मैंने यही जवाब दिया कि, "मुझे आपसे काऊ की भक्ति सीखने की जरूरत नहीं, हर
फसल सीजन पर मेरे घर से तूड़े और अनाज की ट्रॉलियां (लॉरी) जाती हैं
गौशालाओं में| हर इस उस गौशाला फंक्शन्स में दान रुपया जो जाता रहता है वो
अलग से| परन्तु मैं बेवकूफ नहीं हूँ कि जानवर को अपनी माँ कहूँ| आपको अपनी
माँ, अपनी असली इंसान रुपी माँ में नजर नहीं आ के एक जानवर में नजर आती है
तो नजरिया ठीक करें अपना|"
और रही राजनीति में खींचने की बात तो यह उपदेश जा के पहले आरएसएस और बीजेपी को दो, जो जानवरों को जबरदस्ती लोगों के माँ-बाप घोषित करने को उतारू फिर रहे हैं| अधिकतर रंडवे हैं इनमें, अपने घरों को जो त्याग चुके {वो हरयाणवी किस्से की तरह कि किसी की जोरू रूठ के भागी जा रही थी, पीछे-पीछे पति, आगे से बाबा आ रहा था| पति ने भागती बीवी की तरफ इशारा करते हुए हरयाणवी में रुक्का मारा, "हेरिये-बाबा-हेरिये (यानी रोकना बाबा)। बाबा तपाक से बोला, "बच्चा अपणी-ए-छोड्डें फिरूँ!" यानी मैं तो अपना ही घरबार त्यागे फिर रहा, तेरी को क्या हेरुंगा}। तो यह सब अपने-अपने घर से भगोड़े (यहां तक कि खुद पीएम भी) लोग हैं| इनको शायद असली माँ-बाप में माँ-बाप नजर नहीं आये, बीवी-बच्चे तक नजर नहीं आये; इसीलिए जानवरों को माँ-बाप बना यह कमी पूरी कर रहे हैं|
फिर भी करनी है तो अपनी कमी पूरी करें, मेरी तरफ से सिर्फ गाय को माँ ही क्यों, चाहे तो भैंस को मौसी, सांड को बापू, भैंसे को मौसा, बकरी को छोटी बहन आदि-आदि जो चाहे वो बनाओ, परन्तु मुझे किसको माँ कहना है इसके लिए कम से कम खुद निर्णय लेने में सक्षम हूँ|
वैसे मुझे इंतज़ार तो उस दिन और उस जानवर का है, जिसको जब यह लोग "पत्नी" घोषित करेंगे, ठीक वैसे ही जैसे "गाय" को माँ घोषित कर रखा है| जंगल के जानवरों को अर्जी डलवा दो कि इंसानों की "पत्नी" का दर्जा पाने हेतु फुल प्रोफाइल विद एडिशनल फीचर्स भेजें|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
और रही राजनीति में खींचने की बात तो यह उपदेश जा के पहले आरएसएस और बीजेपी को दो, जो जानवरों को जबरदस्ती लोगों के माँ-बाप घोषित करने को उतारू फिर रहे हैं| अधिकतर रंडवे हैं इनमें, अपने घरों को जो त्याग चुके {वो हरयाणवी किस्से की तरह कि किसी की जोरू रूठ के भागी जा रही थी, पीछे-पीछे पति, आगे से बाबा आ रहा था| पति ने भागती बीवी की तरफ इशारा करते हुए हरयाणवी में रुक्का मारा, "हेरिये-बाबा-हेरिये (यानी रोकना बाबा)। बाबा तपाक से बोला, "बच्चा अपणी-ए-छोड्डें फिरूँ!" यानी मैं तो अपना ही घरबार त्यागे फिर रहा, तेरी को क्या हेरुंगा}। तो यह सब अपने-अपने घर से भगोड़े (यहां तक कि खुद पीएम भी) लोग हैं| इनको शायद असली माँ-बाप में माँ-बाप नजर नहीं आये, बीवी-बच्चे तक नजर नहीं आये; इसीलिए जानवरों को माँ-बाप बना यह कमी पूरी कर रहे हैं|
फिर भी करनी है तो अपनी कमी पूरी करें, मेरी तरफ से सिर्फ गाय को माँ ही क्यों, चाहे तो भैंस को मौसी, सांड को बापू, भैंसे को मौसा, बकरी को छोटी बहन आदि-आदि जो चाहे वो बनाओ, परन्तु मुझे किसको माँ कहना है इसके लिए कम से कम खुद निर्णय लेने में सक्षम हूँ|
वैसे मुझे इंतज़ार तो उस दिन और उस जानवर का है, जिसको जब यह लोग "पत्नी" घोषित करेंगे, ठीक वैसे ही जैसे "गाय" को माँ घोषित कर रखा है| जंगल के जानवरों को अर्जी डलवा दो कि इंसानों की "पत्नी" का दर्जा पाने हेतु फुल प्रोफाइल विद एडिशनल फीचर्स भेजें|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
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