रखो, अंगीकृत रखो|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक




Monday, 12 July 2021

स्याणे थारे पुरखे थे या थम हो?

यूपी में चुनी हुई महिला पार्षदों के साथ व् हांसी में आंदोलनरत किसान महिलाओं (वो भी दोनों जगह हिन्दू धर्म की ही) के साथ बीजेपी व् संघ के लोगों (विनोद भयाणा व् मनीष ग्रोवर) द्वारा मारपीट से ले अश्लील इशारे व् हरकतें करना इनकी 'देवदासी व् वर्णवादी मानसिकता' का खुला परिचय है| सबूत है कि इनके लिए "हिन्दू एकता व् बराबरी", "भाईचारा" टाइप की इमोशनल बातें व् हवाले, आपको अपने झांसे में फंसा के आपका दिमाग-सोच-वोट-नोट हड़पने का प्रपंच मात्र होते हैं|


यह "हिन्दू एकता व् बराबरी", "भाईचारा", "धर्म-देश के खतरे में होने" की बातें तभी तक करते हैं, जब तक इनको पावर नहीं मिल जाती, जब पावर मिल जाती है तो यह किस क्रूर स्तर का नश्लवाद, अलगाववाद, शूद्र-स्वर्ण वाद, छूत-अछूत वाद, वर्णवाद, दक्षिणी भारत के धर्मस्थलों में पाई जाने वाली "देवदासी वाली वासनायुक्त मंशा" करते-बरतते हैं, यह दोनों घटनाएं इसकी साक्षी हैं| और तो और पावर मिलने पर इनको सेक्युलर कहलाने का शौक चढ़ आता है, जैसे अभी मोहन भागवत ने पिछले हफ्ते ही "हिन्दू-मुस्लिम का DNA एक बता दिया था"| पहले जोर लगा के तुमको कट्टर बना देंगे व् खुद बाद में सेक्युलर-सेकुलर खेलना शुरू करेंगे|

सरदार अजित सिंह, सर छोटूरम, सर फ़ज़्ले हुसैन, चौधरी चरण सिंह, सरदार भगत सिंह, सरदार प्रताप सिंह कैरों, बाबा टिकैत सेक्युलर किसान राजनीति के समानांतर संघी-फंडी तब भी दिखावे के कट्टर थे व् असल में सेक्युलर थे; यहाँ तक कि नेहरू, गाँधी की सेक्युलर राजनीति तक को कोसते आये हैं| यह तब भी सिंध व् बंगाल में मुस्लिम लीग के साथ मिलके सरकारें भी बनाते थे और आज भी इनके लिए हिन्दू-मुस्लिम DNA एक है| आज भी इनकी लाइन नहीं बदली|

परन्तु आपने बदल डाली|

मूढ़ या मूर्ख या रूढ़िवादी नहीं थे, हमारे आपके पुरखे जो इनको समाज, धर्म के नेतृत्व से दूर रखते थे; इनको धिक्कारते थे, नकारते थे| अब सोच लो, स्याणे थारे अक्षरी ज्ञान के तथाकथित अनपढ़ ग्रामीण पुरखे थे या थम अक्षरी ज्ञान के पढ़े लिखे शहरी तथाकथित मॉडर्न हो? पुरखों के बुद्धिबल व् विवेक को धारण कीजिये, इन फंडियों को ठिकाने लगाने का रास्ता उन्हीं के तौर-तरीकों में हैं|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Friday, 9 July 2021

क्या वाकई में ऋग्वेद मात्र 550 साल पुराना है?

हम अक्सर धार्मिक विद्वानों से सुनते आए हैं कि वेद, रामायण-महाभारत पुराण-उपनिषद आदि सबसे पुराने हैं| और नीचे सलंगित वीडियो ने कुछ सबूतों समेत दावा किया है कि सबसे पुराना ग्रंथ कहे जाने वाले ऋग्वेद की सबसे पुरानी पाण्डुलिपी यानि मैनुस्क्रिप्ट सिर्फ 550 साल पुरानी है|

पढ़कर एक बार तो लगा कि क्या मजाक है? परन्तु जब यह वीडियो देखी तो इसमें पेश सबूतों व् तथ्यों ने विचार में डाल दिया: https://www.youtube.com/watch?v=99oDx39N6Is
विचार में क्यों डाल दिया? क्योंकि इसमें बताया गया है कि
1) हिंदुस्तान में पांडुलिपियों के संग्रहण का सबसे पुराना संस्थान "The Bhandarkar Oriental Research Institute, Pune - https://www.bori.ac.in/ " है, जिसके पास 29510 पांडुलिपियां संग्रहित हैं और इसके पास सबसे पुरानी स्क्रिप्ट 1376 AD की है| ऋग्वेद की सबसे पुरानी मात्र 550 साल पुरानी है|
2) UNESCO Nomination form of Rigveda (http://www.unesco.org/.../nomination_forms/india_rigveda.pdf) फाइल में भी यही प्रमाणित है, जिसका पूरा एनालिसिस ऊपर की वीडियो किया गया है|
आप भी देखें इस वीडियो व् इन तथ्यों को व् समझें/समझाएं इस शोध बारे|

Thursday, 8 July 2021

साम (चाटुकारिता, प्रसंशा), दाम (लालच), भेद (भय, नफरत), दंड (वर्णवाद)!

फंडी तुम्हारे बीच साम (चाटुकारिता, प्रसंशा) के साथ उतरता है, तुम में दाम (लालच) पैदा करता है, इन दोनों से उसको तुम्हारे बीच रह के खेलने का मौका मिल जाता है व् वह अपने अल्टीमेट गोल भेद (भय, नफरत) व् दंड (वर्णवाद) पर इस तरह उतर आता है कि तुम्हारा सम्पूर्ण (कल्चर-सोशलिज्म-आध्यात्म) सर्वनाश होने तक तुम्हें सोधी ही नहीं आने देता| 


साम के वक्त वह इसमें सबसे ज्यादा अपनी औरतों का प्रयोग करता है, उनको तुम्हारे यहाँ नौकरानी तक बना के भेजता है| जो बड़े-ठाड्डे जमींदार रहे हैं उनके यहाँ असल तो आज भी अन्यथा एक-दो पीढ़ी पीछे जा के देखोगे तो इनकी लुगाइयां चूल्हा-चौका (रोटी-टूका-बर्तन-बुहारी) करती थी| 


दाम का मतलब यह मत मानों कि यह तुम्हें कोई रुपया-पैसा दे के रिझाते हैं; नहीं अपितु तुम्हें पदों-ओहदों-चाहतों-आदतों के लालच पलवाते हैं| 


भेद का मतलब तुम्हारे घरों-समाजों के आपसी मनमुटाव साम-दाम के रास्ते तुम्हारे भीतर घुस के देखते हैं और फिर निर्धारित करते हैं कि 35 बनाम 1 किस एरिया में तो जाट के खिलाफ किया जाए, किसमें ओबीसी यादव आदि के खिलाफ किया जाए, किसमें दलित के खिलाफ किया जाए व् कहाँ मुस्लिम या सिख के खिलाफ किया जाए| 


दंड, अब जो चल रहा है इंडिया में वह यह स्तर आया हुआ है| यानि वर्णवाद को लागू करने की आखिर परन्तु सबसे जोरदार कोशिश|   


इस कोशिश का विशेलषण: 


मोदी की कैबिनेट के नए विस्तार की परिपाटी में किसान आंदोलन के अगुआ वर्गों के नुमाइंदों (जैसे कि उत्तर-पश्चिमी भारत से कोई भी सिख,मुस्लिम, दलित, जाट, रोड़ व् गुज्जर नहीं लिया गया; ना लोकसभा के रास्ते से ना राजयसभा के रास्ते से) को सिरे से दरकिनार किया जाएगा यह लोगों को अंदेशा रहा होगा, मुझे तो पूर्ण विश्वास था| ख़ाक राजनीति नहीं ये इनकी, कूटनैतिक दबाव व् अन्य बिरादरियों को यह संदेश देने की कि हमारे तलवे चाटोगे व् मनमाने कानून मानोगे (चाहे उनको ढोने में तुम्हारी कमर टूट जाए) तो तुम हमारे अन्यथा 'तुम नहीं लागते हमारे तलाकी भी'| इनकी "हिन्दू एकता व् बराबरी" का नारा यही है कि, "वर्णवादी व्यवस्था के तहत हमारे आगे झुक के चलोगे तो तुम इस नारे में फिट हो अन्यथा शिट हो"| 


यह तो है इनका सोचना| आम समझदार किसान-मजदूर तर्कशीलता से सोचेगा तो इनकी हालत कुछ यूं पाएगा: 


बुद्धि की धार खत्म कर दी है किसान आंदोलन ने तथाकथित चाणक्यों की! और अगर फ़ोक्के नुमाइंदे कैबिनेट में शामिल कर लिए जाने से कोई यह सोचता हो कि उनके हक़-हलूल की रक्षा हो गई तो इससे बड़ा पिछड़ापन कुछ नहीं| और इस बात को हर वह व्यक्ति समझता है जो अपने हक-हलूल को लेकर संजीदा है, वह चाहे जिस किसी वर्ग-वर्ण से आता हो वह इनसे कतई प्रभावित नहीं होने वाला क्योंकि इनके दंड (वर्णवाद) की नीतियां क्या ओबीसी, क्या दलित, क्या किसान, क्या मजदूर, क्या छोटा व् मंझला व्यापारी सबकी जेब व् नौकरी दोनों पर डाका डाल रही हैं| 


किसान आंदोलन करने वाले वर्गों को ही कल के हीरो लिखा जाएगा, फिर चाहे उसमें किसान शामिल हो, मजदूर हो, दलित हो, ओबीसी हो या व्यापारी हो| क्योंकि अब यह लड़ाई फंडियों के लिए जहाँ सत्ता व् बड़े व्यापारियों का धंधा बचाने की है वहीँ यह बाकी सब के फसल-नस्ल-असल बचाने की लड़ाई है|    


जय यौद्धेय! - फूल मलिक 

Monday, 5 July 2021

और फंडियों ने फ्रांस-ब्राज़ील में उसी "भारत माता" को नंगा कर दिया, जिसके जप कर-कर इनके टेंटवे नहीं सूखते!

विशेष: यह एक केस स्टडी है, जो विधार्थियों के लिए जाननी बहुत जरूरी है; ताकि वह इन फंडियों के प्रपंचों से बच अपने करियर की ऊंचाइयों को सीधे-सीधे छुएं| 


फंडियों का हिन्दू एकता व् बराबरी और राष्ट्रवाद सिर्फ इतना है कि इससे यह मुस्लिम्स को मार्किट से हटा के, मुस्लिम की दुकानों को मिलने वाले ग्राहक फंडियों की दुकानों को मिल सकें| और ऐसा हो भी रहा है और भक्त टाइप यह समझे के जिंदगी व् दिमाग खपाए जा रहे हैं कि वह इनके दिखाए रास्ते पे चल के कोई बहुत ही बड़ी स्वर्ग हासिल करने वाले काम कर रहे हैं| वो कैसे, जरा विगत दो दिन में ही एक के बाद एक आई इन चार प्रमुख खबरों से पढ़िए:


1) मोहन भागवत, मुस्लिम सम्मेलन में बोलता है कि, "हिन्दू-मुस्लिम एक DNA हैं"| 

2) मुकेश अम्बानी अरब सम्मेलन में बोलता है कि, "उसका बाप उसको अरब का खून बताता था"| 

3) फ्रांस ने इंडिया के साथ हुई राफेल डील में "क्रिमिनल केस ओपन किया है"| 

4) ब्राज़ील में इंडिया के साथ हुई कोरोना दवाइयों की डील में भारी घूसखोरी की शंका के चलते वहां की पुलिस ने वहां के राष्ट्रपति पर केस दर्ज कर जांच शुरू की है"|


पहला पॉइंट इनके झूठे हिंदुत्व की पोल खोलता है| दशकों लगा के जो मुस्लिम नफरत की राजनीति करी, कांग्रेस-लेफ्ट-रालोद सब पार्टियों को सेक्युलर होने के लिए कोस-कोस के लोगों को अपने पाले में जोड़ा; और अब अंत में खुद ही मुस्लिम प्रेम के राग अलापने लगे? भक्त, इसी को कहते हैं| भक्त मानसिक गुलाम होता है, दिमागी तौर पर बंधुआ मजदूर को कहते हैं; क्योंकि एक की भी प्रतिक्रिया नहीं आई कि हम क्या फद्दू थे फिर जो इनके कहे पे इतने दंगे-फसाद किये? मुकेश अम्बानी को क्या इसलिए हिन्दू के नाम पे उसका सामान खरीद-खरीद सबसे अमीर बनाया कि वह एक दिन खुद को "अरब का खून" बताएगा? राष्ट्रवादियों की सरकार होते हुए अमेरिका-यूरोप में इनके इंटरनेशनल घोटालों पे देश की जलालत हो रही है, क्या यह कोई इनकी ही भाषा वाले देशद्रोही मुल्लाप्रेमी कांग्रेस, रालोद या लेफ्ट वालों की सरकार है; जो इतना प्रगाढ़ राष्ट्रप्रेम होते हुए भी इन्होनें यह घोटाले कर दिए वह भी इंटरनेशनल लेवल? क्या एक बार भी झिझक नहीं हुई कि हम तो गूढ़ राष्ट्रप्रेमी हैं, एक भी गलत कदम से हमारे राष्ट्र की किरकिरी हुई तो क्या जवाब देंगे उस "भारत माता" को जिसके घड़ियाली जप करते-करते हमारे टेंटवे नहीं सूखते? भक्त पता नहीं इनको कौनसे आसमान से उतरे मानते हैं और यह भक्तों को चिपकाने वाली "भारत माता" के ही चीथड़े उतार आते हैं विदेशों में? क्या आरएसएस को संज्ञान नहीं था रफाल डील या ब्राजील वैक्सीन डील का? सब था, परन्तु जो वास्तव में नहीं था, वह था राष्ट्रप्रेम, धर्मप्रेम| 


समझ लीजिए इन चारों उदाहरणों से व् इनको सपोर्ट करने की धर्मप्रेम व् राष्ट्रप्रेम के अलावा कोई और वजहें ढूंढिए| क्योंकि ऊपर की चारों खबरें चीख के बता रही हैं कि इनके मुख से निकली "धर्मप्रेम व् राष्ट्रप्रेम" की बातें मात्र और मात्र मार्किट व् कस्टमर्स हथियाने के षड्यंत्र होते हैं| मुस्लिमों से नफरत इसलिए फैलवाई जाती है ताकि भक्त टाइप अल्पज्ञानी केटेगरी मुस्लिमों की दुकानों से सामान खरीदने की बजाए इनसे खरीदे| वरना जरा बताओ, इनके चरित्र इन चारों खबरों के बिल्कुल विपरीत होने का क्या तुक है? अगर भक्तों की भांति, मुस्लिम इनकी चिकनी-चुपड़ी बातों में आएंगे तो फिर यह वाकई में उसी के लायक हैं जो इन पर ही विश्वास करने वाले भक्तों के साथ कर रहे हैं|  


और यही लड़ाई फंडियों की जाट जैसे समाज के साथ है, जिसके साथ यह 35 बनाम 1 करते हैं| इस लड़ाई में इनको उदारवाद व् विश्व की सबसे पुराणी सोशल जूरी सिस्टम सर्वखाप को खत्म करना है| 


विशेष: यह पोस्ट किसी से नफरत के चलते या किसी को एक्सपोज करने के चलते नहीं लिखी गई है; अपितु धर्मप्रेम-राष्ट्रप्रेम के नाम पर अनैतिक तरीकों से आपके धंधे चौपट कर 2-4% लोगों को कैसे कब्जवाने हैं यह उसके तौर-तरीके होते हैं| आप हिन्दू-मुस्लिम, जाट बनाम नॉन-जाट में उलझे रहो, बस; इससे ही बन जाएगा इंडिया विश्वगुरु| 


जय यौद्धेय! - फूल मलिक 


Saturday, 3 July 2021

जो चीज फंडी के काबू की नहीं होती, वह उसको स्थितप्रज्ञ पाळी की तरह बाई-पास के रास्ते से नियंत्रित करता है!

विशेष: इस लेख को एक Case Study की तरह पढ़ें| पढ़िए कि पंजाब के जून 1984, हरयाणा के फरवरी 2016 व् दिल्ली में चल रहे किसान आंदोलन में क्या समानता है व् किस फ्रंट पर किसान आंदोलन इस लेख के लिखे जाने के वक्त तक फंडी को मुद्धे-मुंह मार रहा है| 


फंडी को निर्धारित है कि उसको खुद को जमाए रखने या जमाने के लिए उदारवाद नहीं चाहिए, इसलिए वह उदारवादी ताकतों को खत्म करने हेतु बाई-पास के रास्ते ले के लड़ाई लड़ता है| कुछ इस तरह से कि जैसे गाय-भैंसों का स्थितप्रज्ञ पाळी गाय-भैंसों के भागते झुंड को रोकने के लिए उनके पीछे दौड़ने की बजाए, भागते झुंड से थोड़ी दूरी रखते हुए, उनके आगे निकल के, आगे आ के रोकता है| इसका अर्थ यह कदापि नहीं है कि उदारवाद आधारित इंसान स्थितप्रज्ञ पाळी की तरह काम नहीं करना जानता; जानता होता है बशर्ते उसको दुश्मन सही से पहचाना जाए| तीन उदाहरणों से समझते हैं:   


1) 1984 के दंगे, तथाकथित आतंकवाद व् खालिस्तान: संत भिंडरावाला जी ने "आनंदपुर साहिब रिजोलुशन" लागू करवाने हेतु मुहीम शुरू की तो फंडी को पहले से ही निर्धारित था कि यह "सेण्टर की बजाए राज्यों को ज्यादा राइट्स देने वाला अमेरिका-यूरोप के उदारवाद पर आधारित रिजोलुशन" इंडिया में स्वीकृत होने दिया तो उनकी "वर्णवाद आधारित अलगाववाद वाली सामंती सोच" को फिर कोई नहीं पूछेगा| इसलिए संत भिंडरावाला को रोकने हेतु, इन्होनें जगजीत सिंह चौहान के जरिए "खालिस्तान" की स्थापना करवा कर, खालिस्तान का हवाई मुद्दा इस युद्धस्तर पर शुरू करवाया कि जनता को संदेश गया जैसे संत भिंडरावाला ही खालिस्तान मांग रहे हों| यानि स्थितप्रज्ञ पाळी की तरह असल मुद्दा ही खत्म करवा दिया व् एक संत जैसे बंदे व् उदारवाद पर आधारित पूरे सिख धर्म को ही कुछ सालों के लिए तो खुड्डे-लाइन ही लगा दिया था| अन्यथा खोजने पर चलता है कि संत भिंडरावाला के ना किसी भाषण में, ना किसी लेखन में, ना किसी कोर्ट-कचहरी-थाने में; कहीं ऐसा जिक्र नहीं है कि उन्होंने "आनंदपुर साहिब रिजोलुशन" के सिवाए कहीं खालिस्तान की मांग उठाई हो| यह मांग शुद्ध रूप से फंडी के खड़े किये मोहरे जगजीत सिंह चौहान व् ग्रुप की थी| 


