अगर सरकार की बजाय खापों द्वारा पोर्न बैन करने या यहां तक कि सिर्फ ना
देखने या देखने से परहेज करने का भी फरमान आता तो क्या-क्या देखने को
मिलता?
ओहो मत पूछो, मत पूछो अगर ऐसी स्थिति हो जाती तो मीडिया, एन.जी.ओ., गोल बिंदी गैंग बैठे-बिठाए बाहुबली फिल्म से भी बढ़कर मनोरंजन का नजारा दे देते, वो भी फ्री ऑफ़ कॉस्ट डायरेक्ट घर की सिल्वर स्क्रीन पे| अब वैसे भी मीडिया असली बाहुबली तो खापों को दिखाता और बताता है तो ऐसे में जब बाहुबली ही सीन से गायब हो तो पिक्चर हिट होती भी तो कैसे?
दो-चार दिन टिमटिमा के हो गई फ्लॉप और सुना है सरकार ने आधा-पद्दा निर्णय तो वापिस भी ले लिया। पर उनके होने से मीडिया घर बैठे बिठाये मेरा जो मनोरंजन करता उसका क्या, वो तो नहीं मिला ना?
क्योंकि ऐसे मामलों में मीडिया, एनजीओ, गोल बिंदी गैंग की ओर से जब तक तालिबान, तुगलकी फरमान, ठहरे पानी सा बेतुका निर्णय, यह खापलैंड नहीं मर्डरर्स लैंड है, औरतों के दुश्मन, सेक्सिस्ट, संकीर्ण और सिकुड़ी हुई मानसिकता जैसे मिर्चीदार, मसालेदार, झन्नाटेदार, सनसनीखेज, हैरतअंगेज प्रलाप कानों में नहीं पड़ते तब तक लगता ही नहीं कि भारत में मोरल पोलिसिंग के नाम पर कुछ हुआ है। भाई क्या करूँ, मीडिया ने इसका मापक ही जो इतना हाइपोक्रॅटिक घड़ दिया हुआ है।
ओहो अबकी बार तो किसी खाप वाले का सरकार के पक्ष या विरोधाभाष में भी तो कोई बयान नहीं आया ना।
हम्म, शायद खाप वालों को पता चल चुका है कि वास्तविक तालिबानी मानसिकता का जहाँ से उद्भव होता है जब वो लोग तुम्हारे कन्धों पे बंदूक रख के ऐसे मानसिकता को तुम पर मंढने का काम छोड़, खुद ही फ्रंट पे आ के अपनी तालिबानी मानसिकता का परिचय खुद ही देने लगे हैं तो तुम्हें अपने डिफेंस या किसी के विरोध में बोलने की क्या जरूरत। smart decision of Khaps by the way!
पर कुछ भी हो भाई मीडिया, एनजीओ, गोल बिंदी गैंग वालो, अबकी बार आपका शो फ्लॉप ही रहा। वो म्हारे हरयाणे में क्या कहते हैं, 'किमें सुवाद सा ना आया!'
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
ओहो मत पूछो, मत पूछो अगर ऐसी स्थिति हो जाती तो मीडिया, एन.जी.ओ., गोल बिंदी गैंग बैठे-बिठाए बाहुबली फिल्म से भी बढ़कर मनोरंजन का नजारा दे देते, वो भी फ्री ऑफ़ कॉस्ट डायरेक्ट घर की सिल्वर स्क्रीन पे| अब वैसे भी मीडिया असली बाहुबली तो खापों को दिखाता और बताता है तो ऐसे में जब बाहुबली ही सीन से गायब हो तो पिक्चर हिट होती भी तो कैसे?
दो-चार दिन टिमटिमा के हो गई फ्लॉप और सुना है सरकार ने आधा-पद्दा निर्णय तो वापिस भी ले लिया। पर उनके होने से मीडिया घर बैठे बिठाये मेरा जो मनोरंजन करता उसका क्या, वो तो नहीं मिला ना?
क्योंकि ऐसे मामलों में मीडिया, एनजीओ, गोल बिंदी गैंग की ओर से जब तक तालिबान, तुगलकी फरमान, ठहरे पानी सा बेतुका निर्णय, यह खापलैंड नहीं मर्डरर्स लैंड है, औरतों के दुश्मन, सेक्सिस्ट, संकीर्ण और सिकुड़ी हुई मानसिकता जैसे मिर्चीदार, मसालेदार, झन्नाटेदार, सनसनीखेज, हैरतअंगेज प्रलाप कानों में नहीं पड़ते तब तक लगता ही नहीं कि भारत में मोरल पोलिसिंग के नाम पर कुछ हुआ है। भाई क्या करूँ, मीडिया ने इसका मापक ही जो इतना हाइपोक्रॅटिक घड़ दिया हुआ है।
ओहो अबकी बार तो किसी खाप वाले का सरकार के पक्ष या विरोधाभाष में भी तो कोई बयान नहीं आया ना।
हम्म, शायद खाप वालों को पता चल चुका है कि वास्तविक तालिबानी मानसिकता का जहाँ से उद्भव होता है जब वो लोग तुम्हारे कन्धों पे बंदूक रख के ऐसे मानसिकता को तुम पर मंढने का काम छोड़, खुद ही फ्रंट पे आ के अपनी तालिबानी मानसिकता का परिचय खुद ही देने लगे हैं तो तुम्हें अपने डिफेंस या किसी के विरोध में बोलने की क्या जरूरत। smart decision of Khaps by the way!
पर कुछ भी हो भाई मीडिया, एनजीओ, गोल बिंदी गैंग वालो, अबकी बार आपका शो फ्लॉप ही रहा। वो म्हारे हरयाणे में क्या कहते हैं, 'किमें सुवाद सा ना आया!'
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
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