Friday, 18 June 2021

जब चौधरी चरण सिंह को 10 मिनट भाषण देते देख ही कहा दिया कि यह लड़का एक दिन भारत का प्रीमियर (प्रधानमंत्री) बनेगा: दीनबन्धु सर चौधरी छोटूराम

 जब चौधरी चरण सिंह को 10 मिनट भाषण देते देख ही कहा दिया कि यह लड़का एक दिन भारत का प्रीमियर (प्रधानमंत्री) बनेगा: दीनबन्धु सर चौधरी छोटूराम


सर छोटूराम की बेचारा जमींदार व् ठग बाजार की सैर पुस्तकें पढ़ के बनाए थे चौधरी चरण सिंह ने मंडी कानून व् कर्जा कानून|
बात 1929 की है जब पंजाब के प्रतिष्ठित किसान नेता और जमींदारा पार्टी के संस्थापक दीनबन्धु सर चौधरी छोटूराम लाहौर से आगरा जा रहे थे। मथुरा के निकट से जब वह गुजरे तो वहां एक छोटी सी नुक्कड़ सभा दिखाई दी जिसमे अधिकतर किसान दिखाई दे रहे थे और एक युवा उन्हें सम्बोधित कर रहा था। उन्होंने गाड़ी रुकवा ली और दूर से ही उनका वक्तव्य सुनने लगे। उस समय उनके निजी डॉक्टर नंदराम देशवाल उनके साथ थे।
दस मिनट बाद उन्होंने अपने डॉ नन्दलाल देशवाल को कहा एक दिन यह लड़का भारत का प्रधानमंत्री बनेगा। पर यह जिन लोगों के बीच घिरा हुआ है वो इनको ज्यादा दिन सत्ता में नही रहने देंगे, इसके कन्धे पर पैर रखकर वो लोग बादशाह बनेंगे। अतः इसे अभी से सावधान रहने की जरूरत है।
इसके हर बोल में किसान का दर्द छलकता है पर मुझे एक बात से आपत्ति है यह जमींदारी के नाश का जो प्रण लेता है वह गलत है।
क्योंकि जिन राज्यो में रियासतों के राज है वहां जमींदार क्रूर व सत्ता के दलाल है पर हमारे पंजाब में रियासत नही जनता का राज है यहां जमींदारा वर्ग तो खुद किसान है।
ऐसे में हम इन छोटे छोटे जमींदारों अर्थात किसानों के नाश की कामना नहीं कर सकते। उन्हें बताये कि यहां जमींदारा उन्मूलन की नहीं साहूकार उन्मूलन की आवश्यकता है।
क्योंकि साहूकार शुरुवात में कर्ज़ तो 100 रुपये देता है पर जब भी किसान उसका ब्याज देने जाता है तो वह 100 के पीछे एक 0 जीरो और लिखकर उसे 1000 कर देता है।
अनपढ़ किसान की सात पीढ़ी तक यह जीरो बढ़कर 100000000 हो जाती है। न कर्ज़ चुकता है ना उसका मूल। अत आप जाए और उन्हें मेरी यह बात बतला देवे।
अब डॉ नन्दराम देशवाल ने यही किया और चौधरी चरण सिंह को सब बात बतला दी और दीनबन्धु द्वारा लिखे गए लेख #बेचारा_जमींदार और #ठगी_के_बाजार_की_सैर वाली किताब सौंपते हुए कहा यह पढ़े और मरते दम तक किसान के हित की बात पर ही अड़े रहना।
अब युवक चरण सिंह सन् 1930 में गोपीनाथ ‘अमन’ के साथ नमक सत्याग्रह में शामिल हो गये और एक बड़े समुदाय का नेतृत्व करते हुये पकड़े गये। यह आपकी प्रथम जेल यात्रा थी जिसमें 6 माह की सजा हुई।
जेल में रहकर आपने सर चौधरी छोटूराम के जाट गजट के उर्दू संस्करण का हिंदी व अंग्रेज़ी में अनुवाद करके “#मंडी_बिल” व “#कर्जा_कानून” नामक पुस्तकें लिखीं। जेल से बाहर आने पर “भारत की गरीबी व उसका निराकरण” नामक बहुचर्चित पुस्तक लिखी। उत्तरप्रदेश में “जमींदारी नाशन कानून” जो लागू हुये, इन्हीं की देन है। जेल से छूटते ही आप प्रथम पंजाब के प्रसिद्ध माल व कृषि मन्त्री चौ० सर छोटूराम के सम्पर्क में आये, जिन्होंने इन पुस्तकों के अध्ययन व चौधरी चरणसिंह जी से विचार मंथन किया । 1. दीनबन्धु सर चौधरी छोटूराम ने अपने मंत्रित्वकाल में #कर्जा_कानून से कर्जा माफी करके 8.32 लाख किसानों को फिर से नया जीवन दिया। 2. #साहूकार_पंजीकरण एक्ट लागू करके नकली डिग्री खत्म की अब साहूकार न जमीन गिरवी रख सकता था न घर व पशु छीन सकता था, 3. #रहन_भूमि_वापसी कानून लागू करके 8 लाख किसानों की 33 लाख एकड़ जमीन साहूकार से छीनकर वापस किसानों को दी थी 4. #कृषि_उत्पादन_एक्ट 1938 कानून किसान जो अपने खेत मे बोता है उसका वह मालिक है उसकी कीमत किसान तय करेगा 5. #मंडी_बिल 1939 मंडी कानून किसान को दूसरी मंडियों के बन्द होने या भाव गिरने के समाचार देकर उसका माल नही लूट सकते। आदि लागू किये थे। 6. #हरिजन_मजदूर एक्ट 1938 लागू करके पहली बार दलित युवाओ को सरकारी नौकरी में मान्यता दी। उससे पहले किसी दलित को सरकारी नौकरी की इजाजत नही थी। 7. #हरिजन_सम्पति एक्ट 1940 लागू करके दलितों को प्रॉपर्टी शिक्षा और आर्थिक पूंजी रखने का अधिकार दिया जिसके लिए दलित 5 हजार साल (मनु स्मृति) के कारण से तरस रहे थे। 8. #अवकाश_एक्ट: 1939 इसके जरिये मजदूरों व कारीगरों को हफ्ते में रविवार को पूरी छुट्टी मिली व सुबह दस से शाम 5 बजे तक 8 घण्टे की नौकरी का समय निर्धारित हुआ।
सर चौधरी छोटूराम ने उन्हें कहा जिस तरह जंगल मे बाघ अकेला राजा होता है उसी तरह भारतवर्ष में यदि संगठित हो तो किसान अकेला राजा होगा। यह संयुक्त पंजाब में हमने सिद्ध कर दिखाया है।
जहां #धर्म (हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई बिश्नोई आर्य समाजी #क्षेत्र (हरियाणा पंजाब हिमाचल) #भाषा (हरियाणवी पंजाबी उर्दू पख्तून पहाड़ी) से इतर हर किसान एक झंडे तले एकजुट खड़ा है। अतः आप किसान के अधिकार की वकालत करे। सर चौधरी छोटूराम ने आगे कहा हम #किसान के बालक है सदियों से #पगड़ी हमारे सिर पर हमारी इज्जत व वैभव बनकर सज रही है। हम हिन्दू है सिख या मुस्लिम पर हमारी पगड़ी हमारे लिए जान से अधिक महत्व रखती है। नोट: अफसोस है कि इन्ही किसान व मजदूर हितैषी कानूनों को वर्तमान #मोदी मन्त्रिमण्डल ने रदद् करके दुबारा सन 1936 के कानून लागू कर दिए जो अंग्रेज़ो ने अपने एजेंट साहूकारों के लिए बनवाये थे।
हम नपुंसक की तरह ताली बजाने को मजबूर है क्योंकि जिस कौम का एक #खसम नही रहता उसके 70 खसम अपने आप बन जाते है। जैसे आज हमारी हालात है।
सॉर्स: #जाट_गजट_पत्रिका लेखक: चौधरी रणधीर देशवाल #जिला_रोहतक_हरियाणा (संयुक्त #पंजाब)