2) "जाट (आर्य-सिख-मुस्लिम-बिश्नोई) -रोड़-त्यागी आरक्षण मुहीम" व् फरवरी 2016 के हरयाणा दंगे: उदारवाद की नजर से सबको बराबर तोलना इसको बोलते हैं कि सन 2012 के इर्दगिर्द हरयाणा के तब के मुख्यमंत्री चौधरी भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने जनरल केटेगरी के गरीब तबके को आरक्षण देने हेतु उसके दो ग्रुप बना दिए, एक "बनिया, गैर-त्यागी-ब्राह्मण, अरोड़ा-खत्री, राजपूत" व् एक में "जाट (आर्य-सिख-मुस्लिम-बिश्नोई), रोड़, त्यागी ब्राह्मण" और दोनों को 10-10% आरक्षण दे दिया| परन्तु पक्षपाती फंडियों की सरकार आते ही हूबहू पैमानों पर बने इस आरक्षण फार्मूला की पहली केटेगरी का आरक्षण तो आज भी जारी है परन्तु दूसरी केटेगरी का खत्म कर दिया या करवा दिया| जिसको ले कर हरयाणा में आरक्षण के खत्म हो चुके मुद्दे का जिन्न फिर से बाहर निकलता है| क्योंकि फंडी को निर्धारित है कि उदारवाद को आगे या बराबर नहीं आने देना है, (वजह वही ऐसा होने दिया तो उनकी "वर्णवाद आधारित अलगाववाद वाली सामंती सोच" को फिर कोई नहीं पूछेगा) इसलिए जब यह आरक्षण मुद्दा हरयाणा में फिर से उठा तो फंडियों ने वही स्थितप्रज्ञ पाळी वाला रास्ता लिया व् जैसे 1984 में संत भिंडरावाला के सामने जगजीत सिंह चौहान व् ग्रुप को खड़ा किया था, ऐसे ही हरयाणा में राजकुमार सैनी, रोशनलाल आर्य, मनीष ग्रोवर, अश्वनी चोपड़ा समेत खुद मनोहरलाल खटटर "कंधे से नीचे मजबूत, ऊपर कमजोर" सरीखे बयानों के साथ उतार दिए गए| 10 दिन से रोड जाम किये बैठे जाट (आर्य-सिख-मुस्लिम-बिश्नोई) -रोड़-त्यागी समेत समाज के किसी भी हिस्से से रोडसाइड खड़े किसी भी ट्रक-कार वाले से एक सुई तक छीनने की भी कोई घटना नहीं हुई तो संघी गैंग के 400 के करीब हरयाणा से बाहर वाले नंबरों वाले गुंडे व् राजकुमार सैनी द्वारा बनाई गई तथाकथित "ओबीसी ब्रिगेड" ने उत्पात मचाना शुरू कर दिया व् शांतिपूर्ण तरीके से चल रहे प्रदर्शन को ही derail कर दिया| आंदोलन जहाँ रोड़ व् त्यागियों के लिए भी अंत में सारी किरकिरी व् बदनामी फूटी जाट समाज के सर| यानि ना फंडी आगे आया ना फ्रंट लिया परन्तु इस आवाज की दोबारा उठने की संभावना रखने वाले जाट समाज के मत्थे ही भूंड जड़वा दी| 


3) तीन काले कृषि कानून व् 2020-21 का किसान आंदोलन: लगता है कि जून 1984 व् फरवरी 2016 की सीखें व् अनुभव अपना काम कर रहे हैं| तभी इस आंदोलन का भी 1984 व् 2016 जैसा हाल करने की फंडी की दर्जनों कोशिशें मुद्धे-मुंह गिरती आ रही हैं| क्योंकि इस तीसरे केस के आप सभी साक्षी हैं तो इसमें फंडी के खड़े किये जगजीत सिंह, राजकुमार, रोशनलाल, मनीष, अश्विन व् मनोहरलाल कौन-कौन हैं; आप भलीभांति पकड़ पा रहे होंगे| बस इनको ऐसे ही पकड़ के defuse करने हेतु सरजोड़ के चलते रहिए, तो अबकी बार फंडी के सामंतवाद पर आपका उदारवाद अवश्यम्भावी जीतेगा| 


जय यौद्धेय! - फूल मलिक      


Friday, 18 June 2021

जब चौधरी चरण सिंह को 10 मिनट भाषण देते देख ही कहा दिया कि यह लड़का एक दिन भारत का प्रीमियर (प्रधानमंत्री) बनेगा: दीनबन्धु सर चौधरी छोटूराम

 जब चौधरी चरण सिंह को 10 मिनट भाषण देते देख ही कहा दिया कि यह लड़का एक दिन भारत का प्रीमियर (प्रधानमंत्री) बनेगा: दीनबन्धु सर चौधरी छोटूराम


सर छोटूराम की बेचारा जमींदार व् ठग बाजार की सैर पुस्तकें पढ़ के बनाए थे चौधरी चरण सिंह ने मंडी कानून व् कर्जा कानून|
बात 1929 की है जब पंजाब के प्रतिष्ठित किसान नेता और जमींदारा पार्टी के संस्थापक दीनबन्धु सर चौधरी छोटूराम लाहौर से आगरा जा रहे थे। मथुरा के निकट से जब वह गुजरे तो वहां एक छोटी सी नुक्कड़ सभा दिखाई दी जिसमे अधिकतर किसान दिखाई दे रहे थे और एक युवा उन्हें सम्बोधित कर रहा था। उन्होंने गाड़ी रुकवा ली और दूर से ही उनका वक्तव्य सुनने लगे। उस समय उनके निजी डॉक्टर नंदराम देशवाल उनके साथ थे।
दस मिनट बाद उन्होंने अपने डॉ नन्दलाल देशवाल को कहा एक दिन यह लड़का भारत का प्रधानमंत्री बनेगा। पर यह जिन लोगों के बीच घिरा हुआ है वो इनको ज्यादा दिन सत्ता में नही रहने देंगे, इसके कन्धे पर पैर रखकर वो लोग बादशाह बनेंगे। अतः इसे अभी से सावधान रहने की जरूरत है।
इसके हर बोल में किसान का दर्द छलकता है पर मुझे एक बात से आपत्ति है यह जमींदारी के नाश का जो प्रण लेता है वह गलत है।
क्योंकि जिन राज्यो में रियासतों के राज है वहां जमींदार क्रूर व सत्ता के दलाल है पर हमारे पंजाब में रियासत नही जनता का राज है यहां जमींदारा वर्ग तो खुद किसान है।
ऐसे में हम इन छोटे छोटे जमींदारों अर्थात किसानों के नाश की कामना नहीं कर सकते। उन्हें बताये कि यहां जमींदारा उन्मूलन की नहीं साहूकार उन्मूलन की आवश्यकता है।
क्योंकि साहूकार शुरुवात में कर्ज़ तो 100 रुपये देता है पर जब भी किसान उसका ब्याज देने जाता है तो वह 100 के पीछे एक 0 जीरो और लिखकर उसे 1000 कर देता है।
अनपढ़ किसान की सात पीढ़ी तक यह जीरो बढ़कर 100000000 हो जाती है। न कर्ज़ चुकता है ना उसका मूल। अत आप जाए और उन्हें मेरी यह बात बतला देवे।
अब डॉ नन्दराम देशवाल ने यही किया और चौधरी चरण सिंह को सब बात बतला दी और दीनबन्धु द्वारा लिखे गए लेख #बेचारा_जमींदार और #ठगी_के_बाजार_की_सैर वाली किताब सौंपते हुए कहा यह पढ़े और मरते दम तक किसान के हित की बात पर ही अड़े रहना।
अब युवक चरण सिंह सन् 1930 में गोपीनाथ ‘अमन’ के साथ नमक सत्याग्रह में शामिल हो गये और एक बड़े समुदाय का नेतृत्व करते हुये पकड़े गये। यह आपकी प्रथम जेल यात्रा थी जिसमें 6 माह की सजा हुई।
जेल में रहकर आपने सर चौधरी छोटूराम के जाट गजट के उर्दू संस्करण का हिंदी व अंग्रेज़ी में अनुवाद करके “#मंडी_बिल” व “#कर्जा_कानून” नामक पुस्तकें लिखीं। जेल से बाहर आने पर “भारत की गरीबी व उसका निराकरण” नामक बहुचर्चित पुस्तक लिखी। उत्तरप्रदेश में “जमींदारी नाशन कानून” जो लागू हुये, इन्हीं की देन है। जेल से छूटते ही आप प्रथम पंजाब के प्रसिद्ध माल व कृषि मन्त्री चौ० सर छोटूराम के सम्पर्क में आये, जिन्होंने इन पुस्तकों के अध्ययन व चौधरी चरणसिंह जी से विचार मंथन किया । 1. दीनबन्धु सर चौधरी छोटूराम ने अपने मंत्रित्वकाल में #कर्जा_कानून से कर्जा माफी करके 8.32 लाख किसानों को फिर से नया जीवन दिया। 2. #साहूकार_पंजीकरण एक्ट लागू करके नकली डिग्री खत्म की अब साहूकार न जमीन गिरवी रख सकता था न घर व पशु छीन सकता था, 3. #रहन_भूमि_वापसी कानून लागू करके 8 लाख किसानों की 33 लाख एकड़ जमीन साहूकार से छीनकर वापस किसानों को दी थी 4. #कृषि_उत्पादन_एक्ट 1938 कानून किसान जो अपने खेत मे बोता है उसका वह मालिक है उसकी कीमत किसान तय करेगा 5. #मंडी_बिल 1939 मंडी कानून किसान को दूसरी मंडियों के बन्द होने या भाव गिरने के समाचार देकर उसका माल नही लूट सकते। आदि लागू किये थे। 6. #हरिजन_मजदूर एक्ट 1938 लागू करके पहली बार दलित युवाओ को सरकारी नौकरी में मान्यता दी। उससे पहले किसी दलित को सरकारी नौकरी की इजाजत नही थी। 7. #हरिजन_सम्पति एक्ट 1940 लागू करके दलितों को प्रॉपर्टी शिक्षा और आर्थिक पूंजी रखने का अधिकार दिया जिसके लिए दलित 5 हजार साल (मनु स्मृति) के कारण से तरस रहे थे। 8. #अवकाश_एक्ट: 1939 इसके जरिये मजदूरों व कारीगरों को हफ्ते में रविवार को पूरी छुट्टी मिली व सुबह दस से शाम 5 बजे तक 8 घण्टे की नौकरी का समय निर्धारित हुआ।
सर चौधरी छोटूराम ने उन्हें कहा जिस तरह जंगल मे बाघ अकेला राजा होता है उसी तरह भारतवर्ष में यदि संगठित हो तो किसान अकेला राजा होगा। यह संयुक्त पंजाब में हमने सिद्ध कर दिखाया है।
जहां #धर्म (हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई बिश्नोई आर्य समाजी #क्षेत्र (हरियाणा पंजाब हिमाचल) #भाषा (हरियाणवी पंजाबी उर्दू पख्तून पहाड़ी) से इतर हर किसान एक झंडे तले एकजुट खड़ा है। अतः आप किसान के अधिकार की वकालत करे। सर चौधरी छोटूराम ने आगे कहा हम #किसान के बालक है सदियों से #पगड़ी हमारे सिर पर हमारी इज्जत व वैभव बनकर सज रही है। हम हिन्दू है सिख या मुस्लिम पर हमारी पगड़ी हमारे लिए जान से अधिक महत्व रखती है। नोट: अफसोस है कि इन्ही किसान व मजदूर हितैषी कानूनों को वर्तमान #मोदी मन्त्रिमण्डल ने रदद् करके दुबारा सन 1936 के कानून लागू कर दिए जो अंग्रेज़ो ने अपने एजेंट साहूकारों के लिए बनवाये थे।
हम नपुंसक की तरह ताली बजाने को मजबूर है क्योंकि जिस कौम का एक #खसम नही रहता उसके 70 खसम अपने आप बन जाते है। जैसे आज हमारी हालात है।
सॉर्स: #जाट_गजट_पत्रिका लेखक: चौधरी रणधीर देशवाल #जिला_रोहतक_हरियाणा (संयुक्त #पंजाब)

उदारवादी जमींदारी व् सामंती जमींदारी में 18 अंतर!

उदारवादी जमींदारी:

1. वर्किंग कल्चर: सीरी-साझी!

2. काम में सहयोग: दोनों एक साथ खेत कमाते हैं|

3. साझी को सुविधाएं: तय सालाना/मासिक पगार, 3 वक्त का खाना, सामर्थ्यानुसार कपड़ा-लत्ता, अनाज-तूड़ी-चारा-बालन-ईंधन का सहारा, भीड़ पड़ी में ब्याह-वाणे में आर्थिक सहयोग|

4. बंधुआ मजदूरी: नगण्य ! 

