Friday, 10 September 2021

जब किसान आंदोलन को अहिंसक रह कर ही चलाने की ठानी हुई है तो "आर्थिक असहयोग" भी तो अहिंसक तरीका ही है; इसको भी आजमा लिया जाए!

लगता है फंडियों की सरकार यह जो हद दर्जे की बेशर्मी दिखा रही है कि करनाल SDM के खिलाफ वीडियो में सबूत होने पर भी उसको ससपेंड नहीं कर रही; जबकि बंगाल में एक विवाह में covid गाइडलाइन्स पालन ना करने पर एक पुजारी को थप्पड़ मारने के वीडियो के आधार पर उस DM को ही ससपेंड कर दिया था तो इसका क्या संदेश लिया जाए?


संदेश साफ़ है कि अहिंसक रास्ते के अगले स्तर पर बढ़ा जाए| और अगला स्तर है "आर्थिक असहयोग"; जिसके लिए लगभग जनता तैयार खड़ी है अगर किसान संयुक्त मोर्चा इस तरीके की तैयारी करके इसका आह्वान कर दे, तो SDM तो क्या यह तो DC से ले CM तक को ससपेंड करेंगे| कैसी तैयारी:

जल्द-से-जल्द मान लो आज ही कॉल दी जाए कि करनाल एपिसोड पर सरकार के रूख को देखते हुए हम कॉल देते हैं कि, "2 हफ्ते बाद" न्यूनतम 3 महीने के लिए "सम्पूर्ण आर्थिक असहयोग" की कॉल दी जायेगी| तब तक इन 2 हफ्तों में हर किसान यूनियन अपने जिला-ब्लॉक-गाम स्तर पर इस आर्थिक असहयोग को चलाने के तरीके का किसानों-मजदूरों-छोटे व्यापारियों में इस प्रकार प्रचार करेगी:

"खाने-पीने के सामान को छोड़ कर और क्योंकि छोटा व् मंझला व्यापारी किसान आंदोलन का साथ दे रहा है व् यह व्यापारी 95% 25000 रूपये से कम के सामान में डील करता है; इसलिए 25000 रूपये से ऊपर का खाने-पीने के सामान को छोड़कर कोई भी सामान नहीं खरीदा जाएगा| शुरू में 3 महीने के लिए इसको चलाया जाएगा व् जरूरत लगी तो इसको एक्सटेंड किया जाएगा|"

इससे किसानों को आर्थिक लाभ से ले हर तरह के लाभ होंगे| क्योंकि "आर्थिक असहयोग" घरों, धरनों पर बैठ कर चलाना है जिसमें ना यह रोज-रोज कभी जिंद, कभी हिसार, कभी टोहाना, कभी रोहतक तो अब करनाल भागने के झंझट होंगे; ना इनमें लोगों की आर्थिक, शारीरिक व् मानसिक ऊर्जा व्यय होगी| आंदोलन की मानसिक ऊर्जा व् प्रेरणा कायम रहेगी|

यह करना इसलिए भी जरूरी हो रहा है क्योंकि फंडी सरकार, अब इस किसान आंदोलन में अमानवीय स्तर से भी पार जा कर जो जुल्म करने के रास्ते अख्तियार कर रही है इसको यह अब 35 बनाम 1 की इनकी नफरत-हेय की राजनीति को जिन्दा रखने की कवायद की तरह देखने लगे हैं| इनका मानना है कि 1 के खिलाफ निर्मम दिख कर हम 35 को अपने लिए मजबूत वोट में बदलते जाएंगे, खासकर हरयाणा में| हालाँकि इनको एक SDM को ससपेंड नहीं करने का साहस व् यह जुल्म करने का साहस इस बात से आ रहा है कि किसानों ने "अहिंसक" रहने की शपथ सी उठाई हुई है| तो ऐसे में यह लठ तो उठाएंगे नहीं तो 35 में 1 के प्रति निर्मम बन के अपनी हीरोगिरी चमका लो|

ऊपर से सितम यह है कि 35 में जो भी इनके प्रभाव में हैं वह यह भी नहीं देख रहे कि किसान सिर्फ उनके लिए नहीं लड़ रहे हैं अपितु तुम्हारे लिए भी लड़ रहे हैं| यह उल्टी मति कहिये या दूसरे के नुकसान में ख़ुशी देखने की पिछड़ेपन की सोच; परन्तु यह चर्चा है धरातल पर|

