Wednesday, 6 May 2015

यदि ऐसी बात है तो पंजाबी खत्रियों की "जय माता दी" को जाट अब अपनी "माता दी" कहनी बंद करें:


(गाँव-गाँव गली-गली डी.जे. की तरह जगरातों पे बैन लगा दो|)

कल के रोहतक से निकलने वाले एक मुख्य अखबार में पढ़ा कि अब पंजाबी खत्री भी जाटों के आरक्षण के विरोध में उतरेंगे|

हाल ही में जाटों के आरक्षण को ले के राजकुमार सैनी (सारा सैनी समाज नहीं) के नेतृत्व में जो बवाल तथाकथित राष्ट्रवादियों के इशारे पर चल रहा था, उसमें जुड़ते हुए जिस तरीके से पंजाबी खत्री समाज ने उनका ओबीसी कोटे से कोई लेना-देना ना होते हुए भी इसके विरोध में कूदने का जो झटका जाटों को दिया है; अब इनके ही अंदाज में जाटों को भी आपसी-भाईचारे और समरसता के चलते जो इनकी "जय माता दी" को अपनी "माता दी" कहने का अपनापन छेड़ा हुआ था, उसको झटका देने का वक्त आ गया है|

हर इस उस दिन कहीं जगराते तो कहीं सतसंगों के जरिये इनकी जेबें कमाई से भरने का जो एक जरिया जाटों ने इनको खोल के दे रखा है उसपे अब ब्रेक लगाने की जरूरत है|

मैं वैसे ही थोड़े कहता रहता हूँ, कि अपने खुद के "दादा खेड़ों को पूजना छोड़ के" हर इस-उस के दिए विचारों को पालोगे और पूजोगे तो यह लोग तुम पर ही उल्टा झपटेंगे| इसलिए छोड़ों इन माता और जगरातों को और लौटो अपने दादा खेड़ों की शरण में| और वक्त है शहरी जाटों के लिए अब जाट आरक्षण की मुहीम में इस तरीके से भूमिका निभाने का, क्योंकि आप लोगों के घरों में माता ज्यादा बड़ी बैठी है या आप लोगों ने बैठाई अथवा बैठने दी है| हम जाट देवता होते हैं, किसी के मान-मान्यताओं को अपने घरों में जगह दे देवें तो इसका मतलब यह नहीं कि हमारा देवत्व धुल गया| इसलिए करो इति श्री!

और गाँवों वाले जाट भी जैसे डी.जे. को पंचायतें कर-करके अधिकतर गाँवों ने बैन कर दिया था, अब ऐसे ही बैन हमारे गाँवों में इन जगराते वालों के घुसने पे घोषित करवाने शुरू किये जावें| तब पता लगेगा इनको सबसे मित्र कम्युनिटी के विरुद्ध खड़ा होने का|

वैसे भी जो अपने खुद के भगवानों को बिसरा के दूसरों के को सर पे उठाये फिरें, उनके साथ फिर ऐसा ही होता है जैसा आज पंजाबी खत्री समाज जाट समाज के आरक्षण से इनका कुछ लेना-देना ना होते हुए भी कर रहा है| जाट समाज इनके तमाम जगरातों की बुकिंग रद्द करे और हर सोशल मीडिया पर बैठा जाट इस बात का प्रचार अपने शहर-गली मोहल्ले में ले के जावे|

कोई असली जाट का जाम होगा तो यह बात पक्की गड़ेगी उसको और आज ही जा के अपने घरों से इनकी गढ़ाई हुई चौकियों-माताओं को उठा के जब बाहर का रास्ता दिखाएंगे, तब अक्ल आएगी इनको कि तुम्हें बिज़नेस देने वालों के खिलाफ खड़ा होने का क्या शबब होता है|

इन्होनें तो वो फितूर मचा रखा अक, "अगला शर्मांदा भीतर बड़ गया, और बेशर्म जाने मेरे से डर गया", हम तो भाईचारे और समाज की समरसता ढो-ढो छक लिए और ये, "माँ तो चौथी-चौथी नैं फिरै और बेटा बिटोड़े ही बिसाह दे|" वाली कर रहे हमारे साथ|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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