दोस्तों! इस तथ्य को आगे शेयर करना (खासकर हर जाट और ओबीसी में एकता चाहने वाला हर नुमाइंदा यह जरूर करे) ताकि राजकुमार सैनी जैसे सांसदो को याद दिलाया जा सके कि मंडी-फंडी के हाथों की कठपुतली बन जिन जाटों के वो आज दुश्मन बने खड़े हैं, उन्हीं जाटों की वजह से आज उनकी जाति किसानी व् माली जाती कहलाती है|
वैसे उम्मीद यह थी कि इतने बड़े राजनेता को यह बात जरूर पता होगी, परन्तु फिर भी जिस भी वजह से वो इसको छुपाते हैं या वाकई में जानते ही नहीं हैं तो मैं यहां रखे दे रहा हूँ|
यह ऐतिहासिक तथ्य ऐसे है:
आदरणीय कर्नल मेहर सिंह दहिया ऐतिहासिक प्रमाणों के साथ बताते हैं हैं कि बात सन 1926 के बाद की है| देश में रिफार्म्ज एक्ट (reforms act) लागु हो चुके थे| किसान कर्जा मनसूखी कानून बनने जा रहा था। उस समय की "हिन्दू महासभा" जैसी पार्टियों के नुमयानादे कर्जा मनसूखी कानून नहीं लागु करना चाहते थे|
अंग्रेज भी सिर्फ जाटों को ही किसान मानते थे| चाहे जाट सरदार हो, हिन्दू हो या मुसलमान सिर्फ उन्हें ही जमीदारों के कानून इन्तकाले अराजी (जमींदार/किसान स्टेटस) में रखना चाहते थे। परन्तु रहबरे-आजम सर छोटूराम जी के प्रयासों से गौड़-ब्राहमण, सैनी (माली) और जांगडे (खाती) किसानों को भी इस कानून की सुरक्षित जातियों में शामिल करवाया गया|
अत: राजकुमार सैनी जी आप ध्यान दें तब किसी जाट ने इसका विरोध नहीं किया था कि क्यों ब्राह्मण-सैनी-जांगडों की जमीनों को सुरक्षित कर रहे हो| सर छोटूराम की बदौलत कर्जा मनसूखी कानून 1934 के अनुसार इन जाति के किसानों का कर्जा भी माफ़ हो गया|
इसमें एक रोचक बात यह कि इस कर्जा कानून से माफ़ी में इन जातियों को शामिल करने वाले बिल पर जो तब पंजाब कॉन्सिल लाहौर में पेश किया गया था, उस पर 32 जाट विधायको तब (m.l.c.) के हस्ताक्षर थे।
जबकि खुद मंडी-फंडियों की पार्टी जो तब हिन्दू महासभा कहलाती थी इस बिल के विरोध में थी| एक जाट के कारण ही आज आप किसान हैं, जमींदार हैं अन्यथा आपकी जमीनों का मालिक कोई साहूकार होता|
और आज उन्हीं मंडी-फंडियों के बहकावे में आ आप जाटो के विरोधी बने खड़े हैं| पार्टी भी तो वही है सिर्फ नाम ही तो बदला है 'हिन्दू महासभा पार्टी' से हटा के|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
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