जब से अखबारों में टीवियों पे जाटों के बालकों को जाट आरक्षण हेतु हाथों
में लठ उठाये देखा है तब से समझने की कोशिश कर रहा हूँ कि अगर कल को
खुदा-ना-खास्ता सरकार इनकी ना सुने और इनपे बल प्रयोग कर दे और उससे
क्षुब्ध-संसप्त यह बच्चे 1984 वाले पंजाब आतंकवाद की तरह उसी राह पर चल
निकले तो उसका कौन जिम्मेदार होगा? मतलब एक पूरी की पूरी पीढ़ी खराब हो सकती
है, यह इतना बड़ा रिस्क है|
आईये समझें कि लठ के बल के आंदोलन की जगह व्यापारियों से सामान ना खरीदने का एक से तीन महीने के लिए असहयोग आंदोलन जाट चला लेवें तो यह आपका कितना बड़ा कूटनीतिक हथियार हो सकता है, जो इतने ही की आपकी बचत तो करवाएगा ही करवाएगा, आपके भाड़े-तोड़े भी बचवायेगा और जिनकी इतने की खरीद नहीं होगी उनकी जब बैलेंस सीटें हिलेंगी तो वो खुद हमारे साथ आ के सरकारों को कहेंगे कि जाटों को आरक्षण दो| साथ नहीं आएंगे तो अंदर-खाते सरकारों पे दबाव डालेंगे| इसलिए आईये जन्मजात भगवान से विरासत में प्राप्त लठ की ताकत (जाट का फिक्स्ड एसेट) को तो बाद में भी कभी भी आजमाया जा सकता है परन्तु उससे भी बड़ी ताकत जो आज हमारे हाथ में है उसका गणित क्या कहता है, उसे समझें|
आईआईएम (IIM) कलकत्ता और अहमदाबाद की दो रिसर्च स्टडीज के अनुसार वर्तमान में औसतन 36600 ट्रैक्टर्स हरयाणा में, 46200 पंजाब में, 112800 ट्रैक्टर्स यू. पी. में और 44400 ट्रैक्टर्स राजस्थान में सालाना बिक रहे हैं| अगर हरयाणा और पंजाब में 70% व् यू. पी. और राजस्थान में 50% ट्रैक्टर्स अकेले जाट किसान खरीदता है तो इन चार राज्यों में कुल 136560 ट्रैक्टर्स एक साल में अकेले जाट खरीद देते हैं| औसतन एक नए ट्रेक्टर की कीमत अगर 4 लाख रूपये ले के चला जाए तो यह 54624000000 यानी 5462.4 करोड़ रूपये बैठती अर्थात अकेला जाट (हिन्दू-मुस्लिम-सिख-ईसाई व् तमाम धर्मों का) व्यापारियों को 5462.4 करोड़ रूपये की तो सालाना इन चार राज्यों में सिर्फ ट्रेक्टर मार्किट देता है यानी यह उसकी कंस्यूमर पावर है| महीने के हिसाब से देखो तो एक महीने में 455.2 करोड़ रूपये की ट्रेक्टर मार्किट बैठती है यह|
अब अगर इसी प्रकार कार, मोटरसाइकिल, फ्रिज, ऐ.सी., वाशिंग मशीन, इन्वर्टर, ज्वैलरी की मात्र जाट की इन चार राज्यों में खरीद कैलकुलेट की जाए तो आप सोचें कि कितने हजार अरब रूपये में बैठेगी|
इस प्रकार अगर इस फार्मूला पे चल के 50% सफलता भी अर्जित कर ली जाए तो कितना बड़ा दबाव सरकार पर होगा और वो हमारा नहीं अपितु व्यापारियों का होगा| इससे राजकुमार सैनी जैसे जो हथियार हमारे विरोधियों ने हमपे तान रखे हैं वो भी स्वत: धत्ता हो जायेंगे|
