भारत में दहेज का दावानल कितना क्रूर है इसका इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि हमारे यहां दहेज़ की वजह से होने वाली हत्याओं जिसमें ख़ुदकुशी से ले कत्ल तक शामिल हैं की दर 'एक मृत्यु प्रति घंटा' है| भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा देश है जहां दहेज़ की वजह से होने वाली हत्याओं की दर सबसे ज्यादा है|
हालाँकि इस समस्या का सबसे बड़ा हल तो यही है कि ना दहेज़ लो और ना दो| वैसे आज के बदले माहौल और दहेज कानून के गलत प्रयोग के कारण ऐसे मामले भी बहुत देखे जा रहे हैं जिनमें लड़की पक्ष लड़का पक्ष को बेवजह भी टार्चर करता है, परन्तु ज्यादा संगीन और गंभीर पहलु दहेज़ की वजह से वधुओं की हत्या या आत्महत्या है|
फिर भी एक ऐसा हल भी इस समस्या का है जो आधुनिक भी कहा जा सकता है और इस समस्या से निजात पाने में बहुत सार्थक भी और वो है ब्याह-शादी में पार्टियों-समारोहों-आयोजनों और अपनी पहुँच से बाहर जा कर, दोनों पक्षों द्वारा भोज-आयोजन और बारात के रूप में लोगों को भोज करवाना, बंद करके ऐसे फंक्शन्स पर आने वाले खर्च को दोनों साइड्स इकठ्ठा सीधे वर-वधु को दे देवें|
इस पर आज के दिन अमूमन गरीब-से-गरीब परिवारों का भी पांच-दस लाख और एवरेज परिवारों का बीस लाख व् अमिर परिवारों का तो काउंट भी ना किया जा सके इतना इन्वेस्टमेंट रहता है जबकि इस इन्वेस्टमेंट का आउटपुट होता है शून्य| हाँ कुछ लोग इसको रिलेशन एंड सोशल बिल्डिंग से जरूर जोड़ के बताते हैं, परन्तु इसके साथ यह पहलु भी नहीं नकारा जा सकता कि किसी के दिवालियेपन की कीमत पे सोशल रिलेशंस नहीं बना करते, बनते हैं तो दुःख देते हैं। और दहेज उन्हीं दुखों में से एक है।
और इसी तरफ मेरा इशारा है| अगर दोनों पक्षों द्वारा यह पैसा जो इस तरह से फिजूल उड़ाया जाता है इसको दोनों इकट्ठा करके नव-दम्पत्ति को सीधे-सीधे दे देवें तो मेरा दावा है कि दहेज की अस्सी प्रतिशत समस्या बैठे-बिठाये हल हो सकती है|
और सोशल एंड रिलेशंस बिल्डिंग की उस नवदम्पत्ति को ही सबसे ज्यादा जरूरत होती है, जो तभी सम्भव है जब उनकी जिंदगी को ना सिर्फ दहेज जैसी समस्या से रहित जीवन दिया जावे अपितु उनको आर्थिक तौर पर भी सुरक्षित किया जावे। और इस राह में आज का शादी-ब्याह पैटर्न ही सबसे बड़ा रोड़ा है, जिसमें दहेज भले ही कम चला जाए परन्तु लोगों को जिमाने के बजट में कटौती ना हो।
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
हालाँकि इस समस्या का सबसे बड़ा हल तो यही है कि ना दहेज़ लो और ना दो| वैसे आज के बदले माहौल और दहेज कानून के गलत प्रयोग के कारण ऐसे मामले भी बहुत देखे जा रहे हैं जिनमें लड़की पक्ष लड़का पक्ष को बेवजह भी टार्चर करता है, परन्तु ज्यादा संगीन और गंभीर पहलु दहेज़ की वजह से वधुओं की हत्या या आत्महत्या है|
फिर भी एक ऐसा हल भी इस समस्या का है जो आधुनिक भी कहा जा सकता है और इस समस्या से निजात पाने में बहुत सार्थक भी और वो है ब्याह-शादी में पार्टियों-समारोहों-आयोजनों और अपनी पहुँच से बाहर जा कर, दोनों पक्षों द्वारा भोज-आयोजन और बारात के रूप में लोगों को भोज करवाना, बंद करके ऐसे फंक्शन्स पर आने वाले खर्च को दोनों साइड्स इकठ्ठा सीधे वर-वधु को दे देवें|
इस पर आज के दिन अमूमन गरीब-से-गरीब परिवारों का भी पांच-दस लाख और एवरेज परिवारों का बीस लाख व् अमिर परिवारों का तो काउंट भी ना किया जा सके इतना इन्वेस्टमेंट रहता है जबकि इस इन्वेस्टमेंट का आउटपुट होता है शून्य| हाँ कुछ लोग इसको रिलेशन एंड सोशल बिल्डिंग से जरूर जोड़ के बताते हैं, परन्तु इसके साथ यह पहलु भी नहीं नकारा जा सकता कि किसी के दिवालियेपन की कीमत पे सोशल रिलेशंस नहीं बना करते, बनते हैं तो दुःख देते हैं। और दहेज उन्हीं दुखों में से एक है।
और इसी तरफ मेरा इशारा है| अगर दोनों पक्षों द्वारा यह पैसा जो इस तरह से फिजूल उड़ाया जाता है इसको दोनों इकट्ठा करके नव-दम्पत्ति को सीधे-सीधे दे देवें तो मेरा दावा है कि दहेज की अस्सी प्रतिशत समस्या बैठे-बिठाये हल हो सकती है|
और सोशल एंड रिलेशंस बिल्डिंग की उस नवदम्पत्ति को ही सबसे ज्यादा जरूरत होती है, जो तभी सम्भव है जब उनकी जिंदगी को ना सिर्फ दहेज जैसी समस्या से रहित जीवन दिया जावे अपितु उनको आर्थिक तौर पर भी सुरक्षित किया जावे। और इस राह में आज का शादी-ब्याह पैटर्न ही सबसे बड़ा रोड़ा है, जिसमें दहेज भले ही कम चला जाए परन्तु लोगों को जिमाने के बजट में कटौती ना हो।
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
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