जब चौधरी चरण सिंह को 10 मिनट भाषण देते देख ही कहा दिया कि यह लड़का एक दिन भारत का प्रीमियर (प्रधानमंत्री) बनेगा: दीनबन्धु सर चौधरी छोटूराम
अपने कल्चर के मूल्यांकन का अधिकार दूसरों को मत लेने दो अर्थात अपने आईडिया, अपनी सभ्यता और अपने कल्चर के खसम बनो, जमाई नहीं!
Friday, 18 June 2021
जब चौधरी चरण सिंह को 10 मिनट भाषण देते देख ही कहा दिया कि यह लड़का एक दिन भारत का प्रीमियर (प्रधानमंत्री) बनेगा: दीनबन्धु सर चौधरी छोटूराम
उदारवादी जमींदारी व् सामंती जमींदारी में 18 अंतर!
उदारवादी जमींदारी:
1. वर्किंग कल्चर: सीरी-साझी!
2. काम में सहयोग: दोनों एक साथ खेत कमाते हैं|
3. साझी को सुविधाएं: तय सालाना/मासिक पगार, 3 वक्त का खाना, सामर्थ्यानुसार कपड़ा-लत्ता, अनाज-तूड़ी-चारा-बालन-ईंधन का सहारा, भीड़ पड़ी में ब्याह-वाणे में आर्थिक सहयोग|
4. बंधुआ मजदूरी: नगण्य !
5. साझी को संबोधन: गाम के खेड़े के नेग से|
6. वर्णवाद-छूत-अछूत: वैधानिक तौर पर वर्जित हैं, वर्णवादी प्रभाव के अपवाद मिलते हैं|
7. वैश्विक व्यापकता: Google जैसी कंपनी में "सीरी-साझी" वर्किंग कल्चर है|
8. आर्थिक कल्चर: नैतिक पूंजीवाद (यानि ‘कमाओ व् कमाने दो’ यानि ‘अर्थ + मानवता’), बार्टर सिस्टम प्रणाली, मुद्रा प्रणाली|
9. फैलाव: मुख्यत: हरयाणा-पंजाब-दिल्ली-वेस्ट यूपी, दक्षिणी उत्तराखंड व् उत्तरी राजस्थान यानि खापलैंड व् मिसललैंड|
10. आध्यात्मिक कल्चर का आधार स्तम्भ: युगों पुराना मूर्ती-पूजा रहित, परमात्मा के एकरूप को मानने वाला, धोक-ज्योत में औरत को 100% प्रतिनिधित्व देने वाला, वर्ण-जाति के भेदभाव से रहित, अवतारवाद को नहीं मानने वाला, ऊंच-नीच के बर्ताव से रहित, गाम में सबसे-पहले आ के बसने वाले पुरखों द्वारा स्थापित "दादा नगर खेड़े / बड़े बीर / दादा भैये / बाबा भूमिया / जठेरा / गाम खेड़े" व् लगभग इन्हीं सिद्धांतों के आधार बना आर्य-समाज|
11. औरत के प्रति सवेंदना: विधवा विवाह, सतीप्रथा-देवदासी कल्चर की मान्यता ना होना, खेड़े के गौत का लिंग-समानता के नियमानुसार देहल-धाणी-बेटी का गौत भी औलाद का मुख्य गौत हो सकना, 36 बिरादरी की बेटी सबकी बेटी, एक गौत के खेड़े में गाम-गौत-गुहांड का नियम|
12. सोशल इंजीनियरिंग कल्चर: सर्वखाप (खाप/पाल) / मिसल|
13. सोशल सिक्योरिटी, जस्टिस व् समानता का सिस्टम: निशुल्क व् वक्त पर सामाजिक न्याय की उपलब्धता|
14. सामूहिक मानवता पालन: गाम-खेड़े में कोई भूखा-नंगा नहीं सोना चाहिए का मानवीय सिद्धांत|
15. मिल्ट्री कल्चर: हर गाम नियम से अखाड़े पाए जाते हैं, जिनको पुलिस-फ़ौज नरसरी भी कहा जाता है, खाप लड़ाइयों में पहलवानी दस्ते यहीं से तैयार होते आए हैं|
16. सामूहिक जीवन: सामुदायिक सभा व् सामूहिक कार्यक्रमों हेतु छोटे किलानुमी परस/चौपाल/चुपाड़: खापलैंड व् मिसललैंड के हर गाम में कई-कई| आधुनिक RWA, ग्रामीण बगड़ प्रणाली का कॉपी रूप हैं|
17. अमीर-गरीब में आर्थिक हैसियत का अंतर्: पूरे भारत में न्यूनतम|
18. वर्णवाद-नश्लवादी अलगाववाद की प्रकाष्ठा: कभी किसी स्थानीय मजदूर को मात्र दिहाड़ी हेतु खापलैंड छोड़ कर कहीं और जा के कमाने का इतिहास नहीं|
सामंती जमींदारी:
1. वर्किंग कल्चर: नौकर-मालिक!