और विरोधियों द्वारा ओबीसी को जाट के खिलाफ खड़ा करने की काट हेतु, ओबीसी भाईयों को भी यह कह के विश्वास में लेना होगा कि हमें ओबीसी में आ जाने दो, फिर नारा उठाएंगे, "जाट ने बांधी गाँठ, पिछड़ा मांगे सौ में साठ!" फिर चाहे आप लोग अपनी जनसंख्या के अनुसार साठ आगे छांट कर लेना|
इसलिए मेरी कौम के सारे जाट-आरक्षण रहनुमाओं से अनुरोध है कि आप एक बार इस पर विचार करें| और तीन से पांच महीने की टाइम विंडो रख के उन्हीं युवकों को जिनको कि आप लठ हाथ में दे 28 सितम्बर को दिल्ली कूच करने के लिए तैयार कर रहे हैं, उनको दो महीने यह ट्रेनिंग देने में लगवाये और तीसरे महीने इस आंदोलन को घर बैठे खड़ा किया जावे तो इससे हमारी ना सिर्फ आवाज सुनी जाएगी अपितु लठ उठाने से जो समाज का नुक्सान होगा वो भी बचेगा और गणतांत्रिक व् लोकतान्त्रिक प्रणाली को समाज में कायम रखने का जो रुतबा जाट का रहा है वो भी कायम रहेगा|
फिलहाल यही कह सकता हूँ कि अपने जाट समाज के नवयुवा का साथ ले के उसको ऐसी दिशा देवें जिसमें हमें चारों-खाने फायदा होवे और दुश्मन चारों-खाने चित होवे| सिर्फ जो चाहिए वो नवयुवा जाटों को आप लोगों की रजामंदी, मार्गदर्शन और आशीर्वाद| ऐसी नहीं कि आने वाले वक्तों में हमारी ही नवयुवा पीढ़ी हमको दोष देवे|
क्योंकि सत्ता में आते ही जिस प्रकार का इस सरकार का रवैया जाटों के प्रति रहा है उससे साफ़-स्पष्ट है कि ना सिर्फ आंदोलन को कुचला जायेगा वरन जाट युवा को इस हद तक तोड़ा जायेगा कि वो पंजाब वाले 1984 के आतंकवाद की राह पे चल निकले और अगर ऐसा हुआ तो ना सिर्फ सरकार अपितु आप भी बराबर के जिम्मेदार और जवाबदेह होंगे|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
आईये समझें कि लठ के बल के आंदोलन की जगह व्यापारियों से सामान ना खरीदने का एक से तीन महीने के लिए असहयोग आंदोलन जाट चला लेवें तो यह आपका कितना बड़ा कूटनीतिक हथियार हो सकता है, जो इतने ही की आपकी बचत तो करवाएगा ही करवाएगा, आपके भाड़े-तोड़े भी बचवायेगा और जिनकी इतने की खरीद नहीं होगी उनकी जब बैलेंस सीटें हिलेंगी तो वो खुद हमारे साथ आ के सरकारों को कहेंगे कि जाटों को आरक्षण दो| साथ नहीं आएंगे तो अंदर-खाते सरकारों पे दबाव डालेंगे| इसलिए आईये जन्मजात भगवान से विरासत में प्राप्त लठ की ताकत (जाट का फिक्स्ड एसेट) को तो बाद में भी कभी भी आजमाया जा सकता है परन्तु उससे भी बड़ी ताकत जो आज हमारे हाथ में है उसका गणित क्या कहता है, उसे समझें|
आईआईएम (IIM) कलकत्ता और अहमदाबाद की दो रिसर्च स्टडीज के अनुसार वर्तमान में औसतन 36600 ट्रैक्टर्स हरयाणा में, 46200 पंजाब में, 112800 ट्रैक्टर्स यू. पी. में और 44400 ट्रैक्टर्स राजस्थान में सालाना बिक रहे हैं| अगर हरयाणा और पंजाब में 70% व् यू. पी. और राजस्थान में 50% ट्रैक्टर्स अकेले जाट किसान खरीदता है तो इन चार राज्यों में कुल 136560 ट्रैक्टर्स एक साल में अकेले