जो हमारा सबसे पॉजिटिव एसेट यानी सम्पत्ति होती है, जिसको कि रखने और
सँभालने की हमें महारत हासिल होती है, हमें उस चीज पर न्यूट्रल रहना चाहिए|
उसके प्रति नेगेटिव या पॉजिटिव मोह में पड़ने से मुसीबतें खड़ी होती हैं|
और मंडी और फंडी इस बात को अच्छे से जानता है| जाट का सबसे पॉजिटिव एसेट है जमीन को सजा-संवार के रखने की कला और जब मंडी-फंडी जाटों बारे यह बात उछालता है कि जाटों के पास तो जमीनें हैं आदि, इससे वो जाट के अंदर जमीं के लिए मोह पैदा करता है|
और जहां मोह उत्तपन हुआ वहाँ क्लेश उत्तपन होता है, क्लेश से द्वेष और द्वेष से उस कला से ध्यान भंग हो जाता है, जिसकी वजह से जाट जमीन के लिए जाना जाता है| वो कैसे वो ऐसे:
जब-जब जाट को ले के जमीन की बात की जाती है तो जाट तुरंत ही भावुक हो जाता है और खुद भी कहने लगता है कि जमीन तो जाट की माँ हुंदी है, जमीन बिना जाट क्या वगैरह-वगैरह| जबकि सच इसका उल्टा है| जाट की सुंदरता जमीन से नहीं, अपितु जमीन की सुंदरता जाट से है|
पूरे भारत के नक्शे पर नजर डालो तो पाते हैं कि सबसे समतल व् उत्तम पैदवार देने वाली जमीन जाटलैंड की है| ऐसा नहीं है कि जाटलैंड की जमीन पे सबसे ज्यादा पानी के स्त्रोत हैं| पानी के स्त्रोत के हिसाब से तो पूर्वांचल-बिहार-बंगाल कहीं आगे हैं| परन्तु उधर के लोगों को जो नहीं आता या वो नहीं करते वो है, जाट की तरह जमीन को बाहना-गाहना-संवारना| और इसीलिए वो लोग उनके वहां की जमीन इतनी उपजाऊ व् पानी के स्त्रोतों से भरपूर होने पर भी जाटलैंड पर मजदूरी करने आते हैं|
यह कहावतें बताओ कि माली के दो, जाट के नौ और गुज्जर के सौ किल्ले बराबर होते हैं| माली के दो होने पर भी जमीन माली से क्यों नहीं जुड़ी? क्योंकि माली एक सिमिति भू-भाग में बागवानी वाली खेती कर सकता है, जाट की तरह लम्बी-चौड़ी जोत नहीं बो सकता| दूसरा बागवानी की फसल जैसे कि फलों के पेड़, एक बार बो दिए तो फिर दस-पंद्रह या इससे भी ज्यादा सालों तक दोबारा बोने की जरूरत नहीं होती, क्योंकि वही पेड़ फल देते रहते हैं|
इसका दूसरा पहलु यह भी है कि फल अनाज का काम नहीं कर सकते, हाँ आमदनी फसली खेती से ज्यादा जरूर देते हैं| और फसल की खेती ऐसी है कि हर छमाही पे नई बोनी पड़ती है, जिसमें माली से जाट को ज्यादा महारत रही है|
दूसरा जो कमेरी या मजदूर जातियां हैं वो किसी के मार्गदर्शन में जमीन पे काम तो कर सकती हैं, परन्तु जमीन को संभाल नहीं सकती| पीछे 1980-90 के दशक में इन लोगों को जब सरकार द्वारा डेड से पोन-दो एकड़ प्रति परिवार मालिकाना हक के साथ जमीन दी गई तो 95% ने उसको दो दशक में ही बेच दिया|
इसलिए जमीन जाट और जाट जमीन से क्यों जुड़ा है इसको तर्कसंगत होकर रखा जाए तो जाट और जमीन को लेकर धककशाही वाले ताने देने वालों के मुंह बंद होंगे| उनके मुंह बंद होंगे जो कहते हैं कि जाटों ने तो जमीनों पे कब्जा कर रखा है, जाटों के पास तो जमीनें हैं इसलिए यह तो वैसे ही धनाढ्य हैं|
मैं ऐसे कहने वाले शरारती तत्वों से कहना चाहूंगा कि जमीन कब्जे लेने से नहीं, उसको संवार के रखने की कला से काबू में रहती है| ऐसे लोग वो जमाने याद करें जब जमीनों की गिरदावरी और चकबंदी हुआ करती थी, उस वक्त लाखों-लाख एकड़ जमीनें खाली होती थी और सब जातियों के लोगों को उसको खरीदने के ऑफर आते थे| परन्तु खरीदेगा तो वही ना जिसको उस चीज को संभाल के रखने का हुनर और जज्बा हो| इसलिए जाट ने कभी किसी की जमीन यूँ मुफ्त में नहीं कब्जाई और ना हम कोई धक्के से जमीनों पे बैठे| अपने हुनर और जज्बे से इसको बोते और बहाते हैं|
जय योद्धेय!- फूल मलिक
और मंडी और फंडी इस बात को अच्छे से जानता है| जाट का सबसे पॉजिटिव एसेट है जमीन को सजा-संवार के रखने की कला और जब मंडी-फंडी जाटों बारे यह बात उछालता है कि जाटों के पास तो जमीनें हैं आदि, इससे वो जाट के अंदर जमीं के लिए मोह पैदा करता है|
और जहां मोह उत्तपन हुआ वहाँ क्लेश उत्तपन होता है, क्लेश से द्वेष और द्वेष से उस कला से ध्यान भंग हो जाता है, जिसकी वजह से जाट जमीन के लिए जाना जाता है| वो कैसे वो ऐसे:
जब-जब जाट को ले के जमीन की बात की जाती है तो जाट तुरंत ही भावुक हो जाता है और खुद भी कहने लगता है कि जमीन तो जाट की माँ हुंदी है, जमीन बिना जाट क्या वगैरह-वगैरह| जबकि सच इसका उल्टा है| जाट की सुंदरता जमीन से नहीं, अपितु जमीन की सुंदरता जाट से है|
पूरे भारत के नक्शे पर नजर डालो तो पाते हैं कि सबसे समतल व् उत्तम पैदवार देने वाली जमीन जाटलैंड की है| ऐसा नहीं है कि जाटलैंड की जमीन पे सबसे ज्यादा पानी के स्त्रोत हैं| पानी के स्त्रोत के हिसाब से तो पूर्वांचल-बिहार-बंगाल कहीं आगे हैं| परन्तु उधर के लोगों को जो नहीं आता या वो नहीं करते वो है, जाट की तरह जमीन को बाहना-गाहना-संवारना| और इसीलिए वो लोग उनके वहां की जमीन इतनी उपजाऊ व् पानी के स्त्रोतों से भरपूर होने पर भी जाटलैंड पर मजदूरी करने आते हैं|
यह कहावतें बताओ कि माली के दो, जाट के नौ और गुज्जर के सौ किल्ले बराबर होते हैं| माली के दो होने पर भी जमीन माली से क्यों नहीं जुड़ी? क्योंकि माली एक सिमिति भू-भाग में बागवानी वाली खेती कर सकता है, जाट की तरह लम्बी-चौड़ी जोत नहीं बो सकता| दूसरा बागवानी की फसल जैसे कि फलों के पेड़, एक बार बो दिए तो फिर दस-पंद्रह या इससे भी ज्यादा सालों तक दोबारा बोने की जरूरत नहीं होती, क्योंकि वही पेड़ फल देते रहते हैं|
इसका दूसरा पहलु यह भी है कि फल अनाज का काम नहीं कर सकते, हाँ आमदनी फसली खेती से ज्यादा जरूर देते हैं| और फसल की खेती ऐसी है कि हर छमाही पे नई बोनी पड़ती है, जिसमें माली से जाट को ज्यादा महारत रही है|
दूसरा जो कमेरी या मजदूर जातियां हैं वो किसी के मार्गदर्शन में जमीन पे काम तो कर सकती हैं, परन्तु जमीन को संभाल नहीं सकती| पीछे 1980-90 के दशक में इन लोगों को जब सरकार द्वारा डेड से पोन-दो एकड़ प्रति परिवार मालिकाना हक के साथ जमीन दी गई तो 95% ने उसको दो दशक में ही बेच दिया|
इसलिए जमीन जाट और जाट जमीन से क्यों जुड़ा है इसको तर्कसंगत होकर रखा जाए तो जाट और जमीन को लेकर धककशाही वाले ताने देने वालों के मुंह बंद होंगे| उनके मुंह बंद होंगे जो कहते हैं कि जाटों ने तो जमीनों पे कब्जा कर रखा है, जाटों के पास तो जमीनें हैं इसलिए यह तो वैसे ही धनाढ्य हैं|
मैं ऐसे कहने वाले शरारती तत्वों से कहना चाहूंगा कि जमीन कब्जे लेने से नहीं, उसको संवार के रखने की कला से काबू में रहती है| ऐसे लोग वो जमाने याद करें जब जमीनों की गिरदावरी और चकबंदी हुआ करती थी, उस वक्त लाखों-लाख एकड़ जमीनें खाली होती थी और सब जातियों के लोगों को उसको खरीदने के ऑफर आते थे| परन्तु खरीदेगा तो वही ना जिसको उस चीज को संभाल के रखने का हुनर और जज्बा हो| इसलिए जाट ने कभी किसी की जमीन यूँ मुफ्त में नहीं कब्जाई और ना हम कोई धक्के से जमीनों पे बैठे| अपने हुनर और जज्बे से इसको बोते और बहाते हैं|
जय योद्धेय!- फूल मलिक
No comments:
Post a Comment