Monday, 13 April 2015

अबकी बार तेरी फीकी बैशाखी ओ जट्टा!

ओंधे मुंह हुआ रब, गोड्डे चढ़ा जा टोटा,
अबकी बार तेरी फीकी बैशाखी ओ जट्टा!

काल भैरवी, पाताल भैरवी, धारें दूण का सोटा,
खा गया अकूत चूट, बढ़ा चाण्डालों का कोटा!
अपनी फितरत संगवा ले, कर साक्षी नूण का लोटा,
संगठन साधे बिना सधै ना, यू फंड-फंडी का ठोस्सा||
"गॉड-गोकुला" फेर हो बणना, मार क्रांति का घोट्टा|
अबकी बार तेरी फीकी बैशाखी ओ जट्टा!

सरकार का ना करतार का, खोट बड्डा तकरार का,
अचरच माचें अचम्भे, जै ना हो 'अजगर' इकरार का|
जोड़-जुड़ाने, तोड़-तुड़ाने कर, कर ले खोल करार का,
रयात-अँधेरी छंट ज्यागी, हो दूर तम-अंधकार रा||
राद बह चली अरमानां की, रह्या ना टींगर हट्टा-कट्टा|
अबकी बार तेरी फीकी बैशाखी ओ जट्टा!

खुली पण्डोकळी, सीख बांधणी,
ला ग्याँठ म्ह, खुले बाट-ताखड़ी|
मोकळे-मोर्चयाँ पै फैला दे वंश नैं,
ग्लोबल सोच धार कैं नश-नश म||
भर ज्ञान तैं इनको ज्यूँ, तेल पिलाया कट्टा|
अबकी बार तेरी फीकी बैशाखी ओ जट्टा!

फिर देख नज़ारे काळ के, देवै हुलारे सीळी बाळ के,
जलियावालां-रोहणात् लगाइये घी के दिए बाळ के!
मोरणी फेर चढ़ेंगी हवेलियां पै, गूंजें टामर टाक के,
'फुल्ले-भगत' खोज टोहणी, ज्यूँ बादळ छटें काळ के||
जमींदारों की परस सजो सदा, जैसे नभ के म्ह चंदा|
अबकी बार तेरी फीकी बैशाखी ओ जट्टा!

ओंधे मुंह हुआ रब, गोड्डे चढ़ा जा टोटा,
अबकी बार तेरी फीकी बैशाखी ओ जट्टा!

लेखक: फूल मलिक

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