अपने कल्चर के मूल्यांकन का अधिकार दूसरों को मत लेने दो अर्थात अपने आईडिया, अपनी सभ्यता और अपने कल्चर के खसम बनो, जमाई नहीं!
Sunday, 12 June 2022
मुस्लिमों से बदतर ही व्यवहार रखते हो फंडियो तुम जाट-गुज्जर से!
अपने कान व् जेहन दोनों को फंडियों की वाहियातों से बचा के रखिये!
विषय: पैगंबर मोहम्मद के ब्याह की जिरह व् तुम्हारी-हमारी मनोस्थिति|
Saturday, 11 June 2022
12 जून 1761 - जाट सेना द्वारा आगरा का लालकिला फतेह करने की गौरवमयी तिथि!
आज के दिन 1761 में एशियाई ऑडिङ्स जाटों के प्लूटो लोहागढ़ महाराज सूरजमल सुजान द्वारा आगरा का लालकिला फतेह किया गया था|
Wednesday, 8 June 2022
भक्तो, अरब देशों से आई रिएक्शन को, पुराने जमाने का मुगलिया हमला ही कहो!
Sunday, 5 June 2022
पृथ्वीराज के जरिए वास्तविक इतिहास में झूठ परोसने की ताकत कहाँ से आती है इनको?!
Friday, 3 June 2022
UCC (Uniform Civil Code) कानून में शादी बारे एक क्लॉज लाया जा रहा है, जिसके ऊपर बैठ कर बड़ी राजनीति की जायेगी!
क्या, किसपे व् कैसी राजनीति की जाएगी?
मोहम्मद गौरी को मारने वाले खाप चौधरी दादावीर रायसाल खोखर की जय हो!
अक्षय कुमार अभिनीत "पृथ्वीराज चौहान" फिल्म, इतिहास नहीं, एक काल्पनिक उपन्यास की कहानी है! - बकौल यशराज फिल्म्स
Wednesday, 1 June 2022
सिद्धू मुसेआळे की चार सबसे बड़ी देन!
1 - किसानां के पुत्त मोटरसाइकिल-कारों से उतार वापिस ट्रैक्टर्स पर बैठने में गर्व करने सीखा दिए|
Tuesday, 31 May 2022
अबकी बार जाट-जट्ट "अपना-अपने को मारे" वाली गलती नहीं कर रहा, डॉन तक इस बात की अहमियत को समझ रहे हैं!
इसीलिए "गोल्डी बराड़" का जब नाम आया मुसेवाला की मौत में तो उसने तुरंत वीडियो जारी करके कहा कि इसमें उसका रोल नहीं है|
Monday, 30 May 2022
जाट-जट्ट की अगुवाई वाली किसान एकता व् स्थिरता फंडियों को पागलपन की हद पर ले आई है!
सुनो फंडियों (जिस किसी भी जाति का हो), तुम्हें तुम्हारी भाषा में समझा देता हूँ; हमें तो यह भाषा चाहिए ही नहीं होती परन्तु क्योंकि तुम चलते ही इसके जरिए हो तो इन्हीं शब्दों में सुनो!
कल तक सादगी दिखाने वाले, आज दादगी दिखाने लगे; मतलब आ गए असली औकात पर!
लेख में आगे बढ़ने से पहले SKM को अपील: संयुक्त किसान मोर्चा भी फिर से एक होने की सोचे व् जो इलेक्शन लड़ने चले गए थे, उनको माफ़ करके, अबकी बार एक मिनिमम कॉमन प्रोग्राम बना के फिर से एक हों|
आज बैंगलुरु में चौधरी राकेश टिकैत की सभा को छिनभिन्न करने वालों का हंगामा देख कर, मुझे मेरे बचपन के वो वक्त याद आ गए जब मेरे गाम में किसी फंडी के घर सतसंगी आते थे तो गाम के गाबरू बाळक उनके घर रेत के लिफ़ाफ़े भर-भर फेंक के आते थे, पत्थर तक मारते थे सतसंगियों को; कि गाम का कल्चर बिगाड़ रहे हैं, सिस्टम बिगाड़ रहे हैं व् खड़ताल-ढोलकी बजा लोगों की नींद हराम करते हैं, शोर यानि ध्वनि प्रदूषण करते हैं (जो कि कानूनी भी अवैध होता है), अश्लीलता फैलाते हैं| तब फंडी लोग मिमियानी सी आवाज बना के बोलते कि हम तो म्हारे घर में कर रे सां, किसे नैं के कहवाँ सां; रोळा यानि शोर घर तें बाहर गया सै तो कोए ना गलती होई, फेर ना होवैगी|
आज समझ आई कि वह क्रिया क्यों जरूरी होती थी| वह इसलिए जरूरी होती थी कि जो आज हो रहा है यहाँ तक के हालात कभी समाज में ना बनें| यह वही मिमियाने लोग आज खुद यही हरकतें कर रहे हैं, वह भी किसी शोर-सतसंग की वजह से नहीं; किसानों द्वारा बाकायदा सरकार की परमिशन लिए स्थलों पर अपने हक-हलोल पर चर्चा-मंत्रणा करने मात्र पर| इन हालातों के साथ समझौते किये हैं तो भुगतने तो होंगे ही अन्यथा यह सब ठीक चाहिए तो आ जाओ उसी मोड में|
सोचो क्या हो, जोणसे कनेक्शन जिधर से ढीले छोड़े चल रहे हो, उनको तो वहीँ से टाइट करने से काम चलेगा| वरना इन्नें तो कर दी, "सिंह ना सांड और गादड़ गए हांड" वाली|
जय यौधेय! - फूल मलिक