Sunday, 12 June 2022

मुस्लिमों से बदतर ही व्यवहार रखते हो फंडियो तुम जाट-गुज्जर से!

कुछ एक दिनों पहले जैसे आगरा व् ताजमहल जाटों के नाम करने चले थे फंडी, ऐसे ही अरब से आये प्रेशर को डाइवर्ट करने को जाट व् गुज्जर के नाम से कुछ सोशल मीडिया हैंडल से नूपुर शर्मा के समर्थन में पोस्टें निकलवाई जा रही हैं| इनसे बच के दोनों ही| जैसे आगरा व् ताजमहल का मसला उल्टा इनके मुंह पे मारा था, ऐसे ही इसपे मारो| अपना-अपना काम करें जाट-गुज्जर, इनके तो हर दूसरे रोज के ड्रामे हैं ये| धर्म-वर्म का कोई मसला नहीं है इसमें सिवाए, व्यापार हथियाने के| अब पोस्टें निकालती फिर रही है कि शिवजी को बुरा-भला कह रहे थे, तो कोई बात नहीं हमारे धर्म के एक अकेले व् शिवजी के चेले, धरती को बार-बार धरती तथाकथित क्षत्रियों से खाली करने वाले ही काफी हैं, ऐसे लोगों से निबटने को; अभी भी जिन्दा बताये जाते हैं वो उनको चिट्ठी भिजवा दो|

या फिर जाट-गुज्जरों को बालकों को एनसीआर की MNCs में सबसे पहले नौकरियों में वरीयता दो, जिनको कि तुम भाषा व् जाति देखते ही सबसे पहले लिस्ट से काट देते हो| नौकरियों-रोजगारों-सम्मान की बात हो तो जाट-गुज्जर तुम्हारे सबसे बड़ी "NO" लिस्ट में व् वैसे तुम्हारे हागे हुए को साफ़ करने को तुम्हें जाट-गुज्जर चाहियें| वैसे भी जाट-गुज्जर दादा खेड़ों को मानने वाले लोग हैं, जो ना धर्म से नफरत करना सिखाते ना जाति से; हमारे लिए जितने तुम देश के नागरिक उतने ही मुस्लिम|

अत: खामखा बहाना बना रहे शिवजी की आड़ ले कर, पूरे 8 साल किसी को बात-बेबात डंडा करके रखोगे व् उनमें कोई एक आध वह भी गोदी मीडिया का पठाया हुआ कुछ उल्ट-सुलट फेंक गया तो इसपे जाट-गुज्जर तुम्हारे लिए मुस्लिमों को मारें? तब कहाँ जाते हैं जाट-गुज्जर तुम्हारे लिए, जब सम्राट भोजराज को व् पृथ्वीराज को गुज्जर बताना होता है या किसान आंदोलन पर इनको किसानी हक देने होते हैं या इनपे जब 35 बनाम 1 रचते हो? मुस्लिमों से बदतर ही व्यवहार रखते हो तुम जाट-गुज्जर से|

जय यौधेय! - फूल मलिक

अपने कान व् जेहन दोनों को फंडियों की वाहियातों से बचा के रखिये!

विषय: पैगंबर मोहम्मद के ब्याह की जिरह व् तुम्हारी-हमारी मनोस्थिति|

पैगंबर मोहम्मद का ब्याह तो सदियों पहले हुआ था, तुम अपने दादा-दादी वाली पीढ़ी में ही झाँक लो ना; असल तो 80% नहीं तो न्यूनतम 50% यानि हर दो में से एक के दादा-दादी के ब्याह "पोतड़ों" या "परातों" में हुए ना मिलें तो?
दरअसल तुम में से जो भी इन संघी-फंडियों की तकियानूसी वाहियातों को अपने जेहन में जगह दे रहा है, उसका कॉमन सेंस, रेशनलिटी व् ह्यूमैनिटी इस कदर मर चुकी है कि तुम्हें वही बात दूसरों के यहाँ बीमारी लगती है जो रही तुम्हारे यहाँ भी है अगर इसको बीमारी ही मानने लगे हो तो जो फंडियों ने तुम्हारे कानों व् जेहन में फूंक देनी होती है|
मोहम्मद पैगंबर के ब्याह में कोई नया बिघन नहीं हुआ था, वही हुआ तो जो तुम्हारे दादा-दादियों के मामले में हुआ था| यानि दूध पीते की उम्र से ले 6-8-10 साल की छोरे-छोरी की शादी व् जब लड़की व्रजसला होती तो उसका मुकलावा या गौना| व् लड़की का व्रजसला होना गर्म-शरद इलाकों में अलग-अलग उम्र में होता है| शरद इलाकों में जहाँ यह उम्र 11-12 साल होती है वहीँ गर्म इलाकों में 9-10 साल|
नबी की बेगम 6 साल की थी जब उनका ब्याह हुआ परन्तु मुकलावा हुआ 9 साल की उम्र में वह भी लड़की की माँ के संदेशा पहुंचाने पे कि लड़की बालिग़ हो गई है, मुकलावा ले जाओ|
अभी 2006-07 तक जर्मनी-जापान जैसे ऐसे देश रहे हैं जिनमें लड़की की ब्याह की उम्र 13 साल रही है| कनाडा-ऑस्ट्रेलिया में तो आज भी 16 से 18 साल उम्र है|
और तुम बहस कर रहे हो न्यूनतम 1500 साल पहले की?
फिर भी इसको गंद ही मान रहे हो, फंडियों के कहने से तो जरा खुद की माइथोलॉजी में ही झाँक लो पहले? इनके यहाँ तो मान्यता होने पर ही खून में भी रिश्ते करते हैं, तुम्हारे वालों ने मान्यता के विरुद्ध जा के बेटियों तक से ब्याह रचाये हुए हैं व् फिर भी भगवान बनाये बैठे हो उनको?
"बैया, बंदर को सलाह दे और अपना ही घर तुड़वा ले" - इन व्यर्थ की बहसों में फंसे अनाड़ी लोगों को देख कर, यह तथ्यात्मक बातें करते हुए हमें तो यह लाइन तक याद हो आती है|
जय यौधेय! - फूल मलिक

