आपने अक्सर राष्ट्रवादी एजेंटो और इनके कार्यकर्ताओं को यदाकदा आपको रिझाने अथवा अपने प्रभाव में लेने के लिए अक्सर एक माइनॉरिटी रिलिजन की यह कह के बुराई करते हुए आपको डराने के प्रयास करते हुए देखा होगा कि "देखो जब यह 10-15 प्रतिशत होते हैं तो यह आपके नीचे रहते हैं, जैसे ही 25-30% हुए तो आपसे बराबरी करने लगते हैं और सर उठाने लगते हैं और जैसे ही यह 40-50% पहुंचे तो आपको दबाने की कोशिश करते हैं और अगर हुए 50% से ज्यादा तो आपको कुचल देते हैं| इसलिए इनके चलते हम और हमारा धर्म खतरे में हैं, इनको मारो, काटो इनसे नफरत करो; आदि-आदि!"
परन्तु वास्तविक हकीकत यह है कि यह लोग खुद इनसे भी क्रूर हैं| इनकी यह क्रूरता ढंकी रहे, इसलिए इन बातों को माइनॉरिटी रिलिजन का निशाना बना के आमजन को डराते हैं, अधिनायकवाद पैदा करते हैं|
सनद रहे मैं यहां किसी को अच्छा अथवा बुरा साबित नहीं कर रहा, ना तथाकथित राष्ट्रवादियों को, ना माइनॉरिटी को और ना ही खुद को| मैं जो सामने रखना चाहता हूँ वो यह कि बुरों में सबसे बुरा कौन है और अच्छों में सबसे अच्छा कौन और कितना|
तो राष्ट्रवादी इनके द्वारा बताये लोगों से भी अधिक बुरा कैसे है; जब इनको संख्या-पैसा और पावर मिलती है तो यह कैसे विश्व की क्रूरतम सभ्यता साबित होती है उसका पटाक्षेप दिखाना चाहता हूँ|
राष्ट्रवादी जब दीनहीन-कमजोर रहता है तो बैठ के षड्यंत्र रचता है, समाज को विघटित करने की प्रणलियों पर मंथन करता है| फिर इनको समाज में एक्सपेरिमेंट के तौर पर फेंकता है, जोनसा एक्सपेरिमेंट सफल हो जाए फिर उसको उठा के भुनाता है| जब तक इसके हाथ में संसाधन और दौलत नहीं आते, तब तक यह भीख भी मांगता है| जी हजूरी, चापलूसी और चमचागिरी भी करता है, ऐसा नहीं है कि बाकी नहीं करते| परन्तु यह दुसरे को नुक्सान पहुंचाने की मंशा से करते हैं, खुद के फायदे तक करते हों, उस तक सिमिति नहीं रहते। तो जब तक इनकी यह गरज रहेंगी तब तक आपकी ठोडी पे हाथ रख-रख के कब ठोडी के नीचे मुक्का दे मारे, इसका पता आपको तभी चलता है जब आपके पैर उखड़ के ऊपर हो चुके होते हैं| फिर जब धीरे-धीरे इसको सत्ता और पैसा नजदीक आता दीखता है तो समाज को जातपात के नाम पर बाँट कर, हर जाति की दुसरे के प्रति घृणा और कमजोरी को भुना कर आपको विघटित कर देता है| और अंत में जब इसके हाथ में सत्ता होती है तो फिर दिन-दोपहरी दिखा-दिखा के आपपे सितम ढाता है|
अभी देख लो हरयाणा में "धान-खरीद" घोटाला दिन-दोपहरी सबकी आँखों के सामने हुआ है| जब तक सत्ता हाथ नहीं आई थी जाट बनाम नॉन-जाट का जहर दबी जुबान करते थे और अब कैसे खुल्लेआम कर रहे हैं| दलितों पे अत्याचार दोगुने हो चुके हैं| दलितों को कुत्ता तक कह जाते हैं, जाटों को भी लठमार, लठबाज, लठतंत्र और पता नहीं क्या-क्या; जबकि खुद लाठी कंधे पे रख के चलते हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि जाट लठ समाजहित में उठाता है और यह लोग समाज के विघटन हेतु।
अत: इनका कोई एजेंट राष्ट्रवाद के नाम पर आपको भड़काने आवे तो उसको बोलो कि जा पहले हिन्दू धर्म में जातीय सेक्युलरवाद ला यानी वर्णव्यस्था और जातीय व्यवस्था को मिटा; वरना तब तक माइनॉरिटी से हमें खतरा है कि नहीं उसकी परवाह करनी तू छोड़ दे| क्योंकि तेरी चिंता करने से ना ही तो सोमनाथ का मंदिर लूटने से बचा था, ना ही पृथ्वीराज की जान बची थी, ना ही बाबर को रोका जा सका था, ना ही तैमूरलंग वापिस भेजा गया था, ना ही बिन कासिम तुझसे रोका गया था| इसलिए जा और किसान-दलित-कमेरे के लिए अपनी सरकार से कुछ करवा सकता हो तो ठीक, अन्यथा यह थोथे थूक कहीं और जा के बिलो| इन तिलों में तेल नहीं जो तू मेरे आगे झाड़ रहा है|
