Monday, 15 June 2015

"मिस टनकपुर हाजिर हो" बनाने वालो हरयाणे की पंचायतें कोई टोणे-टोटके वाले बाबे-साधु-तांत्रिक नहीं हैं जो इंसानों के जानवरों से फेरे करवाते हों!


(फिल्म रिलीज़ होने से पहले ही फिल्म का रिव्यु)

मैं तो अक्सर कहा करता हूँ कि पब्लिक स्टेजों पे होने वाली नौटंकियों ने जब से सिल्वर स्क्रीन का कवच ओढ़ा है तब से इनके खुले बारणे (पौ-बारह) और चौड़े डंके हो गए हैं| पहले जब डायरेक्ट पब्लिक के बीच स्टेजों पे नौटंकी-नाटक-सांग-रागणी हुआ करते थे तो थोड़ी सी भी भांडगिरी दिखाने पे पब्लिक वहीँ के वहीँ हिसाब-किताब कर दिया करती थी| खैर आजकल शुद्ध भाषा के ना तो सांग-सांगी रहे और ना ही दर्शक। वर्ना हरयाणा की धरती (पश्चिमी-पूर्वी-मध्य तीनों हरयाणे यानी खापलैंड) पे तो बीते दशकों तक इनके अधिकतर आयोजन गाँवों के बाहर गोरों-समाणों-जंगलों में हुआ करते थे| और रात के तो सारे प्रोग्राम ही गाँव की बसासत से बाहर हुआ करते थे| गाँव-चौपाल के अंदर सिर्फ वो प्रोग्राम अलाउड हुआ करते थे जिनको बहु-बेटी भी देख सकती थी जैसे कि साफ़-सुथरे बिना गन्दी बोली के सांग अथवा दादा चन्द्र बादी जैसों के खेल-तमाशे या गए दशक तक आर्य समाजियों के प्रवचन|

परन्तु मिस टनकपुर जैसी फ़िल्में देख-सुन के तो लगता है कि इनको सिल्वर स्क्रीन क्या मिल गई, मतलब बाजे-बाजे ने तो भांडगिरी फुलटूस फुल स्पीड में गियर पकड़ा रखी है| बताओ हरयाणे की पंचायतों को भी 70-80 के दशक के ठाकुर समझ लिया। कि यह लोग फिल्मों में किसी ठाकुर की नकारात्मक छवि दिखाएंगे, उनको विलेन-जुल्मी-डाकू-निर्दयी-अत्याचारी और क्रूर दिखाओगे और सारी ठाकुर बिरादरी चुप बैठी रहेगी।

खैर कोई नी अबकी बार आपका पाला हरयाणे की पंचायतों से पड़ा है; ऐसे ही बिना विरोध के आप अपना गंद परोसोगे और सब चुपचाप सह जायेंगे; ना बावलों ना सोचना भी मत, और बहम तो पालना ही नहीं| अभी पीछे 2011 में खाप फिल्म बनाई थी तब प्रसाद चख के मन नहीं भरा था क्या कि फिर से न्यूनतम दर्जे वाली भांडगिरी का कीड़ा उठ खड़ा हुआ? चिंता ना करो 2011 वाली का जो हाल हुआ इसका भी कुछ-कुछ ऐसा ही होने वाला है| और अगर नीचे दिए source number 1 की खबर को सच मानूं तो अबकी बार तो ठाकुर बिरादरी भी सम्भल चुकी है और साथ में विरोध को कूद पड़ी है| थम चढ़ाओ इसको खापलैंड के सिनेमाओं की स्क्रीन पे, थारे चीचड़ से ना चूंडे जावें तो|

यह तो थी ठेठ हरयाणवी में थारी फिल्म और दिमाग की सोच और क्वालिटी का पोस्टमॉर्टेम| अब सीरियस वाला फीडबैक सुनो आपकी फिल्म का:

पूरी फिल्म देखने की जरूरत नहीं, ट्रेलर देख के ही लिख रहा हूँ| क्योंकि हरयाणवी हूँ तो हरयाणा के बारे क्या सही होगा या क्या गलत, किसी खत के मजबून को देख के बताने वाली अदा में ही बता सकता हूँ| मुझे जिन-जिन बातों से यह फिल्म ऊपर लिखित भर्तसना वाले क्रिटिक (critic) के योग्य लगी, वो हैं एक तो इसका कांसेप्ट (concept), दूसरा इसकी नीयत और तीसरा इसका संदेश|

ज्यादा तो कहूँगा नहीं लेकिन क्योंकि इसमें हरयाणवी भाषा और वेशभूषा प्रयोग की हुई है तो हरयाणा के संदर्भ में ही आप लोगों को दो टूक में रिव्यु देता हूँ| ऐसा है डायरेक्टर, राइटर ऑफ़ थिस फिल्म (director, writer of this film), हरयाणा पे तीन तरह की पंचायतें पाई जाती हैं| एक सरकारी तंत्र वाली, दूसरी खापें और तीसरी सेल्फ-स्टाइल वाली किसी भी ऐरे-गैरे द्वारा सही-गलत मंशा से on the spot बटली (बुलाई) कर दी गई| ध्यान दीजियेगा खाप-पंचायत कभी भी on the spot नहीं बुलाई जाती और ना ऐसे वो आती| उनको स्पेशल बुलावा यानी official invitation दे के बुलाने का विधान है, जिसका कि बाकायदा रिकॉर्ड भी रखा मिलता है हर खाप-पंचायत के पास|

तो पहले तो सुध इंसानी भाषा में आपको बता दूँ कि इनमें से कोई सी भी पंचायत ऐसी गिरी हुई नहीं है कि जो बाबा-साधु-तांत्रिकों वाले असामाजिक काम करती हो| यानी जैसे बाबे-साधु-तांत्रिक पूर्वी-दक्षिणी और मध्य भारत में कहीं लड़के की शादी कुतिया-गधी आदि से तो कहीं लड़की की कुत्ते-गधे आदि (थोड़ा गूगल सर्च कर लेना फोटो भी मिल जाएँगी बाकायदा) से करवाती हो और लड़का-लड़की भी चुपचाप कर लेते हों| वैसे सच-सच बताना आपकी टीम में कौन-कौन इस एरिया से आता है जहां इंसान की शादियां जानवरों से करवाई जाती हैं? और टीम में कोई भी हरयाणवी नहीं था क्या जो इतना तो ज्ञान देता आपको कि भाई हमारे इधर इंसान इंसानों से ही शादी करते हैं, जानवरों से नहीं| और सामाजिक परिवेश में तो बिलकुल भी नहीं, हाँ कोई माता-मसानी-बाबा-बाबन की दुनियां की भेंट चढ़ा हो तो अलग बात है|

दूसरी बात इन तीनों तरह की पंचायतों में एक हैं खाप पंचायत| अब आप इतने मूढ़-मति तो हो नहीं सकते कि खाप पंचायत क्या होती है इसका आपको पता ही ना हो? हालाँकि मैं जानता हूँ आपने खाप-पंचायत शब्द का जिक्र नहीं किया होगा फिल्म में, परन्तु हरयाणा का परिवेश दे दिया तो देखने वाले ने पहले झटके ही इसको खाप पंचायत से जोड़ लेना है (मेहरबानी मीडिया की जिसने हरयाणा की ऐसी पृष्ठभूमि बना रखी है)।

वैसे ऐसा करने के लिए बाबे-साधु-तांत्रिक-फंडी-पाखंडियों ने आपको सुपारी-रिश्वत खिला रखी है क्या कि भाई यह हरयाणवी लोग कभी हमारे बहकावे में नहीं आते और ना ही हमें अपने मनचाहे तरीके से समाज में पाखंड फैलाने देते हैं, इसलिए यह लो पहले तो एक भैंस का एक इंसान से बलात्कार करवा दो और फिर एक पंचायत के जरिये फरमान सुनवा के उसके उसी भैंस से फेरे पढ़वा दो; और बना दो इनको भी हमारी ही गली-सड़ी सोच का? नहीं मतलब सच्ची बताना, कुछ ऐसा ही है क्या?

चलो इंसानियत के नाते पहले तो आपको 19 पेज की खापों पे इंग्लिश में बनाई एक केस स्टडी (see source link 3) पढ़वा देता हूँ। अब एक अनलॉजिकल स्टडी (analogical study) आप भी करके देखो और पता लगाओ कि सामाजिक अपराधों के मामले सुलझाने में सबसे तेज, न्यूनतम लागत का और इन वन सिटींग (in one sitting) में न्याय करने का रिकॉर्ड हमारे देश की सवैंधानिक अदालतों का बेहतर है या हरयाणे की पंचायतों का? प्रतिशत के हिसाब से गलत-सही निर्णय देने का अनुपात कानूनी अदालतों का बढ़िया है या हरयाणे की खाप पंचायतों का? कंस्यूमर सैटिस्फैक्शन (consumer satisfaction) वाला बढ़िया न्याय करने का बढ़िया रिकॉर्ड देश की कानूनी अदालतों का बढ़िया है या इन पंचायतों का? कसम से अगर इन पंचायतों का रिकॉर्ड देश की अदालतों से खराब मिले तो मुझे देश की कानूनी न्याय व्यवस्था की ऐसी तुलना करने के जुर्म में देश के कानून से ही फांसी तुड़वा देना, चूं भी नहीं करूँगा|

यार कुल मिला के यही कहना है कि अगर आप समाज को जोड़े रखने और उसकी सकारात्मक सोच को जिन्दा और पोषित रखना चाहते हो तो कृपया करके ऐसी बचकानी फ़िल्में मत बनाया करो कि जिससे मेरे जैसे अनाड़ी को भी, जिसको कि फ़िल्में बनाने की एबीसी भी नहीं आती, आप लोगों को अव्वल दर्जे का भांड कहना पड़े| और आपकी ऐसी कठोर निंदा करनी पड़े|

जय योद्धेय! - फूल मलिक

Source of critic made above:
1) http://hindi.eenaduindia.com/State/UttarPradesh/2015/06/14193537/Khap-panchayats-intensified-Miss-Tanakpur-opposed.vpf
2) https://www.youtube.com/watch?v=qtg99-HNBmI
3) http://www.nidanaheights.net/Panchayat.html
4) https://www.facebook.com/MissTanakpurHaazirHo

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