Friday, 20 November 2015

"हिन्दू एकता और बराबरी" के फोबिया से जितना जल्दी हो सके बाहर निकलें!

क्योंकि अगर इसमें ज़रा सी भी सच्चाई होती तो, इस नारे को उछालने वालों द्वारा ही:
1) मुज़फ्फरनगर का जो दंगा हिन्दू-मुस्लिम के टैग से शुरू हुआ था वो बाद में जाट-मुस्लिम बना के प्रचारित ना किया जाता|
2) हरयाणा में जाट बनाम नॉन-जाट का अखाडा ना रचा जाता|
3) बिहार में कुर्मी-यादव बनाम नॉन-कुर्मी-यादव का अखाडा ना रचा जाता|
4) गुजरात में पटेल बनाम नॉन-पटेल का अखाडा ना रचा जाता|
5) महाराष्ट्र में मराठा बनाम नॉन-मराठा का अखाडा ना रचा जाता|
6) इनको हिन्दू एकता की ज़रा सी भी चिंता होती तो हरयाणा में कभी मनोहरलाल खट्टर, कभी राजकुमार सैनी तो कभी रोशनलाल आर्य से जाट समाज के खिलाफ न्यूनतम स्तर की टिप्पणियाँ नहीं करवाते|
यह लक्षण "हिन्दू एकता और बराबरी" की बात करने वालों के तो कदापि नहीं हो सकते, या हो सकते हैं? यह लोग "हिन्दू एकता और बराबरी" को लेकर तंज मात्र भी सीरियस होते तो सबसे पहले हिन्दू धर्म से वर्ण व् जातीय व्यवस्था को खत्म करते, नहीं? दलित-शूद्र-छुआछूत-ऊंच-नीच-रंग-नश्लभेद-लिंगभेद को खत्म करने पे कार्य करते? क्या दिखा ऐसा कार्य आजतक एक भी इन ऐसी बात करने वालों का?
कबीले गौर है कि आरएसएस और बीजेपी के कैडर से अगर यह पूछा जाए कि है उनके द्वारा कितने भारतीय गाँवों से दलित-शूद्र-छुआछूत-ऊंच-नीच-रंग-नश्लभेद-लिंगभेद को खत्म करवाया जा चुका है? कितने ऐसे मंदिर हैं जिनके आगे से इनके द्वारा "दलित प्रवेश निषेध" की तख्तियां हटवाई जा चुकी हैं? हिन्दुओं में मौजूद औरतों को जानवर स्तर का गुलाम बना के रखने वाली तालिबानी प्रथाओं जैसे कि विधवा पुनर्विवाह निषेध, सतीप्रथा, देवदासी, पहली बार व्रजस्ला हुई नाबालिग लड़की का मंदिरों में सार्वजनिक भोग, औरत का मंदिर में पुजारी बनना लगभग नगण्य आदि-आदि, इनमें से कितनियों को बंद करवाया है इन लोगों ने? पूछने लग जाओ तो जवाब आएगा शायद एक भी नहीं?
तो किस बात की "हिन्दू एकता और बराबरी"? हवाईयों की या ख्वाबों की "हिन्दू एकता और बराबरी"?
यह लोग क्या सोचते हैं कि इनकी थोथी हवाईयों पे चढ़े चले जाओ और इस धरातलीय भयावह कर देने वाली सच्चाई को नजर-अंदाज करके किसी भोंपू की तरह सिर्फ "हिन्दू एकता और बराबरी" चिल्लाने मात्र से हिन्दुओं में "एकता और बराबरी" आ जाएगी?

कड़वा और चुभता सच तो यह है कि यह लोग जितनी धार्मिक सेक्युलरिज्म से नफरत करते हैं उससे भी बढ़ के जातीय सेक्युलरिज्म से नफरत करते हैं| और जो जातीय सेक्युलरिज्म से धार्मिक सेक्युलरिज्म से भी बढ़ के नफरत करते हों, वह लोग "हिन्दू एकता और बराबरी" कैसे ला देंगे? और यह इस दिशा में कभी ना तो थे और ना हो सकते, ऊपर बताये उदाहरण इसका मुंह-चिढ़ाता प्रमाण हैं|
गौर फ़रमाओ तो दिन की रौशनी से भी ज्यादा स्पष्ट दीखता है कि यह "हिन्दू एकता और बराबरी" इन द्वारा फेंका हुआ भारतीय राजनीति का आजतक का सबसे काला जुमला है और सबसे बदनुमा मजाक है हिन्दू समाज के साथ| इस जुमले के प्रभाव से देश जितना जल्दी बाहर निकल आएगा, उतना जल्दी गृहयुद्ध के साथ-साथ अपनी अवनति और बर्बादी को टाल सकेगा|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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