उदारवादी जमींदारी व् सामंती जमींदारी में 18 अंतर!

उदारवादी जमींदारी:

1. वर्किंग कल्चर: सीरी-साझी!

2. काम में सहयोग: दोनों एक साथ खेत कमाते हैं|

3. साझी को सुविधाएं: तय सालाना/मासिक पगार, 3 वक्त का खाना, सामर्थ्यानुसार कपड़ा-लत्ता, अनाज-तूड़ी-चारा-बालन-ईंधन का सहारा, भीड़ पड़ी में ब्याह-वाणे में आर्थिक सहयोग|

4. बंधुआ मजदूरी: नगण्य ! 

5. साझी को संबोधन: गाम के खेड़े के नेग से| 

6. वर्णवाद-छूत-अछूत: वैधानिक तौर पर वर्जित हैं, वर्णवादी प्रभाव के अपवाद मिलते हैं|   

7. वैश्विक व्यापकता: Google जैसी कंपनी में "सीरी-साझी" वर्किंग कल्चर है|

8. आर्थिक कल्चर: नैतिक पूंजीवाद (यानि ‘कमाओ व् कमाने दो’ यानि ‘अर्थ + मानवता’), बार्टर सिस्टम प्रणाली, मुद्रा प्रणाली|

9. फैलाव: मुख्यत: हरयाणा-पंजाब-दिल्ली-वेस्ट यूपी, दक्षिणी उत्तराखंड व् उत्तरी राजस्थान यानि खापलैंड व् मिसललैंड|

10. आध्यात्मिक कल्चर का आधार स्तम्भ: युगों पुराना मूर्ती-पूजा रहित, परमात्मा के एकरूप को मानने वाला, धोक-ज्योत में औरत को 100% प्रतिनिधित्व देने वाला, वर्ण-जाति के भेदभाव से रहित, अवतारवाद को नहीं मानने वाला, ऊंच-नीच के बर्ताव से रहित, गाम में सबसे-पहले आ के बसने वाले पुरखों द्वारा स्थापित "दादा नगर खेड़े / बड़े बीर / दादा भैये / बाबा भूमिया / जठेरा / गाम खेड़े" व् लगभग इन्हीं सिद्धांतों के आधार बना आर्य-समाज| 

11. औरत के प्रति सवेंदना: विधवा विवाह, सतीप्रथा-देवदासी कल्चर की मान्यता ना होना, खेड़े के गौत का लिंग-समानता के नियमानुसार देहल-धाणी-बेटी का गौत भी औलाद का मुख्य गौत हो सकना, 36 बिरादरी की बेटी सबकी बेटी, एक गौत के खेड़े में गाम-गौत-गुहांड का नियम| 

12. सोशल इंजीनियरिंग कल्चर: सर्वखाप (खाप/पाल) / मिसल|

13. सोशल सिक्योरिटी, जस्टिस व् समानता का सिस्टम: निशुल्क व् वक्त पर सामाजिक न्याय की उपलब्धता| 

14. सामूहिक मानवता पालन: गाम-खेड़े में कोई भूखा-नंगा नहीं सोना चाहिए का मानवीय सिद्धांत|

15. मिल्ट्री कल्चर: हर गाम नियम से अखाड़े पाए जाते हैं, जिनको पुलिस-फ़ौज नरसरी भी कहा जाता है, खाप लड़ाइयों में पहलवानी दस्ते यहीं से तैयार होते आए हैं|

16. सामूहिक जीवन: सामुदायिक सभा व् सामूहिक कार्यक्रमों हेतु छोटे किलानुमी परस/चौपाल/चुपाड़: खापलैंड व् मिसललैंड के हर गाम में कई-कई| आधुनिक RWA, ग्रामीण बगड़ प्रणाली का कॉपी रूप हैं| 

17. अमीर-गरीब में आर्थिक हैसियत का अंतर्: पूरे भारत में न्यूनतम|

18. वर्णवाद-नश्लवादी अलगाववाद की प्रकाष्ठा: कभी किसी स्थानीय मजदूर को मात्र दिहाड़ी हेतु खापलैंड छोड़ कर कहीं और जा के कमाने का इतिहास नहीं|


सामंती जमींदारी:

1. वर्किंग कल्चर: नौकर-मालिक!

2. काम में सहयोग: नौकर कमाता, मालिक खेत के किनारे खड़ा हो काम करवाता है|

3. नौकर को सुविधाएं: मासिक पगार!

4. बंधुआ मजदूरी: बहुतायत!

5. नौकर को संबोधन: नाम से जैसे कि रामू या काका ! 

6. वर्णवाद-छूत-अछूत: इसको श्रेष्ठ-निम्न का आधार माना जाता है!

7. वैश्विक व्यापकता: नामालूम!

8. आर्थिक कल्चर: अनैतिक पूंजीवाद (यानि ‘औरों की कमाई पे धन जोड़ो व् दूसरे की कमाई पर नियंत्रण रखो’ यानि ‘सिर्फ अर्थ’), मुख्यत: मुद्रा प्रणाली|

9. फैलाव: मुख्यत: पूर्वोत्तर, मध्य व् दक्षिण-पश्चिम भारत|

10. आध्यात्मिक कल्चर का आधार स्तम्भ: वर्णवाद आधारित, मूर्तिपूजा करने वाली, धोक-ज्योत में मर्द का वर्चस्व रखना, छूत-अछूत, कुलीन-मलिन का अलगाववाद, अवतारवाद-चमत्कार को मानना|

11. औरत के प्रति सवेंदना: विधवा विवाह की जगह विधवा-आश्रम होना, सतीप्रथा होना,देवदासी कल्चर की मान्यता, हर सूरत में सिर्फ मर्द का गौत ही औलाद का मुख्य होगा, गौत-की-गौत व् चचेरे-ममेरे भाई-बहनों में ब्याह-शादी पाया जाना|

12. सोशल इंजीनियरिंग कल्चर: स्वर्ण-दलित व् 4 वर्ण आधारित|  

13. सोशल सिक्योरिटी, जस्टिस व् समानता का सिस्टम: स्वर्ण, शूद्र का धन बलात हर सकता है जैसी मानसिकता पाया जाना| 

14. सामूहिक मानवता पालन: सबसे ज्यादा गरीबी के इलाके|

15. मिल्ट्री कल्चर: इक्कादुक्का!