अत: अगर किसान संयुक्त मोर्चा चाहता है कि यह सरकार आपकी बातों पर एक्शन लेवे तो अब वहां चोट कीजिए जहाँ इनको सबसे ज्यादा दर्द होता है यानि "नोट की चोट" यानि "आर्थिक असहयोग"| "वोट की चोट" का रास्ता बहुत लम्बा भी है और अपेक्षित रिजल्ट्स देने में हरयाणा जैसी जगह में तो शायद ही कारगर साबित होवे| आप कितना ही शारीरिक कष्ट उठा कर "सत्याग्रह" करते रहिएगा यह फंडी लोग फिर भी लोगों के दिल आपके प्रति ना पसीजें इसके लिए दिनरात अनवरत काम पर हैं| तो ऐसे में लाजिमी है कि "आर्थिक असहयोग" की कॉल हो| इसके लिए हमारे जैसे आपके बालकों का जो भी सहयोग चाहिए हम आपके साथ हैं|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Sunday, 5 September 2021

खापलैंड का किसान भी गजब है; और वर्णवाद के काटे लोग यह सोचते हैं कि इनको गलत-सही दोनों में सर पर ही बैठा कर रखा जाए!

गज़ब क्योंकि, कल एक तरफ मुज़फ्फरनगर किसान महापंचायत की स्टेज से एक किसान खुद ही सीनियर पत्रकार अजित अंजुम के माथे का पसीना पोंछ रहा था (पोंछते हुए वजह भी बताई, वायरल वीडियो देखें) तो वहीँ दूसरी तरफ आजतक की पत्रकार चित्रा त्रिपाठी को ताड़े लगाए जा रहे थे (ताड़े लगाने की वजह भी बताई, वायरल वीडियो देखें)| ख़ास, बात दोनों एक ही बिरादरी के थे|

मुझे यह देख इतिहास की ऐसी ही नेगेटिव व् पॉजिटिव दो और हस्ती याद हो आई, जिनके साथ भी इस खापलैंड ने यही सलूक किया था|

एक सन 1761 की पानीपत की लड़ाई वाले पेशवा सदाशिवराव भाऊ: इन्होनें भी चित्र त्रिपाठी वाला सा किरदार अख्तियार करते हुए "खाप परिवेश" से निकले दादा महाराजा सूरजमल सुजान का "दोशालो पाट्यो भलो, साबुत भलो ना टाट; राजा भयो तो का भयो, रह्यो जाट-गो-जाट" कह कर अपमान किया था| व् उसी मद में चौड़ा हो पानीपत लड़ने चढ़ा था| इस पर जाट सेना ने सिर्फ साथ नहीं दिया (दुश्मन से नहीं जा मिले थे) तो अब्दाली के हाथों ना सिर्फ मुंह की खाई वरन वह बनी कि दो कहावतें एक साथ चली;

एक "जाट को सताया तो ब्राह्मण भी पछताया" व्
दूसरी "बिन जाट्टां किसने पानीपत जीते"|

और पुणे के इस पेशवे को जाट को सताए का श्राप इतना उल्टा पड़ा था कि हार जो हुई सो हुई; अंत में पूरे भारत में इसकी हारी हुई मरती-पड़ती घायल पिटी सेना को 14 जनवरी 1761 को उसी "खाप परिवेश" के महाराजा सूरजमल के यहाँ मरहम पट्टी व् अब्दाली से सुरक्षा मिली| इन घायलों को कंबल ओढ़ाने के इसी एपिसोड से ही "संक्रांत" में घर-पड़ोस में बुजुर्गों को "कंबल-चद्दर" ओढ़ाने के रूप में "खापलैंड की इस उदारता" को जीवित रखने का रिवाज भी चला| संक्रांत इसी तारीख से शुरू हुई थी इस बात का सबसे बड़ा सबूत यही है कि यह त्यौहार देशी नहीं अंग्रेजी महीनों के अनुसार 14 जनवरी को ही मनाया जाता है|

दूसरे महर्षि दयानन्द: अजित अंजुम वाले किरदार में चलते हुए आर्य समाज की गीता कहलाने वाले ग्रंथ "सत्यार्थ प्रकाश"में "जाट जी" व् "जाट देवता" बोल के जाटों की स्तुति मात्र क्या की कि बदले में इस खापलैंड के जाट समाज से इतना आदरमान मिला कि उत्तर भारत में आजतक भी इनसे बड़ा ब्राह्मण नहीं जाना जाता कोई|

