Monday 22 June 2015

राइट के राष्ट्रवाद और लेफ्ट के साम्राज्यवाद के फफेड़ों में बिलखता सेंट्रल-लिबरल खापवाद!


खापवाद यानी हरयाणावाद और मीडिया के लिए खापवाद का मतलब जाटवाद!

वास्तव में खापवाद सोशल इंजीनियरिंग व्यवस्था की प्रणाली है जो चलाई तो जाटों ने थी परन्तु अपनाई सर्वसमाज ने| आदिकाल से समाज में ब्राह्मण की धार्मिक इंजीनियरिंग और जाट की सोशल इंजीनियरिंग में टकराव रहा है और यही इसकी सबसे बड़ी वजह है कि राइट विंग खाप को अंदरखाते दीमक की तरह चाट रहा है| लेफ्ट का साम्राज्यवाद तो तीन-एक सदी पुराना है, परन्तु भारत में इसके जो पैरोकार हैं वो बंगाल की ऐसी भूमि से उठ के आते हैं जहां सामंतवाद का बोलबाला रहा है| और दुर्भाग्य की बात यह है कि लेफ्ट की बागडोर भी सामंतवाद की सोच को पोषित करती है, वरना पैंतीस साल तक बंगाल में एकछत्र राज रहने पर भी बंगाल आज भी सामंतवाद विचारधारा की ही ना बना रहता|

खापवाद इन दोनों के बीच इसलिए पिस रहा है क्योंकि इसकी बागडोर उस जाट जाति के हाथ रही है जो खुद की कमी को स्वीकार कर उसको अपनों के बीच बैठ सुधारने की बजाय, दूसरों की बुराई को गले लगाना ज्यादा सहजता से मंजूर कर लेता है| इसलिए इस विचारधारा से जीवनयापन करने वाली जाट के अतिरिक्त अन्य सभ्यताएं भी अपना रोल निभाने की बजाय, मूक बनना ज्यादा पसंद करती हैं| दूसरा खापवाद विकेन्द्रित व्यवस्था तो है परन्तु चूल्हे की उस चिमनी की भांति जिसपे कोई छतरी नहीं है| और वह छतरी ना होने की वजह से हो यह रहा है कि कोई भी लेफ्ट-राइट वाला दो बूँद विषाद-द्वेष-मतभेद-लांछन की उसमें से टपका देता है और नीचे चूल्हे में ठीक-ठाक जल रही आग धूँ-धूँ करके सारे घर को धुंए से भर देती है| और खाप-थ्योरी के लोग उस चिमनी को ढंकने की बजाय तितर-बितर हो जाते हैं|

और जब तक इस चिमनी पे खाप-वाले यह छतरी नहीं चढ़ाएंगे ऐसे ही परेशान रहेंगे| इस छतरी की अनुपस्थिति का जो सबसे बड़ा नुकसान खाप को उठाना पड़ता है वो है इसके काबिल और टैलेंटेड लोगों द्वारा इनके यहां से पलायन कर जाना अथवा विमुख हो जाना और लेफ्ट या राइट के लिए काम करते पाये जाना|

मुझे भी बहुतेरे कहते हैं तू फ्रांस में बैठ के भी क्या खाप-खाप चिल्लाता रहता है| अब मैं उनको क्या बताऊँ कि खाप थ्योरी विश्व की सबसे महान सोशल इंजीनियरिंग थ्योरी है यह मैंने फ्रांस आ के ही तो जाना है| और फिर बीमारी और घाव तो मानवशरीर के साथ लगते चले आये| ऐसे में कोई खाप थ्योरी का विरोधी खाप को गलत बताता है तो क्या मैं इस थ्योरी को सिरे से ख़ारिज कर दूँ? सम्पूर्ण उत्तरी-भारत का इतिहास गवाह है कि हजारों सालों से यहां की सामाजिक व्यवस्था खापों ने ही चलाई थी| सो अगर इसमें कुछ इतना ही बुरा होता तो इसके सामने राजे भी हुए, रजवाड़े भी हुए, अंग्रेज भी हुए और मुग़ल भी हुए; यह सब आने-जाने हुए परन्तु खाप फिर भी जिन्दा रही, आखिर क्यों? क्योंकि खाप कोई राज करने का तंत्र नहीं अपितु अपनों के द्वारा अपनों के लिए समाज चलाने का तंत्र रही हैं| बस एक बार वो जो ऊपर से चिमनी खुली पड़ी है उसको छतरी ढक दो और फिर देखो करिश्मा|

एक मोटा अंतर इन तीनों थेओरियों में यह है कि जहां राइट और लेफ्ट अपना फैलाव करने के लिए लिबरल-सेंट्रल का कचरा जनता के आगे रखती हैं, वहीँ सेंट्रल लिबरल भीड़ पड़ी में इन्हीं के काम आता है| और इसी उदारता के चलते सेंट्रल-लिबरल को कई बार राइट-लेफ्ट के बीच पिसना पड़ जाता है और निसंदेह ऐसा ही एक दौर अब चला हुआ है| लेफ्ट विगत दस साल से ऐसे छोटे-छोटे मामले जो हुए तो खापों की जातियों में परन्तु खापों का उसमें रोल ना होते हुए भी मीडिया की सहायता से खापों पे जी-भर के लांछन लगा कीचड़ उछाला| और लेफ्ट का दुर्भाग्य यह कि दस साल की अथक मेहनत से खाप की महत्ता को समाज में धूमिल कर जो बिसात बिसाई उसपे प्यादे राइट विंग चल गई और सत्ता पर काबिज हो गई| और लेफ्ट को इससे इतना बड़ा सदमा लगा कि पिछले एक साल से इनके चेहरों की बुढ़िया सी मरी हुई, साफ़ देखी जा सकती है|

अब कहीं का पाप कहीं तो जा के बैलेंस होगा ही ना, जो करते हैं उन्हीं पे जा के बैलेंस हुआ तो और भी अच्छा हुआ| लेफ्ट को आगे से सबक रहेगा कि राजनीति किसी दूसरी राजनैतिक विचारधारा पे कीचड़ उछाल के नहीं हुआ करती अपितु अपने वाली को सुदृढ़ करके हुआ करती है|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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