2. काम में सहयोग: नौकर कमाता, मालिक खेत के किनारे खड़ा हो काम करवाता है|
3. नौकर को सुविधाएं: मासिक पगार!
4. बंधुआ मजदूरी: बहुतायत!
5. नौकर को संबोधन: नाम से जैसे कि रामू या काका !
6. वर्णवाद-छूत-अछूत: इसको श्रेष्ठ-निम्न का आधार माना जाता है!
7. वैश्विक व्यापकता: नामालूम!
8. आर्थिक कल्चर: अनैतिक पूंजीवाद (यानि ‘औरों की कमाई पे धन जोड़ो व् दूसरे की कमाई पर नियंत्रण रखो’ यानि ‘सिर्फ अर्थ’), मुख्यत: मुद्रा प्रणाली|
9. फैलाव: मुख्यत: पूर्वोत्तर, मध्य व् दक्षिण-पश्चिम भारत|
10. आध्यात्मिक कल्चर का आधार स्तम्भ: वर्णवाद आधारित, मूर्तिपूजा करने वाली, धोक-ज्योत में मर्द का वर्चस्व रखना, छूत-अछूत, कुलीन-मलिन का अलगाववाद, अवतारवाद-चमत्कार को मानना|
11. औरत के प्रति सवेंदना: विधवा विवाह की जगह विधवा-आश्रम होना, सतीप्रथा होना,देवदासी कल्चर की मान्यता, हर सूरत में सिर्फ मर्द का गौत ही औलाद का मुख्य होगा, गौत-की-गौत व् चचेरे-ममेरे भाई-बहनों में ब्याह-शादी पाया जाना|
12. सोशल इंजीनियरिंग कल्चर: स्वर्ण-दलित व् 4 वर्ण आधारित|
13. सोशल सिक्योरिटी, जस्टिस व् समानता का सिस्टम: स्वर्ण, शूद्र का धन बलात हर सकता है जैसी मानसिकता पाया जाना|
14. सामूहिक मानवता पालन: सबसे ज्यादा गरीबी के इलाके|
15. मिल्ट्री कल्चर: इक्कादुक्का!
16. सामूहिक जीवन: खापलैंड व् मिसललैंड से बाहर के भारत में परस/चौपाल/चुपाड़ नहीं होती|
17. अमीर-गरीब में आर्थिक हैसियत का अंतर्: पूरे भारत में अधिकतम!
18. वर्णवाद-नश्लवादी अलगाववाद की प्रकाष्ठा: स्थानीय मजदूर को मात्र दिहाड़ी हेतु खापलैंड के क्षेत्रों में बहुतायत में जाना पड़ता है|
उद्घोषणा: यहाँ जो लिखा गया है वह सैद्धांतिक तौर पर है, आज के परिवेश में व्यवहारिक तौर पर तस्वीर क्षेत्र-परिवेश के हिसाब से भिन्न भी हो सकती है इसलिए लेखक किसी भी प्रकार के अपवाद अथवा व्यापकता से इंकार नहीं करता| परन्तु "चंदन के पेड़ पर सैंकड़ों भुजंग लिपटने से जैसे चंदन उसकी शीतलता नहीं छोड़ता" ठीक वैसे ही यहाँ विदित सिद्धांतों की व्यवहारिकता की महत्ता है|
लेखक: फूल कुमार मलिक - जय यौद्धेय!