5. साझी को संबोधन: गाम के खेड़े के नेग से| 

6. वर्णवाद-छूत-अछूत: वैधानिक तौर पर वर्जित हैं, वर्णवादी प्रभाव के अपवाद मिलते हैं|   

7. वैश्विक व्यापकता: Google जैसी कंपनी में "सीरी-साझी" वर्किंग कल्चर है|

8. आर्थिक कल्चर: नैतिक पूंजीवाद (यानि ‘कमाओ व् कमाने दो’ यानि ‘अर्थ + मानवता’), बार्टर सिस्टम प्रणाली, मुद्रा प्रणाली|

9. फैलाव: मुख्यत: हरयाणा-पंजाब-दिल्ली-वेस्ट यूपी, दक्षिणी उत्तराखंड व् उत्तरी राजस्थान यानि खापलैंड व् मिसललैंड|

10. आध्यात्मिक कल्चर का आधार स्तम्भ: युगों पुराना मूर्ती-पूजा रहित, परमात्मा के एकरूप को मानने वाला, धोक-ज्योत में औरत को 100% प्रतिनिधित्व देने वाला, वर्ण-जाति के भेदभाव से रहित, अवतारवाद को नहीं मानने वाला, ऊंच-नीच के बर्ताव से रहित, गाम में सबसे-पहले आ के बसने वाले पुरखों द्वारा स्थापित "दादा नगर खेड़े / बड़े बीर / दादा भैये / बाबा भूमिया / जठेरा / गाम खेड़े" व् लगभग इन्हीं सिद्धांतों के आधार बना आर्य-समाज| 

11. औरत के प्रति सवेंदना: विधवा विवाह, सतीप्रथा-देवदासी कल्चर की मान्यता ना होना, खेड़े के गौत का लिंग-समानता के नियमानुसार देहल-धाणी-बेटी का गौत भी औलाद का मुख्य गौत हो सकना, 36 बिरादरी की बेटी सबकी बेटी, एक गौत के खेड़े में गाम-गौत-गुहांड का नियम| 

12. सोशल इंजीनियरिंग कल्चर: सर्वखाप (खाप/पाल) / मिसल|

13. सोशल सिक्योरिटी, जस्टिस व् समानता का सिस्टम: निशुल्क व् वक्त पर सामाजिक न्याय की उपलब्धता| 

14. सामूहिक मानवता पालन: गाम-खेड़े में कोई भूखा-नंगा नहीं सोना चाहिए का मानवीय सिद्धांत|

15. मिल्ट्री कल्चर: हर गाम नियम से अखाड़े पाए जाते हैं, जिनको पुलिस-फ़ौज नरसरी भी कहा जाता है, खाप लड़ाइयों में पहलवानी दस्ते यहीं से तैयार होते आए हैं|

16. सामूहिक जीवन: सामुदायिक सभा व् सामूहिक कार्यक्रमों हेतु छोटे किलानुमी परस/चौपाल/चुपाड़: खापलैंड व् मिसललैंड के हर गाम में कई-कई| आधुनिक RWA, ग्रामीण बगड़ प्रणाली का कॉपी रूप हैं| 

17. अमीर-गरीब में आर्थिक हैसियत का अंतर्: पूरे भारत में न्यूनतम|

18. वर्णवाद-नश्लवादी अलगाववाद की प्रकाष्ठा: कभी किसी स्थानीय मजदूर को मात्र दिहाड़ी हेतु खापलैंड छोड़ कर कहीं और जा के कमाने का इतिहास नहीं|


सामंती जमींदारी:

1. वर्किंग कल्चर: नौकर-मालिक!

2. काम में सहयोग: नौकर कमाता, मालिक खेत के किनारे खड़ा हो काम करवाता है|

3. नौकर को सुविधाएं: मासिक पगार!

4. बंधुआ मजदूरी: बहुतायत!

5. नौकर को संबोधन: नाम से जैसे कि रामू या काका ! 

6. वर्णवाद-छूत-अछूत: इसको श्रेष्ठ-निम्न का आधार माना जाता है!

7. वैश्विक व्यापकता: नामालूम!

8. आर्थिक कल्चर: अनैतिक पूंजीवाद (यानि ‘औरों की कमाई पे धन जोड़ो व् दूसरे की कमाई पर नियंत्रण रखो’ यानि ‘सिर्फ अर्थ’), मुख्यत: मुद्रा प्रणाली|

9. फैलाव: मुख्यत: पूर्वोत्तर, मध्य व् दक्षिण-पश्चिम भारत|

10. आध्यात्मिक कल्चर का आधार स्तम्भ: वर्णवाद आधारित, मूर्तिपूजा करने वाली, धोक-ज्योत में मर्द का वर्चस्व रखना, छूत-अछूत, कुलीन-मलिन का अलगाववाद, अवतारवाद-चमत्कार को मानना|

11. औरत के प्रति सवेंदना: विधवा विवाह की जगह विधवा-आश्रम होना, सतीप्रथा होना,देवदासी कल्चर की मान्यता, हर सूरत में सिर्फ मर्द का गौत ही औलाद का मुख्य होगा, गौत-की-गौत व् चचेरे-ममेरे भाई-बहनों में ब्याह-शादी पाया जाना|

12. सोशल इंजीनियरिंग कल्चर: स्वर्ण-दलित व् 4 वर्ण आधारित|  

13. सोशल सिक्योरिटी, जस्टिस व् समानता का सिस्टम: स्वर्ण, शूद्र का धन बलात हर सकता है जैसी मानसिकता पाया जाना| 

14. सामूहिक मानवता पालन: सबसे ज्यादा गरीबी के इलाके|

15. मिल्ट्री कल्चर: इक्कादुक्का!

16. सामूहिक जीवन: खापलैंड व् मिसललैंड से बाहर के भारत में परस/चौपाल/चुपाड़ नहीं होती|

17. अमीर-गरीब में आर्थिक हैसियत का अंतर्: पूरे भारत में अधिकतम!

18. वर्णवाद-नश्लवादी अलगाववाद की प्रकाष्ठा: स्थानीय मजदूर को मात्र दिहाड़ी हेतु खापलैंड के क्षेत्रों में बहुतायत में जाना पड़ता है|


उद्घोषणा: यहाँ जो लिखा गया है वह सैद्धांतिक तौर पर है, आज के परिवेश में व्यवहारिक तौर पर तस्वीर क्षेत्र-परिवेश के हिसाब से भिन्न भी हो सकती है इसलिए लेखक किसी भी प्रकार के अपवाद अथवा व्यापकता से इंकार नहीं करता| परन्तु "चंदन के पेड़ पर सैंकड़ों भुजंग लिपटने से जैसे चंदन उसकी शीतलता नहीं छोड़ता" ठीक वैसे ही यहाँ विदित सिद्धांतों की व्यवहारिकता की महत्ता है| 


लेखक: फूल कुमार मलिक - जय यौद्धेय!



Wednesday, 16 June 2021

महिला शिक्षा-सुधारक महर्षि रत्नदेव मलिक!