16. सामूहिक जीवन: खापलैंड व् मिसललैंड से बाहर के भारत में परस/चौपाल/चुपाड़ नहीं होती|

17. अमीर-गरीब में आर्थिक हैसियत का अंतर्: पूरे भारत में अधिकतम!

18. वर्णवाद-नश्लवादी अलगाववाद की प्रकाष्ठा: स्थानीय मजदूर को मात्र दिहाड़ी हेतु खापलैंड के क्षेत्रों में बहुतायत में जाना पड़ता है|


उद्घोषणा: यहाँ जो लिखा गया है वह सैद्धांतिक तौर पर है, आज के परिवेश में व्यवहारिक तौर पर तस्वीर क्षेत्र-परिवेश के हिसाब से भिन्न भी हो सकती है इसलिए लेखक किसी भी प्रकार के अपवाद अथवा व्यापकता से इंकार नहीं करता| परन्तु "चंदन के पेड़ पर सैंकड़ों भुजंग लिपटने से जैसे चंदन उसकी शीतलता नहीं छोड़ता" ठीक वैसे ही यहाँ विदित सिद्धांतों की व्यवहारिकता की महत्ता है| 


लेखक: फूल कुमार मलिक - जय यौद्धेय!



Wednesday, 16 June 2021

महिला शिक्षा-सुधारक महर्षि रत्नदेव मलिक!

 अभी विगत 14 जून को स्वामी रत्नदेव का जन्मदिन था; सन 2012 में उनकी याद में लिखी मेरी यह हरयाणवी कविता मिल गई:

 

"महिला शिक्षा-सुधारक महर्षि रत्नदेव मलिक"


याणेपन का ध्यानी पुरुष, अनुशासित-स्वाभिमानी पुरुष,

लिए जोग-योग की शक्ति, अवतारया न्यडाणे की धरती|


१) बाबू नै रमाणा चाहया, पर रंग और चढ़ ना पाया,

जातक, जन्नत की जीत म, जोग लिखाएं आया नसीब म|

ज्यूँ-ज्यूँ कद चढता आया, सांसारिक मोह छंटता आया,

बैठ बणां तड़के की पहरी, ध्यान शक्ति तैं सिद्धि सोहरी||


२) घर आळयां नैं अरमान संजोये, सुथरी बहु जग में टोहे,

पर भगत रत्न की राह न्यारी, ग्रहस्थी बणी दुनियां सारी|

ल्य्कड़ पड़या ज्ञान की सगत म, लिए नारी-शिक्षा की अलख जगत म,

खरळ की धरती पै जा डेरा लाया, गाम-गुवांड कै मन-भाया|


३) तीन दशक तक अलख जगाया, नारी जागरूक करूँ यो प्रणायां,

बांगर के खरळ अर कुम्भाखेड़ा को नारी-शिक्षा के धाम बनाया|

चलते-चलते इस राह पै एक दयन, न्यडाणा नगरी दई दखाई,

मेरे लाल नै दुनिया सुधारी, फेरे मेरे तैं-ए-क्यूँ सुरती हटाई?


४) सिद्ध-जोग सिद्ध-पुरुष बण, महर्षि रतनदेव दुनियां म छाया,

दादा नगर खेड़े का कर्जा पुगावण, भौड़ कें लाल बड़े बीर की नगरी आया|

न्यडाणा नैं सुधारूं, नशा-खोरी नै जड़ तैं पाडूँ, गाम को न्यूं फ़रमाया,

बणा कें दस्ता गाभरूओं का, पहरा बिठा दिया नशा-दान्नों का||


५) गैल अभियान छेड़या नारी-शिक्षा का, गुरुकुल बनाऊं उत्तम-दीक्षा का,

गाम-खेड़ा भी गैल कूद पड़या, अपणे लाल की ताल-पै-दे-ताल मल्या|

गाम के जमींदारां नैं धन-दान दिए, कन्या-गुरुकुल की नीम म्ह बढ़-चढ़ कें दिए,

आर्य-समाज के प्रचार हुए, दिन-रात जगे के ठाण हुए||


६) शिक्षा का प्रचार हुआ, चूची-बच्चा सरोकार हुया, 

अगड़-बगड़ तैं ले शोर सरकारों लग गया|

एक रूप दादा रत्नदेव आपका, कई जूण सुधार गया,

गा तेरी गाथा हो दादा, पेरिस आळा फुल्ले-भगत भी पार हुया||


लेख्क्क: फूल कुंवार म्यलक (फूल मलिक)

Tuesday, 15 June 2021

"बिना हिसाब व् जवाबदेही के दान देना, करप्शन की सबसे बड़ी जड़ होती है"!

यही वजह है कि "दादा खेड़ा वेलफेयर ट्रस्ट - निडाना, जिला जिंद (यह जिंद है जींद नहीं; "जिंद ले गया दिल का जानी" वाले गाने वाला जिंद; जिंद का अर्थ होता है जान) के तहत चलने वाली "दादा खेड़ा लाइब्रेरी - निडाना" हर तिमाही इसमें आए दान-चंदे की एक-एक पाई की रिपोर्ट इसके शुरू किये जाने के दिन से पब्लिक करती आई है| कोरोना काल के चलते अभी लाइब्रेरी बंद चल रही है, अन्यथा कोरोना से पहले तक व् दोबारा खुलने के बाद भी यह विधान लाइब्रेरी धुर दिन तक निभाएगी| और हमें गर्व है कि इस सिस्टम के तहत चलने वाले विरले ही सिस्टम होंगे समाज में, जिसमें कि एक हमारी टीम ने मेरे पैतृक गाम में स्थापित किया हुआ है मार्च 2018 से | 


इसलिए धर्म करो या समाज सेवा; अपनों की कमाई अपने हाथों से पूरी जवाबदेही से जहाँ-जिनसे जिन उम्मीदों-अपेक्षाओं के साथ लगा-लगवा सको सिर्फ वहीँ दान दो| अन्यथा बिना नियंत्रण व् बिना निगरानी का दान घपले-घोटालों व् करप्शन की जड़ बनता है चाहे वह कितने ही बड़े धर्म-भगवान के नाम पर उगाहा-उठवाया गया हो| पैसे के मामले में जवाबदेही से बड़ा दूसरा कोई धर्म नहीं| विचारणीय है कि ऐसे लोग भगवान के नाम पे लिया डकारने से नहीं हिचकते; तो तुम, तुम्हारी अपेक्षा या तुम्हारी काण (शर्म) लागी उनकी छोटी साली| देख रहे हो ना 2 करोड़ की जमीन 16.5 करोड़ में खरीदी तो 14.5 करोड़ किधर गए होंगे? तुम्हारी चुप्पी, सूखी भावनाओं या मायावी भय-लालचों में आ के किये दान; इन लोगों को इतना ताकतवर भी बना देती है कि तुम सिर्फ आलोचना करने मात्र के पात्र रह जाते हो; इनका इलाज रत्ती भी नहीं  कर सकते; क्योंकि सर पे भी तुम ही धरते हो रिफल के| और फिर उम्मीद यह भी कि हमें करप्शन रहित छूत-अछूत रहित समाज व् सिस्टम भी चाहिए| बिल्कुल मिलेगा ऐसा समाज व् सिस्टम परन्तु अगर उतनी ही ललक से करप्शन व् छूत-अछूत रहित सिस्टम्स खड़े करोगे या उनका हिस्सा बनोगे| 