Wednesday, 16 June 2021
महिला शिक्षा-सुधारक महर्षि रत्नदेव मलिक!
अभी विगत 14 जून को स्वामी रत्नदेव का जन्मदिन था; सन 2012 में उनकी याद में लिखी मेरी यह हरयाणवी कविता मिल गई:
"महिला शिक्षा-सुधारक महर्षि रत्नदेव मलिक"
याणेपन का ध्यानी पुरुष, अनुशासित-स्वाभिमानी पुरुष,
लिए जोग-योग की शक्ति, अवतारया न्यडाणे की धरती|
१) बाबू नै रमाणा चाहया, पर रंग और चढ़ ना पाया,
जातक, जन्नत की जीत म, जोग लिखाएं आया नसीब म|
ज्यूँ-ज्यूँ कद चढता आया, सांसारिक मोह छंटता आया,
बैठ बणां तड़के की पहरी, ध्यान शक्ति तैं सिद्धि सोहरी||
२) घर आळयां नैं अरमान संजोये, सुथरी बहु जग में टोहे,
पर भगत रत्न की राह न्यारी, ग्रहस्थी बणी दुनियां सारी|
ल्य्कड़ पड़या ज्ञान की सगत म, लिए नारी-शिक्षा की अलख जगत म,
खरळ की धरती पै जा डेरा लाया, गाम-गुवांड कै मन-भाया|
३) तीन दशक तक अलख जगाया, नारी जागरूक करूँ यो प्रणायां,
बांगर के खरळ अर कुम्भाखेड़ा को नारी-शिक्षा के धाम बनाया|
चलते-चलते इस राह पै एक दयन, न्यडाणा नगरी दई दखाई,
मेरे लाल नै दुनिया सुधारी, फेरे मेरे तैं-ए-क्यूँ सुरती हटाई?
४) सिद्ध-जोग सिद्ध-पुरुष बण, महर्षि रतनदेव दुनियां म छाया,
दादा नगर खेड़े का कर्जा पुगावण, भौड़ कें लाल बड़े बीर की नगरी आया|
न्यडाणा नैं सुधारूं, नशा-खोरी नै जड़ तैं पाडूँ, गाम को न्यूं फ़रमाया,
बणा कें दस्ता गाभरूओं का, पहरा बिठा दिया नशा-दान्नों का||
५) गैल अभियान छेड़या नारी-शिक्षा का, गुरुकुल बनाऊं उत्तम-दीक्षा का,
गाम-खेड़ा भी गैल कूद पड़या, अपणे लाल की ताल-पै-दे-ताल मल्या|
गाम के जमींदारां नैं धन-दान दिए, कन्या-गुरुकुल की नीम म्ह बढ़-चढ़ कें दिए,
आर्य-समाज के प्रचार हुए, दिन-रात जगे के ठाण हुए||
६) शिक्षा का प्रचार हुआ, चूची-बच्चा सरोकार हुया,
अगड़-बगड़ तैं ले शोर सरकारों लग गया|
एक रूप दादा रत्नदेव आपका, कई जूण सुधार गया,
गा तेरी गाथा हो दादा, पेरिस आळा फुल्ले-भगत भी पार हुया||
लेख्क्क: फूल कुंवार म्यलक (फूल मलिक)
Tuesday, 15 June 2021
"बिना हिसाब व् जवाबदेही के दान देना, करप्शन की सबसे बड़ी जड़ होती है"!
