आरएसएस कितने बड़े जंगलराज के सिद्धांत पर चलती है इसका नमूना संघ प्रमुख गोलवलकर द्वारा 8 जून, 1942 में आरएसएस. के नागपुर हेडक्वार्टर पर दिए गए इस भाषण में साफ़ झलकता है – “संघ किसी भी व्यक्ति को समाज के वर्तमान संकट के लिये ज़िम्मेदार नहीं ठहराना चाहता। जब लोग दूसरों पर दोष मढ़ते हैं तो असल में यह उनके अन्दर की कमज़ोरी होती है। शक्तिहीन पर होने वाले अन्याय के लिये शक्तिशाली को ज़िम्मेदार ठहराना व्यर्थ है।…जब हम यह जानते हैं कि छोटी मछलियाँ बड़ी मछलियों का भोजन बनती हैं तो बड़ी मछली को ज़िम्मेदार ठहराना सरासर बेवकूफ़ी है। प्रकृति का नियम चाहे अच्छा हो या बुरा सभी के लिये सदा सत्य होता है। केवल इस नियम को अन्यायपूर्ण कह देने से यह बदल नहीं जाएगा।”
तो क्या इसका मतलब "जंगल में दिमाग नहीं होता, इंसान में होता है", "इंसान में भावना और हृदय होता है जंगली में नहीं" आदि-आदि आध्यात्मिक तर्कों से जंगली और इंसानियत को अलग-अलग दिखाने वाले मानवीय सभ्यता और अनुभूति कहे जाने वाले इन तथ्यों की थ्यूरीयों और मनोविज्ञान को आरएसएस नकार के, जंगलराज की पद्द्ति पर चलता है? कम से कम इनके फॉउंडिंग गुरु का इंटेलेक्ट तो यही कहता है।
मतलब इसके साथ ही यह जनाब इस बात को भी सत्यापित करते थे कि ब्रिटिश रुपी शक्तिशाली हम शक्तिहीन भारतियों पर राज कर रहे हैं, जुल्म कर रहे हैं तो उसमें उनका कोई दोष नहीं। कमाल है ऐसी सोच वाले देशभक्ति और राष्ट्रभक्ति का जुमला उठा कैसे लेते हैं, मुझे तो सोच के अचरज होता है।
इसका एक संकेत और साफ़ है कि कल को अगर हम फिर से गुलाम बन गए तो यह लोग "अपने गुरु की इस परिभाषा" के अनुसार सबसे पहले गुलामी स्वीकार करने वालों में होंगे। यह है इनकी थोथी कोरी जुमलों वाली राष्ट्रवादिता की परिभाषा।
इससे यह बात भी समझी जा सकती है कि बिहार चुनाव में प्रधानमंत्री बार-बार क्यों जंगलराज-जंगलराज पुकार रहे थे, शायद इनकी खुद की जंगलराज की थ्योरी जनता की नजर में ना चढ़े इसलिए।
फूल मलिक
तो क्या इसका मतलब "जंगल में दिमाग नहीं होता, इंसान में होता है", "इंसान में भावना और हृदय होता है जंगली में नहीं" आदि-आदि आध्यात्मिक तर्कों से जंगली और इंसानियत को अलग-अलग दिखाने वाले मानवीय सभ्यता और अनुभूति कहे जाने वाले इन तथ्यों की थ्यूरीयों और मनोविज्ञान को आरएसएस नकार के, जंगलराज की पद्द्ति पर चलता है? कम से कम इनके फॉउंडिंग गुरु का इंटेलेक्ट तो यही कहता है।
मतलब इसके साथ ही यह जनाब इस बात को भी सत्यापित करते थे कि ब्रिटिश रुपी शक्तिशाली हम शक्तिहीन भारतियों पर राज कर रहे हैं, जुल्म कर रहे हैं तो उसमें उनका कोई दोष नहीं। कमाल है ऐसी सोच वाले देशभक्ति और राष्ट्रभक्ति का जुमला उठा कैसे लेते हैं, मुझे तो सोच के अचरज होता है।
इसका एक संकेत और साफ़ है कि कल को अगर हम फिर से गुलाम बन गए तो यह लोग "अपने गुरु की इस परिभाषा" के अनुसार सबसे पहले गुलामी स्वीकार करने वालों में होंगे। यह है इनकी थोथी कोरी जुमलों वाली राष्ट्रवादिता की परिभाषा।
इससे यह बात भी समझी जा सकती है कि बिहार चुनाव में प्रधानमंत्री बार-बार क्यों जंगलराज-जंगलराज पुकार रहे थे, शायद इनकी खुद की जंगलराज की थ्योरी जनता की नजर में ना चढ़े इसलिए।
फूल मलिक
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