Saturday, 31 October 2015

एन.सी.आर. और जाटलैंड में दो तरह के बिहारी और दो तरह के ही जाट हैं, बताओ दोनों में फर्क क्या?

पहले दो तरह के कौन-कैसे वो देखते हैं:

दो तरह के बिहारी: एक मजदूर क्लास, दूसरी हाई-फाई मीडिया से ले अफसर क्लास|
दो तरह के जाट: एक ग्रामीण किसान जाट, दूसरा शहरी अफसरी-व्यापार-कारोबार से ले साधन-सम्पन जाट|

अब फर्क समझते हैं:

हाई-फाई मीडिया और अफसर क्लास बिहारी, ना सिर्फ इस बात का ख्याल रखता है कि बिहार से हजार कोस दूर आकर भी उनकी संस्कृति (जैसे छट पूजा मानना इत्यादि) तो कायम रहे ही रहे साथ ही मजदूर क्लास बिहारी से अन्याय ना हो| रवीश कुमार जैसे बिहारी -मूल के रिपोर्टर को देखा है ना यदाकदा एन.सी.आर. में उसके बिहारी मजदूर समाज के दर्द को उठाते हुए?

जबकि शहरी जाट अफसरी-व्यापार-कारोबार से ले साधन-सम्पन जाट, हजार कोस दूर की तो छोड़ो मात्र दस-बीस कोस गाँव से शहर में आकर भी अपनी संस्कृति को संभाले रखने की जिम्मेदारी के बिल्कुल उल्ट सबसे पहले उसी को तोड़ता है और पीछे मुड़ के अपने भाई ग्रामीण जाट किसान के अधिकारों व् सम्मान को कैसे संभाल के रखवाए या रखने में मदद करे इसपे ना कोई विचार, ना संगठन या रुचि|

फिर कहते हैं कि जाटलैंड पर ही जाट अकेले पड़ते जा रहे हैं, सौतेला व्यवहार हो रहा है उनसे| भाई तुम आपस में अपने ही भाईयों से और अपने ही संस्कृति से सौतेला व्यवहार बंद करके देखो पहले, अगर ना वापिस वही बहारें और खुशनुमा फिजायें लौट आये तो|

Jai Yoddhey! - Phool Malik

No comments: