"बिल्ली या काली बिल्ली का रास्ता काटना"!
पुराने जमाने में जब मोटर-कार की जगह लोग बैलगाड़ी से सफर करते थे तो रात के समय गाडी के नीचे लालटेन जला के रखते हुए चलते थे| लालटेन केरोसीन तेल से जलती थी, जिसकी रौशनी अगर बिल्ली की आँख की रेटिना पर पड़ जाए तो वो चमकने लग जाती थी और तीव्र गति की भड़कीली प्रकाश-ऊर्जा की किरणें विसर्जित करने लग जाती और इस चमक से बैल डर जाया करते थे, जिससे कि बैलों के बिदकने यानि भड़कने का भय रहता था| और बैल भड़के तो गाड़ीवान से ले गाडीस्वार और सामान को नुकसान का खतरा|
तो बिल्लियाँ रास्ता ना काटें, लोग ऐसा सिर्फ और सिर्फ इस वैज्ञानिक कारण की वजह से सोचते थे| लेकिन-क्योंकि-किन्तु-परन्तु फंडी और पाखंडी डेरों-मंडेरों में खाली बैठे हुआ करते थे, जो कि आज भी बैठे होते हैं और खाली दिमाग शैतान का घर होता ही है| इसलिए ऐसी चीजों को शुभ-अशुभ, होनी-अनहोनी में बदलने में ही इनके दिमाग ज्यादा चलते हैं| तो बस बना दिया इसको अपसकुन का ढकोसला और ऐसे वो बिल्ली जिसको कि फसल में छोड़ दो तो चूहे फसल के नजदीक ना आवें, साथ रखो तो सच्ची दोस्त बन जावे; वही बिल्ली बन गई समाज के अंधभक्त-अंधविश्वासी लोगों के लिए मनहूस-अपसकुनि|
और इसीलिए तो मेरे गाँव में फंडी-पाखंडी कोई सामूहिक दावा करने आवे तो, हर बार जूते खा के जावे है| - फूल मलिक
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