Saturday, 11 June 2022

12 जून 1761 - जाट सेना द्वारा आगरा का लालकिला फतेह करने की गौरवमयी तिथि!

आज के दिन 1761 में एशियाई ऑडिङ्स जाटों के प्लूटो लोहागढ़ महाराज सूरजमल सुजान द्वारा आगरा का लालकिला फतेह किया गया था|

इससे ठीक 91 साल पहले इसी लालकिले के आगे फव्वारा चौक पर ब्रज के सर्वखाप चौधरी दादावीर गॉड गोकुला जी महाराज व् उनके दो भाईयों का बोटी-बोटी कर बलिदान लिया गया था, क्योंकि उन्होंने जैसे अभी 2020-21 में मोदी ने तीन कृषि के काले कानून धक्के से लागू करने की चेष्टा की थी ऐसे ही औरंगजेब ने कृषि कर बढ़ा दिया था| तब सर्वखाप ने अप्रैल 1669 से नवंबर 1669 तक लगातार लगभग 7 महीने बढ़े कृषि कर वापिस करवाने को "सर्वखाप किसान क्रांति" करी थी| औरंगजेब ने जितने भी हिन्दू-मुस्लिम राजा-नवाब सर्वखाप के विद्रोह को दबाने को भेजे, सर्वखाप आर्मी ने सब काट डाले तो तब खुद औरंगजेब को सेना ले कर मैदान में आना पड़ा था| सनद रहे, उस सर्वखाप आर्मी में मुस्लिम शामिल थे|
12 जून 1761 की आगरा के लाल किले पर जाटों की फतेह को सन 1669 के बदले के स्वरूप भी देखा जाता है|
जय यौधेय! - फूल मलिक

Wednesday, 8 June 2022

भक्तो, अरब देशों से आई रिएक्शन को, पुराने जमाने का मुगलिया हमला ही कहो!

ऐसा हमला जिसके होते ही फंडी सबसे पहले दुमदबा के भागते थे, छुपते फिरते थे, देश-जनता-धर्मभक्ति-राष्ट्रभक्ति सब को छोड़ मुगलों के ही दरबारी बनने दौड़ पड़ते थे| नूपुर शर्मा व् जिंदल पर हुई कार्यवाही हूबहू ऐसी ही है| बताओ पार्टी के ऑफिसियल राष्ट्रीय प्रवक्ताओं को "Fringe Element" बता के कट लेने में एक पल ना लगाया| यही हकीकत है इनकी धर्मभक्ति व् राष्ट्रभक्ति की; अब भी नहीं समझोगे तो शायद ही कभी समझ पाओ|
तब के जमाने में मैदानी युद्ध होते थे आज डिजिटल युद्ध हुआ है व् एक ही वार में फंडी सीधे बिलों में घुसा दिए| लेटर्स लिखवाए जा रहे हैं वह भी इंडिया के मुस्लिम इन्फ्लुएंसर्स से, अरब देशों को शांत करने के लिए; गज़ब|
जो लोग यह पूछते रहते हैं ना कि देश इतने साल गुलाम क्यों रहा? सटीक उदाहरण सामने है| यह फंडी, जब देश पे कोई हमला ना हो तो नकली धर्मवाद व् राष्ट्रवाद की चासनी में डुबो-डुबो देशवासियों को सुकून से रहने देते नहीं और हमला हो तो सबसे पहले मैदान से भाग खड़े होते हैं| जब लोग देखते हैं कि खापों ने मोहम्मद गौरी को मारा, महमूद ग़ज़नी से सोमनाथ का खजाना लूटा, अकबर, खिलजी, औरंगजेब, कुत्तुब्बुद्दीन सबसे लोहा लिया, अंग्रेजों तक को सबसे ज्यादा नाकों चने खापों ने चबवाये तो फिर भी देश इतनी सदियों तक गुलाम कैसे रहा; बस इस ताजा उदाहरण से समझ लो; यानि इन फंडियों के इन्हीं पल्ला झाड़ने वाले लच्छणों की वजह से| खापों, को ऐसे मौकों पर इन पर वोकल होने की जरूरत है कि जब देश में हमारे जैसों के बलिदानों से शांति स्थापित होती है तो तब तो हमें ही मीडिया ट्रायल्स करवा-करवा के बदनाम करके डाउन करने पर लगे रहते हो समाज में, व् अब जब खुद देश के सिस्टम-शांति का मलियामेट भी कर दिया व् सामने वाला सही में उग्र हुआ तो पल्ला झाड़ गए| संदेश साफ़ है, जैसे खापों के पुरखों ने अपना स्वछंद सिस्टम रखा फंडियों से अलग; वह कायम रखा जाए| वरना यह तो अपने ऑफिसियल प्रवक्ताओं तक को मिनट नहीं लगाते "Fringe Element" कहने में|