तो अर्थ भी व् भेद भी दोनों साफ़ हैं कि हमसे बैर बिसाह के कहीं ना सुख पाओगे; प्यार-लिहाज-इज्जत दोगे व् लोगे तो प्रसिद्धि की बुलंदी थोक के भाव पाओगे| अब भी अपने बहम ठीक कर लो, खापलैंड है यह, तुम्हारे वर्णवाद को ना पहले कभी ओटा ना आज ओटती; उदाहरण एक ही बिरादरी के दो बंदे; मुज़फ्फरनगर में बिल्कुल विपरीत ट्रीटमेंट पाते हैं|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक


"वो तोड़ेंगे, हम जोड़ेंगे" - मुज़फ्फरनगर किसान महापंचायत का सबसे बड़ा संदेश!

वो यानि फंडी| एक नहीं कई वक्ताओं ने आज इस बात को दोहराया|

बात अगर हरयाणे की की जाए तो 2014 में आते ही इन्होनें उत्तरी भारत की सबसे बड़ी किसान बिरादरी से एक-एक करके कई किसान बिरादरियां दूर करी या आपस में खाई खड़ी करी; जिसकी कि इनकी कोशिशें आज भी जारी हैं:

1 - सिलसिला शुरू हुआ सैनी बिरादरी व् जाट बिरादरी में दूरियां करवाने से; हालाँकि अब आपस में वापिस भी बहुत जुड़ चुके हैं, शायद किसान आंदोलन की बदौलत|
2 - धीरे-धीरे बढ़ता हुआ यह सिलसिला यह ले गए गुज्जर व् यादव बिरादरियों में ट्राई करवाने पे; यहाँ भी इनको आंशिक सफलताएं मिली परन्तु अभी दूरियां घटती देखी जा रही हैं|
3 - इनके बाद विशाल जूड के जरिए इन्होनें रोड बिरादरी पर ट्राई किया, परन्तु टिकैत साहब ने नीरज चोपड़ा के ओलिंपिक में गोल्ड जीतने पर, नीरज के गाम जा नीरज के पिता जी व् दादा जी को अपने किसानी भाईचारे वाली बधाई दे; फंडियों की इस चाल पर भी काफी हद तक ठंडा पानी डालने में कामयाबी पाई|
4 - अभी मुज़फ्फरनगर महापंचायत से सिर्फ 2 दिन पहले ही इन्होनें "कम्बोज किसान" बिरादरी के नाम से कोई सम्मेलन करवाया व् उनको भी जाटों से तोड़ने हेतु वहां जहर उगलवाए| आशा है कि मुज़फ्फरनगर महापंचायत उन चंद जहर उगलने वाले साथियों को "असल हितैषी कौन समाज का" का व्यापक आयाम दिखाने में मदद करेगी|

इससे पहले मुज़फ्फरनगर 2013 के दंगे हों या 26 जनवरी 2021 की लाल किला घटना के जरिए सिख व् हिन्दू समाज फूट डालने की कुचेष्टा; यहाँ भी इनकी चालें कामयाब ना होने देना; इस किसान आंदोलन की बहुत बड़ी कामयाबी रही|

और आज तो मुज़फ्फरनगर में जैसे उत्तरी भारत के किसानों की न्यूनतम 115 सालों (सन 1906 से ले सन 2021) की सरदार अजित सिंह से शुरू हो सर छोटूराम-सर फ़ज़्ले हुसैन की जोड़ी से होते हुए चौधरी चरण सिंह व् सरदार प्रताप सिंह कैरों के वक्तों से होती हुई बाबा महेंद्र सिंह टिकैत के वक्त "अल्लाह-हू-अकबर, हर-हर महादेव" के नारों सवार होती आई यह लिगेसी सरदार बलबीर सिंह राजेवाल, चौधरी राकेश टिकैत, सरदार गुरनाम सिंह चढूनी व् पूरे किसान संयुक्त मोर्चे की अथक लग्न-मेहनत ने वापिस "अल्लाह-हू-अकबर, हर-हर महादेव" व् "जो बोले सो निहाल, शत श्री अकाल" के नारों पर चढ़ा दी है|

