1) गठवाला (मलिक) जाटों के दादा महाराज चौधरी मोमराज जी गठवाला ने गढ़-गजनी की बेगम से प्रेम-विवाह किया व् दादापीर बाढ़ला जी महाराज व् उनकी बेगम दादीराणी चौरदे महाराणी की सहायता से गोहाना जिला सोनीपत के "कासंढा" में आन बसे| यहां से " आहुलाणा" फिर "मोखरा" से होते हुए आज गठवाला (मलिक) जाटों का सबसे बड़ा गोत कहलाता है| Source - गठवाला खाप
2) महमूद गजनी ने जाटों को खुश करने के लिए साहू गोत के जाटों से अपनी बहन का ब्याह किया| Source - हिस्ट्री एंड स्टडी ऑफ़ जाट्स बाई सर अलेक्सांद्र कनिंघम|
3) जब 1764 में पिता की मृत्यु से शोक-संतप्त भारतेंदु महाराजा जवाहरमल ने दिल्ली पर चढ़ाई कर दिल्ली के लालकिले के किवाड़ जा तोड़े तो उस समय दिल्ली के संरक्षक नजीबुद्दीन (पानीपत की तीसरी लड़ाई में मराठा-पेशवाओं को हराने वाले अहमदशाह अब्दाली का सेनापति) ने संधि प्रस्ताव रखा, जिसमें उनकी तरफ से मुस्लिम राजकुमारी से महाराजा का ब्याह व् युद्ध खर्च देय तय हुए| हालाँकि बाद में जवाहर सिंह ने खुद मुग़ल राजकुमारी से ब्याह ना करते हुए उनको अपने फ्रेंच-कैप्टेन समरू को प्रणवा दिया| Source – History of Bharatpur
4)1669 में जब कायदे से द्वितीय हिन्दू-धर्म रक्षक (प्रथम के लिए लेख के अंत में विशेष बिंदु 1 पढ़ें) दादावीर अमरज्योतिपुंज ‘गॉड गोकुला जी महाराज’ (विशेष बिंदु 2 पढ़ें) ने तिलपत की विश्व-प्रसिद्ध रणभेरी में औरंगजेब को संधि करने पर मजबूर कर दिया तो औरगंजेब का संधि प्रस्ताव आया, जिसपर आपने कहलवा भेजा था कि, "बेटी दे जा और संधि ले जा"| Source: वीरवर अमरज्योति गोकुला सिंह पुस्तक, लेखक श्री नरेंद्र सिंह वर्मा
5) अकबर द्वारा फिरोजपुर, पंजाब की 35 जाट खाप की बेटी का हाथ मांगने पर खाप द्वारा उसको मना कर दिया गया था; जिससे मायूस हो कर उसे खाली-हाथ वापिस लौटना पड़ा था| यह वही अकबर थे जिन्होंने आमेर की जोधा समेत, 10 और रजवाड़ों की राजकुमारियों से ब्याह किया हुआ था| Source - जाट-ज्योति पुस्तक, लेखक श्री सुखवीर सिंह दलाल
और ऐसे ही बहुतेरे वैवाहिक किस्से हैं जिनसे जाट इतिहास अंटा पड़ा है| समय के साथ इन किस्सों का और अध्यन करूँगा| फिलहाल इतना ही कहूँगा कि इन्हीं बहुतेरे किस्सों के चलते, जाटों बारे यह कहावत चली कि, "जाट के आई, जाटणी कुहाई|"
और इधर बॉलीवुड के कुछ अद्दू-फद्दु (गुस्ताखी माफ़ परन्तु इससे उचित शब्द क्या चुनता) से डायरेक्टर लोग 'तनु वेड्स मनु रिटर्न्स' जैसी फिल्मों में जाटों को कहीं के रजवाड़ों से सबक लेने के सोसे छोड़ अपने आप छद्म इतिहासविद दर्शाने पे एवीं उतारू दीखते हैं|
विशेष:
1) प्रथम जाटवान जी गठवाला महाराज थे, जिन्होनें पृथ्वीराज चौहान की हत्या के तुरंत बाद ही मोहम्मद गौरी के दिल्ली सल्तनत के मुखिया कुतबुद्दीन ऐबक (दिल्ली की कुतुबमीनार बनवाने के नाम से मशहूर) को हांसी-हिसार के टीलों में इतनी ख़ाक छनवाई थी, कि कुतुबद्दीन वापिस दिल्ली जाकर यह कहते हुए खून के आँसू रोया था कि जाटों से भिड़ना इतना महंगा पड़ेगा अगर पहले पता होता तो इनको छेड़ने की जुर्रत ना करता|
2) हिन्दू धर्म के ताबेदार अक्सर गुरु तेगबहादुर जी (1675 शहीद) को प्रथम हिन्दू धर्म रक्षक बताते हैं, जबकि उनसे 6 साल (1669) पहले यह बिगुल गॉड गोकुला जी, उनके दो साथी व् इनके ततपश्चात 21 खाप योद्धेय (जिनमें 11 जाट, 3 राजपूत, 1 ब्राह्मण, 1 वैश्य, 1 सैणी, 1 त्यागी, 1 गुज्जर, 1 मुस्लिम खान और 1 रोड थे) औरंगजेब के विरुद्ध गुरु तेगबहादुर जी से भी भयवाही तरीके से धर्म या इस्लाम में से धर्म को चुनते हुए उसपे कुर्बान हो चुके थे|
आखिर क्यों नहीं इन 25 धर्म-रक्षक योद्धेयों के लिए भी कोई गृहमंत्री राष्ट्रीय पर्व मनाने की बात नहीं करता?
चलते-चलते, जाट युवा भावावेश हो धर्म के नाम पर किसी की भी शंखपुष्पी बन बजने से पहले, अपनी कौम के इन तथ्यों का संज्ञान लेवें| कि औरों से कहीं गुना ज्यादा महान योद्धाओं व् धर्म के नाम पर ऐतिहासिक बलिदानों से भरी आपकी कौम को इन धर्म वालों ने अपने साहित्य और गौरव-गाथा में क्या स्थान दिया है| और धर्म के नाम पर कोई मदद करने से पहले, इन चीजों पर कुछ सौदा उनसे जरूर करें, अन्यथा स्वछंद मति से विचरते रहें और सिर्फ कौम की सोचें और करें|
जय योद्धेय! - फूल मलिक
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