यही वजह है कि "दादा खेड़ा वेलफेयर ट्रस्ट - निडाना, जिला जिंद (यह जिंद है जींद नहीं; "जिंद ले गया दिल का जानी" वाले गाने वाला जिंद; जिंद का अर्थ होता है जान) के तहत चलने वाली "दादा खेड़ा लाइब्रेरी - निडाना" हर तिमाही इसमें आए दान-चंदे की एक-एक पाई की रिपोर्ट इसके शुरू किये जाने के दिन से पब्लिक करती आई है| कोरोना काल के चलते अभी लाइब्रेरी बंद चल रही है, अन्यथा कोरोना से पहले तक व् दोबारा खुलने के बाद भी यह विधान लाइब्रेरी धुर दिन तक निभाएगी| और हमें गर्व है कि इस सिस्टम के तहत चलने वाले विरले ही सिस्टम होंगे समाज में, जिसमें कि एक हमारी टीम ने मेरे पैतृक गाम में स्थापित किया हुआ है मार्च 2018 से |
इसलिए धर्म करो या समाज सेवा; अपनों की कमाई अपने हाथों से पूरी जवाबदेही से जहाँ-जिनसे जिन उम्मीदों-अपेक्षाओं के साथ लगा-लगवा सको सिर्फ वहीँ दान दो| अन्यथा बिना नियंत्रण व् बिना निगरानी का दान घपले-घोटालों व् करप्शन की जड़ बनता है चाहे वह कितने ही बड़े धर्म-भगवान के नाम पर उगाहा-उठवाया गया हो| पैसे के मामले में जवाबदेही से बड़ा दूसरा कोई धर्म नहीं| विचारणीय है कि ऐसे लोग भगवान के नाम पे लिया डकारने से नहीं हिचकते; तो तुम, तुम्हारी अपेक्षा या तुम्हारी काण (शर्म) लागी उनकी छोटी साली| देख रहे हो ना 2 करोड़ की जमीन 16.5 करोड़ में खरीदी तो 14.5 करोड़ किधर गए होंगे? तुम्हारी चुप्पी, सूखी भावनाओं या मायावी भय-लालचों में आ के किये दान; इन लोगों को इतना ताकतवर भी बना देती है कि तुम सिर्फ आलोचना करने मात्र के पात्र रह जाते हो; इनका इलाज रत्ती भी नहीं कर सकते; क्योंकि सर पे भी तुम ही धरते हो रिफल के| और फिर उम्मीद यह भी कि हमें करप्शन रहित छूत-अछूत रहित समाज व् सिस्टम भी चाहिए| बिल्कुल मिलेगा ऐसा समाज व् सिस्टम परन्तु अगर उतनी ही ललक से करप्शन व् छूत-अछूत रहित सिस्टम्स खड़े करोगे या उनका हिस्सा बनोगे|
दूर रहो ऐसे लोगों व् सोच से जो यह कह के दान लेते या करवाते हैं कि, "दान का हिसाब नहीं होता"| ऐसे लोगों को बढ़ावा देना कभी भी आपको करप्शन व् छुआ-छूत रहित समाज व् सिस्टम नहीं बनाने देगा|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
भगवान के भक्त बनने से अच्छा उसके लुटेरे बनो, अन्यथा?