जाट खरीद देते हैं| औसतन एक नए ट्रेक्टर की कीमत अगर 4 लाख रूपये ले के चला जाए तो यह 54624000000 यानी 5462.4 करोड़ रूपये बैठती अर्थात अकेला जाट (हिन्दू-मुस्लिम-सिख-ईसाई व् तमाम धर्मों का) व्यापारियों को 5462.4 करोड़ रूपये की तो सालाना इन चार राज्यों में सिर्फ ट्रेक्टर मार्किट देता है यानी यह उसकी कंस्यूमर पावर है| महीने के हिसाब से देखो तो एक महीने में 455.2 करोड़ रूपये की ट्रेक्टर मार्किट बैठती है यह|
अब अगर इसी प्रकार कार, मोटरसाइकिल, फ्रिज, ऐ.सी., वाशिंग मशीन, इन्वर्टर, ज्वैलरी की मात्र जाट की इन चार राज्यों में खरीद कैलकुलेट की जाए तो आप सोचें कि कितने हजार अरब रूपये में बैठेगी|
इस प्रकार अगर इस फार्मूला पे चल के 50% सफलता भी अर्जित कर ली जाए तो कितना बड़ा दबाव सरकार पर होगा और वो हमारा नहीं अपितु व्यापारियों का होगा| इससे राजकुमार सैनी जैसे जो हथियार हमारे विरोधियों ने हमपे तान रखे हैं वो भी स्वत: धत्ता हो जायेंगे|
और विरोधियों द्वारा ओबीसी को जाट के खिलाफ खड़ा करने की काट हेतु, ओबीसी भाईयों को भी यह कह के विश्वास में लेना होगा कि हमें ओबीसी में आ जाने दो, फिर नारा उठाएंगे, "जाट ने बांधी गाँठ, पिछड़ा मांगे सौ में साठ!" फिर चाहे आप लोग अपनी जनसंख्या के अनुसार साठ आगे छांट कर लेना|
इसलिए मेरी कौम के सारे जाट-आरक्षण रहनुमाओं से अनुरोध है कि आप एक बार इस पर विचार करें| और तीन से पांच महीने की टाइम विंडो रख के उन्हीं युवकों को जिनको कि आप लठ हाथ में दे 28 सितम्बर को दिल्ली कूच करने के लिए तैयार कर रहे हैं, उनको दो महीने यह ट्रेनिंग देने में लगवाये और तीसरे महीने इस आंदोलन को घर बैठे खड़ा किया जावे तो इससे हमारी ना सिर्फ आवाज सुनी जाएगी अपितु लठ उठाने से जो समाज का नुक्सान होगा वो भी बचेगा और गणतांत्रिक व् लोकतान्त्रिक प्रणाली को समाज में कायम रखने का जो रुतबा जाट का रहा है वो भी कायम रहेगा|
फिलहाल यही कह सकता हूँ कि अपने जाट समाज के नवयुवा का साथ ले के उसको ऐसी दिशा देवें जिसमें हमें चारों-खाने फायदा होवे और दुश्मन चारों-खाने चित होवे| सिर्फ जो चाहिए वो नवयुवा जाटों को आप लोगों की रजामंदी, मार्गदर्शन और आशीर्वाद| ऐसी नहीं कि आने वाले वक्तों में हमारी ही नवयुवा पीढ़ी हमको दोष देवे|
क्योंकि सत्ता में आते ही जिस प्रकार का इस सरकार का रवैया जाटों के प्रति रहा है उससे साफ़-स्पष्ट है कि ना सिर्फ आंदोलन को कुचला जायेगा वरन जाट युवा को इस हद तक तोड़ा जायेगा कि वो पंजाब वाले 1984 के आतंकवाद की राह पे चल निकले और अगर ऐसा हुआ तो ना सिर्फ सरकार अपितु आप भी बराबर के जिम्मेदार और जवाबदेह होंगे|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
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