दूर रहो ऐसे लोगों व् सोच से जो यह कह के दान लेते या करवाते हैं कि, "दान का हिसाब नहीं होता"| ऐसे लोगों को बढ़ावा देना कभी भी आपको करप्शन व् छुआ-छूत रहित समाज व् सिस्टम नहीं बनाने देगा| 


जय यौद्धेय! - फूल मलिक 

भगवान के भक्त बनने से अच्छा उसके लुटेरे बनो, अन्यथा?

भगवान के भक्त बनने से अच्छा उसके लुटेरे बनो, अन्यथा?:


पिछली सरकारों में सिर्फ चोर थे, सरकारी सिस्टम में घपले करते थे; कम-से-कम पब्लिक का पर्दा रखते थे इतनी शर्म फिर भी पालते थे| 


यह सरकार आई, चोरों की जगह डकैत आए; तुम्हारी यानि पब्लिक प्रॉपर्टी को तुम्हारी नाक के नीचे ओने-पौने दामों पे प्राइवेट को बेच रहे, माल्या-चौकसी-मोदी जैसे लॉन-डिफॉलटर्स को दिन-दहाड़े बॉर्डर्स पार करवा रहे| आगे की तरक्की गज़ब भाई, भक्तों ने गली-गली धक्के खा-खा जो 5-5 रूपये चंदा जुटाया था, उससे बनने वाले मंदिर के लिए जमीन खरीदने के नाम पर 2 करोड़ की जमीन 10 मिनट में 16.5 करोड़ की बना के मुल्ला अंसारी (जिनसे नफरत की डोज पे भक्त बनाए जाते हैं) के साथ मिलके 14.5 करोड़ का गबन कर गए| ज्यादा नहीं तो 50% तो मुल्ला जी को भी मिला ही होगा? और देख लेना, जिस पाप-पुण्य के चक्कर में फंसा के तुमसे दान करवाते हैं, वह पाप-पुण्य बाल भी बांका नहीं कर पाएगा इनका; बल्कि चम्पत मिश्रा को बचाया और जाएगा|  


क्यों पड़े हो इनके चक्करों में, तुम्हारे पुरखे पागल नहीं थे जो यह कहते थे कि, "इतने 80 फुट ऊँचा खम्बा खड़ा करो, इतने 80 फुट नीचे धरती में उतार लो; माणस-जी-जंतु को पीने को पानी तो हो जाएगा"| धर्म के नाम का ढाहरा तो इतना भतेरा जितना पुरखे "दादा नगर खेड़ों" के रूप बता गए| इससे ज्यादा के फंडों से तो ढोंगी-पाखंडी, सबसे गैर-जिम्मेदार लोगों को कोढ़ की तरह पालना कहलाता है| बताओ भगवान के 14.5 करोड़ का गबन करने वाला भगवान से न डरा, वह डरेगा तुमसे; मानेगा तुम्हारी कोई काण? 


और सबसे बुरा तरीका तो आर्य-समाजियों को बहकाने का चलाया हुआ है फंडियों ने| आर्य-समाज ने जिनको अवतार माना ही नहीं,  उनकी कोई निश्चित तारिख-काल नहीं मिलता; इनको किस्सों में दर्जनों तुम्हारे समाज-मान-मर्यादा-रिवाजों के विपरीत बातें हैं; मात्र राजा माना वह भी अगर हुए थे तो उनके भी मंदिर बनाने लगे हुए हैं? तो फिर राजाओं के ही मंदिर बनवाने हैं तो महाराजा हर्षवर्धन, महाराजा सूरजमल, महाराजा रणजीत सिंह, राजा नाहर सिंह के ही बनवा लो ना? या फिर दादा हरवीर सिंह गुलिया बादली वाले, दादा चौधरी गॉड गोकुला जी  सिनसिनवार, दादा चौधरी जाटवान जी गठवाला, दादीराणी समाकौर गठवाली, दादीराणी भागीरथी कौर, दादीराणी माई भागो आदि-आदि सर्वखाप यौद्धेयों के "खापद्वारे" बनवा लो? ये कम-से-कम साबित तौर पर थारे अपने खून-खूम के तो हैं; उनकी अपेक्षा जिनपे तुम समेत कई जातियां उनके अपने होने का क्लेम धरती हैं|  


फंडियों को अगर अपना धन व् दिमाग दोगे तो सिवाए इसके दोहन के जो एक ओंस भी बढ़ोतरी हेतु कुछ पा लो तो| यह राम के नाम पे घपले-घोटाले करने से नहीं डरते, तुमसे डरेंगे, रखेंगे तुम्हारी काण? 


जिस देश-समाज में धर्म में ही करप्शन हो, उसके सरकारी व् कर्मचारी तंत्र से ले आम इंसान से क्या उम्मीद करोगे? कहाँ से लाओगे वह लोग, जिनसे उम्मीद करते हो कि वह एक करप्शन रहित, छूत-अछूत रहित समाज बना के दें? लाजिमी है कि इनसे पिंड छुटाये रखे बिना, यह सब सम्भव ही नहीं|  


जय यौद्धेय! - फूल मलिक 

Tuesday, 8 June 2021

जाट जैसे समाज को दोहरे बुड़के मार-मार खाता फंडी!

हमने इस बात के लाइव उदाहरण देखे हैं कि फंडी, एक तरफ जाट से दान हासिल करने के चक्कर में उसको चने-के-झाड़ पर चढ़ाये रखने टाइप में 70 कसीदे उसकी शान में घड़ता है और दूसरी तरफ वही फंडी, दलित-ओबीसी को जाट से बिदकाये रख के समाज का 35 बनाम 1 बनाए रखने हेतु दलित-ओबीसी के सामने दलित-ओबीसी को तो जाट का पीड़ित दिखाता ही है, उससे भी ज्यादा खुद को भी दलित-ओबीसी के आगे जाट के खौफ में दिखाता है| और यह स्थिति भारतीय परिवेश में हर उस समाज के साथ फंडी करता है जो-जो जहाँ जाट के किरदार में है| संदक दिखती बात है जब तक इस फंडी नाम के समाज के आवारा जानवर से आप अपनी कौम व् उसकी रेपुटेशन की रक्षा नहीं करेंगे; यह आपको यूँ ही दोहरी मार से बुड़के-बुड़के खाता रहेगा; एक तरफ आपसे दान का याचक बन के, दूसरी तरफ दलित-ओबीसी के बीच बनी आपकी साख गिरा के| इसलिए आज के दिन जाट जैसी कम्युनिटी को जरूरत है तो अपने खुद के मार्केटर्स की, प्रमोटर्स की, फंडी द्वारा दलित-ओबीसी व् जाट के बीच खड़े किए अस्तित्वहीन मतभेदों-डरावों को मिटाने की| जाट जैसे हर समाज को इस बात पर नजर रखनी चाहिए कि अपनी मेहनत व् "खाप-खेड़ा-खेत" जैसी उदारवादी जमींदारी की ethical capitalism के प्रोफेशन के जरिए समाज की हर कम्युनिटी में जो भी आप पॉजिटिव कमाते हो; उसपे साथ-की-साथ झाड़ू फेरता है फंडी| और इसको नकेल लगाने का एक ही तरीका है कि दलित-ओबीसी के साथ "zero communication" गैप के "minimum common programs" सुनिश्चित किए जाएं| 


