Monday, 22 June 2015

इसे योग नही भोग कहते है!

जरूर यह देवदासी मानसिकता से ग्रसित इंसान है। इनको अपनी बहु-बेटी को छोड़ के बाकी सबकी बहु-बेटियों में देवदासियां नजर आती रही हैं। और यही इनकी अंतिम मंजिल होती आई है।

और इसकी बेशर्मी तो देखो कितने इत्मीनान से हाथ जचाये हुए है, इस बेशर्म को इतनी भी चिंता नहीं कि पब्लिक स्पॉट पे तू ऐसा कर रहा है। इनको भान तो रहना चाहिए ना कि योग दिवस को योग दिवस ही रखो उसको कामसूत्र दिवस मत बनने दो। दादा जी को सफेद बाल आये हुए हैं फिर भी लज्जा और योग कराने का सलीका नहीं|

इसलिए जाटों और हरयाणवियों से कहता रहता हूँ कि सदियों के त्याग और बलिदान से आपके पुरखों ने आपकी धरती को इन देवदासी मानसिकता के लोगों से बड़ा संभाल के बचा के रखा हुआ है, मत हवा दो इनको| इनको औकात पे आने में ज्यादा समय नहीं लगता।

ऐसे-ऐसों के दिमाग के शैतानी कीड़ों को ठीक करने का सिर्फ एक ही इलाज है, ओन दी स्पॉट झाड़-झाड़ के जूते मारो।

फूल मलिक


 

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