 अभी विगत 14 जून को स्वामी रत्नदेव का जन्मदिन था; सन 2012 में उनकी याद में लिखी मेरी यह हरयाणवी कविता मिल गई:

 

"महिला शिक्षा-सुधारक महर्षि रत्नदेव मलिक"


याणेपन का ध्यानी पुरुष, अनुशासित-स्वाभिमानी पुरुष,

लिए जोग-योग की शक्ति, अवतारया न्यडाणे की धरती|


१) बाबू नै रमाणा चाहया, पर रंग और चढ़ ना पाया,

जातक, जन्नत की जीत म, जोग लिखाएं आया नसीब म|

ज्यूँ-ज्यूँ कद चढता आया, सांसारिक मोह छंटता आया,

बैठ बणां तड़के की पहरी, ध्यान शक्ति तैं सिद्धि सोहरी||


२) घर आळयां नैं अरमान संजोये, सुथरी बहु जग में टोहे,

पर भगत रत्न की राह न्यारी, ग्रहस्थी बणी दुनियां सारी|

ल्य्कड़ पड़या ज्ञान की सगत म, लिए नारी-शिक्षा की अलख जगत म,

खरळ की धरती पै जा डेरा लाया, गाम-गुवांड कै मन-भाया|


३) तीन दशक तक अलख जगाया, नारी जागरूक करूँ यो प्रणायां,

बांगर के खरळ अर कुम्भाखेड़ा को नारी-शिक्षा के धाम बनाया|

चलते-चलते इस राह पै एक दयन, न्यडाणा नगरी दई दखाई,

मेरे लाल नै दुनिया सुधारी, फेरे मेरे तैं-ए-क्यूँ सुरती हटाई?


४) सिद्ध-जोग सिद्ध-पुरुष बण, महर्षि रतनदेव दुनियां म छाया,

दादा नगर खेड़े का कर्जा पुगावण, भौड़ कें लाल बड़े बीर की नगरी आया|

न्यडाणा नैं सुधारूं, नशा-खोरी नै जड़ तैं पाडूँ, गाम को न्यूं फ़रमाया,

बणा कें दस्ता गाभरूओं का, पहरा बिठा दिया नशा-दान्नों का||


५) गैल अभियान छेड़या नारी-शिक्षा का, गुरुकुल बनाऊं उत्तम-दीक्षा का,

गाम-खेड़ा भी गैल कूद पड़या, अपणे लाल की ताल-पै-दे-ताल मल्या|

गाम के जमींदारां नैं धन-दान दिए, कन्या-गुरुकुल की नीम म्ह बढ़-चढ़ कें दिए,

आर्य-समाज के प्रचार हुए, दिन-रात जगे के ठाण हुए||


६) शिक्षा का प्रचार हुआ, चूची-बच्चा सरोकार हुया, 

अगड़-बगड़ तैं ले शोर सरकारों लग गया|

एक रूप दादा रत्नदेव आपका, कई जूण सुधार गया,

गा तेरी गाथा हो दादा, पेरिस आळा फुल्ले-भगत भी पार हुया||


लेख्क्क: फूल कुंवार म्यलक (फूल मलिक)

Tuesday, 15 June 2021

"बिना हिसाब व् जवाबदेही के दान देना, करप्शन की सबसे बड़ी जड़ होती है"!

यही वजह है कि "दादा खेड़ा वेलफेयर ट्रस्ट - निडाना, जिला जिंद (यह जिंद है जींद नहीं; "जिंद ले गया दिल का जानी" वाले गाने वाला जिंद; जिंद का अर्थ होता है जान) के तहत चलने वाली "दादा खेड़ा लाइब्रेरी - निडाना" हर तिमाही इसमें आए दान-चंदे की एक-एक पाई की रिपोर्ट इसके शुरू किये जाने के दिन से पब्लिक करती आई है| कोरोना काल के चलते अभी लाइब्रेरी बंद चल रही है, अन्यथा कोरोना से पहले तक व् दोबारा खुलने के बाद भी यह विधान लाइब्रेरी धुर दिन तक निभाएगी| और हमें गर्व है कि इस सिस्टम के तहत चलने वाले विरले ही सिस्टम होंगे समाज में, जिसमें कि एक हमारी टीम ने मेरे पैतृक गाम में स्थापित किया हुआ है मार्च 2018 से | 


इसलिए धर्म करो या समाज सेवा; अपनों की कमाई अपने हाथों से पूरी जवाबदेही से जहाँ-जिनसे जिन उम्मीदों-अपेक्षाओं के साथ लगा-लगवा सको सिर्फ वहीँ दान दो| अन्यथा बिना नियंत्रण व् बिना निगरानी का दान घपले-घोटालों व् करप्शन की जड़ बनता है चाहे वह कितने ही बड़े धर्म-भगवान के नाम पर उगाहा-उठवाया गया हो| पैसे के मामले में जवाबदेही से बड़ा दूसरा कोई धर्म नहीं| विचारणीय है कि ऐसे लोग भगवान के नाम पे लिया डकारने से नहीं हिचकते; तो तुम, तुम्हारी अपेक्षा या तुम्हारी काण (शर्म) लागी उनकी छोटी साली| देख रहे हो ना 2 करोड़ की जमीन 16.5 करोड़ में खरीदी तो 14.5 करोड़ किधर गए होंगे? तुम्हारी चुप्पी, सूखी भावनाओं या मायावी भय-लालचों में आ के किये दान; इन लोगों को इतना ताकतवर भी बना देती है कि तुम सिर्फ आलोचना करने मात्र के पात्र रह जाते हो; इनका इलाज रत्ती भी नहीं  कर सकते; क्योंकि सर पे भी तुम ही धरते हो रिफल के| और फिर उम्मीद यह भी कि हमें करप्शन रहित छूत-अछूत रहित समाज व् सिस्टम भी चाहिए| बिल्कुल मिलेगा ऐसा समाज व् सिस्टम परन्तु अगर उतनी ही ललक से करप्शन व् छूत-अछूत रहित सिस्टम्स खड़े करोगे या उनका हिस्सा बनोगे| 


दूर रहो ऐसे लोगों व् सोच से जो यह कह के दान लेते या करवाते हैं कि, "दान का हिसाब नहीं होता"| ऐसे लोगों को बढ़ावा देना कभी भी आपको करप्शन व् छुआ-छूत रहित समाज व् सिस्टम नहीं बनाने देगा| 


जय यौद्धेय! - फूल मलिक 

भगवान के भक्त बनने से अच्छा उसके लुटेरे बनो, अन्यथा?