और यह मैं गलत नहीं कह रहा, जब चाहो प्रैक्टिकल में आप चेक कर लो| चेक करने का फार्मूला नहीं समझ आवे तो मैं बता दूंगा| 


जय यौद्धेय! - फूल मलिक 

Sunday, 30 May 2021

जाति नहीं, वर्ण खत्म हो!

लेख का उद्देश्य: फंडियों के psychological war-game को समझने हेतु!

क्या कभी एक ही वर्ण के अंदर गिनी जाने वाली जातियों (गिनी जाने वाली लिखा है, क्योंकि जरूरी नहीं कि सभी जाति खुद को किसी वर्ण सिस्टम का हिस्सा मानती हों) में वर्ण-आधारित मनभेद या मतभेद जैसे कि छूत-अछूत, ऊंच-नीच, रंग-नश्ल पाए जाते हैं; नहीं; बल्कि यह सब भेद अंतर-वर्ण पाए जाते हैं| एक वर्ण तो ऐसा है जो अपने वर्ण के धर्म-कर्म-पूजा-पाठ अपने वर्ण से बाहर वाले से नहीं करवाता अपितु खुद ही करते हैं; चाहे बेशक दूसरे वर्ण वाला सर्टिफाइड शास्त्री व् क्वालिफाइड पुजारी ही क्यों ना हो| किधर हैं वो जो कहते हैं कि वर्ण तो कर्म आधारित होते हैं, तो क्यों नहीं करवाते बराबरी के सम्मान से खुद के वर्ण से बाहर वाले से अपने यहाँ के धर्म-कर्म-पूजा-पाठ? "भाईचारा" शब्द का छद्म सहारा सबसे ज्यादा यह खुद के वर्ण के पूजा-पाठ दूसरे वर्ण के शास्त्री-पुजारी से नहीं करवाने वाला ही सबसे ज्यादा लेता है| देखना यह पोस्ट पढ़ते ही रटी-रटाई कूटनीति के तहत कहेंगे कि देखो यह तो "भाईचारा" तोड़ने वाली पोस्ट है; नहीं यह तुम्हारे पाप से भरे भीतर फ़ोड़ने की पोस्ट है, भाई कह कर भी जो अलगाववाद तुम बरतते हो उस पर चोट है, जो इस समाज को दीमक की तरह चाट रहा है|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Saturday, 29 May 2021

उदारवादी जमींदारी कल्चर की धरती अडानी-अम्बानी जैसे कॉर्पोरेट्स को इतना क्यों आकर्षित कर रही है कि इसको हड़पने को येन-केन-प्रकेण से कृषि का नाम दे कर 3 काले कानून पास करवा लिए?

भूमिका: आज के दिन अडानी-अम्बानी जैसे बड़े-बड़े कॉर्पोरेट वालों को भी खेती करने का शौक चढ़ा है, 5000-5000 एकड़ के बड़े एग्रीकल्चर-फार्म बनाना चाहते हैं हरयाणा-पंजाब की धरती पर| एक तो आखिर पूरे देश में इनको यही धरती क्यों चाहिए? ऊपर से सोचो तुम्हें-हमें तो बचपन से यह तर्क दे कर बड़ा किया गया कि "पढ़ ले बेटा, कुछ नहीं धरा खेती में" या किसी का बालक नहीं पढता था तो कहते थे कि, "इसको दो-चार महीने खेतों में रगड़ा लगाओ खेती का, अपने आप पढ़ाई की कीमत समझ आ जाएगी"| अब पता नहीं यह हीन भावनाएं कौन लाता था समाज में, वह भी ऐसे धंधे बारे, जिसकी सबसे स्थाई इकॉनमी देने की क्षमता व् महत्ता किसान कम जानते थे व् यह बड़े-बड़े व्यापारी शायद ज्यादा जानते हैं जो किसान बनने को लालायित हुए जाते हैं?


परिवेश: इस बीच के भाग को पढ़ते हुए थोड़ी उबासी आना सम्भव है, परन्तु समस्या जड़ से समझनी है; तो खा जाओ एक-एक अक्षर को| बोर हो सकते हो परन्तु पढ़ के यही कहोगे कि पढ़ना व्यर्थ नहीं गया| तो आइए, समझते हैं उदारवादी जमींदारी को; और क्यों अडानी-अम्बानी इसको हड़पने को लालायित हैं:

1) वर्किंग कल्चर:
1.1) इस जमींदारी का "सीरी-साझी" वर्किंग कल्चर है| "सीरी-साझी" का मतलब है काम के साथ-साथ दुःख-सुख के पार्टनर; कोई नौकर-मालिक नहीं|
1.2) पुराने वक्तों से इसमें जब जमींदार, साझी को अपने यहाँ काम पर रखता है तो सालाना करारनामा घोषित होता है, जो कि पहले जमींदार अपने घर की बहियों में एक गवाह बीच में ले के लिखवाता आया है, आजकल पक्की रजिस्ट्रियां भी होने लगी हैं| इस करार के तहत साल की तय राशि यानि तनख्वाह का आधा साझी को सीर लिखे जाने की तारीख को देने का विधान रहा है व् आधा साल खत्म होने पर| इस तनख्वाह के अतिरिक्त तीन वक्त का फ्री खाना, सामर्थ्यानुसार कपड़ा-लत्ता, अनाज-तूड़ी-ईंधन का सहारा सीरी अपने साझी को लगाता आया है| आजकल महीना आधारित सिस्टम भी आ गया है| भीड़ पड़ी में सीरी, अपने साझी के घर के ब्याह-वाणे तक ओटता आया है| ब्याह-वाणे तो किसान से बंधे कारीगर बिरादरियों के घरों के भी ओटे जाते रहे हैं|
1.3) बंधुआ मजदूरी इस सिस्टम में नगण्य पाई जाती है अन्यथा कोई करता पाया जाता है तो उसको कभी प्रोत्साहित नहीं किया जाता अपितु हतोत्साहित ही किया जाता है|
1.4) इस कल्चर में साझी को नेग से बोला जाता है यानि दादा है तो दादा, काका-ताऊ, भाई-भतीजा है तो इस हिसाब से|
1.5) इस कल्चर में सीरी-साझी मिलके खेत कमाते हैं, दोनों खेत में खटते हैं|
1.6) वर्णवाद इस सिस्टम में वर्जित है, फिर भी कोई साझी ऐसा करता है तो उसको यथोचित स्थान व् आदर नहीं मिलता|
1.7) विश्व की Google जैसी बड़ी कम्पनी का वर्किंग कल्चर इसी "सीरी-साझी" सिद्धांत पर आधारित है|
1:8) यह एक "नैतिक पूंजीवाद" यानि "अर्थ प्लस मानवता" का सिस्टम है जो कहता है कि कमाओ और बराबरी के मौकों व् सम्मान से कमाने दो|
1.9) इसका मुख्यत: फैलाव हरयाणा-पंजाब-दिल्ली-वेस्ट यूपी, दक्षिणी उत्तराखंड व् उत्तरी राजस्थान में है|