इनको सुपोर्ट, ताकत और पैसा देने का क्या नतीजा होता है, वर्तमान हरयाणा और यहाँ की कृषक जातियों से चल रहे इनके दुर्व्यवहार को देखकर भली-भांति समझा सकता है।
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
परन्तु वास्तविक हकीकत यह है कि यह लोग खुद इनसे भी क्रूर हैं| इनकी यह क्रूरता ढंकी रहे, इसलिए इन बातों को माइनॉरिटी रिलिजन का निशाना बना के आमजन को डराते हैं, अधिनायकवाद पैदा करते हैं|
सनद रहे मैं यहां किसी को अच्छा अथवा बुरा साबित नहीं कर रहा, ना तथाकथित राष्ट्रवादियों को, ना माइनॉरिटी को और ना ही खुद को| मैं जो सामने रखना चाहता हूँ वो यह कि बुरों में सबसे बुरा कौन है और अच्छों में सबसे अच्छा कौन और कितना|
तो राष्ट्रवादी इनके द्वारा बताये लोगों से भी अधिक बुरा कैसे है; जब इनको संख्या-पैसा और पावर मिलती है तो यह कैसे विश्व की क्रूरतम सभ्यता साबित होती है उसका पटाक्षेप दिखाना चाहता हूँ|
राष्ट्रवादी जब दीनहीन-कमजोर रहता है तो बैठ के षड्यंत्र रचता है, समाज को विघटित करने की प्रणलियों पर मंथन करता है| फिर इनको समाज में एक्सपेरिमेंट के तौर पर फेंकता है, जोनसा एक्सपेरिमेंट सफल हो जाए फिर उसको उठा के भुनाता है| जब तक इसके हाथ में संसाधन और दौलत नहीं आते, तब तक यह भीख भी मांगता है| जी हजूरी, चापलूसी और चमचागिरी भी करता है, ऐसा नहीं है कि बाकी नहीं करते| परन्तु यह दुसरे को नुक्सान पहुंचाने की मंशा से करते हैं, खुद के फायदे तक करते हों, उस तक सिमिति नहीं रहते। तो जब तक इनकी यह गरज रहेंगी तब तक आपकी ठोडी पे हाथ रख-रख के कब ठोडी के नीचे मुक्का दे मारे, इसका पता आपको तभी चलता है जब आपके पैर उखड़ के ऊपर हो चुके होते हैं| फिर जब धीरे-धीरे इसको सत्ता और पैसा नजदीक आता दीखता है तो समाज को जातपात के नाम पर बाँट कर, हर जाति की दुसरे के प्रति घृणा और कमजोरी को भुना कर आपको विघटित कर देता है| और अंत में जब इसके हाथ में सत्ता होती है तो फिर दिन-दोपहरी दिखा-दिखा के आपपे सितम ढाता है|
अभी देख लो हरयाणा में "धान-खरीद" घोटाला दिन-दोपहरी सबकी आँखों के सामने हुआ है| जब तक सत्ता हाथ नहीं आई थी जाट बनाम नॉन-जाट का जहर दबी जुबान करते थे और अब कैसे खुल्लेआम कर रहे हैं| दलितों पे अत्याचार दोगुने हो चुके हैं| दलितों को कुत्ता तक कह जाते हैं, जाटों को भी लठमार, लठबाज, लठतंत्र और पता नहीं क्या-क्या; जबकि खुद लाठी कंधे पे रख के चलते हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि जाट लठ समाजहित में उठाता है और यह लोग समाज के विघटन हेतु।
अत: इनका कोई एजेंट राष्ट्रवाद के नाम पर आपको भड़काने आवे तो उसको बोलो कि जा पहले हिन्दू धर्म में जातीय सेक्युलरवाद ला यानी वर्णव्यस्था और जातीय व्यवस्था को मिटा; वरना तब तक माइनॉरिटी से हमें खतरा है कि नहीं उसकी परवाह करनी तू छोड़ दे| क्योंकि तेरी चिंता करने से ना ही तो सोमनाथ का मंदिर लूटने से बचा था, ना ही पृथ्वीराज की जान बची थी, ना ही बाबर को रोका जा सका था, ना ही तैमूरलंग वापिस भेजा गया था, ना ही बिन कासिम तुझसे रोका गया था| इसलिए जा और किसान-दलित-कमेरे के लिए अपनी सरकार से कुछ करवा सकता हो तो ठीक, अन्यथा यह थोथे थूक कहीं और जा के बिलो| इन तिलों में तेल नहीं जो तू मेरे आगे झाड़ रहा है|
इनको सुपोर्ट, ताकत और पैसा देने का क्या नतीजा होता है, वर्तमान हरयाणा और यहाँ की कृषक जातियों से चल रहे इनके दुर्व्यवहार को देखकर भली-भांति समझा सकता है।
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
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