पैसे का पुजारी होना जरूरी है, वह होना भी चाहिए| और हम जानते हैं व्यापार पर लात लगी है तो तब सकपकाए हैं ये, परन्तु व्यापार के लिए एथिकल रास्ते भतेरे| इतना अनएथिकल हो कर भड़क लेने-देने की जरूरत ही नहीं| असल में रोळा, गोलवलकर की लिखी लाइन का है कि "देश के 1 प्रतिशत लोगों को सब धन सौंपवाओ, व् बाकियों को सिर्फ 2 जून की रोटी के लाले पड़ने पर लगाए रखो अगर लम्बा व् स्थाई राज चाहो" व् उसी चक्कर में गच्चे खाते आये हैं ये वह भी सदियों से और स्थाई राज इसीलिए हुए नहीं इनके|

विषय: मुझे मेरा देश जान से प्यारा है व् फंडी व् इनका फंड देश नहीं है; कहीं कोई चला आये पोस्ट पे बरगलाते हुए धर्मभक्ति व् राष्ट्रभक्ति के सर्टिफिकेट्स देने|
जय यौधेय! - फूल मलिक

Sunday, 5 June 2022

पृथ्वीराज के जरिए वास्तविक इतिहास में झूठ परोसने की ताकत कहाँ से आती है इनको?!

झूठे तथ्यों पर आधारित फिल्म भी हिट करवा लेंगे का कॉन्फिडेंस इनको इस बात से आता है कि तुमने जब इनकी 30 साल से परोसी जा रही माइथोलॉजी की फिल्मों व् टीवी सीरियलों पर कभी सत्यता की डिबेटें नहीं की व् जिसने की उनको नास्तिक या धर्मविरुद्ध बता के वह सब मिथ्स अपने दिमाग में उड़ेलते रहे तो "पृथ्वीराज" मूवी में 1206 में मरने वाले गौरी को 1192 में मार के दिखा दिया तो क्या जुल्म हो गया? उनमें 30 साल से ऐसा करने का कॉन्फिडेंस तो तुमने ही भरा है ना; भुगतो अब| अभी क्या है, अगर आगे भी नहीं सुधरे तो इतिहास कितना और मरोड़ के दिखाने वाले हैं ये उसकी तुम कल्पना भी नहीं कर सकते| यह तो शुक्र है कि यूरोप व् अरब की इंटरनेशनल हिस्ट्री को तोड़मरोड़ नहीं सकते व् वह ज्यों-की-त्यों इंटरनेट पर उपलब्ध है; वरना मामला सिर्फ भारत के भीतर का रहा होता तो यह जो इंटरनेट से सच जान लेते हो यह भी गायब होता व् कहीं ढूंढें से भी नहीं मिलता|
और जहाँ-जहाँ इनका काबू है गायब कर भी रहे हैं| ध्यान दो खासकर राखी गढ़ी जैसी खुदाई पर, 2017 में दक्कन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर इन इस रिसर्च में राखीगढ़ी की मम्मियों में जाट का DNA मिलना तो बता दिया; तुम्हारी मैथ्स व् माइथोलॉजी को सच मानने की यही स्पीड रही व् यूँ मूर्छा में चलते रहे तो 10-20 साल बाद यह भी गायब मिलेगी| और यह लोग इस काम पर लग भी चुके होंगे| आपके कितने शोधक इस लीड को और गहरी खोद कर उसको बड़ी बनाने में लगे हैं? नहीं लगे हैं तो उनका ध्यान लगवाइए इन बातों की तरफ|
यह मुग़लों-अंग्रेजों से इतिहास बिगाड़ा और उसको यह सुधार के लिखेंगे व् दिखाएंगे| देख लो इनका सुधारना व् दिखाना| और वह जाट जो इनके अंधभक्त बने हैं वह खासतौर से देख लो कि 1206 में खाप चौधरी दादा रायसाल खोखर के हाथों मारे जाने वाले गौरी के तथ्य की ऐतिहासिक सच्चाई कैसे छुपाई जा रही है| चलो मान लिया हम तो इनके विरुद्ध हैं, परन्तु आप क्या कर या करवा पा रहे हो इनके साथ रह के अपनी कौम-कल्चर-किनशिप की सत्यता की बहाली के लिए? और अगर नहीं ही कुछ करवा पा रहे या करवाने की चेष्टा तो जो कर रहे हैं उनको कम से कम मूक ही सही परन्तु समर्थन तो दिया करो|
और इस बात से यह भी समझ लो कि "खाप व् खाप वालों के लिए" इनके मन में कितना आदर मान-सम्मान है; रत्ती भर भी नहीं| वरना होता तो मोहम्मद गौरी को मारने वाले खाप चौधरी के साथ यह तिरष्कार कि उसको राष्ट्रीय हीरो बनाने की बजाए, उसके किये का क्रेडिट कहीं और दिया जा रहा है? यह खाप से संबंधित एक-एक नुमाईंदे-बंदे के लिए विचार-विमर्श का विषय है|
जय यौधेय! - फूल मलिक

Friday, 3 June 2022

UCC (Uniform Civil Code) कानून में शादी बारे एक क्लॉज लाया जा रहा है, जिसके ऊपर बैठ कर बड़ी राजनीति की जायेगी!

क्या, किसपे व् कैसी राजनीति की जाएगी?

अमूमन लोकसभा के आगामी मानसून सेशन में क्लॉज़ आ रहा है कि, "ब्याह शादी में पूरे देश में एक कानून होगा व् उसके तहत भाई-बहन को भी आपस में ब्याह की इजाजत होगी"|
अब इसपे इनकी पॉलिटिक्स क्या व् किसपे है?: इसका सबसे ज्यादा विरोध वह समाज व् उसकी सामाजिक संस्थाएं करेंगी जो "गाम-गौत-गुहांड" छोड़ के ब्याह करते हैं व् इसमें भी गौत छोड़ के तो जरूर से जरूर करते हैं| वह उत्तरी भारत का एक ख़ास तबका है, जिसने किसान आंदोलन को भी लीड किया था|
कैसी राजनीति होगी?: देश की बाकी जनता को दिखाया जाएगा कि हम चाहे कुछ भी कर लें, परन्तु इन्होनें रहना हमारे विरोध में| व् इस तरह से इस तबके को बाकी तबके से आइसोलेट करके दिखाया जाएगा| व् विरोधों को देखते हुए इस क्लॉज़ को बाद में वापिस भी ले लेंगे| यानि यह गेम होगा बस इस तबके को जन्मजात विरोध करने वाला दिखा को|
इलाज क्या है इस चाल का?: पहले से ही अपनी बैठकें-पंचयातें करके, डीसी ऑफिसेस व् मीडिया के जरिए संसद तक अपनी यह ऑब्जेक्शन पहुंचा दो, वरना इसके आने के बाद में पहुंचाओगे तो वही होगा जो ऊपर लिखा है|
पता नहीं, "गाम-गौत-गुहांड" छोड़ के ब्याह करने में विश्वास रखने वाले भक्त लोग अब इसपे क्या करेंगे; बेचारे चले थे इनके साथ देश व् धर्म बचाने, पता लगा इनका रक्तबीज ही बदलने जा रहा है| जो जागरूक हैं वह एक्शन ले लें ऊपर बताये तरीके से वक्त रहते|
जय यौधेय! - फूल मलिक

मोहम्मद गौरी को मारने वाले खाप चौधरी दादावीर रायसाल खोखर की जय हो!

अक्षय कुमार अभिनीत "पृथ्वीराज चौहान" फिल्म, इतिहास नहीं, एक काल्पनिक उपन्यास की कहानी है! - बकौल यशराज फिल्म्स


एक सामाजिक महासभा ने यशराज फिल्म को लीगल नोटिस भिजवाया कि जब पृथ्वीराज चौहान की मौत सन 1192 में हो चुकी थी व् उसको मारने वाले मोहम्मद गौरी की मौत होती है सन 1206 में जा के हुई, वह भी खाप चौधरी दादा रायसाल खोखर के हाथों; तो यह इतना बड़ा झूठ क्यों परोस रहे हो?

तो यशराज फिल्म ने जवाब दिया कि हमने इतिहास पर फिल्म नहीं बनाई है अपितु एक काल्पनिक उपन्यास पर फिल्म बनाई है व् इतिहास से हमारा कोई लेना देना नहीं|

और इस फिल्म के मेकर्स को मजबूर किया गया यह बात फिल्म के बिलकुल शुरू में "Disclaimer" में लगाने को कि यह सच्चा इतिहास नहीं अपितु एक काल्पनिक कथा है| देखिएगा आज फिल्म में यह डिस्क्लेमर है कि नहीं|

उन तथाकथित धर्म-भीरुओं की विडंबना देखो कि वो उनसे राष्ट्रवाद सीखते हैं, जिनको माइथोलॉजी तो माइथोलॉजी, वास्तविक इतिहास तक भी "काल्पनिक उपन्यास" बता के परोसने पड़ते हैं|

जय यौधेय! - फूल मलिक

Wednesday, 1 June 2022

सिद्धू मुसेआळे की चार सबसे बड़ी देन!

1 - किसानां के पुत्त मोटरसाइकिल-कारों से उतार वापिस ट्रैक्टर्स पर बैठने में गर्व करने सीखा दिए|

2 - "झोटा" शब्द को इंटरनेशनल ब्रांड बना दिया|
3 - कमा-धमा के गामों में ही ठाठ से बसणा सीखा दिया|
4 - किसान-मजदूर का पुत्त हो के भी इंटरनेशनल लेवल का मास-अपील वाला लेखक-गायक हो सकता है, दुनिया को जता दिया|
आओ इस चीज को पुख्ता करें कि उसके जैसी हत्या दोबारा ना हो समाज में, इसके लिए सरकारों के कानों में आवाज ले जानी है तो वो हो; या गैंग्स में सुलह करवानी हो तो वह भी हो| कम-से-कम इतनी सुलह जरूर हो कि अपनी ही कौम-खून-खूम-पिछोके के लोगों को नहीं मारेंगे|
मैं जब कॉलेज लाइफ में था तो मेरा घर-गाम के पशुओं से इतना लगाव था कि उन पशुओं को गली-घर-गोरे पे जहाँ होता वहीँ, मेरी इतनी पहचान थी कि गाम आळा झोटा तो मुझे कहीं भी देख लेता तो लाड में पूंछ उठा दिया करता व् नाड से खस के कहता कि मेरे खाज कर दे| गाम आळा खागड इसी स्टाइल में खुर्रा मारने की कह देता| एक-आध जलकंड हर जगह होते हैं, जिनसे कोई मेरे बारे पूछता तो कहते कि, "बाकी तो छोरा ठीक सै पर जब देखो डांगर-खागड-झोटयां के चीचड़ तोड़ें जा सै"|
एक बार तो म्हारे गाम आळे झोटे को चाबरी में (सीम लगता गुहांड सै म्हारा) षड्यंत्र के तहत अधमरा करके डाल दिया गया था, झोटे से उठा भी नहीं जाता था, ट्राली में डाल के लाया था गाम व् म्हारे घेर में रखा गया था| एक मेडिकल नर्स की भांति उसकी सेवा मैंने अपनी देखरेख में की थी व् न्यूनतम वक्त में उसको वापिस खड़ा होने लायक बना दिया था| उस दौरान वह झोटा जब भी मेरी गोद में सर रख के सोता तो उसकी आँखों से आंसूं टपकते रहते व् मैं उनको पोंछता रहता|
भाई रै सिद्धू मुसेआळे मैं आज भी वही जाट सूं, बैठा बाहर जरूर सूं; पर आत्मा खाप-खेड़े-खेतों में ही रमती है यहाँ बैठे भी| और धन्यवाद "झोटा" शब्द को ब्रांड बनाने का तो खासतौर से|
जय यौधेय! - फूल मलिक

Tuesday, 31 May 2022

अबकी बार जाट-जट्ट "अपना-अपने को मारे" वाली गलती नहीं कर रहा, डॉन तक इस बात की अहमियत को समझ रहे हैं!

इसीलिए "गोल्डी बराड़" का जब नाम आया मुसेवाला की मौत में तो उसने तुरंत वीडियो जारी करके कहा कि इसमें उसका रोल नहीं है|

वह लोग इस बात पर ध्यान दें, जो यह सोच के हताश हुए जाते हैं कि जट्ट, जट्ट को मार रहा है| मेरे ख्याल से किसान आंदोलन ने इतनी शिक्षा कूट-कूट के भर दी है कि अपने को मारने को अपना ही हथियार नहीं बनेगा| जाट-जट्ट तो क्या किसी भी जाति का किसान ऐसा ना करे|
हाँ, सरकारी तंत्र में किसी अफसर आदि या सीएम तक पे जिम्मेदारी धर के इसको जट्ट बनाम जट्ट रंग देना बहुत बड़ी नादानी व् जल्दबाजी दोनों हो सकती है| इस बात का शुकून लो कि जाट-जट्ट एक चल रहा है|
व् तमाम बिरादरियों के किसान की हर स्तर के फील्ड की औलाद इस बात की अहमियत को समझे| भाई पैसा कहीं और से भी कमा लोगे, किसी और की सुपारी ले के भी कमा लोगे; परन्तु उनकी सुपारी मत लो, जो इस किसान आंदोलन की जड़ हैं/थे| और अगर ऐसा कुछ करना भी पड़े तो ज्योना जट्ट, लजवाणिया दादा भूरा व् दादा निंघहिया की भांति करो; रॉबिनहुड की भांति करो|
जय यौधेय! - फूल मलिक

Monday, 30 May 2022

जाट-जट्ट की अगुवाई वाली किसान एकता व् स्थिरता फंडियों को पागलपन की हद पर ले आई है!

सुनो फंडियों (जिस किसी भी जाति का हो), तुम्हें तुम्हारी भाषा में समझा देता हूँ; हमें तो यह भाषा चाहिए ही नहीं होती परन्तु क्योंकि तुम चलते ही इसके जरिए हो तो इन्हीं शब्दों में सुनो!