परन्तु हरयाणा में अभी भी ख़ास ध्यान देने की जरूरत है| फंडी को पता लग चुका है कि उनकी असलियत के ढोल फट चुके हैं; इसलिए वह आनन्-फानन में अपने काइयाँपन के नीचतम स्तर पर चलते हुए ना सिर्फ नई-नई किसान बिरादरियों को हरयाणा की सबसे बड़ी किसान बिरादरी से छिंटकने के हथकंडे चल रहे हैं अपितु अडानी-अम्बानी के प्रोजेक्ट्स भी बहुत तीव्र गति से आगे बढ़ा रहे हैं; जिसकी कि एक बानगी है पिछले हफ्ते हरयाणा विधानसभा में पास हुआ नया भूमि अधिग्रहण बिल|

अत: हरयाणवियों को "किसान संयुक्त मोर्चा" के साथ-साथ अपने प्रदेश में भी तीन और फ्रंट्स पर लड़ाई लड़नी है| एक फंडियों का यह किसानी जातियों को ना सिर्फ आपस में छींटकाने का फ्रंट अपितु ओबीसी व् दलित बिरादरी को भी सच्चे-झूठे मुगालतों में डाल इनको भी आपसे दूर रखने की कवायद का अंत (जहाँ-जहाँ जो-जो हथकंडा फंडी रहे हैं, वहीँ उसकी काट ढूंढ के आपसे तोड़ी जा सकने वाली कम्युनिटी को वापिस जोड़िए; इन फंडियों के साथ "तू डाल-डाल, मैं पात-पात" वाली कर दीजिए); दूसरा नया आया भूमि अधिग्रहण बिल (इस पर एक खाप पंचायत हो चुकी है रोहतक में; और की प्लानिंग चल रही है जो बड़े स्तर पर कामयाब कर हरयाणा सरकार को तगड़ी भड़क बिठवानी है व् कोर्ट के जरिए इस कानून पर न्यूनतम स्टे ले; इसको वापिस करवाने की मुहीम उठानी होगी) व् तीसरा इन फंडियों की छद्म manipulation व् polarisation की सोच को धरातल पर उतारने का काम|

बहुत हो गया है, आज के यूथ पर सबसे बड़ी जिम्मेदारी है| गाम-गाम पंचायतें कीजिए व् इस फंडियों के फैलाए इस विष का मलियामेट कीजिए| इस विष को वापिस इन फंडियों को ही पिलाना शुरू कीजिये; तभी आगे राहें आसान हो सकेंगी| क्योंकि इनकी सोच को नकेल डाले बिना; शक्तिप्रदर्शन भी इतने प्रभावी व् कारगर नहीं होंगे|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Saturday, 4 September 2021

कई बार लोग पूछते हैं कि आरएसएस लोकल स्तर पर लोकल लोगों की मदद से लोकल लोगों के चंदे से ही इवेंट्स करना कहाँ से सीखी?

वह लोग खापों/मिशलों व् खाप-मिशाल कल्चर से ही निकली विभिन्न किसान यूनियनों के द्वारा कल मुज़फ्फरनगर महापंचायत में लगने वाले 500 से ज्यादा लंगरों की व्यवस्था से जान लें| कोई-कोई इन लंगरों की संख्या 1000 तक पहुँचने आशंका जता रहा है| यह ऐसे ही लंगर 1925 से पहले भी लगते थे, जब आरएसएस नहीं थी| तब खापें व् मिशल यह करती थी; इन्हीं खापों की यह लोकल स्तर पर इवेंट मैनेजमेंट की कार्यप्रणाली आरएसएस ने कॉपी की है|


बस एक चीज, जिसमें आरएसएस, खापों से आगे निकल गई है वह है अपने-आप को गैर-राजनैतिक रख के; बाहर से अपना राजनैतिक दल पालना जैसे कि बीजेपी| यानि आरएसएस सीधा-सीधा सत्ता की राजनीति में शामिल नहीं होती|

और खापों ने अपनी यही लकीर यानि गैर-राजनैतिक रहने की परिपाटी जब से छोड़ी है; तब से खापों की सांझी पावर व् प्रभाव घटा है| अन्यथा पहले विरला ही कोई खाप चौधरी, सीधा राजनीति में जाता था और जाता भी था तो या तो सीधा एमएलसी बनता था अन्यथा तुरंत राजनीति छोड़ वापिस खापों में सामाजिक बन काम करता था|

जिस दिन फिर से खापों ने अपनी यह कमी दुरुस्त कर ली; उसी दिन से इनका प्रभाव पुरखों जैसा हो उभरेगा| हालाँकि "किसान आंदोलन" ने फिर से खापों को उभारा दिया है; यही वह उभारा है जहाँ से खापें पुरखों की लाइन ले जावें तो वापिस इतिहास बनेंगे|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Thursday, 2 September 2021

जब तक इस 35 बनाम 1 नाम के जिंक पर वॉकल हो कर इसको नहीं तोडा जाएगा!