भगवान के भक्त बनने से अच्छा उसके लुटेरे बनो, अन्यथा?:
पिछली सरकारों में सिर्फ चोर थे, सरकारी सिस्टम में घपले करते थे; कम-से-कम पब्लिक का पर्दा रखते थे इतनी शर्म फिर भी पालते थे|
यह सरकार आई, चोरों की जगह डकैत आए; तुम्हारी यानि पब्लिक प्रॉपर्टी को तुम्हारी नाक के नीचे ओने-पौने दामों पे प्राइवेट को बेच रहे, माल्या-चौकसी-मोदी जैसे लॉन-डिफॉलटर्स को दिन-दहाड़े बॉर्डर्स पार करवा रहे| आगे की तरक्की गज़ब भाई, भक्तों ने गली-गली धक्के खा-खा जो 5-5 रूपये चंदा जुटाया था, उससे बनने वाले मंदिर के लिए जमीन खरीदने के नाम पर 2 करोड़ की जमीन 10 मिनट में 16.5 करोड़ की बना के मुल्ला अंसारी (जिनसे नफरत की डोज पे भक्त बनाए जाते हैं) के साथ मिलके 14.5 करोड़ का गबन कर गए| ज्यादा नहीं तो 50% तो मुल्ला जी को भी मिला ही होगा? और देख लेना, जिस पाप-पुण्य के चक्कर में फंसा के तुमसे दान करवाते हैं, वह पाप-पुण्य बाल भी बांका नहीं कर पाएगा इनका; बल्कि चम्पत मिश्रा को बचाया और जाएगा|
क्यों पड़े हो इनके चक्करों में, तुम्हारे पुरखे पागल नहीं थे जो यह कहते थे कि, "इतने 80 फुट ऊँचा खम्बा खड़ा करो, इतने 80 फुट नीचे धरती में उतार लो; माणस-जी-जंतु को पीने को पानी तो हो जाएगा"| धर्म के नाम का ढाहरा तो इतना भतेरा जितना पुरखे "दादा नगर खेड़ों" के रूप बता गए| इससे ज्यादा के फंडों से तो ढोंगी-पाखंडी, सबसे गैर-जिम्मेदार लोगों को कोढ़ की तरह पालना कहलाता है| बताओ भगवान के 14.5 करोड़ का गबन करने वाला भगवान से न डरा, वह डरेगा तुमसे; मानेगा तुम्हारी कोई काण?
और सबसे बुरा तरीका तो आर्य-समाजियों को बहकाने का चलाया हुआ है फंडियों ने| आर्य-समाज ने जिनको अवतार माना ही नहीं, उनकी कोई निश्चित तारिख-काल नहीं मिलता; इनको किस्सों में दर्जनों तुम्हारे समाज-मान-मर्यादा-रिवाजों के विपरीत बातें हैं; मात्र राजा माना वह भी अगर हुए थे तो उनके भी मंदिर बनाने लगे हुए हैं? तो फिर राजाओं के ही मंदिर बनवाने हैं तो महाराजा हर्षवर्धन, महाराजा सूरजमल, महाराजा रणजीत सिंह, राजा नाहर सिंह के ही बनवा लो ना? या फिर दादा हरवीर सिंह गुलिया बादली वाले, दादा चौधरी गॉड गोकुला जी सिनसिनवार, दादा चौधरी जाटवान जी गठवाला, दादीराणी समाकौर गठवाली, दादीराणी भागीरथी कौर, दादीराणी माई भागो आदि-आदि सर्वखाप यौद्धेयों के "खापद्वारे" बनवा लो? ये कम-से-कम साबित तौर पर थारे अपने खून-खूम के तो हैं; उनकी अपेक्षा जिनपे तुम समेत कई जातियां उनके अपने होने का क्लेम धरती हैं|
फंडियों को अगर अपना धन व् दिमाग दोगे तो सिवाए इसके दोहन के जो एक ओंस भी बढ़ोतरी हेतु कुछ पा लो तो| यह राम के नाम पे घपले-घोटाले करने से नहीं डरते, तुमसे डरेंगे, रखेंगे तुम्हारी काण?
जिस देश-समाज में धर्म में ही करप्शन हो, उसके सरकारी व् कर्मचारी तंत्र से ले आम इंसान से क्या उम्मीद करोगे? कहाँ से लाओगे वह लोग, जिनसे उम्मीद करते हो कि वह एक करप्शन रहित, छूत-अछूत रहित समाज बना के दें? लाजिमी है कि इनसे पिंड छुटाये रखे बिना, यह सब सम्भव ही नहीं|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
Tuesday, 8 June 2021
जाट जैसे समाज को दोहरे बुड़के मार-मार खाता फंडी!
हमने इस बात के लाइव उदाहरण देखे हैं कि फंडी, एक तरफ जाट से दान हासिल करने के चक्कर में उसको चने-के-झाड़ पर चढ़ाये रखने टाइप में 70 कसीदे उसकी शान में घड़ता है और दूसरी तरफ वही फंडी, दलित-ओबीसी को जाट से बिदकाये रख के समाज का 35 बनाम 1 बनाए रखने हेतु दलित-ओबीसी के सामने दलित-ओबीसी को तो जाट का पीड़ित दिखाता ही है, उससे भी ज्यादा खुद को भी दलित-ओबीसी के आगे जाट के खौफ में दिखाता है| और यह स्थिति भारतीय परिवेश में हर उस समाज के साथ फंडी करता है जो-जो जहाँ जाट के किरदार में है| संदक दिखती बात है जब तक इस फंडी नाम के समाज के आवारा जानवर से आप अपनी कौम व् उसकी रेपुटेशन की रक्षा नहीं करेंगे; यह आपको यूँ ही दोहरी मार से बुड़के-बुड़के खाता रहेगा; एक तरफ आपसे दान का याचक बन के, दूसरी तरफ दलित-ओबीसी के बीच बनी आपकी साख गिरा के| इसलिए आज के दिन जाट जैसी कम्युनिटी को जरूरत है तो अपने खुद के मार्केटर्स की, प्रमोटर्स की, फंडी द्वारा दलित-ओबीसी व् जाट के बीच खड़े किए अस्तित्वहीन मतभेदों-डरावों को मिटाने की| जाट जैसे हर समाज को इस बात पर नजर रखनी चाहिए कि अपनी मेहनत व् "खाप-खेड़ा-खेत" जैसी उदारवादी जमींदारी की ethical capitalism के प्रोफेशन के जरिए समाज की हर कम्युनिटी में जो भी आप पॉजिटिव कमाते हो; उसपे साथ-की-साथ झाड़ू फेरता है फंडी| और इसको नकेल लगाने का एक ही तरीका है कि दलित-ओबीसी के साथ "zero communication" गैप के "minimum common programs" सुनिश्चित किए जाएं|
और यह मैं गलत नहीं कह रहा, जब चाहो प्रैक्टिकल में आप चेक कर लो| चेक करने का फार्मूला नहीं समझ आवे तो मैं बता दूंगा|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
Sunday, 30 May 2021
जाति नहीं, वर्ण खत्म हो!
लेख का उद्देश्य: फंडियों के psychological war-game को समझने हेतु!
Saturday, 29 May 2021
उदारवादी जमींदारी कल्चर की धरती अडानी-अम्बानी जैसे कॉर्पोरेट्स को इतना क्यों आकर्षित कर रही है कि इसको हड़पने को येन-केन-प्रकेण से कृषि का नाम दे कर 3 काले कानून पास करवा लिए?
भूमिका: आज के दिन अडानी-अम्बानी जैसे बड़े-बड़े कॉर्पोरेट वालों को भी खेती करने का शौक चढ़ा है, 5000-5000 एकड़ के बड़े एग्रीकल्चर-फार्म बनाना चाहते हैं हरयाणा-पंजाब की धरती पर| एक तो आखिर पूरे देश में इनको यही धरती क्यों चाहिए? ऊपर से सोचो तुम्हें-हमें तो बचपन से यह तर्क दे कर बड़ा किया गया कि "पढ़ ले बेटा, कुछ नहीं धरा खेती में" या किसी का बालक नहीं पढता था तो कहते थे कि, "इसको दो-चार महीने खेतों में रगड़ा लगाओ खेती का, अपने आप पढ़ाई की कीमत समझ आ जाएगी"| अब पता नहीं यह हीन भावनाएं कौन लाता था समाज में, वह भी ऐसे धंधे बारे, जिसकी सबसे स्थाई इकॉनमी देने की क्षमता व् महत्ता किसान कम जानते थे व् यह बड़े-बड़े व्यापारी शायद ज्यादा जानते हैं जो किसान बनने को लालायित हुए जाते हैं?
Wednesday, 26 May 2021
'मार दिया मठ', 'हो गया मठ', 'कर दिया मठ'!
यह कहावतें हमारे समाज में होने का मतलब समझने की जरूरत है| कल थोड़ा सा व्यस्त था इसलिए बुद्ध पूर्णिमा पर पोस्ट नहीं निकाल पाया| 'मठ' बुद्ध धर्म का ही कांसेप्ट है, वहीँ से कॉपी हुआ है बाकी सब जगह| जाट महाराजा हर्षवर्धन बैंस बुद्ध धर्मी हो गए थे, यह वही जाट राजा हैं जिन्होनें "सर्वखाप" सिस्टम को 643 AD में विश्व में सबसे पहले 'लीगल सोशल जस्टिस' में समाहित किया था व् खापों को ठीक वैसी ही सोशल जूरी होने की वैधानिक मान्यता दी थी जैसी कि आज के दिन अमेरिका-यूरोप-ऑस्ट्रेलिया आदि में पाई जाती है|
Monday, 24 May 2021
किसान आंदोलन का हिसार अध्याय व् आगे की दिशा!
थोड़ा किसान आंदोलन के साइड-बाई एक और जो जरूरी पहलु है उस पर बात करूँगा, जो बात को किसान आंदोलन के जीवन से भी आगे जाती है|
कच्छाधारी फंडियों की 7 साल की सरकार में आज हिसार में पहली सबसे बड़ी वह कामयाबी मिली जिसने लोकंतत्र जिंदा होने की आस को फिर से खड़ा किया है| परन्तु क्या आगे की राह इतनी आसान है? नहीं है, जब तक ओबीसी व् दलित में जिस भी स्तर तक कच्छाधारी अपना प्रभाव जमा चुके हैं; उसको एक-एक किसान-मजदूर का बालक प्रचारक बन के नहीं निकालेगा या कम-से-कम इनके दोगले चेहरे व् सोच को नंगा नहीं करेगा; तब तक सफर भी अधूरा व् मंजिल भी दूर|
मुझे तो ताज्जुब होता है हर उस ओबीसी व् दलित पर जो गोलवलकर के उन बारे यह विचार कि "मैं सारी जिंदगी अंग्रेजों की गुलामी करने के लिए तैयार हूँ, लेकिन जो दलित, पिछड़ों व् मुसलमानों को बराबरी का अधिकार देती हो ऐसी आज़ादी मुझे नहीं चाहिए|" जानकर भी इनके साथ जुड़े हुए हैं| जिनकी सोच के मूल में दलित व् ओबीसी के लिए इतनी नफरत हो, वह संघ की शाखाओं में कितना ही बराबरी का राग अलापते रहें, जातिवादी नहीं होने की पीपनी बजाते रहें परन्तु इनके मूल में तो नफरत व् जातिवाद ही है ना? अन्यथा दलित व् ओबीसी बारे ऐसी बातें करने वाला व् ऐसी सोच रखने वाला कैसे आरएसएस का 33 साल तक प्रमुख रहा? ताज्जुब है कि आज तक कोई दलित ओबीसी ऐसा नहीं दीखता, जिसने उनके बारे गोलवलकर की यह बात जानी हो और इसपे इनसे कभी सवाल किया हो? या गोलवलकर की कही इस स्टेटमेंट में सिर्फ मुसलमान शब्द देख कर इनके साथ डट जाते हो व् इसको इग्नोर कर देते हो कि मुसलमान के साथ-साथ उसने इसमें दलित व् पिछड़े को भी लपेटा हुआ है? यही समाज की मानसिक गुलामी व् पिछड़ेपन की सबसे बड़ी वजह है|
ऐसे लोगों की यह चुप्पी चाहे जिस भी वजह से है परन्तु इसका दंड यह तो भुगत ही रहे हैं साथ-की-साथ उत्तरी भारत की बड़ी किसान कौमें भी भुगत रही हैं| क्या इनको ज्वाइन करने वाला कोई ओबीसी व् दलित यह बताएगा कि ऐसी कौनसी वजहें हैं जो यह आपको बताते या सिखाते हैं व् आप दिनरात आपके साथ खड़ी रहने वाली व् आपसी रोजगार की सूत्रधार किसान जातियों को छोड़ इनके साथ मिलके आप इन किसान जातियों के ही खिलाफ खड़े हो जाते हैं, जैसे कि फरवरी 2016 का 35 बनाम 1? आप नहीं भी खड़े होते होंगे तो यह इस 35 में आपका नाम तो जोड़ ही लेते हैं| और वह भी बावजूद इसके कि यही वह लोग हैं जो आपको वर्णवाद में शूद्र श्रेणी में रखते हैं, छूत-अछूत, ऊंच-नीच में बांटते हैं? आपका छुआ खाना-पीना तक पसंद नहीं करते?
यह जो जहर इन कच्छाधारी फंडियों ने समाज में नीचे-नीचे उतारा है, इसको साफ़ करने को कदम बढ़ाने होंगे| तब जा कर किसान समेत मजदूर वर्ग अपनी उस आभा-गौरव को वापिस पा सकेंगे जिस पर आ के दिन इन फंडियों के इनके polarisation व् manipulation के जहर की काली स्याही फेरी हुई है|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
Friday, 21 May 2021
फंडी कैसे किसी को उसके साइकोलॉजिकल ट्रैप (जाल) में लेता है!
ग्रीक फिलोसोफर Aristotle की theory of convincing के अनुसार तीन तरीकों से एक इंसान को प्रभाव में लिया जा सकता है:
1) Ethos (Authority) यानि अधिकृत विषेशज्ञ
2) Logos (Logics) यानि तार्किकता
3) Pathos (Emotions) यानि भावुकता, भावनात्मकता
एक संसार को स्वस्थ तरीके से चलाने हेतु इन तीनों का बराबर से इस्तेमाल ही सर्वश्रेष्ठ मार्ग है| परन्तु फंडी, इनमें से सिर्फ इमोशंस को आप पर इस्तेमाल करता है यानि भावना|
और भावना किस से पैदा होती है? Ekman, Paul; Davidson, Richard J. (1994) के अनुसार "कोई भी ऐसी चीज/अनुभव/विचार/व्यवहार जो आपको दुःख या ख़ुशी की, जुड़ाव या अलगाव की तरंगे दे; वह आप में उस वस्तु/व्यक्ति आदि के प्रति नकारात्मक या सकारात्मक भावना पैदा करता है|
और फंडी हर उस बाह्य वस्तु/विचार को आप पर अपनी भावनाएं थोंपने के लिए इस्तेमाल करता है जो आप में सकारात्मकता व् जुड़ाव, कहिये कि आदर भाव पैदा करती होती हैं|
जब आंतरिक तौर पर आप पर हमला करना होगा तो आपकी नकारात्मकता को फंडी सबसे ज्यादा कुरेदता है|
इस तरीके से जब उसने आपकी रग पकड़ ली, फिर वह आप पर साम-दाम-दंड-भेद आजमाता है|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
Thursday, 20 May 2021
फंडी, ना साइंस से चलता है और ना लॉजिक से; वह चलता है साइकोलॉजिकल ट्रैपिंग से!
फंडी को समझने के लिए साइंस या लॉजिक्स ना पढ़ें अपितु साइकोलॉजी यानि मनौविज्ञान के ज्ञाता बनें| जिस दिन इनका मनौविज्ञान से चलना समझ गए, उस दिन इन बातों पर आश्चर्य करना छोड़ दोगे कि, "हाय-हाय फलाना-धकड़ा या फलानी-धकडी इतना पढ़ा-लिखा हो के भी फंड-आडंबर में डूबा हुआ या हुई है"| या कहो कि "इतना बड़ा असफर-साइंटिस्ट हो के भी आकंठ आडंबर में डूबा निकला", आदि-आदि|
Tuesday, 18 May 2021
बावन बुद्धि आणिया, छप्पन बुद्धि जाट!
सुनी थी छप्पन बुद्धि जब महाराजा सूरजमल ने चलाई तो नागपुर-पुणे के चितपावनी पेशवे भी दिल्ली पर राज करने के सपनों का मन-मसोसवा के व् हाथ-मलवा के वापिस पुणे छुड़वा दिए गए थे| क्यों पड़े हो फिर से इनके चक्कर में, यह इतने भले होते तो तुम्हारा यह पुरखा इनको वापिस जाने की हालत में लाता क्या?