2) आध्यात्मिक कल्चर:
2.1) युगों पुराना मूर्ती-पूजा रहित, परमात्मा के एकरूप को मानने वाला, धोक-ज्योत में औरत को 100% प्रतिनिधित्व देने वाला, वर्ण-जाति के भेदभाव से रहित, अवतारवाद को नहीं मानने वाला, ऊंच-नीच के बर्ताव से रहित, गाम में सबसे-पहले आ के बसने वाले पुरखों द्वारा स्थापित "दादा नगर खेड़े बड़े बीरों" का प्रकृति व् मानवता को सहेजने का आध्यात्मिक कल्चर होता है उदारवादी जमींदारी|
2.2) यहाँ ध्यान देने की बात है कि सन 1875 में बने आर्य-समाज में "मूर्ती-पूजा" नहीं करने, परमात्मा के एकरूप को ही मानने, अवतारवाद को नहीं मानने के जैसे सिद्धांत इस 1875 से सदियों पहले से विदयमान उदारवादी जमींदारी आध्यात्म से ही लिए गए हैं| और यही समानताएं सबसे बड़ी वजहें थी कि खापलैंड पर आर्य-समाज इतना अंगीकृत किया गया|

बोल नगर खेड़े की जय!

3) सोशल इंजीनियरिंग कल्चर:
इस कल्चर की सूत्रधार, कर्णधार खाप पंचायतें हैं| सर्वखाप (खाप/पाल) / मिसल की
3.1) निशुल्क व् वक्त पर न्याय देना,
3.2) मानवीय व्यवहार में सबका बराबरी से ख्याल रखना,
3.3) हर गाम में अखाड़ों के जरिये मिल्ट्री कल्चर पाल के "पहलवान तैयार" करने का सुरक्षा सिस्टम रखना (आजकल फ़ौज-पुलिस में सबसे ज्यादा सैनिक-सिपाही इन्हीं अखाड़ों की देन होते हैं; पहले इनके "पहलवानी दस्ते" होते थे, जो सर्वखाप या खाप की चिट्ठी के जरिये दी गई इमरजेंसी कॉल पे रातों-रात इकठ्ठे हो आर्मी जितना आकार ले लिया करते थे; जिसका कि एक नमूना 28 जनवरी 2021 की रात चौधरी राकेश टिकैत के आंसुओं पर "किसान आंदोलन" को बचाने हेतु रातों-रात जुटता आप सबने देखा; यह जींस में पीढ़ी-दर-पीढ़ी पलते आये "मिल्ट्री कल्चर" का ही परिणाम था),
3.4) छोटे किलानुमी परस/चौपाल/चुपाड़ के जरिये सामुदायिक सभायें/बैठकें कर गाम-प्रदेश-देश की हलचलों को सबमें पास करना; यह उदारवादी जमींदारी कल्चर के शीर्ष सोशल इंजीनियरिंग बिंदु हैं|
3.5) परस/चौपाल/चुपाड़ ग्रामीण भारत में सिर्फ खापलैंड (ग्रेटर हरयाणा) व् मिसललैंड (पंजाब) पर ही पाई जाती हैं|
3.6) गाम-खेड़े में कोई भूखा-नंगा नहीं सोना चाहिए की मानवता,
3.7) गाम की 36 बिरादरी की बेटी-बुआ-बहन, सबकी बेटी-बुआ-बहन, ब्याह-वाणे में गाम-गौत-गुहांड (एक गौतीय खेड़े में), गौत (बहु-गौतीय खेड़े में) छोड़ने का विधान, ऐच्छिक विधवा-विवाह, सति-प्रथा व् देवदासी कल्चर को वर्जित रखना, "खेड़े के गौत में लिंग-समानता से गाम का बसना", बेटी/धाणी/देहल की औलाद की सूरत में औलाद का गौत पिता की बजाए माँ का होना" "महिला-सुरक्षा" के तहत सर्वखाप पालती आई है|

4) आर्थिक कल्चर:
4.1) नैतिक पूंजीवाद (यानि कमाओ व् कमाने दो) जिसके तहत दैनिक वस्तुओं व् सेवाओं के विपणन की "बार्टर सिस्टम प्रणाली" यानि सेवा के बदले वस्तु या सेवा विधान आज भी चलन में हैं|
4.2) मुद्रा अधितकर पशु व् वाहन खरीद में ज्यादा उपयोग होती थी, आजकल दैनिक वस्तुओं व् सेवाओं में भी प्रयोग में चल चुकी है|

विवेचना: क्यों लालायित हैं अडानी-अम्बानी जैसे कॉर्पोरेट्स यहाँ खेती करने को?

एक तो इस ऊपर बताए उदारवादी सिस्टम की खूबी देखिये; देश में आमिर-गरीब का सबसे कम अंतर् इस सिस्टम की देन है| बिहार-बंगाल की तरह आज तक किसी दलित, ओबीसी को मात्र बेसिक दिहाड़ी कमाने को कभी मुंबई, हरयाणा, पंजाब नहीं दौड़ना पड़ा| खापलैंड व् मिसललैंड पर मुंबई-गुजरात की तरह बंगाली-बिहारी-आसामी प्रवासियों को भाषावाद, क्षेत्रवाद की व्यापक झिड़क व् मार नहीं झेलनी पड़ी| यह सब बातें, अडानी-अम्बानी जैसों को गारंटी की हद तक जा कर आकर्षित कर रही हैं|

इसके ऊपर जुल्म इनकी सामंती सोच यानि अनैतिक पूंजीवाद के "वो कमाए तुम जोड़ो", "वर्णवाद का भेद बरतो", "नौकर-मालिक" के सिद्धांत; जो कि उदारवादी जमींदारी के बिल्कुल विपरीत हैं| और इस सामंती सोच के लोगों को अपना सामंती सिस्टम यहाँ लागू करने को उदारवादी जमींदारी का ऊपर बताया कल्चर सेट नहीं चाहिए; यह सब हटाना है| आपका यह सारा वैल्यू सिस्टम, इकनोमिक सिस्टम हड़पना है| यानि आप इनको एक सहज टारगेट दिख रहे हो; इसलिए यह लालायित हुए चले आते हैं|

