Friday, 13 November 2015

बात आस्था या भावनाओं की तो है ही नहीं, क्योंकि!

1) बात आस्था की होती तो चूहे मारने वाली दवा पे रोक होती, क्योंकि वो गणेश का वाहन है| वैसे भी खुद पुजारी ही मंदिरों में अक्सर हाथ में झाड़ू लिए चूहों को गणेश को ही चढ़ाये प्रसाद पर से और सामान्य परिस्थिति में भी भगाते तो सभी ने जिंदगी में देखे ही होंगे?

2) बात आस्था की होती तो सांप मारने वाले और सपेरे जेल में होते, क्योंकि वो शिवजी का कंठहार है|

3) बात आस्था की होती तो पूरे देश में सूअर की पूजा होती और उसके भी मंदिर होते क्योंकि वो विष्णु का वराह अवतार है|

4) बात आस्था की होती तो बंदर प्रयोगशालाओं में ना मरते क्योंकि वो साक्षात बजरंगबली का रूप है|
 

5) बात आस्था की होती तो भैंसे की भी पूजा होती क्योंकि वो ना सिर्फ यमराज वरन शनिदेव का भी वाहन है|
 

6) बात आस्था की होती तो बैल हलों-गाड़ियों में ना जोते और जोड़े जाते, क्योंकि नंदीमहाराज शिवजी भगवान की सवारी हैं|

बात इतनी भी नहीं है कि गाय को सिर्फ मुस्लिम ही खाता या काटता है, क्योंकि भारत के सबसे बड़े 5 कसाईखानों में से 4 तो अकेले स्वर्ण हिन्दूओं के ही हैं, सिर्फ एक मुस्लिम का है| और मुस्लिमों से कहीं अधिक संख्या में हिन्दू गाय का बीफ खाते रहे हैं और आज भी खाते हैं|

तो फिर बात है क्या जो पशुओं का बहाना ले इतना बवाल मचा है? बात यह है कि कुछ शरारती तत्व उन पर सदियों से रही विदेशी गुलामी जंजीरों से मुक्त हो अब खुद उनके नीचे के दबी-कुचली जातियों पर अपना आधियपत्य चाहते हैं| उनके संसाधनों, बौद्धिकता और श्रमशक्ति पर एकाधिकार चाहते हैं| यह है असली झगड़े की जड़, जिसको जितनी जल्दी समझ आई, वो उतना जल्दी पार हुआ समझो|

देश की गुलामी से पहले भी इनकी यही संकीर्णता थी और इतनी लम्बी गुलामी झेल के भी इससे कुछ सीखने को तैयार नहीं, यह लोग|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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