Development generated through borrowed technology will dense the patent credibility issue for an already ‘Globally Patent Crisis’ ridden nation and for generations nation won’t be able to smirk for its excellence.
Not at all the symptoms of a visionary leader!
Not at all the symptoms of a visionary leader!
सरकार क्यों विदेश-विदेश धक्के खा रहे हो तकनीक (technology) के लिये। हमारे पुराण-ग्रन्थ-वेदों में भरा पड़ा है ना सारा विश्व का तकनीक| शंकराचार्यों-आचार्यों-बाबाओं को क्यों नहीं सौंप देते यह काम, इनको भी बेतुकी-बेबाक जबान चलाने के अलावा कोई ढंग का काम मिल जायेगा करने को|
वो म्हारे हरियाणवी में एक कहावत है इस मौके की, "इतनै हांडै बगड़-बगड़, इतणे पीस ले रगड़-रगड़|"
चाहिए तो हमको यह कि पहले से ही पेटेंट-क्राइसिस (Global Patent Crisis) से जूझ रहे हम इंडियंस, अपने वेदों-पुराणों-ग्रंथों के मृतप्राय सूत्रों-दावों को खंगाल के, अपनी खुद की टेक्नोलॉजी विकसित करें, पर आप हो कि इस संकट को और जटिल बनाने में लगे हो| काश आप हमारी टेक्निकल विरासत को कोई ही विकसित करने, खंगालने के प्रोजेक्ट लांच करते, जिससे कि विश्व स्तर पर हमारे खुद के "पेटेंटों" की संख्या बढ़ती और मेरे जैसे अनाड़ी को भी पता लग पाता कि हम कितने टेक्निकल विरासत के धनी हैं| ऐसे कॉपी-कैट (copy-cat) से आप टेक्नोलॉजी तो बुलवा लोगे, परन्तु "पेटेंट" के लिए आगे की पीढ़िया इन्हीं के मुंह ताका करेंगी, जिनसे आप आज विदेशी टेक्नोलॉजी ले के देश में डाल रहे हो| और ऐसे में 'ईस्ट-इंडिया-कंपनी' की भांति कोई फिर से हमारा खसम बन के बैठ गया तो लेने के देने पड़ जायेंगे वो अलग से| इसलिए देशज टेक्नोलॉजी विकसित करवाओ जनाब देशज|
हमारे पास यह टेक्नोलॉजी, हमारे पास वह टेक्नोलॉजी, इतनी पुरानी टेक्नोलॉजी, इतनी प्राचीन टेक्नोलॉजी, वेदों की टेक्नोलॉजी, पुराणों की टेक्नोलॉजी, ग्रंथों की टेक्नोलॉजी, विश्व की प्राचीनतम खोजकर्ता, प्राचीनतम वैज्ञानिकों की टेक्नोलॉजी के तुर्रे छोड़ने वालों की पोल तो यहीं से खुल जाती है कि इनके मनकल्पित दावों और लेखनियों (हरियाणवी भाषा में पोथे-पण्डोकली) में कितनी टेक्नोलॉजी है और कितनी कल्पना|
यह सोच किसी भी मायने में दूरदर्शी नहीं|
वो म्हारे हरियाणवी में एक कहावत है इस मौके की, "इतनै हांडै बगड़-बगड़, इतणे पीस ले रगड़-रगड़|"
चाहिए तो हमको यह कि पहले से ही पेटेंट-क्राइसिस (Global Patent Crisis) से जूझ रहे हम इंडियंस, अपने वेदों-पुराणों-ग्रंथों के मृतप्राय सूत्रों-दावों को खंगाल के, अपनी खुद की टेक्नोलॉजी विकसित करें, पर आप हो कि इस संकट को और जटिल बनाने में लगे हो| काश आप हमारी टेक्निकल विरासत को कोई ही विकसित करने, खंगालने के प्रोजेक्ट लांच करते, जिससे कि विश्व स्तर पर हमारे खुद के "पेटेंटों" की संख्या बढ़ती और मेरे जैसे अनाड़ी को भी पता लग पाता कि हम कितने टेक्निकल विरासत के धनी हैं| ऐसे कॉपी-कैट (copy-cat) से आप टेक्नोलॉजी तो बुलवा लोगे, परन्तु "पेटेंट" के लिए आगे की पीढ़िया इन्हीं के मुंह ताका करेंगी, जिनसे आप आज विदेशी टेक्नोलॉजी ले के देश में डाल रहे हो| और ऐसे में 'ईस्ट-इंडिया-कंपनी' की भांति कोई फिर से हमारा खसम बन के बैठ गया तो लेने के देने पड़ जायेंगे वो अलग से| इसलिए देशज टेक्नोलॉजी विकसित करवाओ जनाब देशज|
हमारे पास यह टेक्नोलॉजी, हमारे पास वह टेक्नोलॉजी, इतनी पुरानी टेक्नोलॉजी, इतनी प्राचीन टेक्नोलॉजी, वेदों की टेक्नोलॉजी, पुराणों की टेक्नोलॉजी, ग्रंथों की टेक्नोलॉजी, विश्व की प्राचीनतम खोजकर्ता, प्राचीनतम वैज्ञानिकों की टेक्नोलॉजी के तुर्रे छोड़ने वालों की पोल तो यहीं से खुल जाती है कि इनके मनकल्पित दावों और लेखनियों (हरियाणवी भाषा में पोथे-पण्डोकली) में कितनी टेक्नोलॉजी है और कितनी कल्पना|
यह सोच किसी भी मायने में दूरदर्शी नहीं|
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