यह सब जान के क्या आप लुटने देना चाहेंगे, आपके पुरखों द्वारा व्यवस्थित व् स्थापित इस सिस्टम को? शायद नहीं ही जवाब होगा आपका? तो इन सामंतियों से छुटकारा पाना होगा| इनसे छुटकारा पाने को यह दो चोटें सबसे ज्यादा समझते हैं, पहली नोट की व् दूसरी वोट की| वोट की यह सह भी जाते हैं, जैसे अभी 5 राज्यों के विधानसभा चुनावों में सह गए, बंगाल की हार भी झुकाती नहीं दिखती इनको| तो ऐसे में कौनसी चोट सबसे कारक है; नोट की| व् यह कैसे सम्भव होगी? आर्थिक असहयोग से? परन्तु वह कैसे किया जाए; क्योंकि छोटा व् मंझला व्यापारी तो किसान के साथ है? इसका मध्यमार्गी तरीका होगा न्यूनतम 3 महीने के लिए खाने-पीने के सामान को छोड़ के 25000 रुपए से ऊपर की कीमत की कोई वस्तु-सेवा ना खरीदी जाए|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Wednesday, 26 May 2021

'मार दिया मठ', 'हो गया मठ', 'कर दिया मठ'!

यह कहावतें हमारे समाज में होने का मतलब समझने की जरूरत है| कल थोड़ा सा व्यस्त था इसलिए बुद्ध पूर्णिमा पर पोस्ट नहीं निकाल पाया| 'मठ' बुद्ध धर्म का ही कांसेप्ट है, वहीँ से कॉपी हुआ है बाकी सब जगह| जाट महाराजा हर्षवर्धन बैंस बुद्ध धर्मी हो गए थे, यह वही जाट राजा हैं जिन्होनें "सर्वखाप" सिस्टम को 643 AD में विश्व में सबसे पहले 'लीगल सोशल जस्टिस' में समाहित किया था व् खापों को ठीक वैसी ही सोशल जूरी होने की वैधानिक मान्यता दी थी जैसी कि आज के दिन अमेरिका-यूरोप-ऑस्ट्रेलिया आदि में पाई जाती है|


अकेले वर्तमान हरयाणा की बात करें तो इसमें 22 पुरातत्व साइटें हैं बुद्ध की| भंते (8 पीढ़ी पहले मेरे एक दादा का नाम भंता रखा गया था, आज मेरे गाम में उनके नाम से पूरा ठोला बसता है) मठों में समाधि लगा कर बैठते थे| जब राजा पुष्यमित्र सुंग ने धोखे से गद्दी हथियाई व् उसका राज आया तो मठों में तपस्या में लीन भंतों की गर्दनें कटवाई गई व् उनके मठ-के-मठ जला दिए गए| यह इतने व्यापक स्तर पर हुआ था कि किसी के यहाँ नुकसान होना, बुरा होना; मठ मारने का पर्याय बन गया|

पुष्यमित्र को कैसे इन कुकृत्यों से रोका गया था, इस बारे "हरयाणा का इतिहास" पुस्तक में प्रोफेसर के. सी. यादव लिखते हैं कि उसकी 100000 की सेना को बुद्ध मीमांसा में तल्लीन 9000 जाटों ने समाधि छोड़, अपने 1500 लोग खपा के इस सेना को काटा था, तब जा के यह टिके थे|

आज वालों के भी वही लच्छन हैं, यह देश में गृहयुद्ध करवाए बिना टिकेंगे नहीं; क्योंकि यह येन-प्रकेण सत्ता हथियाना तो जानते हैं, परन्तु उसको सुचारु रूप से चलाना इनके DNA में ही नहीं है| तब से अब तक इनके तौर-तरीकों-सोच में कुछ नहीं बदला|

Belated Happy Buddha Poornima!

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Monday, 24 May 2021

किसान आंदोलन का हिसार अध्याय व् आगे की दिशा!

थोड़ा किसान आंदोलन के साइड-बाई एक और जो जरूरी पहलु है उस पर बात करूँगा, जो बात को किसान आंदोलन के जीवन से भी आगे जाती है| 


कच्छाधारी फंडियों की 7 साल की सरकार में आज हिसार में पहली सबसे बड़ी वह कामयाबी मिली जिसने लोकंतत्र जिंदा होने की आस को फिर से खड़ा किया है| परन्तु क्या आगे की राह इतनी आसान है? नहीं है, जब तक ओबीसी व् दलित में जिस भी स्तर तक कच्छाधारी अपना प्रभाव जमा चुके हैं; उसको एक-एक किसान-मजदूर का बालक प्रचारक बन के नहीं निकालेगा या कम-से-कम इनके दोगले चेहरे व् सोच को नंगा नहीं करेगा; तब तक सफर भी अधूरा व् मंजिल भी दूर| 


मुझे तो ताज्जुब होता है हर उस ओबीसी व् दलित पर जो गोलवलकर के उन बारे यह विचार कि "मैं सारी जिंदगी अंग्रेजों की गुलामी करने के लिए तैयार हूँ, लेकिन जो दलित, पिछड़ों व् मुसलमानों को बराबरी का अधिकार देती हो ऐसी आज़ादी मुझे नहीं चाहिए|" जानकर भी इनके साथ जुड़े हुए हैं| जिनकी सोच के मूल में दलित व् ओबीसी के लिए इतनी नफरत हो, वह संघ की शाखाओं में कितना ही बराबरी का राग अलापते रहें, जातिवादी नहीं होने की पीपनी बजाते रहें परन्तु इनके मूल में तो नफरत व् जातिवाद ही है ना? अन्यथा दलित व् ओबीसी बारे ऐसी बातें करने वाला व् ऐसी सोच रखने वाला कैसे आरएसएस का 33 साल तक प्रमुख रहा? ताज्जुब है कि आज तक कोई दलित ओबीसी ऐसा नहीं दीखता, जिसने उनके बारे गोलवलकर की यह बात जानी हो और इसपे इनसे कभी सवाल किया हो? या गोलवलकर की कही इस स्टेटमेंट में सिर्फ मुसलमान शब्द देख कर इनके साथ डट जाते हो व् इसको इग्नोर कर देते हो कि मुसलमान के साथ-साथ उसने इसमें दलित व् पिछड़े को भी लपेटा हुआ है? यही समाज की मानसिक गुलामी व् पिछड़ेपन की सबसे बड़ी वजह है|


ऐसे लोगों की यह चुप्पी चाहे जिस भी वजह से है परन्तु इसका दंड यह तो भुगत ही रहे हैं साथ-की-साथ उत्तरी भारत की बड़ी किसान कौमें भी भुगत रही हैं| क्या इनको ज्वाइन करने वाला कोई ओबीसी व् दलित यह बताएगा कि ऐसी कौनसी वजहें हैं जो यह आपको बताते या सिखाते हैं व् आप दिनरात आपके साथ खड़ी रहने वाली व् आपसी रोजगार की सूत्रधार किसान जातियों को छोड़ इनके साथ मिलके आप इन किसान जातियों के ही खिलाफ खड़े हो जाते हैं, जैसे कि फरवरी 2016 का 35 बनाम 1? आप नहीं भी खड़े होते होंगे तो यह इस 35 में आपका नाम तो जोड़ ही लेते हैं| और वह भी बावजूद इसके कि यही वह लोग हैं जो आपको वर्णवाद में शूद्र श्रेणी में रखते हैं, छूत-अछूत, ऊंच-नीच में बांटते हैं? आपका छुआ खाना-पीना तक पसंद नहीं करते? 


