Friday, 21 August 2015

बालक मरवाने हैं तो इनके मरवाओ, अपनों को क्यों मरवाते हो?

जाट आरक्षण हेतु जाटों द्वारा असहयोग आंदोलन चला देने से जब जाट समाज इनकी कोई चीज नहीं हेजेगा, जब इनका कोई सामान ही जाट नहीं खरीदेंगे, इनकी दुकानों में चूहे कूदेंगे, बड़ी-बड़ी ट्रेक्टर से ले एक छोटी सी साइकिल तक की मशीनों को इनके शोरूमों में खड़े-खड़े जंग लगेंगे तो खुद ना जा के सरकार से कहेंगे की भाई बालक भूखे मर लिए सें, सामान दुकान-गोदाम-शोरूमों में पड़े-पड़े सड़ लिए सैं, दिवाला पिटन नैं आ लिया सै, भतेरे सांग रचा लिए सैं राजकुमार सैनी जैसों को इनके आगे अड़ा के, इब राजकुमार को भी पीछे खींचों और दे दो जाटों को आरक्षण, और जो कुछ और मांगते हों तो वो भी दे दो|

यह है एक-दो महीने भी अगर जाट ने स्वर्ण व्यापारी की दूकान से अगर सामान ना खरीदने के असहयोग का जादू, ताकत और मिलने वाला नतीजा| जाटों को जो चाहिए वो अगर घर बैठे वो भी हरयाणवी स्टाइल वाला फूफा कह के ना दे के जावें तो!

हमें लठ दे के अपने बालकों को इनके आगे खड़े करने की जरूरत नहीं अपितु इनकी कूटनीति का ऐसा जवाब दो कि इनके घरों में 'असहयोग आंदोलन' के जरिये खाने के लाले पढ़ें और ये खुद सरकार को जाटों की मांग मानने का डंडा देवें|

Jai Yoddhey! - Phool Malik

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