भगवान के भक्त बनने से अच्छा उसके लुटेरे बनो, अन्यथा?:


पिछली सरकारों में सिर्फ चोर थे, सरकारी सिस्टम में घपले करते थे; कम-से-कम पब्लिक का पर्दा रखते थे इतनी शर्म फिर भी पालते थे| 


यह सरकार आई, चोरों की जगह डकैत आए; तुम्हारी यानि पब्लिक प्रॉपर्टी को तुम्हारी नाक के नीचे ओने-पौने दामों पे प्राइवेट को बेच रहे, माल्या-चौकसी-मोदी जैसे लॉन-डिफॉलटर्स को दिन-दहाड़े बॉर्डर्स पार करवा रहे| आगे की तरक्की गज़ब भाई, भक्तों ने गली-गली धक्के खा-खा जो 5-5 रूपये चंदा जुटाया था, उससे बनने वाले मंदिर के लिए जमीन खरीदने के नाम पर 2 करोड़ की जमीन 10 मिनट में 16.5 करोड़ की बना के मुल्ला अंसारी (जिनसे नफरत की डोज पे भक्त बनाए जाते हैं) के साथ मिलके 14.5 करोड़ का गबन कर गए| ज्यादा नहीं तो 50% तो मुल्ला जी को भी मिला ही होगा? और देख लेना, जिस पाप-पुण्य के चक्कर में फंसा के तुमसे दान करवाते हैं, वह पाप-पुण्य बाल भी बांका नहीं कर पाएगा इनका; बल्कि चम्पत मिश्रा को बचाया और जाएगा|  


क्यों पड़े हो इनके चक्करों में, तुम्हारे पुरखे पागल नहीं थे जो यह कहते थे कि, "इतने 80 फुट ऊँचा खम्बा खड़ा करो, इतने 80 फुट नीचे धरती में उतार लो; माणस-जी-जंतु को पीने को पानी तो हो जाएगा"| धर्म के नाम का ढाहरा तो इतना भतेरा जितना पुरखे "दादा नगर खेड़ों" के रूप बता गए| इससे ज्यादा के फंडों से तो ढोंगी-पाखंडी, सबसे गैर-जिम्मेदार लोगों को कोढ़ की तरह पालना कहलाता है| बताओ भगवान के 14.5 करोड़ का गबन करने वाला भगवान से न डरा, वह डरेगा तुमसे; मानेगा तुम्हारी कोई काण? 


और सबसे बुरा तरीका तो आर्य-समाजियों को बहकाने का चलाया हुआ है फंडियों ने| आर्य-समाज ने जिनको अवतार माना ही नहीं,  उनकी कोई निश्चित तारिख-काल नहीं मिलता; इनको किस्सों में दर्जनों तुम्हारे समाज-मान-मर्यादा-रिवाजों के विपरीत बातें हैं; मात्र राजा माना वह भी अगर हुए थे तो उनके भी मंदिर बनाने लगे हुए हैं? तो फिर राजाओं के ही मंदिर बनवाने हैं तो महाराजा हर्षवर्धन, महाराजा सूरजमल, महाराजा रणजीत सिंह, राजा नाहर सिंह के ही बनवा लो ना? या फिर दादा हरवीर सिंह गुलिया बादली वाले, दादा चौधरी गॉड गोकुला जी  सिनसिनवार, दादा चौधरी जाटवान जी गठवाला, दादीराणी समाकौर गठवाली, दादीराणी भागीरथी कौर, दादीराणी माई भागो आदि-आदि सर्वखाप यौद्धेयों के "खापद्वारे" बनवा लो? ये कम-से-कम साबित तौर पर थारे अपने खून-खूम के तो हैं; उनकी अपेक्षा जिनपे तुम समेत कई जातियां उनके अपने होने का क्लेम धरती हैं|  


फंडियों को अगर अपना धन व् दिमाग दोगे तो सिवाए इसके दोहन के जो एक ओंस भी बढ़ोतरी हेतु कुछ पा लो तो| यह राम के नाम पे घपले-घोटाले करने से नहीं डरते, तुमसे डरेंगे, रखेंगे तुम्हारी काण? 


जिस देश-समाज में धर्म में ही करप्शन हो, उसके सरकारी व् कर्मचारी तंत्र से ले आम इंसान से क्या उम्मीद करोगे? कहाँ से लाओगे वह लोग, जिनसे उम्मीद करते हो कि वह एक करप्शन रहित, छूत-अछूत रहित समाज बना के दें? लाजिमी है कि इनसे पिंड छुटाये रखे बिना, यह सब सम्भव ही नहीं|  


जय यौद्धेय! - फूल मलिक 

Tuesday, 8 June 2021

जाट जैसे समाज को दोहरे बुड़के मार-मार खाता फंडी!

हमने इस बात के लाइव उदाहरण देखे हैं कि फंडी, एक तरफ जाट से दान हासिल करने के चक्कर में उसको चने-के-झाड़ पर चढ़ाये रखने टाइप में 70 कसीदे उसकी शान में घड़ता है और दूसरी तरफ वही फंडी, दलित-ओबीसी को जाट से बिदकाये रख के समाज का 35 बनाम 1 बनाए रखने हेतु दलित-ओबीसी के सामने दलित-ओबीसी को तो जाट का पीड़ित दिखाता ही है, उससे भी ज्यादा खुद को भी दलित-ओबीसी के आगे जाट के खौफ में दिखाता है| और यह स्थिति भारतीय परिवेश में हर उस समाज के साथ फंडी करता है जो-जो जहाँ जाट के किरदार में है| संदक दिखती बात है जब तक इस फंडी नाम के समाज के आवारा जानवर से आप अपनी कौम व् उसकी रेपुटेशन की रक्षा नहीं करेंगे; यह आपको यूँ ही दोहरी मार से बुड़के-बुड़के खाता रहेगा; एक तरफ आपसे दान का याचक बन के, दूसरी तरफ दलित-ओबीसी के बीच बनी आपकी साख गिरा के| इसलिए आज के दिन जाट जैसी कम्युनिटी को जरूरत है तो अपने खुद के मार्केटर्स की, प्रमोटर्स की, फंडी द्वारा दलित-ओबीसी व् जाट के बीच खड़े किए अस्तित्वहीन मतभेदों-डरावों को मिटाने की| जाट जैसे हर समाज को इस बात पर नजर रखनी चाहिए कि अपनी मेहनत व् "खाप-खेड़ा-खेत" जैसी उदारवादी जमींदारी की ethical capitalism के प्रोफेशन के जरिए समाज की हर कम्युनिटी में जो भी आप पॉजिटिव कमाते हो; उसपे साथ-की-साथ झाड़ू फेरता है फंडी| और इसको नकेल लगाने का एक ही तरीका है कि दलित-ओबीसी के साथ "zero communication" गैप के "minimum common programs" सुनिश्चित किए जाएं| 


और यह मैं गलत नहीं कह रहा, जब चाहो प्रैक्टिकल में आप चेक कर लो| चेक करने का फार्मूला नहीं समझ आवे तो मैं बता दूंगा| 


जय यौद्धेय! - फूल मलिक