Monday, 23 March 2015

जातीय और वर्णीय सेकुलरिज्म!

हिन्दू होते हुए जो मुस्लिम के लिए बोले, वो तो हो गया 'धार्मिक सेक्युलर'; और सिर्फ हिन्दू और हिन्दुइस्म की बात करने वाला हो गया 'तथाकथित राष्ट्रवादी'|

तो ऐसे ही हिन्दू की जाति या वर्ण का होते हुए जो अपने लिए बोलने से पहले बाकी की 35 कौमों या 4 वर्णों की बात करे वो भी तो 'जातीय या वर्णीय सेक्युलर' होना चाहिए ना; और जो सिर्फ अपनी और अपनी जाति की बात करे वो ही शुद्ध रूप से राष्ट्रवादी होना चाहिए, नहीं?

जैसे 'धार्मिक सेक्युलरलिस्म' है ऐसे ही 'जातीय और वर्णीय सेकुलरिज्म' है; फर्क सिर्फ इतना है कि वो धर्म के लेवल का है और यह जाति और वर्ण के लेवल का| इसलिए आज से अपने लिए बोलने से पहले बाकियों के लिए बोलने वाले 'जातीय और वर्णीय सेकुलरिज्म' को भी अब खत्म कर देना चाहिए| और सिर्फ उन नश्लों से सेकुलरिज्म बढ़ाना चाहिए जो आपको अपना समझती हों और जो आपके लिए कारोबारी तौर पर व् विचारात्मक तौर पर समकक्ष हों| इस अंधे 'जातीय और वर्णीय सेकुलरिज्म' को अब तिलांजलि हो| अब जमाना आ गया है सेकुलरिज्म के नाम पर धर्म के बाद इस 'जातीय और वर्णीय सेकुलरिज्म' के कीड़ों की भी केटेगरी डिफाइन करने का, और इनको तिलांजलि देने का|

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