Saturday, 7 November 2015

जातिय सेकुलरिज्म अपनाओ, धार्मिक सेक्युलरिज्म को कोसने की नौबत ही नहीं आएगी!

मेरा मानना है कि अगर हिन्दू धर्म में जाति और वर्ण-व्यस्था नहीं बनाई गई होती तो कश्मीरी पंडितों को विस्थापन नहीं झेलना पड़ता|

बात कड़वी है परन्तु जो अंतरात्मा से साफ़ होगा उसको जरूर यह अहसास होगा कि अगर जो हिन्दू वर्ण व् जाति व्यवस्था के ऊपरले पायदान पर बैठा है वो इसके सबसे निचले पायदान पर इन ऊपरलों द्वारा बैठा दिए गए दलित-शूद्र-ओबीसी वर्ग को अपने से ऊपर का ना सही परन्तु अपने बराबर समझने का भी व्यवहार रखे तो कश्मीरी पंडित तो क्या किसी भी हिन्दू के उत्पीड़न पर हर हिन्दू उठ खड़ा होगा|

इसलिए अपनी अंदर की कमियों की वजह से पनपने वाली प्रोब्लम्स को धार्मिक सेक्युलरिज्म के नाम मत मढ़ो और सबसे पहले जातीय सेक्युलर बनो, हिन्दू और हिन्दू धर्म स्वत: सुरक्षित और अजेय हो जायेगा| धार्मिक कटटरता उन्हीं की चली है जो अपने धर्म के अंदर सेक्युलर रहे हों, फिर चाहे वो ईसाई हों या मुस्लिम| वो क्या ख़ाक धार्मिक कट्टर बनेंगे जो अपने धर्म के इंसान के साथ रंग-नस्ल-वर्ण-जाति सरीखी कटटरताएँ निभाते आये हों| और आज भी ना ही इस सिलसिले को रोकने पर कुछ करते हों|

और अगर इस जातिवाद और वर्णवाद को हिन्दू धर्म के ऊपरले पायदान पर बैठे लोग खत्म नहीं करवा सकते तो सेक्युलरिज्म के नाम पर घड़ियाली आंसू बहाना और लोगों को कोसना और रोना छोड़ो| वर्ण व् जाति व्यवस्था के भेदभाव संबंधित विचाधारा और साहित्य को त्यागो, हिन्दुइज्म स्वत: सुरक्षित और अजेय हो जायेगा!

मानवता का सिद्धांत है कि जिस आदमी से तुम सामान्य परिस्थिति में सही व्यवहार नहीं कर सकते, उसको मानवता में बराबरी का दर्जा नहीं दे सकते, आपातकाल में उसकी मदद तो क्या आप उसकी सहानुभूति भी नहीं पा सकते|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक
 
 

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