तब तक फंडी इसके अतिरिक्त सभी वर्गों के लिए मुसीबत बना रहेगा| इसमें 1 फंडी के बिगोए इस जहर की किश्तें भरता रहेगा व् 35 में 34 को फंडी (इन्हीं में तो अपना बन के फंडी घुसा हुआ है) 1 से नफरत-द्वेष के नाम पर इन 34 को झाड़ पे टाँगे रख के इनका खून चूसता रहेगा| हालाँकि काफी सारी दलित बिरादरी तो इस 34 से निकलती जा रही हैं, जिसकी ख़ास वजहें बाबा साहेब अम्बेडकर व् गौतम बुद्ध हैं; परन्तु ओबीसी अभी फंडी के सबसे ज्यादा मोहपाश में चल रहा है|


गजब की बात यह है कि चाहे दलित हो या ओबीसी, यह सबसे ज्यादा 1 के साथ काम करते हैं, मिलके कमाते हैं| सरकारी नौकरियों को छोड़ दें तो इनकी मुख्य कमाई आपस में ही होती है 1 के साथ| सामाजिक-पारिवारिक-आर्थिक-व्यवहारिक-कल्चरल सब रिश्तों में यह 1 के साथ ही सबसे सहज होते हैं| परन्तु फिर भी पता नहीं या तो इन रिश्तों का इनके बीच प्रचार कम है या फंडी का मोहपाश इतना भारी है कि यह 35 बनाम 1 का जिंक नहीं टूट रहा|

इसके टूटने में इतनी देर ना हो जाए बस कि पता लगा तब तक फंडी कल्चर-सिस्टम-आध्यात्म सब चट कर गया| 1 तो कुछ ना कुछ हर हालत में ले मरे शायद परन्तु यह 1 भी क्यों नहीं अपनी अच्छाईयों को 34 के बीच सही से समझा पा रहा? क्या प्रचार की कमी है या फंडी की कान-फुंकाई साफ़ करने की जरूरत है?

यैस, फंडी की कान फुंकाई साफ़ करने की जरूरत है| मैंने व् हमारी टीमों ने हमारे गाम से ही उदाहरण ले के प्रक्टिकली इस बात को साबित व् इसका पटाक्षेप किया है कि फंडी एक तरफ दलित-ओबीसी के कान में फूंकता है कि "देखो, जाट तो दबंग है, हमें समाज के भले के काम भी नहीं करने देता"? और उधर वही फंडी जाट को कहता है कि, "जजमान, थारे बिना म्हारा कौन? म्हारा तो गुजारा ही थारे से चले है"|

और जब हमारी टीम ने जाट व् दलित-ओबीसी को इस पॉइंट पे इकट्ठा किया तो दोनों ने कहा कि बिल्कुल यही कहानी है जी| यहाँ हमारे वालों के कान भरते हैं जाटों के विरुद्ध व् उधर सन्मुख होने पर आप लोगों की चापलूसी करते हैं|

जब से इस बात का भंडाफोड़ किया है, तब से कम-से-कम जिन-जिन दलित-ओबीसी-जाट को इसका पता लगा वह फंडियों से दूर हुए व् आपस में नजदीकी व् अपनापन महसूस करने लगे| जिन गामों में जाट की जगह कोई अन्य कृषक वर्ग जैसे कि रोड़-गुज्जर-राजपूत आदि बहुलता में है तो फंडी वहां दलित-ओबीसी को इनके खिलाफ कान फूंक के रखता है| हालाँकि बहुतेरे ओबीसी-दलित ऐसे भी हैं जो इनके बहकावे में नहीं आते व् कृषक जातियों से अपनत्व को बारीकी से समझते हैं परन्तु फंडी दोनों तरफ फूंक के रखते हैं; दलित-ओबोसी के कृषक के विरुद्ध फूंक के व् कृषक की चापलूसी करके| अत: इनकी "कान फुंकाई" व् "चापलूसी" दोनों को सिरे से नकारिये|
आप भी अपने गामों में इसका प्रैक्टिकल कीजिए व् नतीजे हाथों-हाथ देखिए| कर लीजिए वरना फंडी ने आप लोगों को धरती में दफनाने-गाड़ने का पूरा इंतज़ाम किया हुआ है|

और आपको यह करना होगा, इसलिए नहीं कि यह आपकी आदत है अपितु इसलिए कि यह आपकी जरूरत है| आपकी जरूरत है क्योंकि फंडी तो लोगों के कान फूंकने से बाज आना नहीं और इसके कान फूंके को साफ़ किए बिना आपका काम चलना नहीं| लुगाइयां तो खामखा बदनाम ज्यादा की गई हैं दरअसल धरती के सबसे बड़े चुगलखोर तो यह फंडी हैं|

विशेष: फंडी का किसी जाति-समुदाय विशेष से कोई लेना देना नहीं है; वह कम-ज्यादा मात्रा में हर जाति में मिलता है|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

आईए, आपको बाबा चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत के कमरे से मिलवाते हैं!

चारों सलंगित फोटो में जो आप देख रहे हैं यह बाबा जी कमरा है, इससे जुडी ख़ास बातें जानते हैं|


1) अमरज्योत: इसमें जो "भूमिया खेड़ों", "दादा नगर खेड़ों" की भांति "ज्योत" जल रही है यह सन 1987 से अनवरत जलाई जाती है| सिसौली में जो बाबा के घर आता है, इस ज्योत के बराबर में रखी, स्टील की टंकी से घी की एक चमच ले कर श्रद्धावश ज्योत में डालता है| कई तो घी भी साथ ही ले आते हैं|
2) मात्र बाबा की फोटो: इस कमरे के अंदर सिवाए बाबा की एक फोटो के कोई अन्य फोटो नहीं है| यानि शुद्ध "किसानी धर्म" को समर्पित कमरा है; तमाम तरह के फंड-पाखंड, फंडियों के कॉन्सेप्ट्स से दूर| और कोई भी शक्ति इसमें सुप्रीम नहीं है, सिर्फ बाबा यानि म्हारा पुरख सुप्रीम है|
3) हर रोज बाबा को आंदोलन की रिपोर्टिंग की जाती है इस कमरे में बैठ|
4) बाबा का हुक्का व् बिस्तर: हुक्का हर रोज तरोताजा किया जाता है, बिस्तर हर रोज बदला जाता है|
5) चौधरी राकेश टिकैत के छोटे भाई चौधरी नरेंद्र टिकैत (फोटो में) कहते हैं कि 28 जनवरी की शाम ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पर राकेश के मुंह से जो शब्द निकले थे; वह हमारे इन पुरख बाबा की आवाज थी, इनका संदेश था| इस स्तर तक बाबा आज भी हम से जुड़े हुए हैं|

"उज़मा बैठक" भी यही कहती है, चाहे जिस किसी को मानो; परन्तु इस कमरे की भांति अपनी शुद्ध जमींदारी की मान-मान्यताओं जैसे कि खेड़े-खाप-खेत को शुद्धतम इन्हीं पर रखो| जहाँ कहीं मिक्स होना है वहां होवो बेशक, परन्तु जब बात अपने आध्यात्म की हो, सभ्यता-कल्चर की हो तो वह शुद्धतम रखा जाए; जैसे कि म्हारे दादा नगर खेड़े, भूमिया खेड़े, लोकगीत, मान-मान्यता आदि|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक






Wednesday, 1 September 2021

2013 के मुज़फ्फरनगर दंगे, बीजेपी की देन! - चौधरी नरेश टिकैत

इसको कहते हैं, "सामने से बोल के लेना"|

बीजेपी-आरएसएस 9 महीने लम्बा किसानों को दिल्ली बॉर्डर्स पर बैठा कर यह सोच रही है कि हम इनके मनोबल को तो तोड़ ही रहे हैं साथ ही 35 बनाम 1 की खाई भी बरकरार रख पाएंगे, ऐसी संभावना मान रहे हैं|
परन्तु शायद इनको इस बात का पता ही नहीं कि "गॉड-गिफ्टेड लठ की ताकत रखने वाला किसान, अबकी बार लठ से पहले तुम्हें कूटनीति से मार रहा है"| आज वाला चौधरी नरेश टिकैत का ब्यान इसी बात की बानगी है| वो समझ चुका है पहले इन फंडियों को लोगों के दिमाग से निकालो|
सरदार बलबीर सिंह राजेवाल जी कि "अहिंसा से आंदोलन चलाने की अपील" की गाँठ बांधे, किसान अबकी बार इनको लठ से पहले कूटनैतिक मार रहा है; वरना कोई उम्मीद भी नहीं कर सकता था कि चौधरी नरेश टिकैत ऐसा ब्यान दे देंगे| और ऐसा मुंह पे "हकीकत का रैह्पटा" सा मारने का ब्यान भी कोई इस आंदोलन का आग्गु ही दे सकता था| और कमाल देखें, अभी तक कोई इसका प्रतिउत्तर भी नहीं दे पाया है|
जितना बीजेपी-आरएसएस इस मैटर को लटकायेगी, उतनी ओबीसी, दलित, व्यापारिक बिरादरियों (खासकर छोटे से ले मध्यम व्यापारी) को भी समझ आती जाएगी कि नफरतों व् द्वेषों के आधार पर 35 बनाम 1 टाइप के फंडियों के खड़े किये दर्रे उनका कितना भयंकर स्तर का आर्थिक से ले कल्चरल नुकसान कर रहे हैं| इसलिए इन कृत्रिम दर्रों को छोड़ किसानों-मजदूरों के साथ लगो, क्योंकि यह लड़ाई सिर्फ इनकी नहीं आपकी भी लड़ रहे हैं|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Monday, 30 August 2021

कोई कस्सी से हमला करेगा तो पुलिस क्या करेगी?:

ये जो हर टीवी पे यह कहता घूम रहा है कि, "कोई कस्सी से हमला करेगा तो पुलिस क्या करेगी?" कोई इन महाशय से पूछने वाला हो कि "कोई को" कस्सी उठाने की नौबत ही क्यों आई? क्या वह शांत खड़ी या बैठी पुलिस पे कस्सी ले के दौड़ा था? जवाब है नहीं| अपितु पुलिस उसके पीछे इतना हाथ धो के पड़ी कि वह सड़क से खेतों में भी उतर गया तो भी पुलिस ने पीछा नहीं छोड़ा| तो ऐसे में कोई क्या करेगा, उसको आत्मरक्षा में जो हाथ आया उठा लिया|

उसके पीछे जिस तरीके से पुलिस पड़ी थी उस पूरे वाकये को कोई देखे एक बार, ऐसा लगेगा कि जैसे पुलिस को ऊपर से संदेश हुआ हो कि इतनी बर्बरता तक पीटना है कि वह हिंसक होवें| फिर भी टेक रह गई, वरना हिंसक होना क्या होता है इसका "महम काण्ड" गवाह है; जब मोखरा गाम के लोगों ने 3 हजार पुलिस को इतना बेरहमी से पीटा था कि आधे से ज्यादा पुलिस को तो सिविल के कपड़े पहन-पहन मौके से बच के निकलना पड़ा था|
धन्य हो सरदार बलबीर सिंह राजेवाल जी, जिन्होनें अबकी बार किसानों "किसी भी हालत में हिंसक नहीं होने का" ऐसा अचूक अस्त्र दिया हुआ है कि किसान उसको शिरोधार्य करके चल रहे हैं व् इसीलिए इन फंडियों की हर बर्बर चाल नेस्तोनाबूत हो रही है|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक

बसताड़ा टोल प्लाजा, करनाल पर हरयाणा पुलिस के किसानों पर निर्मम एक्शन के इर्दगिर्द घूमते पहलु!

1 - पिछले हफ्ते सुप्रीम कोर्ट की आई टिप्पणी, "जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने 2 हफ्ते में सरकारों से जवाब माँगा है कि 9 महीने लम्बे रोड-जाम क्यों"? - लगता है बसताड़ा टोल के जरिये कोर्ट के लिए जवाब तैयार करने की कोशिश की गई थी कि बर्बर हमला करके, किसानों को हिंसक करवाओ ताकि हिंसक होने का हवाला दे कर सुप्रीम कोर्ट से धरने उठवाने का ग्राउंड तैयार हो सके| परन्तु धन्य हैं किसान जिन्होनें धैर्य दिखाया व् हिंसक नहीं हुए| और उल्टा हरयाणा सरकार को ही आलोचना झेलनी पड़ रही है|


2 - हरयाणा सरकार ऐसी कृत्रिम हिंसाएं घड़ के राज्य में पंचायत व् जिला परिषदों के चुनावों को और आगे टहलाना चाहती हो|

3 - 5 सितंबर को होने वाली मुज़फ्फरनगर किसान महापचांयत को बिगाड़ने हेतु खापों में लड़ाई लगवाने की कोशिश फ़ैल होने के बाद यह बौखलाए व् कुछ नहीं सूझा तो इनको लगा होगा कि हिंसा करवा दो, शायद कुछ इनके मनमुताबिक हाथ लग जाए| परन्तु इसमें भी कुछ नहीं मिला|