यह जो जहर इन कच्छाधारी फंडियों ने समाज में नीचे-नीचे उतारा है, इसको साफ़ करने को कदम बढ़ाने होंगे| तब जा कर किसान समेत मजदूर वर्ग अपनी उस आभा-गौरव को वापिस पा सकेंगे जिस पर आ के दिन इन फंडियों के इनके polarisation व् manipulation के जहर की काली स्याही फेरी हुई है| 


जय यौद्धेय! - फूल मलिक 

Friday, 21 May 2021

फंडी कैसे किसी को उसके साइकोलॉजिकल ट्रैप (जाल) में लेता है!

ग्रीक फिलोसोफर Aristotle की theory of convincing के अनुसार तीन तरीकों से एक इंसान को प्रभाव में लिया जा सकता है:


1) Ethos (Authority) यानि अधिकृत विषेशज्ञ 

2) Logos (Logics) यानि तार्किकता 

3) Pathos (Emotions) यानि भावुकता, भावनात्मकता


एक संसार को स्वस्थ तरीके से चलाने हेतु इन तीनों का बराबर से इस्तेमाल ही सर्वश्रेष्ठ मार्ग है| परन्तु फंडी, इनमें से सिर्फ इमोशंस को आप पर इस्तेमाल करता है यानि भावना| 


और भावना किस से पैदा होती है? Ekman, Paul; Davidson, Richard J. (1994) के अनुसार "कोई भी ऐसी चीज/अनुभव/विचार/व्यवहार जो आपको दुःख या ख़ुशी की, जुड़ाव या अलगाव की तरंगे दे; वह आप में उस वस्तु/व्यक्ति आदि के प्रति नकारात्मक या सकारात्मक भावना पैदा करता है| 


और फंडी हर उस बाह्य वस्तु/विचार को आप पर अपनी भावनाएं थोंपने के लिए इस्तेमाल करता है जो आप में सकारात्मकता व् जुड़ाव, कहिये कि आदर भाव पैदा करती होती हैं| 


जब आंतरिक तौर पर आप पर हमला करना होगा तो आपकी नकारात्मकता को फंडी सबसे ज्यादा कुरेदता है| 


इस तरीके से जब उसने आपकी रग पकड़ ली, फिर वह आप पर साम-दाम-दंड-भेद आजमाता है| 


जय यौद्धेय! - फूल मलिक  


Thursday, 20 May 2021

फंडी, ना साइंस से चलता है और ना लॉजिक से; वह चलता है साइकोलॉजिकल ट्रैपिंग से!

फंडी को समझने के लिए साइंस या लॉजिक्स ना पढ़ें अपितु साइकोलॉजी यानि मनौविज्ञान के ज्ञाता बनें| जिस दिन इनका मनौविज्ञान से चलना समझ गए, उस दिन इन बातों पर आश्चर्य करना छोड़ दोगे कि, "हाय-हाय फलाना-धकड़ा या फलानी-धकडी इतना पढ़ा-लिखा हो के भी फंड-आडंबर में डूबा हुआ या हुई है"| या कहो कि "इतना बड़ा असफर-साइंटिस्ट हो के भी आकंठ आडंबर में डूबा निकला", आदि-आदि|

अब यही देख लो: मैं तो बड़ा हैरान होता था बचपन में कुछ ज्यादा ही आधुनिक अथवा पढ़ा-लिखा होने का दावा ठोंकनें वालों की सुन के, जो कहते थे कि, "अजी, मुझे तो गोबर-मूत से एलर्जी है"| कई गिरकाणी लुगाई तो चाहे उनको गोबर-मूत का काम भी नहीं करना होता था परन्तु अपने गाम वाली देवरानी-जेठानी के आगे ऊँचा थोबड़ा रखने को ही गोबर के आगे से नांक-मुंह सिकोड़ के निकलती थी| एक वक्त वह भी आया जब रिश्ते वालों ने भी ऐसी शर्तें रखी कि म्हारी छोरी गोबर-खेत का नहीं करेगी| ना और थारी छोरी साँप पकड़ेगी, ल्या देवें सपेरे वाली एक बीन और पिटारा?
और आज देख रहा हूँ कि सबसे ज्यादा यही गिरकाने गोबर-मूत में नहाते-लेटते फिर रहे हैं; और इनमें क्या साइंस पढ़े हुए, क्या आर्ट व् कॉमर्स पढ़े हुए; पट्ठे सब पटे पे चढ़ा रखे हैं फंडियों ने| फंडियों ने ऐसे ब्रैनवॉश कर दिए इनके कि इनको सारी साइंस गोबर-मूत में ही नजर आती है|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Tuesday, 18 May 2021

बावन बुद्धि आणिया, छप्पन बुद्धि जाट!

सुनी थी छप्पन बुद्धि जब महाराजा सूरजमल ने चलाई तो नागपुर-पुणे के चितपावनी पेशवे भी दिल्ली पर राज करने के सपनों का मन-मसोसवा के व् हाथ-मलवा के वापिस पुणे छुड़वा दिए गए थे| क्यों पड़े हो फिर से इनके चक्कर में, यह इतने भले होते तो तुम्हारा यह पुरखा इनको वापिस जाने की हालत में लाता क्या?

सुनी थी छप्पन बुद्धि जब सर छोटूराम ने चलाई थी तो आज़ादी से पहले के "यूनाइटेड पंजाब" से गाम-के-गाम, ताखड़ी पे डंडी मारने व् चक्रवर्धी सूदखोरी करने वालों से खाली हो गए थे? उस एथिकल-कैपिटलिज्म (ethical capitalism) के धोतक ने, सारी बावन की बावन झाड़ ली थी|
अगला कौन आएगा इस क्रम में व् कब आएगा; यह इंतज़ार इतना लम्बा ना हो जाए कि किसान आंदोलन से, फंडियों के जुल्मों से मुक्ति पाने की आस जो किसान ही नहीं अपितु मजदूर, छोटे-मंझले व्यापारी व् वास्तविक धार्मिक प्रतिनिधियों की इससे जुडी हैं, वह टूट जाएं| क्या प्रकृति-परमात्मा-पुरखे इतने ज्यादा रूष्ट हुए खड़े हैं कि राह अभी हासिल नहीं? इनसे तो लड़ाई भी बुद्धि की है, तो धरनों पे यह रोज-रोज की दौड़-धूप किस ख़ुशी में करवाई जा रही है, जहाँ बैठे हैं वहां बैठ के सर-जोड़ के छप्पन बुद्धि से चलाने की जरूरत है इस आंदोलन को; बोहें-दाडें-भृकुटि दिखाने-दरडाने की नहीं|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक