Monday, 1 June 2015

हिन्दू-धर्म के ताबेदार जाट-राजाओं को भी हिन्दू-साहित्य गौरव में यथोचित स्थान देवें|

माननीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह जी अगर महाराणा प्रताप तो महाराजा जवाहर सिंह भी क्यों नहीं? आखिर वीरों को सम्मान देने में यह एक हांडी में दो पेट क्यों?

भारतेंदु अजेय महाराजा जवाहरमल सिनसिनवार:

अपने पिता की अकस्मात मौत से क्रोधित आपने एक लाख सेना के साथ सीधा दिल्ली पर हमला दे बोला| कई महीनों के घेरे के बाद, जब जवाहर सिंह ने लालकिला दिल्ली के किवाड़ तोड़ डाले तो, आखिरकार उस वक्त के मुग़ल बादशाह नजीबुद्दीन जाट-महाराजा के क्रोध के आगे संधि को मजबूर हुए|

मुग़ल बादशाह ने मुग़ल राजकुमारी का महाराजा जवाहर सिंह से ब्याह (जिसको बाद में जवाहर सिंह ने फ्रेंच-
कैप्टेन समरू को प्रणवा दिया), युद्ध का सारा खर्च वहन करने की संधि की| कोई बेटियां दे के पीछा छुड़वाते थे तो किसी (जाट) से बेटियां दे के पीछा छूटता था|
 
पानीपत के तीसरे युद्ध में मराठों को हराने वाला अहमदशाह अब्दाली भी जाट-क्रोध के आगे दिल्ली लुटती रही और वो अवाक देखता रहा; और नजीबुद्दीन की मदद को आने की हिम्मत नहीं जुटा पाया| इसपे कहा गया कि जाट के क्रोध को या तो करतार थाम सके या खुद जाट|
 
महाराणा प्रताप और अकबर की लड़ाई में अकबर चित्तौड़गढ़ के किले के प्रवेश द्वार के जो किवाड़ उखाड़ दिल्ली में ले आया था, उन्हीं किवाड़ों को दिल्ली से वापिस छीन जाट-सूरमा वापिस जाट-राजधानी भरतपुर ले आया; और इस तरह राजपूती सम्मान का भी बदला लिया| उस जमाने में चित्तौड़गढ़ ने यही दरवाजे आज की कीमत में लगभग 9 करोड़ रूपये के ऐवज में वापिस मांगे तो लोहागढ़ (भरतपुर) ने कह दिया कि मान-सम्मान की कोई कीमत नहीं हुआ करती; फिर भी किवाड़ चाहियें तो ऐसे ही ले जाओ जैसे हम दिल्ली से लाये हैं| आज भी वह किवाड़ भरतपुर किले में लगे हुए हैं|

स्वाभिमानी रणबांकुरे महाराणा प्रताप:
राजपूती स्वाभिमान के लिए लड़े, परन्तु जीत नहीं सके|
स्वाभिमान के लिए घास-फूंस की रोटियां खानी मंजूर करी परन्तु कभी मुग़लों को सर नहीं झुकाया|
हल्दी-घाटी की लड़ाई लड़ी, जिसकी सैन्य शक्ति 3000 एक तरफ और 5000 दूसरी तरफ बताई जाती है|

उद्घोषणा: यह तुलना करके, इन दोनों महापुरुषों में से किसी को भी एक दूसरे छोटा या बड़ा दिखाने का मेरा कोई आशय नहीं है, परन्तु जब बात देश के गृहमंत्री के मुंह से आती है तो याद दिलाना मेरा फर्ज बन जाता है| दोनों महपुरूषों की भारतीय गौरव व् स्वाभिमान संवर्धन में अद्वितीय आहुति है; परन्तु जब बात इन वीरों के सम्मान की आये तो देश के राजनेता के मुख से एक हांडी में दो पेट वाली बात शोभा नहीं देती|
और इससे भी ज्यादा इस प्रस्तुति के जरिये मेरा हिन्दू-धर्म के उन ताबेदारों से मुखातिब होना उद्देश्य है जो चुनावों के वक्त तो हिन्दू धर्म की एकता और बराबरी की बात करते हैं और दूसरी तरफ जब उसी हिन्दू धर्म के वीर-बांकुरों के यथायोग्य सम्मान की बात आती है तो एक पर सूं-सां-सांप सूंघने जैसे चुप जाते हैं|
हिन्दू धर्म के तमाम वीरों के सम्मान को बिना भेदभाव के स्थान दिए जाने का अभिलाषी!  ------- जय योद्धेय! - फूल मलिक



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