Sunday, 16 August 2015

बोलो, "जय भैंस-माता की!"

मौत के सौदागर तो भैंस का दूध पीने वाले ही होते हैं, नहीं यकीन हो तो देख लो यमराज तक को अपनी पीठ पे टाँगे घूमते हैं। पर क्या मजाल जो यमराज खुद उसके प्राण ले ले तो?

गाय को तो भरे झुण्ड से शेर भी उठा ले जाता है, और क्या गौमाता और सांड-बाबू (सांड-पिता) सब खड़े-खड़े टुकर-टुकर बस देखते ही रह जाते हैं। जबकि क्या मजाल उसी शेर की जो वो भैंसों के झुण्ड में घुसने की भी हिम्मत तक भी जुटा पाता हो। यह होता है भैंस के दूध का दम, ताकत, गुण और गट्स।

अब भाई पादने के लिए भी नौकर रखने वालों की गौमाता पूजना चाहोगे या जो दुश्मन की बैंड बजा दे वो वाली "भैंसमाता!"? वैसे एक बात और बता दूँ, भैंस का दूध पीने वालों की बुद्धि तो गाय का दूध पीने वालों की पकड़ तक में नहीं आती, उदाहरण देख लो महाराजा सूरजमल, सर छोटूराम, सरदार भगत सिंह आदि-आदि! एड़ी-से-चोटी तक का जोर लगाया इनको झुकाने वालों ने, परन्तु इनको झुकाते-झुकाते खुद झुक गए इनको ना ही तो झुका पाये और ना ही रोक पाये।

सर छोटूराम का नाम सुनते ही मंडी-फंडी तमाम तरह के षड्यंत्रकारियों की आज भी पेंट सरकने लगती है। महाराजा सूरजमल का नाम सुनते ही दिमाग की ताकत का दम भरने वालों की नशें फटने लगती हैं। देशभक्ति और राष्ट्रभक्ति के राग अलापने वालों की भगत सिंह का नाम सुनते ही सांस घुटने लगती है।

अत: यमराज के साथ चल के जो गाय के भी प्राण लेने चला आये, बोलो उस भैंसमाता के सपूत झोटे (भैंसे) की जय!

फिर से बोलो, जोर से बोलो, अरे: प्रेम से बोलो, "जय भैंस-माता की!"

अरे भगतो! तुम भी बोलो, क्या हुआ जो गुण गाय के गाते हो, परन्तु तुम में से 95% दूध तो भैंस का ही पीते हो, तो इसी नाते बोल दो, बोलो, "जय भैंस माता की!"

विशेष: यह पोस्ट गाय के महत्व को कम आंक के दिखाने हेतु नहीं है, मैं खुद गाय और सांड का बहुत आदर करता हूँ और बचपन से इनको तहे-दिल से मानता आया हूँ। आज भी जब भी घर जाता हूँ तो पहले गौशाला में गायों को गुड़ खिला के जाता हूँ, परन्तु किसी साले के कहे से मैं ऐसा करूँ, मेरी जूती की नोंक पे। दूसरा इस पोस्ट का मकसद भैंस के दूध के दिमागी और शारीरिक ताकत दोनों वाले गुण बताना भी था।

Jai Yauddheya! - Phool Malik

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