Monday, 16 November 2015

जाति-कौम का प्यार, स्वाभिमान, अभिमान और उसकी प्रकाष्ठा!

अपने आपको यदाकदा जाट जाति से होने पर, उसपे अभिमान होने पर इतराने वाले नादान जाट उस दिन खुद को जाति-प्रेमी या स्वाभिमानी कहना जिस दिन ब्राह्मणों की तरह देश की कोर्ट द्वारा देशद्रोही साबित होने पर फांसी तोड़ दिए जाने वाले नत्थूराम गोडसे की तरह अपनी कौम के अपराधी लोगों को भी राष्ट्रभक्त बना के पेश करना सीख जाओ।

अब कोई जाट मुझे यह मत बोलना कि देशद्रोही हमारे लिए देशद्रोही है फिर वो चाहे जिस कौम का हो। यह मैं इसलिए लिख रहा हूँ क्योंकि बहुत से अंधभक्त जाट भी बने हुए हैं और देश की कोर्ट में साबित हो के कबके फांसी तोड़े दिए जा चुके देश के अपराधी को देशभक्त ठहराने वालों के साथ लगे हुए हैं।

फिर अगर ऐसी ही बात है तो देश की तमाम पुरानी रियासतों और उनके राजाओं को भी अंग्रेजों का साथ देने की शिकायत से मुक्त कर दिया जाना चाहिए, और उनका आदर-मान वापिस स्थापित किया जाना चाहिए, नहीं?

विशेष: कोई ब्राह्मण भाई मेरी इस पोस्ट को अन्यथा ना लेवे, क्योंकि मैं आपके अंदर कौम के प्रति अभिमान और प्रतिष्ठा का जो अनूठा जज्बा है उसका उदाहरण जाट समाज के समक्ष रख रहा हूँ।

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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