4 - जैसा कि बसताड़ा काण्ड के बाद खट्टर व् दुष्यंत दोनों पंजाब के आग्गुओं को घेर रहे हैं तो यह पंजाब किसान यूनिट्स को प्रेशर में लेना चाहते हों या हरयाणा की किसान यूनियनों में बहम डाल उनको पंजाब यूनिट्स से लड़वाना चाहते हो| यह प्लान सीधा अमितशाह का है, जिसको एग्जिक्यूट करने की यह कोशिश हुई है| क्योंकि हरयाणा का भी एक आधा किसान नेता अभी भी अमितसाह वाली भाषा बोल रहा है|

5 - टीवी-मीडिया के जरिए, किसानों के खिलाफ कृत्रिम हिंसा के सबूत घड़ना व् उनको सुप्रीम कोर्ट में रखने की मंशा होना - जैसे कि दुष्यंत चौटाला का बार-बार हर टीवी चैनल पर यह कहते हुए घूम जाना कि, "कोई कस्सी से हमला करेगा तो पुलिस क्या करेगी?" जबकि इसमें वह इस बात को दरकिनार कर रहे हैं कि किसान को कस्सी उठाने की नौबत क्यों आई? उस पूरे इंसिडेंट में पुलिस उस किसान के बिल्कुल इस हद तक हाथ धो के पीछे पड़ी कि वह सड़क से खेतों तक में उतर गया, फिर भी पुलिस उसके पीछे लगी रही तो और इससे क्या करता वो? इसका मतलब पुलिस चाह रही थी कि कोई तो उनपे जवाबी हमला करे तो उस किसान को आत्मरक्षा हेतु जो मिला वो उठाना पड़ा|

खैर जो भी हो, धन्य हैं किसान व् किसान आग्गु जो इतना धैर्य धारे चल रहे हैं कि फंडियों की इतनी बर्बरता के बाद भी अहिंसा की लाइन से विचलित नहीं हुए व् इस बार भी इनका यह पैंतरा दोगुनी आत्मशक्ति के पलटवार से इनके मुंह पे ही दे मारा|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

ऐसा कल्चर नार्थ-वेस्ट इंडिया का तो बिल्कुल नहीं हो सकता!

 1 - कोई लड़का गाम-गुहांड की नहाती हुई लड़कियों के कपड़े उठा ले जाए, और उस पे भी उसको आदर्श माना जाए; ऐसा कल्चर नार्थ-वेस्ट इंडिया का तो बिल्कुल नहीं हो सकता|

2 - कोई भाई, अपनी सगी बहन को तथाकथित प्यार के नाम पर अपनी बुआ के लड़के के साथ ब्याह हेतु भगा दे, और उस पे भी उसको आदर्श माना जाए; ऐसा कल्चर नार्थ-वेस्ट इंडिया का तो बिल्कुल नहीं हो सकता|
3 - कोई पंचायती, काके-ताऊओं के लड़कों का जमीनी विवाद सुलझवा के आने की बजाए, उनमें इतना तगड़ा झगड़ा लगवा आए कि उनके खड़े लठ बजे, और उस पे भी उसको आदर्श माना जाए; ऐसा कल्चर नार्थ-वेस्ट इंडिया का तो बिल्कुल नहीं हो सकता|
4 - कोई बॉयफ्रेंड, पहले अपनी गर्लफ्रेंड से खूब प्यार की पींघें बढ़ाए व् बाद में उसको धोखा दे किसी और से ब्याह रचा जाए, और उस पे भी उसको आदर्श माना जाए; ऐसा कल्चर नार्थ-वेस्ट इंडिया का तो बिल्कुल नहीं हो सकता|
5 - कोई लड़का जिसकी बहन का भरे दरबार चीर-हरण हो रहा हो और वह वहीँ की वहीँ कुकर्मियों के थोड़बे तोड़ने की बजाए, उस बहन को मात्र साड़ी औढ़ा के वहां से खिसक आवे, और उस पे भी उसको आदर्श माना जाए; ऐसा कल्चर नार्थ-वेस्ट इंडिया का तो बिल्कुल नहीं हो सकता|
और जो ऐसा मानते हों, भगवान करे उनके घर ऐसे ही लड़के पैदा होवें!

जय यौद्धेय! - फूल मलिक