आगे बढ़ने से पहले: मैं यहां गुरु तेगबहादुर की शहादत को
छोटा नहीं दिखा रहा, परन्तु हिन्दुओं को यह बता रहा हूँ कि हिन्दू धर्म की
रक्षा हेतु प्रथम आवाज 1675 में नहीं अपितु 1193 में जाटों द्वारा उठा दी
गई थी| गुरु तेगबहादुर मेरे लिए श्रद्धेय और पूजनीय हैं और सदा रहेंगे|
अब प्रथम हिन्दू और हिन्द रक्षा का वाकया: जाटों ने गौरी के खिलाफ पृथ्वीराज का साथ देते हुए गौरी को हरवाया, परन्तु पृथ्वीराज के चाटुकार दरबारियों ने गौरी को छुड़वा दिया और परिणाम यह हुआ कि गौरी दोबारा आया और दूसरे युद्ध में पृथ्वीराज को ही मार गिराया| 1192 में पृथ्वीराज के बाद, गौरी ने दिल्ली में अपने प्रतिनिधि कुतुबद्दीन को गद्दी पर बैठाया| परन्तु जाट इसको सहन नहीं कर पाये|
सन 1193 ई. में दिल्ली के बादशाह कुतुबुदीन ऐबक के साथ सर्वखाप पंचायत, हरयाणा की सेना ने जाटवान गठवाला जी महाराज के नेतृत्व में 12 वीं सदी का सबसे भयंकर युद्ध हांसी (हिसार) के टिब्बों में लड़ा|
इस युद्ध को मुस्लिम लेखक भी भयंकर मानते हैं| इसमें जाट वीरों ने अपने परंपरागत हथियारों तलवार, लाठी, बल्लम, कुल्हाडी, गंडासी, भाला, बरछी, जेळी, कटार आदि से अंतिम दम तक शाही सैनिकों को कत्ल किया| युद्ध कई दिन चला और जाटवान जी यौद्धेय सहित अधिकतर मल्ल यौद्धेय शहीद हुए|
जीत ऐबक की हुई परन्तु कहते हैं वह अपनी आधी सेना के शवों को देखकर दहाड़-दहाड़ कर रोया और रोते हुए उसने कहा कि मुझे पता होता कि जाट इतने लड़ाकू होते हैं तो वह उनसे भूलकर भी न लड़ता, जाटवान जैसे यौद्धेयों को अपने साथ करके मैं सारी धरती जीत सकता था| इतिहासकार लिखते हैं कि यह पहला अवसर था जब जीतने के बाद भी कोई मुस्लिम शासक
रोते हुए दिल्ली लौटा और उसने जस्न की जगह मातम मनाया|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
अब प्रथम हिन्दू और हिन्द रक्षा का वाकया: जाटों ने गौरी के खिलाफ पृथ्वीराज का साथ देते हुए गौरी को हरवाया, परन्तु पृथ्वीराज के चाटुकार दरबारियों ने गौरी को छुड़वा दिया और परिणाम यह हुआ कि गौरी दोबारा आया और दूसरे युद्ध में पृथ्वीराज को ही मार गिराया| 1192 में पृथ्वीराज के बाद, गौरी ने दिल्ली में अपने प्रतिनिधि कुतुबद्दीन को गद्दी पर बैठाया| परन्तु जाट इसको सहन नहीं कर पाये|
सन 1193 ई. में दिल्ली के बादशाह कुतुबुदीन ऐबक के साथ सर्वखाप पंचायत, हरयाणा की सेना ने जाटवान गठवाला जी महाराज के नेतृत्व में 12 वीं सदी का सबसे भयंकर युद्ध हांसी (हिसार) के टिब्बों में लड़ा|
इस युद्ध को मुस्लिम लेखक भी भयंकर मानते हैं| इसमें जाट वीरों ने अपने परंपरागत हथियारों तलवार, लाठी, बल्लम, कुल्हाडी, गंडासी, भाला, बरछी, जेळी, कटार आदि से अंतिम दम तक शाही सैनिकों को कत्ल किया| युद्ध कई दिन चला और जाटवान जी यौद्धेय सहित अधिकतर मल्ल यौद्धेय शहीद हुए|
जीत ऐबक की हुई परन्तु कहते हैं वह अपनी आधी सेना के शवों को देखकर दहाड़-दहाड़ कर रोया और रोते हुए उसने कहा कि मुझे पता होता कि जाट इतने लड़ाकू होते हैं तो वह उनसे भूलकर भी न लड़ता, जाटवान जैसे यौद्धेयों को अपने साथ करके मैं सारी धरती जीत सकता था| इतिहासकार लिखते हैं कि यह पहला अवसर था जब जीतने के बाद भी कोई मुस्लिम शासक
रोते हुए दिल्ली लौटा और उसने जस्न की जगह मातम मनाया|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
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