अगर अकेले ब्रह्मा में सब कुछ संभालने की क्षमता होती तो तुम्हारे ही ग्रंथ-पुराण वाले त्रिमूर्ति का कांसेप्ट ना रखते, जो साक्षी है इस बात का कि ब्रह्मा अकेला सृष्टि नहीं संभाल सकता| और अकेले विष्णु में ही यह क्षमता होती तो भी त्रिमूर्ति नहीं होती और ऐसे ही शिवजी इस त्रिमूर्ति का हिस्सा है|
ब्रह्मा ही सब कुछ सीखा सकता तो विष्णु अवतार परशुराम, शिवजी का शिष्य नहीं होते|
अब मोटे-तौर पर सांसारिक सरंचना में यह साइकोलॉजिकल तिगड़ी कैसे पूरी होती है वह भी देख लो और अच्छे से यह समझ लो कि जो तुम चाह रहे हो यह हर सिद्धांत पर तुम्हारे बस से बाहर है; वह कैसे?
ब्राह्मण: ब्रह्मा पर कॉपीराइट रखता है|
बनिया: विष्णु पर कॉपीराइट मानता है|
जाट: शिवजी पर कॉपीराइट मानता है, इसीलिए जाटलैंड पर सबसे ज्यादा शिवाले जाटों से जोड़ कर बताए गए हैं; हैं कि नहीं हम तो आज भी फ़िक्र नहीं करते|
शिवजी जाट है, यह हर दूसरे-तीसरे इतिहासकार से ले हर लोक्कोक्ति-कहावतों तक में पढ़ा-बताया जाता रहा है| यह नहीं भी है तो इतना तो फिर भी है कि जाट शिवजी से पैदा हुए बताते हैं तुम्हारे ही तथाकथित इतिहासकार|
अब आज जो तुम कर रहे हो तुम्हारी वर्तमान सरकार के जरिए, जाट को निशाने पर रख कर; इस ऊपर की व्याख्या से समझ जाओ, तुम अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार रहे हो| क्योंकि यह वह दौर है जब तुम्हारी हर गैर-जिम्मेदारी व् षड्यंत्र की अति हो चुकी है व् उस अति के चलते शिवजी तीसरी आँख खोले चल रहा है व् इसी वजह से किसान आंदोलन में तुमको हार देखनी पड़ी व् तीन कृषि कानून वापिस लेने पड़े|
किसान आंदोलन में हार देख के भी नहीं समझे तो और क्या चाहते हो? नहीं दबा पाओगे, क्योंकि सामने किसानों की एकता की अगुवाई में तुम्हारा ही बताया शिवजी रूप जाट है| समझ लो इस बात को| या हम समझ लें कि फंडी, किसान एकता ने पागल होने के स्तर तक ला छोड़े हैं; और तुम लोग पागल हो चुके हो, दिमाग से पैदल हो चले हो?
यह बहम छोड़ दो कि तुम जाट को आँख दिखा के दो दिन भी चल लोगे| तुम्हारे पुरखे नहीं चल पाए, तुम्हारे पुराण-ग्रंथ लिखने वालों ने यह माना तो तुमको किस बात का बहम हुआ जाता है? यह कहावत यूँ ही नहीं चलती समाज में, पानीपत के तीसरे युद्ध के बाद से तो सत्यापित तौर पर चलती है कि "जाट को सताया तो ब्राह्मण भी पछताया"|
मुझे नहीं लगता कि इससे शालीन व् सभ्य तरीका और कोई हो सकता था तुम्हें यथास्थिति व् तुम्हारी अवस्था समझाने का| आगे तुम्हारी मर्जी|
और जितना आमने-सामने आते जाओगे, उतना कमजोर होते जाओगे; यह श्राप तुमको ब्रह्मा से ही है कि तुम शिवजी का मुकाबला करोगे तो श्रापित हो के भटकोगे, तुम्हारे ही बताएअश्वत्थामा की तरह|
जय यौधेय! - फूल मलिक

कल तक सादगी दिखाने वाले, आज दादगी दिखाने लगे; मतलब आ गए असली औकात पर!

लेख में आगे बढ़ने से पहले SKM को अपील: संयुक्त किसान मोर्चा भी फिर से एक होने की सोचे व् जो इलेक्शन लड़ने चले गए थे, उनको माफ़ करके, अबकी बार एक मिनिमम कॉमन प्रोग्राम बना के फिर से एक हों|


आज बैंगलुरु में चौधरी राकेश टिकैत की सभा को छिनभिन्न करने वालों का हंगामा देख कर, मुझे मेरे बचपन के वो वक्त याद आ गए जब मेरे गाम में किसी फंडी के घर सतसंगी आते थे तो गाम के गाबरू बाळक उनके घर रेत के लिफ़ाफ़े भर-भर फेंक के आते थे, पत्थर तक मारते थे सतसंगियों को; कि गाम का कल्चर बिगाड़ रहे हैं, सिस्टम बिगाड़ रहे हैं व् खड़ताल-ढोलकी बजा लोगों की नींद हराम करते हैं, शोर यानि ध्वनि प्रदूषण करते हैं (जो कि कानूनी भी अवैध होता है), अश्लीलता फैलाते हैं| तब फंडी लोग मिमियानी सी आवाज बना के बोलते कि हम तो म्हारे घर में कर रे सां, किसे नैं के कहवाँ सां; रोळा यानि शोर घर तें बाहर गया सै तो कोए ना गलती होई, फेर ना होवैगी|

आज समझ आई कि वह क्रिया क्यों जरूरी होती थी| वह इसलिए जरूरी होती थी कि जो आज हो रहा है यहाँ तक के हालात कभी समाज में ना बनें| यह वही मिमियाने लोग आज खुद यही हरकतें कर रहे हैं, वह भी किसी शोर-सतसंग की वजह से नहीं; किसानों द्वारा बाकायदा सरकार की परमिशन लिए स्थलों पर अपने हक-हलोल पर चर्चा-मंत्रणा करने मात्र पर| इन हालातों के साथ समझौते किये हैं तो भुगतने तो होंगे ही अन्यथा यह सब ठीक चाहिए तो आ जाओ उसी मोड में|

सोचो क्या हो, जोणसे कनेक्शन जिधर से ढीले छोड़े चल रहे हो, उनको तो वहीँ से टाइट करने से काम चलेगा| वरना इन्नें तो कर दी, "सिंह ना सांड और गादड़ गए हांड" वाली|

जय यौधेय! - फूल मलिक

अभी सिद्धू मुसेवाला की मौत का बहाना बना कर, एंटरटेनमेंट जगत में "गन कल्चर" व् पंजाबी-हरयाणवी गानों में "जट्ट-जाट" के जिक्रे होने को निशाना बनाया जाएगा; इनके ललित निबंधों/उपदेशों से घबराने का नहीं!

बल्कि ऐसे लोगों को एक तो बॉलीवुड की "एंग्री यंगमैन" यानि "लम्बू" यानि "अमिताभ बच्चन" के जमाने से चले इस "गन" व् "डॉन" कल्चर की याद दिला देना, जो आज तक बदस्तूर जारी रहते हुए इतना वाहियात स्तर ले चुका है कि "धाकड़" फिल्म जैसा गोबर तक परोसने लगे हैं|
और जो "जाट-जट्ट" की बात करे, उनको "विनम्रता से, जी लगा के" फिल्मों में फेरे एक ही जाति का पंडित/शास्त्री ही करवाता क्यों दिखाया जाता है इसकी याद दिलवा देना; वह आर्य समाजी जरूर याद दिलवा देना, जहाँ सभी जाति के शास्त्री हवन-फेरे करवाते आए परन्तु आज इस धंधे पर सिनेमा-मीडिया के जरिए जैसे एक जाति विशेष ही अपना कब्जा चाहती हो| क्यों नहीं दूसरी जाति का पंडित-शास्त्री फेरे करवाता दिखाते, नाम लेने तक को भी?
और अभी इधर हरयाणा में "फरसे" व् "तलवारों" वालों समेत सड़कों पर कंधे लाठी धर यात्राएं निकालने वालों की याद दिला देना; स्टेडियम-अखाड़ों की बजाए पार्कों में लाठियां भांजने वालों की याद दिला देना|
जाट-जट्ट के जिक्रे कम-से-कम झूठे तो नहीं होते और ना ही किसी अन्य को रोकते| लगभग-लगभग हर जाति किसी न किसी गाने में मेंशन हो चुकी है| जाट-जट्ट ज्यादा होते हैं तो किस बात की जलन इस बात से? और इनको यह भी याद दिलाना कि यह बॉलीवुड की फ़िल्में देखो इनमें 90% पॉजिटिव कैरेक्टर कौनसे गौत-जात वाले होते हैं व् नेगेटिव कौनसे वाले? इस जातिवाद पर कब बोलोगे, अगर जाट-जट्ट गानों में आने से ही जातिवाद हो जाता है तो?
जाट-जट्ट कभी गानों में जिक्र आता है तो झूठे क्लेम्स का नहीं आता| इसलिए यह रोते हैं तो इनको रोने दो| अपनी अणख यही कहती है कि खुद को महान बताने को "माफीवीरों" को वीर हम तो नहीं कहेंगे व् दूसरों को बहु-बेटियां दे राज बचाने व् रण छोड़ कर भाग जाने वालों को "वीर", "महान", "राष्ट्रवादी" प्रचारित, हम तो करेंगे नहीं|
हम युगों से "सीरी-साझी" का कल्चर पालने जाट-जट्टों को अब यह बहरूपिए फंडी बताएंगे क्या कि जातिवाद क्या होता है| मुंह धो के आओ, जन्म से मरण तक आकंठ जातिवाद व् वर्णवाद में जीने वाले दोगले लोगो|
जाट-जट्ट अपने को गानों में प्रमोट कर लेते हैं तो इसलिए कि वह असल "सीरी-साझी" कल्चर पालते हैं, जो पालना तुम्हारे फरिश्तों की भी औकात नहीं| इसी कल्चर से जाट-जट्ट में यह आत्मबल आता है कि वह इतने आत्मविश्वास से समाज में अपनी बात कह लेता है| तुम पाल के देख लो इस कल्चर को, यह आत्मविश्वास तुम में भी आ जाएगा|
परवर्दिगार, मुसेवाला की आत्मा को शांति दे व् उनके परवार समेत तमाम पंजाबी-हरयाणवी फिल्म-म्यूजिक इंडस्ट्री व् इनके फोल्लोवेर्स समेत किसान यूनियनों को इस क्षति को खेने का संबल दे!
जय यौधेय! - फूल मलिक

Sunday, 29 May 2022

हरयाणा में नगर परिषद चुनाव जेजेपी को छोड़ अकेले लड़ेगी बीजेपी!

