Saturday, 1 August 2015

अपने आगे-पीछे अड़ाने के अलावा अगर आरएसएस जाटों की ज्यात भी पूछती हो तो!

हरयाणवी में 'ज्यात पूछने' का मतलब होता है किसी की इज्जत-मान-सम्मान और अस्तित्व को महत्व देना, तवज्जो देना|

'आगे-पीछे अड़ाने' का मतलब है कि हरयाणा में एक बनिए और दो जाटों वाला बहुत ही मसहूर चुटकुला वाली बनना|

वो हुआ क्या कि एक बार एक बनिया और दो जाटों को घनी-अँधेरी-काली-तूफानी बादल और बारिश भरी रात में पड़ोस के गाँव से अपने गाँव जाना पड़ गया| पुराने जमाने थे ना मोटर थी ना गाड़ी, ना पक्की सड़क थी ना कोई पक्की पगडंडी| रात काफी हो चुकी थी इसलिए कोई तांगा या बैलगाड़ी भी नहीं थी| चांस ऐसा बैठा कि तीनों में ना कोई कुछ व्यक्तिगत सवारी जैसे कि घोडा-बैल आदि लिए हुए था| मतलब पूरे रास्ते-भर ना मानस और ना मानस का बीज| जाट तो लम्बे-तगड़े थे सो लम्बे-लम्बे कदम रखते हुए गदड़-गदड़ ये जां और वो जां, उड़े जा रहे| परन्तु लाला जी को ऐसी मौसम से ले रस्ते की विषम-परिस्थितियों में चलने का कोई अभ्यास ही नहीं था तो ना तो उनसे चला जा रहा और ना जाटों से कदमताल मिल पा रही| एक तरफ कच्चे-पानी भरे व् दूसरी तरफ घास-जंगल के बीचों-बीच संकीर्ण सी चिकनी-थिसलन वाली कच्ची पगडंडी पे कदम रखते हुए लाला जी का कालजा बाहर आने को होवे| कहीं कोई सांप-बिच्छू पैरों में लपेटा ना डाल दे इसका ख्याल आते ही लाला जी थर्र-थर्र काँप जावें|

ऐसे सम्भल-सम्भल के डरते-कांपते चलते-चलते जब दस-बीस फ़ीट से होता-होता फासला पचास-सौ फ़ीट में बदलने लगा तो लाला जी की भड़क और बढ़ गई| सोची जो इनको सच कहा कि तुझे डर लग रहा तो तेरी हंसी होवैगी और जो ना कहा तो आज तेरा राम-नाम सत्य पकक्म-पक्का होवैगा| फिर बड़ी चतुराई से साहस सा करते हुए लाला जी ने रुक्का मारा, 'अड़ दिखे रै जाटो! दिखै है थम डड-डे क्याहें तैं, हड़ न्यूं कड़ो जुणसे नैं डड लागता हो, वो एक मेरै आगै हो ल्यो हड़ एक मेरै पाछै हो ल्यो|'

यह सुनते ही दोनों जाट खूब हँसे और बोले कि आ जा भाई आ जा तू म्हारे बिचाळै आ जा, पता लग गया हमको कि डर हमें नहीं तुझको लग रा|

सेम-टू-सेम डिट्टो कहानी आज आरएसएस और इससे जुड़े जाटों की है सिर्फ बनिया शब्द की जगह आरएसएस शब्द ने ले ली है| मुसलमान रुपी मींह-बादल-तूफ़ान-कच्चे पानी भरे रास्ते से डर लागे है इनको और उस डर को राष्ट्रवादिता का चोगा पहना के मुसलमान से बचने के लिए अपने आगे पीछे कर रखा कुछ जाटों को| मुज़फ्फरनगर यही तो था| लेकिन बावजूद इसके हरयाणा में देख लो इसी सोच के लोगों ने जाट से तमाम नॉन-जाट भिड़ा रखा|

इसके साथ आज वाले और पहले वाले किस्से में इतना सा फर्क और है कि पहले जाट सहायता करते वक़्त बनिए को कह देता था कि देख लाला जी तुझे डर लग रहा इसलिए तुझे दोनों के बीच ले रहे, परन्तु आरएसएस से जुड़ने वाले आज वाले जाटों के तो ऐसे मुंह सिल हुए हैं कि उनको खुद उनका डर बता के उनकी मदद करनी तो दूर, बल्कि जो मेरे जैसा इनको यह हकीकत बतावे, उसके पीछे और पहाड़ी बुच्छी की भांति पड़ जाते हैं|

अरे इनसे जुड़ने वाले मेरे बीर जाटो, और नहीं तो इनको यह सुरक्षा प्रदान करवाने के ऐवज में इनसे सर्विस चार्ज ही लेना शुरू कर लो, यह यूँ ही मुफ्त में क्यों हाड तुड़वा रे इनके पीछे! कम से कम थम जो इनसे जुड़ रे तुम्हें तो रोजगार मिल जागा|

और पापी के मन में डूम का ढांढा वाली की भांति, खुद के डर को राष्ट्रवाद का चोगा पहना के तुमसे फ्री में काम लेने वाले, इन लोगों की फ्री में मदद करने के चक्कर में अपने रोजगार का वक्त तो खोटी करते ही करते हो, साथ ही मुस्लिमों के रूप में आपके खेतों में कामगार-मददगार से ले किसानों की राजनैतिक ताकत को और अपने हाथों तोड़ के कमजोर करते हो|

तू लांडा लगा जा फूल यहां से, नहीं तो तेरे साथ वो बैये वाली बन जागी, जो बारिश में भीगते बंदर को अपने घोंसले में बैठा दया-दृष्टिवश उसको अपना घर बनाने की सलाह दे बैठा और उस बंदर ने नेक सलाह के बदले एक झटके में बैये का ही घोंसला तोड़ बगाया|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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