यह बात उन लोगों के लिए सबक होना चाहिए जो यह समझते हैं कि तुम फंडियों से अपनापन दिखाने की होड़ में खुद को व् खुद के परिवार को, अपने पड़दादा को पब्लिकली "असली संघी" भी कह लोगे तो यह तुम्हें अपना मान लेंगे या मानने लगेंगे| किसान आंदोलन के दौरान बीजेपी से समर्थन वापस लेने बारे हरयाणा विधानसभा में हुई बहस याद है ना?
हमारे जैसे समझाने चलते हैं तो हमें जातिवादी बोल के, 50 साल पुराने विचार बोल के किनारा काटने लगते हो और फिर 100 साल पुराने विचार वालों से गठबंधन करे मिलते हो|
तुम इनसे जितना चाहे चिपक लो, यह तुम्हारा इस्तेमाल करके; तुम्हें फेंकना अच्छे से जानते हैं| इन्होनें बाबा रामरहीम नहीं बख्शा जिसने बैठे-बिठाए 2014 में यह सत्ता में ला दिए थे हरयाणा में; तुम्हें धरते ये सर पे?
अपने कौम-कल्चर के भाईयों से सरजोड़ के नहीं रखने के यही नतीजे होते हैं|
कितनी कोशिश की थी हुड्डा साहब ने कि 2019 के विधानसभा चुनाव के नतीजे आते ही कि आ जाओ मिलके सरकार बना लेते हैं, डिप्टी सीएम भी बन जाना; परन्तु नहीं|
"अपना मारे, छाँव में गेरे" की लाइन पे चलते हुए उस वक्त अलायन्स कर लेते कांग्रेस व् जजपा तो आज जजपा के साथ यह कहानी नहीं बनती कि बीजेपी का साथ दे के अपनी क्रेडिट वैल्यू भी खोई, अकेले भी छोड़ दिए गए बीच आधी-टर्म और आगे के रास्ते भी बंद कर लिए| चौधरी ओमप्रकाश चौटाला की पहली सजा के वक्त तो कांग्रेस व् हुड्डा जी दोषी बता दिए; अब रुकवा ली सजा; स्टेट-सेण्टर दोनों जगह गठबंधन की सरकार होते हुए? ना दादा की रुकवा पाए व् अभी पिता-काका का भी पता नहीं कि शायद फिर से हो जाए|
हालाँकि यह राजनीति है इसलिए इसमें जो इस पल सही हो वह जरूरी नहीं कि हर वक्त सही ही हो; परन्तु वह जरूर हर वक्त सही ही होता है जो आइडियोलॉजी पकड़े रहता है, किनशिप थामे रहता है| और बीजेपी व् आरएसएस को यह अच्छे से आता है कि कौनसी, किसलिए, किनके लिए व् किसकी आइडियोलॉजी पकड़नी है व् वह उसको पकड़े चल रही है; भले ही उससे भला सिर्फ फंडियों का होता हो|
फंडियों ने कौन अपना और कौन "यूज एंड थ्रो" सब निर्धारित कर रखा होता है| यह बात सर छोटूराम समझाते-समझाते जा लिए धरती पर से| फंडियों-संघियों की ताकत यह है कि यह किसी भी हालत में अपनी आइडियोलॉजी नहीं छोड़ते; चाहे यह भूखे मर जाएँ या हँघाए छकें| भूखे होंगे तो मांग के खा लेंगे परन्तु आइडियोलॉजी नहीं छोड़ेंगे और जब छके होते हैं तो वही करते हैं जो बाबा रामरहीम के साथ किया या अभी जजपा व् चौटाला परिवार के साथ हो रहा है कि साथ दे के भी, सरकारें बनवा के भी निताणे के निताणे| और आइडियोलॉजी एक व्यक्ति या पीढ़ी का काम नहीं, इसको कायम रखना पीढ़ी-दर-पीढ़ी रिले-रेस जैसा होता है|
जजपा वालों के लिए मेरे अंदर कोई द्वेष आ ही नहीं सकता अपितु दुःख व् अपनापन ही झलक सकता है क्योंकि हम हैं तो एक ही कल्चर-किनशिप के| अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा अगर जजपा इनको लात मार के, कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बना ले तो| आ जाओ इनको छोड़ के, मौका है अभी भी| यह डिप्टी सीएम पद तो कांग्रेस के साथ भी कायम रह जायेगा|
रै रलदू, हुक्का भर ले भाई, स्थाई व् लम्बी राजनीति की ABCD सीखने आ रहा हूँ तेरे से| भाई-भाई को बाँट के कैसे खाना होता है व् बूढ़े जो वह कहावत बता गए ना कि
चलना राह का चाहे फेर क्यों ना हो,
खाना घर का, चाहे जहर क्यों ना हो!
सफर रेल का, चाहे बार क्यों ना हो,
और बैठना भाईयों का, चाहे बैर क्यों ना हो!
इसपे बौराएँगे व् ठहाके लगाएंगे!
जय यौधेय! - फूल मलिक